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अरुन 'अनन्त''s Blog – November 2013 Archive (6)

दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

प्रेम रूप हैं राधिका, प्रेम हैं राधेश्याम ।

प्रेम स्वयं माते सिया, प्रेम सियापतिराम ।।



सत्यवती सा प्रेम जो, हो जीवन में साथ ।

कष्ट उचित दूरी रखे, मृत्यु छोड़ दे हाथ ।।



अद्भुत भाषा व्याकरण, विभिन्न रूप प्रकार ।

प्रेम धरा पर कीमती, ईश्वर का उपहार ।।…



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Added by अरुन 'अनन्त' on November 22, 2013 at 12:58pm — 13 Comments

ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'

बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम,



मदरसा बना या मदीना बना दे,

मुझे कीमती इक नगीना बना दे,



बिना मय के जैसे तड़पता शराबी,

समंदर सा प्यासा हसीना बना दे,



मुहब्बत की जिसमें रहे ऋतु हमेशा,

अगर हो सके वो महीना बना दे,



सुकोमल बदन से जरा मैं लिपट लूँ,

मेरे जिस्म को तू मरीना बना दे,

मरीना = मुलायम कपडा



लिखा हो जहाँ नाम तेरी कहानी,

ह्रदय की धरा को सफीना बना दे....

सफीना : किताब

(मौलिक एवं…

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Added by अरुन 'अनन्त' on November 17, 2013 at 4:30pm — 17 Comments

सत्य की अवहेलना है : अरुन शर्मा 'अनन्त'

न्याय के घर झूठ भारी
सत्य की अवहेलना है,

अब पतन निश्चित वतन का,
दण्ड सबको झेलना है,

पाप का पापड़ कहाँ तक,
मौन रहकर बेलना है.

दांव पे साँसे लगी हैं,
ये जुआ भी खेलना है,

मृत्यु की खाई में बाकी,
शेष जीवन ठेलना है....

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on November 17, 2013 at 12:30pm — 19 Comments

दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

मन से सच्चा प्रेम दें, समझें एक समान ।
बालक हो या बालिका, दोनों हैं भगवान ।।

उत्तम शिक्षा सभ्यता, भले बुरे का ज्ञान ।
जीवन की कठिनाइयाँ, करते हैं आसान ।।

नित सिखलायें नैन को, मर्यादा सम्मान ।
हितकारी होते नहीं, क्रोध लोभ अभिमान ।।

ईश्वर से कर कामना, उपजें नेक विचार ।
भाषा मीठी प्रेम की, खुशियों का आधार ।

सच्चाई ईमान औ, सदगुण शिष्टाचार ।
सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on November 14, 2013 at 3:00pm — 23 Comments

प्रिये तुम तो प्राण समान हो

अंतस मन में विद्यमान हो,

तुम भविष्य हो वर्तमान हो,

मधुरिम प्रातः संध्या बेला,

प्रिये तुम तो प्राण समान हो....



अधर खिली मुस्कान तुम्हीं हो,

खुशियों का खलिहान तुम्हीं हो,

तुम ही ऋतु हो, तुम्हीं पर्व हो,

सरस सहज आसान तुम्हीं हो.



तुम्हीं समस्या का निदान हो,

प्रिये तुम तो प्राण समान हो....



पीड़ाहारी प्रेम बाम हो,

तुम्हीं चैन हो तुम्हीं अराम हो,

शब्दकोष तुम तुम्हीं व्याकरण,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 12:30pm — 28 Comments

ग़ज़ल : सत्य मेरा बोलना ही ऐब है

बह्र : रमल मुसद्दस महजूफ

2 1  2 2  2 1  2 2  2 1 2



तंग बेहद हाथ खाली जेब है,

सत्य मेरा बोलना ही एब है,



पाँव नंगे वस्त्र तन पे हैं फटे,

वक्त की कैसी अजब अवरेब है,

( अवरेब = चाल )



जख्म की जंजीर ने बांधा मुझे,

दर्द का हासिल मुझे तंजेब है,

( तंजेब = अचकन, लम्बा पहनावा )



जुर्म धोखा देश में जबसे बढ़ा,

साँस भी लेने में अब आसेब है,

( आसेब = कष्ट )



भेषभूषा मान मर्यादा ख़तम,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on November 6, 2013 at 12:30pm — 32 Comments

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