रक्त से सनी
भूमि
सुर्ख नहीं
हरी भरी
फलती फूलती
कलकल निनाद से
बहती श्वेत धारा
धो डालती है
सारे पाप
गंगा…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 31, 2012 at 4:00pm — 4 Comments
कुछ विपत्तियों के चलते में मुशायरे में वक़्त नहीं दे पाया इसके लिए सभी अग्रजों गुरुजनों और सदस्यों से क्षमा चाहता हूँ आशा है अनुज को क्षमा करेंगे
आज कुछ उबरा तो सोचा कुछ लिखूं
हर काम निराला माँ लगता है कहानी है
दुर्गा है तू ही काली माँ आदि भवानी है
दिन रात भरा रहता दरबार ये मैया का…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 30, 2012 at 7:04pm — 4 Comments
================गायत्री छंद=====================
यह इस छंद पर सिर्फ एक प्रयोग है अंतरजाल के माध्यम से मिली जानकारी के अनुसार
२४ वर्णों के इस छंद में इसमें तीन चरण होते हैं
इस छंद का इक विधान जो गायत्री मंत्र की तरह ही है
विधान -\\१ भगण १रगण १ मगण १ तगण......१ भगण १ यगण १ रगण १ जगण\\…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 17, 2012 at 12:00pm — No Comments
आप सभी को शारदीय नवरात्र की अनेकानेक शुभकामनाएं
"गायत्री छंद"
विधान -\\१ भगण १रगण १ मगण १ तगण......१ भगण १ यगण १ रगण १ जगण\\
२ १ १ - २ १ २ - २ २ २ - २ २ १ , २ १ १ - १ २ २ - २ १ २ - १ २ १
माँ कमला सती दुर्गा दे दो भक्ति, हो तुम अनंता माँ महान शक्ति ||…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 17, 2012 at 10:30am — No Comments
==========ग़ज़ल===========
बहरे - रमल मुसम्मन मह्जूफ़
वज्न- २ १ २ २- २ १ २ २ - २ १ २ २- २ १ २
पीर है खामोश भर के आह चिल्लाती नहीं
वो सिसकती है ग़मों में नज्म तो गाती नहीं
बाद दंगों के उडी हैं इस कदर चिंगारियाँ
आग है सारे दियों में तेल औ बाती नहीं
जिन सफाहों पर गिराया हर्फे-नफ़रत का जहर
हैं सलामत तेरे ख़त वो दीमकें खाती नहीं
चाँद को पाने मचलता जब समंदर…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 16, 2012 at 2:00pm — 14 Comments
======ग़ज़ल=======
बह्र ए खफीफ
वजन- २ १ २ २ , १ २ १ २ , २ २
यूँ बिछड़ने की ये अदा कैसी
इक मुलाक़ात की दुआ कैसी
जख्म दिल के हमारे भरने को
चश्म छलका रहे दवा कैसी
रात…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 12, 2012 at 3:38pm — 9 Comments
========ग़ज़ल=========
बह्रे - मुतकारिब मुसम्मन् महजूफ
वजन- १ २ २ - १ २ २ -१ २ २ - १ २
मुहब्बत है तो फिर जताओ जरा
ये पर्दा हया का उठाओ जरा
अजी मुस्कुराते हो क्यूँ आह भर
है क्या राज दिल में बताओ जरा…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 10, 2012 at 1:55pm — 9 Comments
===========ग़ज़ल===========
बहरे- हजज
वजन- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २
सिपाही मुल्क की सरहद पे सुबहो शाम क्या देखे
कटाने सर कफ़न बांधे खड़ा अंजाम क्या देखे
गरीबी ने मिटा डाला…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 9, 2012 at 2:30pm — 19 Comments
===========ग़ज़ल===========
बहरे- हजज
वजन- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २
सुबह भी स्याह जिसकी वो सुहानी शाम क्या देखे
वो मारा फुर्कतों का रात का अंजाम क्या देखे
लगा कर हौसलों के पर परिंदा इश्क का…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 9, 2012 at 12:30pm — 14 Comments
======ग़ज़ल========
बह्रे मुतकारिब मुसम्मन् सालिम
वजन- १२२ १२२ १२२ १२२
छुड़ा हाथ अपना वो जाने लगे हैं
मनाने में जिनको जमाने लगे हैं
लिया था ये वादा गिराना न आँसू
वो यादों में आ कर रुलाने लगे हैं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 6, 2012 at 2:00pm — 6 Comments
इक ग़ज़ल पेशेखिदमत है दोस्तों आप सभी के जानिब
बहर है--> मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ महजूफ
वजन है--> २२१-२१२१-१२२१-२१२
हिंदी का रंग आज यूँ रंगीन हो गया
भारत बदल के जैसे अभी चीन हो गया
मुझसे बड़ा गुनाह ये संगीन हो गया
दिल टूटने…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 5, 2012 at 2:00pm — 12 Comments
वो मेरे सामने न आया है
जिसे भी आइना दिखाया है
मुसलसल चोट हर घडी खा के
सनम में ये निखार आया है
जिगर क्या तार तार करने को
ये किस्सा दर्द का सुनाया है
फरेबी बे-अदब चरागों ने…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 3, 2012 at 4:00pm — 1 Comment
"अच्छा लगता है" के तारतम्य में कुछ मुक्तक पेश हैं दोस्तों
कुछ लोगों को गंजे पर मुस्काना अच्छा लगता है
झड़ते अपने बालों को सहलाना अच्छा लगता है
इक दिन वो भी ऐसे ही हो जायेंगे हँसने लायक
लेकिन हँसते हँसते मन बहलाना अच्छा लगता है
टपरे पे जा सौ का नोट…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 3, 2012 at 11:23am — 4 Comments
अनजान हैं जो कह रहे, जाहिल हैं बेटियाँ
दुनिया में अब हर काम के, काबिल हैं बेटियाँ
तौरो तरीके बा-अदब, रखना हैं जानती
इस दौर में बेटों के मुक़ाबिल हैं बेटियाँ
कुर्बान खुद को कर रही, उल्फत-ए-मुल्क पर
अब जंग के मैदाँ में भी शामिल हैं बेटियाँ
मौजे तमन्ना गर कोई, तूफाँ खड़ा करें
जो थाम ले हर मौज वो साहिल हैं बेटियाँ
सबको यहाँ संवारतीं बन बेटी माँ बहन
इंसान की नेकी का ही हाशिल हैं बेटियाँ
संदीप पटेल "दीप"
सिहोरा ,…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 1, 2012 at 1:58pm — 12 Comments
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