छन्न पकैया छन्न पकैया, सॉरी भैया धोनी।
स्पिन ट्रैक से क्या होता है, टलती थोड़े होनी॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, भाग देख लो फूटे।
अपने सौवें ही दंगल में, वीरू दादा टूटे॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, थोड़ा चले पुजारा।
लदफद होती सेना को जो, देते रहे सहारा॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, क्या करते हो सच्चू।
अपने ही घर में अपनी क्या, पिटवाओगे बच्चू॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, अन्ना दीखे भज्जी।
कुक पूरे सरकारी बन के, उड़ा रहे थे धज्जी॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, दिखी…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 27, 2012 at 7:13pm — 12 Comments
भारत के हम शेर किये नख के बल रक्षित कानन को।
छोड़त हैं कभि नाहिं उसे चढ़ आवहिं आँख दिखावन को।
भागत हैं रिपु पीठ दिखा पहिले निजप्राण बचावन को।
घूमत हैं फिर माँगन खातिर कालिख माथ लगावन को॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 25, 2012 at 10:20am — 13 Comments
वो नर नाहिं रहे डरते डरते सबसे नित आप हि हारे।
पामर भाँति चले चरता पशु भी अपमान सदा कर डारे।
मानव जो जिए गौरव से अपनी करनी करते हुए सारे।
जीवन हैं कहते जिसको बसता हिय में निजमान किनारे॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 23, 2012 at 9:34pm — 6 Comments
महाराजा, जहाँ चाहे, वहाँ आज्ञा, चलाता है।
खिलाड़ी है, बड़ा वीरू, सदा बल्ला, बताता है।
कभी चौका, कभी छक्का, लगा सौ ये, बनाता है।
मिला मौका, कि गेंदों से, करामातें, दिखाता है॥
किसी के भी, इलाके में, सिंहों जैसा, सही वीरू।
सभी ताले, किले सारे, गिरा देता, यही वीरू।
बिना देरी, विरोधी को, पछाड़े जो, वही वीरू।
डरे-भागे, कभी कोई,…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 23, 2012 at 2:30pm — 10 Comments
विजय मिली है, सदा विजय हो।
भारतमाता की जय-जय हो॥
बेटों के उर लगन लगी है।
विश्वविजय की चाह जगी है॥
उनके बल का कभी न क्षय हो।
भारतमाता की जय-जय हो॥
ले के दलबल निकल पड़े हैं।
कर अस्त्रों से भरे पड़े हैं॥
लगते ऐसे हुई प्रलय हो।
भारतमाता की जय-जय हो॥
क्रोधानल से नैन लाल हैं।
नाहर सम नख-मुख विशाल हैं॥
देख जिसे भय को भी भय हो।
भारतमाता की जय-जय हो॥
अरिसेना सब भाँप रही है।
थर-थर करती काँप रही है॥
अतिशीघ्र नवयुग का उदय…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 16, 2012 at 1:24pm — 6 Comments
दीपावली लो आ गई है, शोभते सुन्दर दिये।
श्रीराम का जयपर्व ये है, भाग्य पाने के लिये॥
सोहें निलय जगमग बड़े ही, दिव्य सारे चित हुए।
लक्ष्मी-गजानन को सभी ही, पूजके हर्षित हुए॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 12, 2012 at 11:33am — 4 Comments
जब-जब धर्म की विजय हो,
शुभ-लाभ से भंडार भर जाये,
सुन्दर-सुन्दर रंगोलियाँ सजी हों,
अमावस की रात उजाला हो,
समझ लेना दीपावली है।
दुकानों में उत्सवी रौनक हो,
सबके यहाँ पकवान बने,
ह्रदय-ह्रदय आलोकित हो जाये,
मन-मस्तिष्क व्यथाओं से मुक्त हो,
समझ लेना दीपावली है।
गगन, हर्षध्वनि से गुंजायमान हो,
रोम-रोम आनंद से पुलकित…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 12, 2012 at 9:25am — 4 Comments
मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||
लय, रस, भाव, शिल्प संग प्रीति |
वैचारिक सुप्रवाह की रीति ||
अलंकार से कथ्य चमकता |
उपमानों से शब्द दमकता ||
यगण-तगण जैसे पाशों से,
होता कोई साथ कहाँ है |
मुक्तछंद कविता सम जीवन,
तुकबंदी की बात कहाँ है ||
अनियमित औ स्वच्छंद गति है |
भावानुसार प्रयुक्त यति है ||
अभिव्यक्ति ही प्रधान विषय है |
तनिक नहीं इसमें संशय है ||
ह्रदयचेतना से सिंचित ये,
ऐसा यातायात कहाँ है |
मुक्तछंद…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 5, 2012 at 8:38am — 12 Comments
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