अरकान-: 2122 1212 22
ख़ुद से ये शर्मसार सा क्यों है
आदमी बेक़रार सा क्यों है
मेरे दिल ने सवाल ये पूछा,
नेता हर इक गंवार सा क्यों है
आने वाले नहीं हैं अच्छे दिन,
फिर हमें इन्तिज़ार सा क्यों है
मैंने कुछ भी नहीं छुपाया फिर
तुझमें ये इंतिशार सा क्यों है
मैंने जब माँग ली मुआफ़ी,फिर
उनके दिल में ग़ुबार सा क्यों है
उसकी फ़ितरत से ख़ूब वाक़िफ़ हैं,
'फिर हमें एतिबार सा…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 26, 2017 at 1:47pm — 21 Comments
अरकान- फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
आप अंदाज़ रखें हँसने हँसाने वाला
यही किरदार तो है साथ में जाने वाला।1।
आज क्या बात है, नफ़रत से मुझे देखता है
मेरी तस्वीर को सीने से लगाने वाला।2।
काटने वाले तो हर सिम्त नज़र आते हैं
पर न दिखता है कोई पेड़ लगाने वाला।3।
आख़िरी बार उसे देख ले तू जी भर के
फिर न आएगा कभी लौट के, जाने वाला।4।
आबरू की भी लगा देती है क़ीमत दुनिया
गर चला जाये किसी…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 19, 2017 at 6:27pm — 16 Comments
अरकान :1222 1222 1222 1222
अजब सी कश्मकश से यकबयक दो चार कर देगा
तुम्हे पहचानने से वो अगर इनकार कर देगा
ज़माने में जियो खुल के जवानी साथ है जब तक
करोगे क्या बुढ़ापा जब तुम्हे लाचार कर देगा
हक़ीक़त सामने है आज यह जो, देख लेना कल
सही को भी ग़लत ये सुब्ह का अखबार कर देगा
रखें कुछ भी नहीं दिल में छुपा के आप भी मुझसे
नहीं तो शक खड़ी इक बीच में दीवार कर देगा
समझना मत कभी कमज़ोर, दुश्मन को…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 18, 2017 at 1:30pm — 20 Comments
सब जन हैं आगोश में, धुन्ध धुएँ के आज
अतिशय कम है दृश्यता, सभी प्रभावित काज
सभी प्रभावित काज, नहीं कुछ अपने कर में
जन जीवन बेहाल, छुपे सब अपने घर में
यहीं रहा जो हाल, धुन्ध होगी और सघन
इसका एक निदान, अभी से सोचें सब जन।1।
बच्चे मानों पट्टिका, चाक आपके हाथ
चाहे इच्छा जो लिखें, उनके ऊपर नाथ
उनके ऊपर नाथ, असर वो होगा गहरा
परखें उनके भाव, यथोचित देकर पहरा
दिए जरा जो ध्यान, बनेंगे फिर वो सच्चे
कच्चे घड़े…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 13, 2017 at 5:07am — 8 Comments
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