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कुर्रतुल एन. हैदर

कुर्रतुल एन. हैदर

अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो

प्रभात कुमार रॉय

उर्दू साहित्य के लिए हिंदुस्तान के सर्वोच्च साहित्य पुरुस्कार ज्ञान पीठ अवार्ड से नवाज़ी गई। कुर्रतुल एन हैदर को उनके चाहने वाले एनी आपा के नाम से पुकारा करते थे। हिंदी और उर्दू पाठकों के मध्य समान रुप से लोकप्रिय रही, कुर्रतुल एन हैदर वस्तुतः उर्दू के साहित्याकाश पर एक जगमगाता हुआ सितारा रही। उनसे पहले ज्ञानपीठ अवार्ड मकबूल शायर फिराक़ गोरखपुरी को प्रदान किया गया था । अपनी शानदार रचनाओं से कुर्रतुल एन हैदर उर्दू… Continue

Added by prabhat kumar roy on February 7, 2011 at 6:15pm — 3 Comments

कविता :- हर ले वीणा वादिनी !

कविता :- हर ले वीणा वादिनी !



देश को लूट कर

हक़ हकूक छीन कर

जो बने हैं बड़े

और तन कर खड़े

बेशर्म बेहया

उन दरख्तों के पत्ते और सत्ते ओ माँ !

उनकी धूर्त और मक्कार शाखाएं भी

तू हरले सभी !

तू हरले…

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Added by Abhinav Arun on February 7, 2011 at 4:00pm — 3 Comments

रिपोर्ट : "परिवर्तन" की ८१ वीं गोष्ठी

"परिवर्तन" की ८१ वीं गोष्ठी

काशी की सक्रीय संस्था "परिवर्तन" की ८१ वीं काव्य गोष्ठी दिनांक ०६ फरवरी २०११ को जनाब अफ़सोस गाजीपुरी के निवास पर हुई | इसमें बेखुद गाजीपुरी की अध्यक्षता में शाद शिकोहबादी , रोशन मुगलसरावी , अभिनव अरुण , मजहर शकुराबादी , शमीम गाजीपुरी , डॉ.मंजरी पाण्डेय ,आदि कवियों -शायरों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया |संचालन डॉ. सुमन राव ने किया |

करीब पचहत्तर वर्षीय जनाब अफ़सोस गाजीपुरी इस संस्था को पिछले…

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Added by Abhinav Arun on February 7, 2011 at 3:43pm — 2 Comments

बेमतलब का दिन

दिन बहुत देखे

रोज कोई खास दिन

कोई प्यार का दिन

कोई त्यौहार का दिन

कोई इजहार का दिन

हर दिन का एक मतलब है

छुट्टी का दिन जो सन डे है

बन गया वो अब फन डे है

काश कोई बेमतलब का दिन भी होता

जिसका कोई नाम न होता

करने को कोई काम न होता

मुश्किल किसी को आराम न होता

उस दिन की कोई परभाषा न होती

इक दूजे से कोई आशा न होती

किसी के मन में निराशा न होती

सब अपनी धुन में नाचते

अच्छा और बुरा न जांचते

जैसे चलती है हवा… Continue

Added by Bhasker Agrawal on February 7, 2011 at 3:09pm — 3 Comments

" एक चीख " एक सच्ची घटना .. Dr Nutan Gairola

ये कैसा महिला का महिला के प्रति प्यार ?

एक चीख मेरे कानो में गूंजती है ..बात छह महीने पहले की है ..जबकि एक चीख की आवाज पर मैं  अपने चेम्बर से बाहर निकली तो पाया - दर्द में पीड़ित महिला को, जो आठ माह के गर्भ से थी काफी रक्तस्त्राव की वजह से पीली पड़ी हुवी  थी | मैं  स्त्रीरोग…

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Added by Dr Nutan on February 6, 2011 at 11:30pm — 6 Comments

बह्र पहचानिये- 3

ओ. बी. ओ. परिवार के सम्मानित सदस्यों को सहर्ष सूचित किया जाता है की इस ब्लॉग के जरिये बह्र को सीखने समझने का नव प्रयास किया जा रहा है|

इस ब्लॉग के अंतर्गत सप्ताह के प्रत्येक रविवार को प्रातः 08 बजे एक गीत के बोल अथवा गज़ल दी जायेगी, उपलब्ध हुआ तो वीडियो भी लगाया जायेगा, आपको उस गीत अथवा गज़ल की बह्र को पहचानना है और कमेन्ट करना है अगर हो सके तो और जानकारी भी देनी है, यदि…

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Added by वीनस केसरी on February 6, 2011 at 5:00pm — 7 Comments

मेरे पापा

'पापा'

आपका जाना

दे गया

इक रिक्तता

जीवन में,

असहनीय पीड़ा

मेरे मन में..

 

'माँ'

आज भी

बातें करती है

लोगों से,

लेकिन उसकी

बातों में

होता है

इक 'खालीपन'

आज भी

उसकी निगाहें

देखती हैं

चहुँ ओर

'पर'

उसकी आँखों में हैं

इक 'सूनापन'...  

 

माँ के, दीदी के

छोटू के, भैया के ..

सबके मन में

आपकी याद बसी है

'वो'…

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Added by Anita Maurya on February 6, 2011 at 4:18pm — 5 Comments

अँधेरे की चीख से

यक़ीनन आप मेरे रहनुमा है

तभी तो कारवां ये बदगुमां है

 

निगाहे शौक से देखे अगर वो 

ज़हां में आशियां ही आशियां है

 

उठाओ हाथ में खंज़र उठाओ

मेरी आँखों के आगे इक मकां है

 

छुटा है कुछ अभी आलिंगनों से

न जाने कौन अपने दर्मियां है

 

वहीँ होगी दफ़न अपनी कहानी 

हर इक तारीख में अँधा कुआं है

 

दिखाओ सर्द मौसम को दिखाओ

जमीं की आग सा मेरा बयां है  

 

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 5, 2011 at 3:30pm — 1 Comment

मेरे संग्रह "अँधेरे की चीख" से

उदघोष में दम चाहिए

 मिमिया रहे है लोग

 

ये कौन क़त्ल हो गया

बतिया रहे है लोग

 

पूनियों सा वक़्त को

कतिया रहे है लोग

 

संवेदना की मौत पर

खिसिया रहे है लोग

 

धोखे की टट्टियों को

पतिया रहे है लोग

 

कुर्सी पे बैठे बैठे

गठिया रहे है लोग

 

आदम नहीं गधे सा

लतिया रहे है लोग

 

मौके भुना रहे है

हथिया रहे है लोग

 

 

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 5, 2011 at 3:30pm — No Comments

ग़ज़ल : - मत पढ़ो सच का ककहरा

ग़ज़ल : - मत पढ़ो सच का ककहरा

ज़ख्म हो जाएगा गहरा ,

मत पढ़ो सच का ककहरा |

 

गड़ रहा आँखों में परचम ,

मैं हूँ गूंगा और बहरा…

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Added by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:30am — 7 Comments

ग़ज़ल : - वो धुआं था रोशनी को खा गया

ग़ज़ल : - वो  धुआं था रोशनी को खा गया

छत से निकला आसमां पे छा गया ,

वो  धुआं था रोशनी को खा गया |

 

सब ज़बानें मजहबी खँजर हुईं ,

क्या पुनः दंगों का मौसम आ गया |

 

टहनियों पर तितलियों…

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Added by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:30am — 13 Comments

ग़ज़ल :-मिस्र वालों ने दिखाई हिम्मत

ग़ज़ल :- मिस्र वालों ने दिखाई हिम्मत

कैद बेशक है आज पिंजर में ,

हौसला है मगर अभी पर में |

 

मिस्र वालों ने दिखाई हिम्मत ,

जी रहे हम न जाने किस डर में |

 

हत परिंदों को बचाता है कौन…

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Added by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:00am — 7 Comments

Ghazal - 7

                               ग़ज़ल



सौ  अफसानों  जैसा  मेरा,  भी बस इतना  अफ़साना  है |

जिस दुनिया ने दर्द दिया है, दिल  उसका  ही  दीवाना है ||



शायद वो  तस्वीर   हो ऐसी,  जो  इस  दिल  को  पहचाने,

इसी आश में जिआ हूँ अब तक, और यूँ ही जीते जाना है ||…



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Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on February 4, 2011 at 7:00pm — 2 Comments

मेरे संग्रह अँधेरे की चीख से ३ ग़ज़ले

एक 

जब से हुई है बंद दुकानें उधार की 

रंगत बिगड़ गई है फसले बहार की

सावन के रंग अब के फीके लगा किये

ये उम्र है नहीं अब सोलह सिंगार की

बौने है किस कदर ये आदम बड़े बड़े

हद देख ली है हम ने सब के मयार की

हो पायेगा उन्हें क्या जाने यहाँ अता

मन्नत जो मानते है उजड़े मजार की

बाजार से गुजर के वो शख्स रो पड़ा

कीमत बढ़ी हुई है मुश्ते गुबार की

किस्सा-ए-तोता-मैना यों याद था उन्हें

लिखी गयी कहानी उनसे शिकार…

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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 4, 2011 at 6:30pm — 3 Comments

"OBO लाइव विश्व भोजपुरी कवि सम्मेलन" -एक कविता

OBO लाइव विश्व भोजपुरी कवि सम्मेलन ,

होगी इसमें भाइयो की मिलन ,

कविओ की कला सामने आएगी ,…

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Added by Rash Bihari Ravi on February 4, 2011 at 6:00pm — 1 Comment

तुम

तुम्हारे ही सहारे से मेरा हर पल गुजरता है,

तुझ में डूब कर के ही मेरा पल-पल गुजरता है|



मै कितना प्यार करता हूँ तुम्हे किस तरह बतलाऊं,

जो बेहोश हूँ तेरी याद में क्यों होश में आऊं|



हसीं हो तुम बहुत सचमुच बहुत ही खुबसूरत हो,

बस आशिक मै नहीं तेरा, सभी की तुम जरुरत हो|



तुम्हारे होंठ तो मुझको कोई गुलाब लगते है,

तुम्हारी झील सी आँखें है या शराब लगते है|



गुजारूं रात मै कोई तेरी जुल्फों की छावों में,

यही इच्छा मेरी बस जाऊं मै तेरी… Continue

Added by आशीष यादव on February 4, 2011 at 7:47am — 12 Comments

पर्दाफ़ाश

 

तुमने मेरे मस्तिष्क को

बींदने की

बेपनाह कोशिश की है

उसे नियन्त्रित करने की

मशक्कत की है कि, जैसा तुम चाहो

मैं वैसा सोचूँ..

तुमने मुझे एक से बढ़ कर एक

रंगीन जाल दिखाया

बनाये अनोखे तिलिस्म और चाहा

कि जैसा तुम दिखाना चाहते हो

मैं बस वो ही देखूँ..

तुमने मेरी उंगलियों को

छेद छेद कर, पिरोने…

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Added by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 4, 2011 at 4:30am — 9 Comments

बड़े कवि

 

बड़े कवि

 

बड़े कवि

बड़ी कविता लिखते है 

जिसे बड़े कवि पढ़ते है

फिर परस्पर पीठ खुजलाते हुए 

कला साहित्य के 

नए प्रतिमान गढ़ते है

बड़े कवि

ख़ारिज कर देते है

किसी को भी 

तुक्कड़ या लिक्खाड़ 

कह कर

बड़े कवि

गंभीरता का लबादा ओढ़े 

किसी नोबेल विजेता की 

शान में कसीदे पढ़ते है

विदेशी कवियों को'कोट ' करते है

फिर उस 'कोट' के

भार…

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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 3, 2011 at 10:30pm — 6 Comments

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