संतरी
कई पहरेदार बदले,पर हालत नहीं बदली। मंदिर के सामान गायब होते रहे। हारकर पंचायत ने काली कुतिया के जने कजरे को संतरी बहाल किया।कारण था कि कजरा रात भर में गाँव के सभी दरवाजों पर भौंक आता था। यह भी तय हुआ कि अब कुत्तों को ‘संतरी’ कहा जाएगा। आदमी पर से भरोसा उठ चुका था।
कजरा काम पर लग गया। रातभर मंदिर के आसपास घूमता। भौंकता। गाँव भर के ‘संतरी’ भी भौंकते।लेकिन अब नित नई-नई शिकायतें आने लगीं।
‘मंदिर के…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 27, 2022 at 11:06am — 2 Comments
कफनचोर
‘छोड़ा ही क्या है इसने?’
‘घर के पिछवाड़े तक की जमीन बेच दी।’
‘भुवन के घर की यारी ऐसे ही फलती है।’
‘भगेलू की भौजाई से रिश्ता था इसका।’
‘मरने लगा तो बहन के घर इलाज कराने गया था।’
शीला मरा पड़ा था और गाँव के मर्द-औरत यही सब बतिया रहे थे। अर्थी तैयार हुई।लाश उसपर रख दी गई।अब अर्थी उठने ही वाली थी कि सब लोग चौंक गए। ‘ठहरो। अर्थी नहीं उठेगी।’ भार्गव ज़ोर से चिल्लाया। साथ…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 23, 2022 at 3:55pm — 6 Comments
अपनी अपनी खुशी
ऊँचका घर यानि बाबा घर में लंबी प्रतीक्षा के बाद पोता हुआ है।पोतियाँ पहले से हैं। परिवार के कुछ लोग शहर से आए हैं। मिठाइयाँ बंट रही हैं। मुहल्ले के लोग मिठाई खाते,खुशी का इजहार करते। कोई कहता, ‘बस यही कमी…
Added by Manan Kumar singh on October 20, 2022 at 6:00pm — 4 Comments
लाल रुमाल
‘रेल लाइन पर भिनुसार वाली गाड़ी से एक औरत कटी मिली। हाथ में लाल रुमाल था .... उसपर हरे रंग में लिखा था ... जगदीश।’ सुबह होते यह खबर सारे गाँव में फैल गई। ‘कौन ? कहाँ की?’ जैसे सवाल हवा में तैरने लगे। रेल लाइन के पास ही गाँव के बड़े ब्रह्म के चबूतरे पर कुछ औरतें इकट्ठा हैं; कुछ बाबा को पूजने आई हैं, कुछ घसियारिनें हैं। चिड़ई भौजी उनसे मुखातिब हैं। एक…
Added by Manan Kumar singh on October 18, 2022 at 1:30pm — 8 Comments
भाई
‘बुल्लु की शादी का कर्ज़ अभी सिर पर है..... और वह मर गई।’ इतना कह चेंथरु लगा फफक पड़ेगा, पर उसने अंदर के तूफान को थाम लिया।शायद पड़ोस के भाई से झिझक हो कि शिकायत हो जाएगी।पर, उसकी आँखें भींग गई थीं। अँधेरे में भी उसकी आवाज सब कुछ जाहिर कर रही थी।
‘दुख हुआ सब सुनकर, चेंथरु।’ ढाढस बांधते हुए मास्टर जी बोले।
‘भइया, कोई पूछेवाला नहीं था कि कुछ मदद चाहिए…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 16, 2022 at 11:49am — 3 Comments
जिज्ञासा
पार्क से आते ही मोनू ने सवाल किया, ‘पापा, अपनी कार रात को झुग्गीवाले मुहल्ले में क्यों जाती है?’
‘बिजनेस के सिलसिले में?’
‘तो उसमें चढ़कर लड़कियाँ कहाँ जाती हैं?’
‘काम पर, बेटे।’ सेठ ने बेटे को संतुष्ट करना चाहा।
‘रात को कौन-सा काम होता है,पापा?’
‘ढेर-सारे काम हैं,बेटे।जैसे कॉल सेंटर वगैरह,जो रात…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 15, 2022 at 5:53pm — 7 Comments
एडमिशन
‘मम्मी, मेरा एडमिशन………।' कॉलेज से आती बबली अपनी बात पूरी करती कि फोन की घंटी घनघनाई, ‘....ट्रीन..ट्रीन..।' मालती ने फोन उठाया। बबली अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।
‘हेलो मालती, मैं सुविधा बोल रही हूँ। सुविधा ठक्कर।'
‘हाँ बोलो।' मालती ने बेरुखी से कहा।
‘तुम मिली समीर से?’
‘सोचती हूँ,मिल ही लूँ।'
‘अभी सोच ही रही है तू?’ सुविधा ने जरा डपट कर…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 12, 2022 at 4:51pm — 14 Comments
कुत्तों के दो गुट थे,झबड़ा गुट और कबड़ा गुट।दोनों गुट एक –दूसरे के धुर विरोधी थे।पहले गुट का प्रभाव क्षेत्र विस्तृत था, दूसरे का सीमित। दूसरा गुट अपने क्षेत्र में छीनाझपटी, काटाकुटी के लिए ज्यादा मशहूर था।तीसरी जमात कबड़ी नाम की एक काली कुतिया की थी। वह धूर्तता के लिए विख्यात थी। गोस्त वगैरह की हवा लगते ही वह दुम हिलाती वहाँ पहुँच जाती। कबड़ी की गाढ़ी दोस्ती एक सफेद, भूरी आँखों वाली लबड़ी नाम की बिल्ली से थी। वह दूध -मलाई, गोस्त वगैरह की खबर कबड़ी कुतिया को देती रहती।
कबड़ी कभी…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 10, 2022 at 10:49am — 2 Comments
आज इन्दुमति की शादी है। दलन पाठक पुरोहित हैं। इन्दु के घरवालों के सम्मुख उसे पातिव्रत्य-धर्म की शिक्षा दे रहे है, ‘औरत का सब कुछ पति के लिए होता है। अपना संचित पुण्य, सुरक्षित शील वह मिलन की पहली रात में अपने पति को समर्पित कर धन्य होती है ........।’ बाबा बोलते जाते हैं। घरवाले मुंड हिला-हिलाकर उनकी बातों का समर्थन करते हैं। बीच-बीच में इन्दु से भी पाठक जी पूछ लेते हैं, ‘समझ रही हो न कन्या?’ बेटी नहीं कहते हैं। उन्हें कुछ-कुछ…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 8, 2022 at 5:34pm — 2 Comments
‘बदलू नेता का चौदह वर्ष का एकमात्र बेटा ड्रग के ओवरडोज से मर गया। धंधेबाज गंगुआ की गिरफ्तारी हुई है।’ यह खबर शहर के गली-मुहल्ले में आग की तरह फैल गई।लोग कहने लगे, ‘यह बदलू तो पहले चवन्नी छाप पिछलग्गू नेता हुआ। इधर-उधर करके एक बार पार्षद भी बन गया था।इतना घपला-घोटाला किया-कराया कि इसका एक पैर हमेशा जेल में रहता।एक मामले में बाहर आता,दूसरे में गिरफ्तार हो जाता।बाद में इसने चरस-गाँजे का धंधा शुरू किया। जेल भी गया। जहाँ-तहाँ कुछ दे-लेकर…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 7, 2022 at 10:42am — 2 Comments
सुषमा ने तकिया समीर के सिरहाने कर दी थी।अपना सिर किनारे पर रखा था जो कभी ढुलक कर तकिये से उतर गया था।दोनों गहरी निद्रा में निमग्न थे।अचानक समीर ने करवट बदली।दोनों के नथुने टकराये।उसे आभास हुआ कि सुषमा का सिर तकिया पर नहीं, नीचे है।उसने आँखें खोली। उसे महसूस हुआ ,सुषमा दायीं करवट लेटी थी।उसकी उष्ण साँसें समीर को अच्छी लगीं।वह उसे तकिये पर लाने की कोशिश करने लगा।हालांकि वह चाहता था कि काम भी हो जाये और सुषमा की निद्रा भंग भी न हो।पर जैसे उसने उसे बाँहों में लेकर उसका…
Added by Manan Kumar singh on October 5, 2022 at 5:15pm — 2 Comments
फिर जंगल का राजा हाथी ही बना है।पर, अब उसके साथ बिल्लियाँ, भेड़ें आदि हैं। भेड़ियों की बहुतायत है।समरसता, न्याय, सबको काम देने का ऐलान हो चुका है।उधर शेर -मंडल दहाड़ मारकर जंगल को सिर पर उठाए है कि इस ढुलमुल हाथी को उनलोगों ने ही पाल -पोसकर बड़ा किया।काम लायक बनाया,पर यह तो पाला- बदलू निकला।इसपर कोई क्या भरोसा करेगा? राज -पक्ष की ओर से इन सब बातों को विधवा -विलाप करार दिया गया है। शेर -दल की अब बिल्लों के दल से…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 4, 2022 at 10:40am — 2 Comments
'कभी- कभी विपरीत विचारों में टकराव हो जाता है।चाहे- अनचाहे ढंग से अवांछित लोग मिल जाते हैं,या वैसी स्थितियाँ प्रकट हो जाती हैं। या विपरीत कार्य- व्यवसाय के लोगों के बीच अपने- अपने कर्तव्य- निर्वहन को लेकर मरने- मारने तक की नौबत आ जाती है। यदा- कदा तो परस्पर की लड़ाई- भिड़ाई में प्राणी इहलोक- परलोक के बीच का भेद भी भुला बैठते हैं।अभी यहाँ हैं,तो तुरंत ऊपर पहुँच जाते हैं।पहुँचा भी दिए जाते हैं।' प्रोफेसर पांडेय ने अपना लंबा कथन समाप्त किया। मंगल और झगरू उनका मुँहदेखते रह…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 3, 2022 at 8:03pm — 4 Comments
‘मीलॉर्ड! इसने मुझे हमेशा गलत ढ़ंग से छुआ है,मेरी रजा के खिलाफ भी।’
‘और?’
‘मुझे नींद से भी जगाता रहा है।’
‘कब से?’
‘शुरू से ही।’
‘फिर भी?’
‘तबसे जब मैं कली हुआ करता था।’ फूल ने अपनी वेदना का इजहार किया।
जज ने अपने कोट में लगे फूल की तरफ देखा।वह अपनी जगह पर कायम था,शांतिपूर्वक।जज को तसल्ली हुई।
‘फिर आज क्या हुआ?’
‘आज तो कुछ नहीं हुआ,मीलॉर्ड! पर अब भी इसकी आदतें तब्दील नहीं हुईं।यह आज भी कलियों को परेशान करता है।फूलों की नींद हराम…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 1, 2022 at 5:00pm — 4 Comments
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