For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sheikh Shahzad Usmani's Blog – October 2018 Archive (12)

"जा..जा..जा!" (लघुकथा)

"सर्वेषां स्वस्तिर्भवतु । ... सर्वेषां शान्तिर्भवतु । ... सर्वेषां पूर्नं भवतु । ... सर्वेषां मड्गलं भवतु ॥" इस 'वैश्विक-प्रार्थना' के स्वर जब उसने सुने तो उसकी आंखों में आंसू आ गए।

"तुम कौन हो? इतने भव्य मुकाम पर चमकते हुए भी यूं क्यूं रो रहे हो" उसके कंधे पर स्वयं को संतुलित करते हुए 'प्रार्थना' गाने वाले 'शान्ति' के प्रतीक ने कहा।

"मैं... मैं हूं विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति.. सुनहरी मूर्ति.. सरदारों की सरदार! .. पर तुम अपने काम छोड़कर यहां कैसे?" आंखों से कुछ और अश्रु लुढ़काते…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 31, 2018 at 6:30am — 5 Comments

'मच्छर' (लघुकथा)

"जब ओज़ोन परत में छेद हो सकता है; ब्रह्मांड में ब्लैक होल हो सकते हैं! तो जबरन बनायी और थोपी गई मच्छरदानी में हम छेद कर, सेंध लगाकर फिर से इन सब का ख़ून क्यों नहीं चूस सकते, मित्रों!"



"बिल्कुल साहिब! नींद के शौक़ीन इन आरामपसंद नागरिकों ने हर तरह से तुष्टिकरण करवा के देख लिया! अब तो इनकी खटमलविहीन हाइटेक आरामगाह में हमें भी खटमल-नीतियों से सेंधमारी करनी चाहिए या बिच्छू-डंक-प्रहार-शैली से!"



"नहीं मित्रो, न तो हमें खटमल माफ़िक बनना है और न ही बिच्छू जैसा! इनके पास और भी…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2018 at 1:07am — 5 Comments

'ताड़ना के कारी-अधिकारी' (लघुकथा)

'परखना, पहचानना, ताड़ना या प्रतारणा या उद्धार करना' ... इन विभिन्न अर्थों में संत तुलसीदास जी की चौपाई ”ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।“ में आये 'ताड़न' शब्द पर इंटरनेट-ज्ञान बघारते हुए कुछ पुरुषों में चर्चा क्या हुई, कि उनके बीच नई सदी के रंग-ढंग पर उस पंक्ति पर तुकबंदी और पैरोडी सी शुरू हो गई! .. फिर मज़ाक ने बहस का रूप ले लिया।



"भई अब तो महिला-पुरुष समानता और महिला सशक्तिकरण की बातें हो रही हैं अपने वतन में भी! योजनाएं और क़ानून बन रहे हैं लड़कियों और…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2018 at 2:59am — 4 Comments

'माता की माया' (लघुकथा)

'अनौपचारिक आकस्मिक शिखर-वार्ता' :

प्रतिभागी : लोह कलपुर्जे, मशीनें और औज़ार।

अनौपचारिक परिचर्चा जारी गोलमेज पर :

"एक समय था, जब लोग हमारा लोहा मानते थे!"

"हां, बिल्कुल सही! लोहे पर कुछ मुहावरे, कहावतें और लोकोक्तियां भी कहा करते थे बातचीत में!"

"कील, हंसिया, खुरपी, छैनी, हथौड़े से लेकर बड़ी-बड़ी मशीनों और उनके कलपुर्जों तक हमारी ही धूम थी! अपना लोहा मनवाते थे; दुश्मनों को लोहे के चने चबाने पड़ते थे!"

"चर्मकार, कारीगर, किसान, मज़दूर, इंजीनियर,…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 23, 2018 at 9:30pm — 4 Comments

'झांकियां और चुनौतियां' (लघुकथा)

नवरात्रि की 'एक झांकी' के समानांतर एक और झांकी! नहीं, एक नहीं 'तीन' झांकियां! मां दुर्गा की 'स्थायी झांकी' में चलित झांकियां! चलित? हां, 'चलित' झांकियां! उस अद्भुत संदेशवाहिनी झांकी से प्रतिबिंबित अतीत की झांकियां; उसके समक्ष खड़ी हुई सुंदर युवा मां के सुंदर कटीले बड़े से नयनों में! उसके मन-मस्तिष्क में! दुर्गा सी बन गई थी वह उस जवां मर्द के शिकंजे से छूट कर और कुल्हाड़ी दे मारी थी उस वहशी के बढ़ते हाथों पर! दूसरे धर्म का था वह दुष्ट! जाति-बिरादरी के मर्दों के हाथों बेमौत मारा जाता वह! उसके पहले…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 21, 2018 at 9:00pm — 3 Comments

'कौन बदल रहा है?' (लघुकथा)

देश के एक राजमार्ग पर एक ढाबे पर देर रात भोजन हेतु डेरा जमाये हुए यात्रियों में कोई किसान, मज़दूर, व्यापारी, शिक्षक आदि था, तो कोई बस या ट्रक का स्टाफ। भोजन करते हुए वे बड़े से डिजिटल टीवी पर समाचार भी सुन रहे थे।

"देखो रे! मेरा देश बदल रहा है!" एक शराबी ज़ोर से चिल्लाया।

"अबे! बदल नहीं रहा! बदला जा रहा है! पगला जा रहा है!" दूसरे साथी ने देसी दारू का घूंट गुटकने के बाद कहा।

"दरअसल देश बदल नहीं रहा; न ही बदला जा रहा है! शादी-विवाह में शिरक़त माफ़िक दुनिया के जश्न-ए-तरक़्क़ी में…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2018 at 11:57pm — 3 Comments

"केरेक्टर ढीला क्यूं?" (लघुकथा)

आज उनसे कामकाज नहीं हो पा रहा था। गुप्त मंत्रणा कर कोई कठोर निर्णय लिया जाना था।

"अब तो हद हो गई! छात्र-छात्राएं और शिक्षक तक मीडिया का अंधानुकरण करने लगे हैं। हमारी भी कोई प्रतिष्ठा है न!"

"हां भाई! ई-मेल एड्रेस से लेकर गणित और विज्ञान तक में हमारी अहमियत है! ... पर गालियों और अभद्र शब्दों में हम अपना उपयोग अब नहीं होने देंगे! हमारी ईजाद इसलिए थोड़े न की गई थी!"

"बिल्कुल सही कहा तुमने! हमारा अवमूल्यन हो रहा है। ई-मेल के @ से हैश टैग # वग़ैरह के बाद ये मीडिया हमें सांकेतिक…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 16, 2018 at 9:43pm — 3 Comments

'मेरी आवाज़ सुनो!' (लघुकथा)

"सुनो, किसी से चर्चा मत करना! अपने दफ़्तर का प्रोजेक्ट अधूरा भी छोड़ना पड़े, तो भी तुरंत ही अगली बस से यहां लौट आओ!"

"क्यों? क्या हुआ? घबराई हुई सी क्यों हो?"

"ऑफ़िस से लौटने पर आज तो मुझे मेरा सूटकेस ही पूरा खुला हुआ मिला.. और कपड़े बिखरे हुए!"

"कोई क़ीमती सामान चोरी तो नहीं हुआ?"

"क़ीमती ही नहीं.. हमारे जिगर का टुकड़ा भी! .. स्मिता अभी तक घर नहीं लौटी है! ... सूटकेस से मेरी कुछ मंहगी ड्रेसिज़, महंगा हेअर रिमूवर और सेनेटरी नैपकिन्ज़ वग़ैरह सब ग़ायब हैं!"

"तो क्या…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2018 at 6:35am — 5 Comments

बलातकार्य (छंदमुक्त कविता)

बलात हालात बलात नियंत्रण में हैं न!
देश-देशांतर तिजारात आमंत्रण में हैं न!
आचार-विहार, व्यवहार-व्यापार, प्रहार,
घात-प्रतिघात धार अभियंत्रण में हैं न!
**
बदले 'बदले के ख़्यालात' चलन में हैं न!
अगले-पिछले अहले-वतन फलन में हैं न!
बापू तुम्हारे ही देश में, देशभक्तों के वेश में
नोट-वोट, ओट-चोट-वोट अवकलन में हैं न!


(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2018 at 11:30pm — 8 Comments

"अंखियों के झरोखों से" (लघुकथा)

होटलों में बर्तन धोने से लेकर नेताओं और अधिकारियों के पैर दबाने तक, मूंगफली बेचने से लेकर अख़बार बेचने तक सभी काम करने के साथ ही साथ उस अल्पशिक्षित बेरोज़गार के यौन-शोषण के कारण होशहवास खो गये थे, या किसी शक्तिवर्धक दवा के ग़लत मात्रा के सेवन से या अत्याधिक मानसिक तनाव के कारण उसकी अर्द्धविक्षिप्त सी हालत थी; किसी को सच्चाई पता नहीं! हां, सब इतना ज़रूर जानते थे कि बंदा है तो होनहार और मिहनती। जो काम दो, कर देता है। इसलिए सड़क पर आज भी उसकी ज़िन्दगी सुरक्षित चल रही है परिजनों की उपेक्षा और दयावानों…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 6, 2018 at 11:30pm — 7 Comments

'अंधवायु में प्राणवायु' (लघुकथा)

कोई 'रोज़ी-रोटी' और 'नोटों' के लिए तरस रहा था या बिक रहा था; तो कोई 'वोटों' और 'ओटों' के लिए तरस रहा था या बिक रहा था। आम जनता जानती थी कि हर मुकाम पर कहीं न कहीं 'दाल में कुछ काला' है क्योंकि सालों से उसने सब कुछ देखाभाला है; अपने आपको वक़्त-व-वक़्त 'चोटों' से उबारा है। तरक़्क़ी के मुद्दों पर नेता व अधिकारी सब अपनी-अपनी वफ़ा की सफाई पेश कर दूसरों पर छींटाकशी कर, अपनी ही जगहंसाई कर चिल्ला रहे थे; विरोधी बिलबिला रहे थे!

"ये डील नहीं .. मतलबियों को ढील है! .. राजनीति नहीं .. चील है! चीट है ...…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 5, 2018 at 9:03pm — 8 Comments

'नुक्कड़-नुक्कड़ की कथा (लघुकथा)

जंतर-मंतर चौराहे पर भीड़ जमा हो चुकी थी। कुछ नियोजित, तो कुछ टाइम-पास थी। कुछ नुक्कड़-नाटिका कलाकार मुखौटे पहने हुए थे, कुछ आम नागरिकों और कुछ नेताओं के वेश में थे। एक वृत्ताकार जमावड़े में संवादों और अदायगी का जंतर-मंतर शुरू हुआ :



"तुरपाई हो नहीं सकती, भरपाई हो नहीं सकती

कपड़े फट सकते हैं, चिथड़े उड़ सकते हैं!

सुनवाई होती है, कार्यवाही सदैव हो नहीं सकती!"

ज़मीन पर पड़ी बलात्कार-पीड़िता और लिंचिंग-पीड़ित के शवों को घेरते हुए दो कलाकार बोले।



"घटना बहुत…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 1, 2018 at 5:30pm — 7 Comments

Monthly Archives

2020

2019

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"122 122 122 122  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे करेगी मुहब्बत असर धीरे धीरे 1 भरोसा नहीं…"
1 hour ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"सुलगता रहा इक शरर धीरे धीरे जलाता रहा वो ये घर धीरे धीरे मचाया हवाओं ने कुहराम ऐसा गिरा टूट कर हर…"
10 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"रदीफ़ क़ाफ़िया में तो ऐसा कोई बंधन नहीं है इसलिये आपका प्रश्न स्पष्ट नहीं है। "
11 hours ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"नमस्कारक्या तरही मिसरे में लिंग अनुसार बदलाव करसकते हैंक्यूंकि उसे मैं अपने अनुसार प्रयोग…"
12 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"स्वागत है।"
12 hours ago
Tilak Raj Kapoor commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"यह तरही के लिए है या पृथक से?"
12 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"स्वागतम"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )

११२१२     ११२१२       ११२१२     ११२१२  मुझे दूसरी का पता नहीं ***********************तुझे है पता तो…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाई , वाह ! बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है , दिली बधाई स्वीकार करें "
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय  निलेश भाई  हमेशा की तरह अच्छी ग़ज़ल हुई है,  हार्दिक  बधाई वीकार…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण  भाई , अच्छी ग़ज़ल कही , बड़ी कठिन रदीफ़ चुनी आपने , हार्दिक  बधाई आपको "
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें मक्ता शायद अपनी बात नहीं कह पा रहा…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service