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Dr. Vijai Shanker's Blog – December 2014 Archive (9)

नव वर्ष शुभ हो --- डॉ o विजय शंकर

खुशियाँ, हम हर किसी से बाँट लेते हैं,

खुश भी हो लेते हैं।

गम किस से बांटे , सोंच नहीं पाते हैं ,

खुद ही सह लेते हैं।

फिर भी कुछ तो अपने ऐसे होते ही हैं ,

जो हमारे ग़मों को बाँट लेते हैं।

वो कुछ बहुत ख़ास अपने ही होते हैं।

जो दुःख में साथ होते हैं।

कितने ऐसे हैं जो दुखों को हमारे पास

आने नहीं देते हैं।

रास्ते में रोक लेते हैं,

खुद पे ले लेते हैं।

हम उन्हें जानते नहीं ,

पहचानते भी नहीं ,

वे सामने कभी आते नहीं,

नव वर्ष… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 31, 2014 at 11:24pm — 16 Comments

अंधकार को अंधकार से मिटाते हैं -- डा० विजय शंकर

रौशनी से अन्धकार तो सब मिटा लेते हैं

हम अंधकार को अंधकार से मिटाते हैं |

एक बुराई हटाई , हटाई क्यों , हटाई नहीं ,

साइड में लगाईं , नई बुराई लगाई |

एक फेल को दूजे फेल से बदल दिया ,

एक असफल को फिर असफल होने का

अवसर दिया , और जोरदार एलान किया ,

देखो , हमने कैसा परिवर्तन कर दिया ,

और एक कमजोर का उत्थान भी कर दिया |

क्योंकि हम वीर हैं , हर हाल में जी लेते हैं ,

किसी बुराई से डरते नहीं ,

हर बुराई में जी लेते हैं ,

हर बुराई को झेल लेते हैं… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 30, 2014 at 1:03pm — 24 Comments

ये खुशियाँ , ये गम --- डा० विजय शंकर

दुःख तो हम कितने ही झेल जाते हैं ,

ये तो खुशियाँ हैं जो संभाले नहीं संभाली जाती हैं।



ये दर्द हैं , दुःख है जो हम हमेशा छुपा ले जाते हैं ,

बस ये खुशियाँ हैं जो हर बार चेहरे पे आ जाती हैं।



हम खुशियों को लोगों में बाँटने की बात करते हैं ,

लोग जाने कैसे हैं , लोगों को ही बाँट लेते हैं ।



दुःख दर्द कितने अपने हैं , छिपाओ तो बस छिपे रहते हैं ,

खुशियां गैर ,परायी , बेमुर्रव्वत हैं ,जाहिर हो जाती हैं |



खुशियाँ हैं ,आती हैं ,जाती हैं, कितनी… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 25, 2014 at 11:15am — 11 Comments

रिश्ते हैं , बन जाते हैं -- डा० विजय शंकर

लोग मिलते हैं ,

जीवन में आते हैं ,

रिश्ते हैं , बन जाते हैं |

कभी छाँव में दो पल साथ बिताते हैं ,

कभी तपती दोपहरी भी सह जाते हैं ,

कभी चट्टान से बन जाते हैं ,

कभी बरगद की तरह हो जाते हैं,

कभी फूलों की तरह आते हैं ,

सब महका , महका जाते हैं ,

रिश्ते हैं , बन जाते हैं |



रिश्ते बनते हैं ,

बनते जाते हैं ,

कभी छूट भी जाते हैं ,

कभी कहीं बिखर जाते हैं ,

कभी बिखरने की वजह से छूट जाते हैं।

कभी कांच से भी नाज़ुक रह जाते हैं… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 21, 2014 at 9:40am — 20 Comments

तुम्हारा मौन जो कह गया -- डॉo विजय शंकर

दिल में जो था मेरे ,

मैंने कहा , मैं कह गया ॥

सब कुछ कह गया ॥

सुन लिया तुमने ,

और कुछ ,

कुछ भी नहीं कहा ॥

शांत , सब सुन लिया ,

मौन एक , बस , धर लिया।

ये मौन तुम्हारा ,

दीर्घ मौन तुम्हारा ,

कितना कुछ कह गया ,

कितना गहरा उतर गया ||

इसी में डूबता - उतराता रहूंगा

मैं , अब उम्र भर ,

और समझता रहूंगा ,

विवशता तुम्हारी ,

सब सुनना , सुन लेना ,

कुछ न कहना , कुछ भी न कहना ,

एक बोझ , लिए रहना ,

उस बोझ को सहते… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 17, 2014 at 11:33am — 12 Comments

इण्डिया शब्द की व्युत्पत्ति -- डॉo विजय शंकर

देश-प्रेम से ओत-प्रोत लोगों में देश के लिए भावुक हो जाना स्वभाविक है। पर भावुकता के साथ साथ यथार्थ को यथावत स्वीकार कर लेना भी देशप्रेम ही है।

ओ बी ओ स्वर्ण जयंती महोत्सव में ' भारत बनाम इण्डिया ' के सन्दर्भ में इण्डिया शब्द की व्युत्पत्ति पर एक दृष्टि डाल लेना किंचित विसंगत न होगा।

सामान्यतः यह माना जाता है कि जीवन - दायनी गंगा ने इस देश की संस्कृति निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया और सिंधु नदी ने इस देश को पाश्चात्य विश्व में एक पहचान दी और एक नाम दिया | सिंधु नदी भारत के… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 14, 2014 at 10:04am — 9 Comments

घर वो होता है -- डॉo विजय शंकर

घर वो होता है ,

जहां आपका सदैव

इन्तजार होता है ।

जहां आप जाते नहीं ,

आप , जहां भी जाते हैं ,

वहीँ से जाते हैं ।

घर न दूर होता है , न पास होता है ,

जहां से हम सारी दूरियां नापते हैं ,

घर वो होता है ।

घर वो होता है,

जहां माँ होती है ,

जहां से माँ आपको कहीं भी भेजे ,

आपका इन्तजार वहीँ करती होती है ।

माँ जननी होती है , जनम देती है ,

धरती पर लाती है , माँ घर बनाती है ,

माँ ही घर देती है ,जब तक माँ होती है ,

अपने सब… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 10, 2014 at 9:51am — 22 Comments

ये मोहब्बत भी क्या चीज़ होती है -- डॉo विजय शंकर

हर बात की वजह होती है

ये मोहब्बत ही क्यों बेवजह होती है

और जो बवजह हो , वो कुछ भी हो ,

यक़ीनन, वो मोहब्बत नहीं होती है ॥



जानकार कहते हैं ,

बिना हिलाये तो पता भी नहीं हिलता ,

बिना किये तो कुछ भी नहीं होता है ,

फिर ये मोहब्बत क्यूँकर अपने आप होती है ।



यूँ तो बहुत जगाये रहती है , फिर भी ,

ये मोहब्बत क्यों एक गहरी नींद का ,

एक ख़्वाब सी लगती है जो हमेशा

टूट जाने के डर के साये में रहती है ॥



मोहब्बत कोई गुनाह तो नहीं है ,… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 7, 2014 at 9:51am — 14 Comments

क्षणिकायें - 4 -डॉo विजय शंकर

प्यार का
अर्थ खोजोगे
प्यार खो दोगे

दोस्ती की
वजह खोजोगे
दोस्ती खो दोगे

रिश्तों का अर्थशास्त्र
न काम करे अर्थ ,
न करे शास्त्र

राजनीति
बिना दूध दही
ढेरों नवनीत

शाश्त्रों का अर्थ
अपना अपना
अर्थशास्त्र

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on December 1, 2014 at 8:30am — 21 Comments

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