गुण-सूत्रों की विविधता, बहुत जरूरी चीज |
गोत्रज में कैसे मिलें, रखिये सतत तमीज ||
गोत्रज दुल्हन जनमती, एकल-सूत्री रोग |
दैहिक सुख की लालसा, बेबस संतति भोग ||
नहीं चिकित्सा शास्त्र में, इसका दिखे उपाय |
गोत्रज जोड़ी अनवरत, संतति का सुख खाय ||
गोत्रज शादी को भले, भरसक दीजे टाल |
मंजूरी करती खड़े, टेढ़े बड़े सवाल ||
परिजन लेवे गोद जो, कर दे कन्या-दान |
उल्टा हाथ घुमाय के, खींचें सीधे कान ||
मिटते दारुण दोष पर, ईश्वर अगर सहाय |
सबसे…
Added by रविकर on October 31, 2012 at 8:48am — 5 Comments
मत्तगयन्द सवैया
नारि सँवार रही घर बार, विभिन्न प्रकार धरा अजमाई ।
कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई ।
सेवत नेह समर्पण से कुल, नित्य नयापन लेकर आई ।
जीवन में अधिकार मिले कम, कर्म सदा भरपूर निभाई…
ContinueAdded by रविकर on October 16, 2012 at 9:45am — 9 Comments
(1)
(तालिबानी फरमान न मानने वाली छात्रा बिटिया मलाला को समर्पित)
सुंदरी सवैया
उगती जब नागफनी दिल में, मरुभूमि बबूल समूल सँभाला ।
बरसों बरसात नहीं पहुँची, धरती जलती अति दाहक ज्वाला ।
उठती जब गर्म हवा तल से, दस मंजिल हो भरमात कराला ।
पढ़ती तलिबान प्रशासन में, डरती लड़की नहीं ढीठ मराला ।।
(2)…
ContinueAdded by रविकर on October 13, 2012 at 8:30am — 12 Comments
अपनी प्रिया को छोड़ के प्रीतम अगर गया |
नन्हा सा कैमरा कहीं चुपके से धर गया ||
आया हमारे मुल्क में व्यापार के लिए
सोने की चिड़िया लेके जाने किधर गया ||
रुपये की खनक गूंजती बाज़ार में अभी
डालर के सामने मगर चेहरा उतर गया ||
बनकर मसीहा गाँव में घूमे जो माफिया ,
दस्खत कराना आज उसका सबको अखर गया ।।
कोयले से आजकल हम दांतों को रगड़ते-
तपकर दुखों की आंच में कुछ तो निखर गया ।।
Added by रविकर on October 3, 2012 at 2:00pm — 2 Comments
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