आकर्षण – विकर्षण
चुम्बक मे ही नहीं होता
भाव भी खींचते हैं , दूर कर देते हैं
भावों को ।
बस , नियम उलटा है
चुम्बक से ।
एक ही भावों होता है खिचाव …
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 30, 2013 at 7:30pm — 22 Comments
कुंडलिया -
सबके अन्दर जी रहा , मेरा , मै का भाव
वही डिगाता है सदा , आपस का सदभाव
आपस का सदभाव , मिटाये ऐसी दूरी
रिश्ते का सम्मान , हटा दे हर मजबूरी
टूटे रिश्ते जुड़ें , सामने कहता रब के …
Added by गिरिराज भंडारी on December 25, 2013 at 9:00pm — 19 Comments
“दाग“
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मूर्खता है ,
होली में रंगे कपड़ों से
दाग छुड़ाने की कोशिश ।
कोई कहता भी नहीं उसे
दाग दार ।
वो अलग हैं , दागियों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 7:30pm — 33 Comments
2122 2122 2122 2122
गुम्बदों से क्यों कबूतर आज कल डरने लगे हैं
दूरियाँ रख कर चलेंगे फैसले करते लगे हैं
पतझड़ों की साजिशों से, अब बहारों में भी देखो
हर शज़र मुरझा गया, पत्ते सभी झड़ने लगे हैं
अपने ख़्वाबों को…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 20, 2013 at 7:30am — 41 Comments
समय के ,
सूर्य के ताप से
सूखता हुआ मल,
स्वयम ही,
स्वाभाविक रूप से ,
हो जायेगा
दुर्गन्ध हीन |
और फिर
वातावरण स्वयम…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 18, 2013 at 6:30am — 18 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on December 16, 2013 at 5:30pm — 28 Comments
2122 2122 2122 212
सिलसिले उनके छिपे, कांटो से भी मिलते गये
फिर भी ऐसा क्यों हुआ वो फूल सा खिलते गये
राह मे दुश्वारियां थीं जब चले थे घर से हम
बिन रुके चलते रहे तो रास्ते मिलते गये
…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 12, 2013 at 9:30pm — 32 Comments
मुश्किल काम होता है
चढ़ाये रखना ,
लगातार बहुत समय तक
सजावट को ,
रह पाये कोई अगर तुम्हारे साथ
अधिक समय तक
लगातार, तो
फीकी पड़ने लगेंगी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 11, 2013 at 5:00pm — 27 Comments
2122 2122 2122
जब उजाला चाहते थे सब दिये से
क्यों अँधेरा बंट रहा है हाशिये से
था क्षणिक उन्माद मैं ये मान भी लूँ
मूँद लोगे आँखें क्या अपने किये से ?
बोझ से कोई गिरा,…
Added by गिरिराज भंडारी on December 9, 2013 at 4:30pm — 25 Comments
2122 2122 2122 212
.
आपकी पिछली कही मन में प्रवाहित है अभी
इसलिये तो प्रेमधारा मेरी बाधित है अभी
.
अब सदा बहती ही रहती है उपेक्षा आँखों से
मै कहाँ हूँ आपके मन में ये साबित है अभी
.…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 6, 2013 at 2:30pm — 29 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on December 4, 2013 at 7:00am — 25 Comments
- दोहावली -
संग हरि किये हरि हुये, दानव ,दानव संग
किंतु न मानव बन सके, कर मानव के संग
कह सुन खाली मन करें, बचे न कोई बात ।
मन को उजला कीजिये, जैसे उजली रात ।।
…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 2:30pm — 23 Comments
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