रोज़ होती रही चर्चायें
बैठकों पे बैठकें
कार्यालयों से लेकर चौपालों तक
कारखानों से लेकर शेयर बाज़ारों तक
हर जगह
कोशिशें जारी हैं
कैसे बढ़े
कितना बढ़े
कहाँ-कहाँ कितनी गुंजाईशें है
सभी लगे हैं
देश विकसित हो या विकासशील
या हो अविकसित
मगर चिंतायें
सबकी एक है
कैसे बढ़े विकास-दर
कैसे बढ़े व्यापार
बाज़ार भाव
कैसे बढ़े निर्यात
फिर चाहे
मौत का सामान ही क्यों न हो
व्यापार बढ़ना चाहिए
विकास-दर बढ़ती…
Added by नादिर ख़ान on December 28, 2012 at 11:00pm — 3 Comments
लड़की चीख़ी
चिल्लायी भी
मगर हैवानों के कान बंद पड़े थे
नहीं सुन पाये
उसकी आवाज़ का दर्द
वह रोयी बहुत
आँखों से उसके
झर-झर आँसू…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 21, 2012 at 12:24am — 2 Comments
आओ वालमार्ट
स्वागत है आपका
अपनी कमज़ोर हो रही
अर्थव्यवस्था को
मज़बूत करने
आओ
हमारी मज़बूत होती
अर्थव्यवस्था को
कमज़ोर करने
आओ
हमने आपके हथियार नहीं लिए
इस नुक्सान की भरपायी के लिए
नयी संभावनाओं को तलाशने
आओ
किसानों के पसीने निचोड़ने
गरीब जनता का ख़ून चूसने
आओ वालमार्ट
यूनियन कार्बाइड की याद
धुंधली पड़ चुकी है
तुम नयी यादें देने…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 14, 2012 at 11:00am — 3 Comments
हाँ प्यार से इकरार है
पर शिर्क से इंकार है
अब दिल में वो जज़्बा नहीं
बस प्यार का बाज़ार है
मेरा ठिकाना क्या भला
जब बिक चुका घर-बार है…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 10, 2012 at 5:00pm — 6 Comments
रेत में जैसे निशां खो गए
हमसे तुम ऐसे जुदा हो गए
रात आँखें ताकती ही रहीं
मेहमां जाने कहाँ सो गए
सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें
छोड़कर मझधार में खो गए…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 5, 2012 at 4:30pm — 11 Comments
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