बात यहीं खत्म होती तो और बात थी
यहाँ तो हर बात में नई बात निकल आती है
यूँ लगता है जैसे कि ये कोई बरगद का पेड़ है
जहां से भी खोदो एक नई साख निकल आती है
उलझने ऐसी है कि कोई छोड़ मिलती ही नहीं
एक को खींचो तो संग मे दो चार चली…
ContinueAdded by AMAN SINHA on February 26, 2024 at 11:30am — No Comments
दोहा त्रयी. . . . .
जीवन में ऐश्वर्य के, साधन हुए अनेक ।
अर्थ दौड़ में खो गया, मानव धर्म विवेक ।।
चले न कोई साथ जब, साथ निभाता नाथ ।
संचित कितना भी करो, खाली रहते हाथ ।।
गौण हुईं अनुभूतियाँ, क्षीण हुए सम्बंध ।
नाम मात्र की रह गई, रिश्तों की बस गंध ।।
सुशील सरना / 23-2-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 22, 2024 at 1:31pm — 2 Comments
दोहा त्रयी. . . .
मन के मधुबन से हुई , लुप्त नेह की गंध ।
काई देती स्वार्थ की, रिश्तों में दुर्गन्ध ।।
बदल गया परिवार में, रिश्तों का अब रूप ।
तीखी लगती स्वार्थ की, अब आँगन में धूप ।।
अर्थ रार में खो गए, रिश्ते सारे खास ।
धन वैभव ने भर दिया, जीवन मैं संत्रास ।।
सुशील सरना / 11-2-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 11, 2024 at 2:06pm — 2 Comments
दोहा सप्तक. . . .
बन कर ख़याल रह गया, जीवन का हर मोड़ ।
अपने सब कब चल दिये, तनहा हमको छोड़ ।1।
बदला जीवन आज का, बदली जीवन सोच ।
एक पेट भरपेट है, क्षुधित कहीं पर चोंच ।2।
पर धन की है लालसा, कुत्सित घृणित विचार ।
जीवन को मत दीजिए, दागदार उपहार ।3।
रह -रह कर मन मीत का,आता मधुर ख़याल ।
दिल की यह बेचैनियाँ, बदलें जीवन चाल ।4।
वैसा होता आचरण, जैसी होती सोच ।
रोटी तब अच्छी बने,जब आटे में…
Added by Sushil Sarna on February 6, 2024 at 2:19pm — No Comments
दोहा पंचक. . . नैन
नैन द्वन्द्व में नैन ही , गए नैन से हार ।
नैनों को अच्छी लगे, नैनों से तकरार ।।
नैनों से तकरार का, लगे अजब आनन्द ।
हृदय पृष्ठ पर प्रीत के, अंकित होते छन्द ।।
नैनों के संवाद की, अद्भुत होती नाद ।
नैन सुनें बस नैन के, अनबोले संवाद ।।
नैनों से होती सदा, मौन सुरों में बात ।
नैनों की मनुहार में, बीते सारी रात ।।
नैनों के संसार की, किसने पायी थाह ।
नैन तीर पर हो सदा, लक्षित…
Added by Sushil Sarna on February 3, 2024 at 1:53pm — 2 Comments
121 22 121 22 121 22 121 22
हज़ार लोगों से दोस्ती की हज़ार शिकवे गिले निभाये।
किसी ने लेकिन हमें न समझा सभी से हमने फरेब खाये।
हमारे जीवन में अब तुम्हारी जगह तो कोई नहीं है लेकिन,
दुआ में होठों से फिर ये निकला खुदा तुम्हारे दरस दिखाये।
किसी के दिल में बसे रहो तुम,हमारे दिल को मसलने वाले,
यही तकाज़ा है दोस्ती का फरेब खाकर करे दुआये।
हमारी आँखें फ़टी रही पर पलट के तुमने कभी न देखा,
अजीब उलझन है जिंदगी की न याद आये न भूल…
Added by मनोज अहसास on February 2, 2024 at 8:40pm — No Comments
धूम कोहरा
उषा अवस्थी
धूम युक्त कोहरा सघन
मचा हुआ कोहराम
किस आयुध औ कवच से
जीतें यह संग्राम?
एक नहीं, अनगिन बने
कारण, होती वृद्धि
रोके से रुकता नहीं
क्रम,कैसे हो शुद्धि?
ढेरों टन कोयला दहन
कर विद्युत संयंत्र
धूम्र उगलते; जो जाकर
मिले बूंद के संग
वही हवा फिर साँस से
पहुँचे मानव अंग
स्वास्थ्य बिगाड़े,कष्ट दे
करे मनुज का…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 31, 2024 at 8:14am — 1 Comment
1222 1222 1222 1222
हमारा जिक्र छोड़ो आप कुछ अपनी कहो, बोलो ।
बहुत दिन बाद आये ख़्वाब में कहदो उठो,बोलो।
फिसलते वक़्त की गिनती ने हमको कर दिया गंभीर,
मगर माँ बाप कहते हैं कि बच्चे हो हँसो, बोलो।
कहीं पर सामना हो जाए तेरा मैं रहूँ खामोश,
तेरी आँखे बहे,मुझसे कहें,तुम भी…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 28, 2024 at 11:07pm — 3 Comments
1222 1222 122
1
मुझे महसूस करते थे खुशी से
मगर ये अब न कहना तुम किसी से
2
मुझे चाहत नहीं है अब किसी की
मुझे चाहत रही है पर सभी से
3
तुम्हारा नाम ही था कॉल में पर
मैं बातें कर रहा था अजनबी से
4
तनाफुर दिखता होगा शेर में अब
मैं शायद थक चुका हूँ शाइरी से
5
मैं अपने ग़म में ही मदहोश हूँ पर
हमें काफिर रिझाते मयकशी से
6
शुतुरगर्बा जबां पर आ गया है
बिठायें संतुलन कैसे सभी से
7
ये ज़ख़्मी शब्द हैं खामोश,रीते
तुझे…
Added by मनोज अहसास on January 28, 2024 at 10:05pm — No Comments
221 2121 1221 212
बाद एक हादिसे के जो चुप से रहे हैं हम
अपनी ही सुर्ख़ आँख में चुभते रहे हैं हम
ये और बात है की मुकम्मल न हो सका
इक ख़त किसी के नाम जो लिखते रहे हैं हम
सबसे जरूरी काम में पीछे रहे मगर
बाक़ी हर एक बात में आगे रहे हैं हम
वैसे तो हमसे जीतना मुमकिन न था मगर
अपनी रज़ा से आप से पीछे रहे हैं हम
इक रोज़ तन्हा छोड़ गए आप तो हमें
दर्द उम्र भर ये हिज़्र का सहते रहे हैं…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on January 26, 2024 at 9:30pm — 2 Comments
भले देख लो जग सारा, सबसे प्यारा देश हमारा.
कण कण में इसके अपनापन, अपना भारत सबसे न्यारा.
गंगा यमुना सरस्वती जैसे मिल कर संगम हो जाती.
अनेकताएं विविध यहाँ, एक हो हम दम जो जाती.
प्राचीनतम संस्कृति हमारी, सबको समावेशित कर देती.
अपनी पहचान बनाए रख मा, सबको अपना कर लेती.
सदियों आक्रान्ताओं से जूझे हम, नहीं कभी मिटी हस्ती.
है अमरत्व सनातन का, बनी रही अपनी मस्ती.
कालचक्र परिवर्तन में, राजतन्त्र मिट हुआ लोकतंत्र.
अपने शाश्वत…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on January 26, 2024 at 1:00pm — 1 Comment
राजपूत राजाओं को संगठित करता
एक मेवाड़ का अद्भुत शासक था
थर-थर कांपते शत्रु जिससे, वह संग्राम सिंह महाराजा था॥
वीरता-उदारता का समावेश था जिसमें
सिसोदिया वंश का गौरव था
विस्तार किया जो साम्राज्य का, हिंद देश का रक्षक था॥
सौ लड़ाइयाँ लड़ी थी जिसने
खो आँख-हाथ-पैर को बैठा था
एक छत्र के नीचे लाया राजपूतों को, शक्तिशाली ऐसा उत्तर भारत का राजा था॥
सतलुज से लेकर नर्मदा…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 23, 2024 at 2:54pm — No Comments
दोहा त्रयी. . . सन्तान
सन्तानों के बन गए ,अपने- अपने नीड़ ।
वृद्ध हुए माँ बाप अब, तन्हा बाँटें पीड़ ।।
अर्थ लोभ हावी हुए, भौतिक सुख विकराल ।
क्षीण दृष्टि माँ बाप की, ढूँढे अपना लाल ।।
सन्तानों की आहटें , देखें अब माँ बाप ।
वृद्ध काल में बन गई, ममता जैसे श्राप ।।
सुशील सरना / 19-1-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 19, 2024 at 1:00pm — 4 Comments
11212 11212
इसी में तो मेरा जहान है
ये जो खंडरों सा मकान है
यूँ ही बोलने से बचा करें
यूँ कि तुंद-ख़ू ये ज़बान है
नया खून है वो है जोश में
अभी ज़िंदगी में उफान है
न है आसमाँ न है तू ज़मीं
तुझे ख़ुद पे कितना गुमान है
तेरी जाति क्या है बिसात क्या
तेरा ज़िस्म ख़ाक समान है
न क़ुसूर कोई 'तमाम' अब
न बची उमंग न जान है
मौलिक व अप्रकाशित
(आज़ी…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on January 18, 2024 at 4:30am — 6 Comments
दोहा त्रयी. . . शंका
शंका व्यर्थ न कीजिए, यह दुख का आधार ।
मन का छीने चैन यह , शूलों का संसार ।।
शंका का संसार में, कोई नहीं निदान ।
इसके चलते हों सदा, रिश्ते लहू लुहान ।।
शंका बैरी चैन की, नफरत का यह द्वार ।
प्यार भरे संसार में, यह भरती अंगार ।।
सुशील सरना / 17-1-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 17, 2024 at 2:59pm — 2 Comments
अनिमिष नयनों से
वसुधा को
वह गगन निहारा करता है।
शोख पवन
छूकर अवनी को
यूँ ही इतराया करता है।
कितना बेबस!
होकर सागर…
ContinueAdded by Dharmendra Kumar Yadav on January 17, 2024 at 12:49pm — 1 Comment
जिसे कहते भारत का गौरव
आज उस सम्राट की गाथा कहता हूँ
स्वर्णभूमि जो सुख-समृद्धि की, महिमा उस अमरावती की गाता हूँ॥
विश्व का केंद्र जो विश्व की धुरी थी
जिसे उज्जयिनी नगरी कहता हूँ
कीर्ति सौरभ जिसका चहुँ ओर था फैला, उसे महाकाल से रक्षित पाता हूँ॥
स्वर्ण-रजत मोती-माणिक की न कमी जहाँ पर
धन-धान्य से राजकोष को भरा मैं पाता हूँ
सच्चे परितोष थे नगर के जो, उन्हें संज्ञा नवरत्न से सुशोभित पाता…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 15, 2024 at 10:00am — No Comments
.
कुछ थे अधूरे काम सो आना पड़ा हमें.
फ़ानी बदन में ख़ुद को समाना पड़ा हमें
.
जश्न-ए-जहान था ही नहीं अपने वास्ते
आ ही गए तो जश्न मनाना पड़ा हमें.
.
फिर जब पहेली मौत…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on January 11, 2024 at 11:53am — 6 Comments
दोहा पंचक. . .
कितनी चंचल हो गई, बूंद ओस की आज ।
संग किरण के घास पर, नाचे बिन आवाज ।।
मौसम आया पोष का, लगे भयंकर शीत ।
मुख से निकले प्रीत के, कंपित सुर में गीत ।।
लो धरती पर हो गया , शीत धुंध का राज ।
भानु धुंधला सा हुआ, छुपा ताप का ताज।।
हरित पर्ण पर ओस ज्यों , लगती जीवन आस।
बूँद- बूँद में कल्पना, कवि की भरे उजास ।।
शीत भगाने के लिए, जलने लगे अलाव ।
धीमी-धीमी आँच में, चली प्रेम की नाव…
Added by Sushil Sarna on January 10, 2024 at 3:29pm — 3 Comments
आ जा खेले आँख मिचौली, तू मेरा मैं तेरी हमजोली
बंद करूँ मैं आँखों को तू जाकर कहीं छूप जाए
पर देख मुझे तू सतना ना दूर कहीं छिप जाना ना
ऐसा न हो तू पुकारे मुझे, मैं दूर कहीं खो जाऊं
मैं आऊँ मैं आऊँ…
ContinueAdded by AMAN SINHA on January 6, 2024 at 11:14pm — 1 Comment
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