आउट ऑफ़ कवरेज़
साथ-साथ बैठे हैं और दूर कहीं इंगेज हैं
4जी के दौर में घर आउट ऑफ़ कवरेज़ है |
लाइक है पॉक है ट्रेल है जोक् है ना कोई रोक है
बैठे-बैठे सारी दुनिया मुट्ठी में कर लेने का क्रेज़ है |
अंधी दौड़ है या भेड़ो का दौर है किसे किसका गौर है
अस्मिता की लड़ाई ना मालूम कौन रियल कौन फ़ेक है |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on December 24, 2017 at 10:15pm — 5 Comments
सरदी की पहली बारिश- - - -
सरदी की पहली बारिश में
पेड़ इस तरह नहाएँ
जैसे कोई औघड़ नहाकर
गंगा से चला आए |
सरदी की पहली बारिश- - - -
धूल में साधनारत कब से
बैठा था तपस्वी !
साँसों में गरल लेकर
अमृत कलश लुटाए |
सरदी की पहली बारिश- - - -
पत्तों से यूँ गिरता पानी
ज्यों शिव की जटाएँ
पीकर गगन का अमृत
ये धरती मुस्कुराए |
सरदी की पहली बारिश- - -…
ContinueAdded by somesh kumar on December 23, 2017 at 8:11pm — 6 Comments
भंडारे में भंडारी
दोपहर पाली का एक स्कूल(दिल्ली )
“जिन बच्चों को लिखना नहीं आता कॉपी लेकर मेरे पास आओ |-----------अरमान,मोहित,रितिश और शंकर तू भी |” अध्यापक सुमित ने क्लास की तरफ देखते हुए कहा
“क्या लिखवाया जाए ?” फिर अरमान की तरफ देखते हुए
“सुबह नाश्ते में क्या खा कर आए हो?”
“चाय-रोटी |”अरमान ने सपाट सा जवाब दिया
ठीक है लो ये “चाय” लिखो,ठीक-ठीक मेरी तरह बनाना |
“और मोहित तुमने क्या खाया ?”
“रात का…
ContinueAdded by somesh kumar on December 22, 2017 at 8:22pm — 3 Comments
तौल-मोल के “लव यू “
10 अक्टूबर 2009
मुझे लगता है-“अब हमें उठना चाहिए |”
उसने सहमति में सिर हिलाया और पुनीत वापस परिवार वालों के पास आ बैठा |
“क्या पसंद है !” दीदी ने धीरे से कानों में पूछा और पुनीत ने ‘ना’ में सिर हिलाया |
रास्ते में पिताजी ने झल्लाते हुए कहा-“नवाब-साहब कौन सी परी चाहिए ,बाप अच्छा खासा बुलेरो दे रहा था तीन तौला सोना |ये कहते हैं कि नौकरी-नौकरी |बड़े घर की औरतें क्या नौकरी करती जँचती है |वो आदमी ही…
ContinueAdded by somesh kumar on December 14, 2017 at 1:30am — 3 Comments
नंगे सच का द्वंद
मुझे सड़क पार करने की जल्दी थी और मैं डीवाईडर पर खड़ा था |मेरी दृष्टी उसकी पीठ पर पड़ी और मैं कुछ देर तक चोरों की भांति उसे देखता रहा |क्षत-विक्षत शाल से ढकी और पटरी की दो समांतर ग्रील से कटती उसकी पीठ रामलीला का टूटा शिव-धनुष प्रतीत हो रही थी |
एक दिन पहले ही आई बरसात से मुख्य मार्ग की किनारियाँ कीचड़ से पटी पड़ी थी और सभ्य और जागरूक समाज द्वारा यहाँ-वहाँ फैलाया गया कचरा ऐसे लग रहा था मानों किसी प्लेन काली साड़ी के स्लेटी बार्डर पर जगह-जगह…
ContinueAdded by somesh kumar on December 13, 2017 at 9:53am — 4 Comments
जीवन-कविता
बिटिया बैठी पास में
खेल रही थी खेल
मैं शब्दों को जोड़-तोड़
करता मेल-अमेल |
उब के अपने खेल से
आ बैठी मेरी गोद
टूट गया यंत्र भाव
मन को मिला प्रमोद |
बिना विचारे ही पत्नी ने
दी मुझको आवाज़
मैं दौड़ा सिर पाँव रख
ना हो फिर से नाराज़ |
लौटा सोचता सोचता
क्या जोड़ू आगे बात
पाया बिटिया पन्ना फाड़
दिखा रही थी दांत…
ContinueAdded by somesh kumar on December 12, 2017 at 10:30am — 5 Comments
सो गया बच्चा
नींद की पालकी में सवार
सो गया बच्चा
शरारती बन्दर बना बछड़ा
लगा बहुत अच्छा |
------------सो गया बच्चा
दिन भर की चपलता
लेटा आँख मलता
“सोना है मुझे “
भाव सीधा-सच्चा |
--------------सो गया बच्चा |
गीत में उमंग नहीं
फूल में सुगंध नहीं
चित्र में रंग नहीं
घर ना लगे अच्छा
----------------सो गया बच्चा |
सपनों का…
ContinueAdded by somesh kumar on December 10, 2017 at 11:42pm — 7 Comments
तेज़ अंधड़ के साथ खिड़कियों से पत्ते ,कीट-पतंगे और धूल कम्पार्टमेंट में घुस आई |जैसे ही हवा शांत हुई ट्रेन ने चलने का हार्न दिया |सीट पर आए पत्तों को साफ़ करने के लिए उन्होंने ज्यों ही हाथ बढ़ाया उनकी आँखे चमक उठी |हाँ ये वही वस्तु थी जिससे इर्द-गिर्द उनके बचपन का ग्रामीण जीवन पल्लवित-पोषित हुआ था |हृदयाकृति के बीचों-बीच जीवन का गर्भ यानि चिलबिल का बीज |
कुछ समय तक वो उस सुनहले बीज को निहारते रहे…
ContinueAdded by somesh kumar on December 9, 2017 at 4:38pm — 3 Comments
बापमाँ (संसमरण-कथा)
19 मार्च 2017
एम्स के नेत्र वार्ड में दाखिल होने की सोच ही रहा था कि फ़ोन फिर से बज उठा |
बिटिया गोद में थी पत्नी ने फ़ोन जेब से निकाला,देखा और काट दिया |
“ कौन था ? ” “लो,खुद देखों -- -“
बिटिया को हाथ से छिनते हुए उसने फ़ोन बढ़ा दिया |
“विवेक-मधु |” स्क्रीन पर नाम दिखा |
पहले भी मिसकॉल आई थी | मैंने माहौल को हल्का करने के लहज़े से कहा |
“तीन-चार रोज़ से तो यही सिलसिला है |” पत्नी ने तीर छोड़ा
“वो…
ContinueAdded by somesh kumar on December 8, 2017 at 12:50am — 4 Comments
दोहरा
पत्नी पर पराई-दृष्टी से
होकर खिन्न
डांट कर कहता
तू लोक लाज विहीन
“चल भीतर |”
_______________
पड़ोसिन को सामने पा
स्वागत में मुस्कुरा
गाता हूँ-तिनक धिन-धिन
आप सा कौन कमसिन !
खड़ा रहता हूँ-बाहर |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on December 4, 2017 at 6:07pm — 5 Comments
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