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वीनस केसरी's Blog (47)

ग़ज़ल - गुज़ारिश थी, कि तुम ठोकर न खाना अब

ग़ज़ल श्री गिरिराज भंडारी जी की नज्र ...





गुज़ारिश थी, कि तुम ठोकर न खाना अब

चलो दिल ने, कहा इतना तो माना अब



न काम आया है उनका मुस्कुराना अब

यकीनन चाल तो थी कातिलाना .... अब ?



ये दिल तो उन पे अब फिसला के तब फिसला

ये तय जानो, नहीं इसका ठिकाना अब



जो दानिशवर थे सब नादान ठहरे हैं

ये किसका दर है, तुमको क्या बताना अब

ये मौसम खूबसूरत था ये माना पर

वो आये तो हुआ है शायराना अब …



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Added by वीनस केसरी on December 24, 2014 at 5:00am — 18 Comments

ग़ज़ल : पत्थरों में खौफ़ का मंज़र भरे बैठे हैं हम

एक ताज़ा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले ....



पत्थरों में खौफ़ का मंज़र भरे बैठे हैं हम |

आईना हैं, खुद में अब पत्थर भरे बैठे हैं हम |

 

हम अकेले ही सफ़र में चल पड़ें तो फ़िक्र क्या,

अपनी नज़रों में कई लश्कर भेरे बैठे हैं हम |

जौहरी होने की ख़ुशफ़हमी का ये अंजाम है,

अपनी मुट्ठी में फ़कत पत्थर भरे बैठे हैं हम |

 

लाडला तो चाहता है जेब में टॉफी मिले,

अपनी सारी जेबों में दफ़्तर भरे बैठे हैं हम…

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Added by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 12:00am — 15 Comments

ग़ज़ल - छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या

छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या

इल्म लेगा ये इम्तेहान भी क्या



ख़ुद से कर देगा बदगुमान भी क्या 

कोई ठहरेगा मेह्रबान भी क्या



है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या

इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या

मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है

काट ली जायेगी ज़बान भी क्या

धूप से लुट चुके मुसाफ़िर को

लूट लेंगे ये सायबान भी क्या



इस क़दर जीतने की बेचैनी

दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या



अब के दावा जो है मुहब्बत का

झूठ ठहरेगा ये…

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Added by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 12:30am — 26 Comments

"ग़ज़ल के फ़लक पर - १" संपादक - राणा प्रताप सिंह - प्रविष्टि आमंत्रित

अंजुमन प्रकाशन की नई पेशकश "ग़ज़ल के फ़लक पर - १"

(२०० युवा शाइरों का साझा ग़ज़ल संकलन)



पुस्तक परिचय



पुस्तक – ग़ज़ल के फ़लक पर - १

संपादक – राणा प्रताप सिंह

२०० शाइरों की ३-३ ग़ज़लें…

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Added by वीनस केसरी on November 9, 2013 at 12:00am — 22 Comments

|| अंजुमन ग़ज़ल नवलेखन पुरस्कार - 2014 ||

दोस्तो,

अंजुमन प्रकाशन द्वारा 27 अक्टूबर 2013 को लखनऊ के पुस्तक लोकार्पण समारोह में की गयी घोषणा के अनुसार अंजुमन ग़ज़ल नवलेखन पुरस्कार-2014 के नियम एवं शर्त उपलब्ध हैं | युवा शाइरों से निवेदन है कि इस पुरस्कार योजना में शामिल हो कर इसे सफल बनाएँ व इसका लाभ उठायें |…



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Added by वीनस केसरी on November 3, 2013 at 7:30pm — 27 Comments

लघु कथा - मजदूर

क्यों बे साले तेरी ये मजाल ... दो टके का मजदूर हो के मुझसे ज़बान लड़ाता है !

साहेब, गरियाते काहे हैं, मजदूर तो आपौ हैं  

क्या बकता है हरामखोsss

माई बाप ... पिछले हफ्ता एक मई का आपै तो कहे रहेन ,,, "हम सब मजदूर हैं"  

(मौलिक व अप्रकाशित) 

 

Added by वीनस केसरी on October 13, 2013 at 12:00am — 25 Comments

ग़ज़ल - जंग न होगी तो होगा नुक्सान बहुत

आदरणीय चन्द्र शेखर पाण्डेय जी की ग़ज़ल से प्रेरित एक फिलबदी ग़ज़ल ....



२२ २२ २२ २२ २२ २

ये कैसी पहचान बनाए बैठे हैं

गूंगे को सुल्तान बनाए बैठे हैं



मैडम बोलीं आज बनाएँगे सब घर   

बच्चे हिन्दुस्तान बनाए बैठे हैं

 

आईनों पर क्या गुजरी, क्यों सब के सब,   

पत्थर को भगवान बनाए बैठे हैं

 

धूप का चर्चा फिर संसद में गूंजा है

हम सब रौशनदान बनाए बैठे हैं

जंग न होगी तो होगा नुक्सान बहुत  

हम कितना सामान…

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Added by वीनस केसरी on September 18, 2013 at 3:00am — 24 Comments

प्यास के मारों के संग ऐसा कोई धोका न हो

दोस्तों, पिछले डेढ़ महीने, मंच से नादारद था  ... एक ताज़ा ग़ज़ल के साथ पुनः हाज़िरी दर्ज करता हूँ ....

प्यास के मारों के संग ऐसा कोई धोका न हो

आपकी आँखों के जो दर्या था वो सहरा न हो 

उनकी दिलजोई की खातिर वो खिलौना हूँ जिसे

तोड़ दे कोई अगर तो कुछ उन्हें परवा न हो

आपका दिल है तो जैसा चाहिए…

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Added by वीनस केसरी on August 11, 2013 at 10:30pm — 16 Comments

लघु कथा : चमक - दमक

बर्तन की जाली में एक लोटा और कुछ चम्मच थे | सारे चम्मच लोटा को दुनिया का सबसे अच्छा बर्तन मानते थे, उसकी जय-जयकार करते थे, लोटा हमेशा उनको चमक - दमक की दुनिया से बचने नसीहतें देता था, हमेशा उनको बताता था कि दुनिया वैसी नहीं है जैसी दिखती है, चम्मचों ! परदे के पीछे का खेल देखने की कोशिश किया करो, सच्चाई वहाँ छुपी होती है, बहुत लोग तुमको ऐसी नकली दुनिया में घसीटने की कोशिश करेंगे ऐसे लोगों से दूर रहो,,, और भी जाने क्या क्या .....…

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Added by वीनस केसरी on July 17, 2013 at 2:04am — 19 Comments

चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में - वीनस

एक ताज़ा ग़ज़ल ...



चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में

जाएगी जान क्या शराफत में

 

किसको मालूम था कि ये होगा

खाएँगे चोट यूँ मुहब्बत में

 

पीटते हैं हम अपनी छाती…

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Added by वीनस केसरी on July 3, 2013 at 9:30pm — 40 Comments

वक्त जो हम पर भारी है - वीनस

छोटी बहर पर ग़ज़ल का एक प्रयास  .....

वक्त जो हम पर भारी है 

अपनी भी तय्यारी है 



पूरा कारोबारी है 

ये अमला सरकारी है 

.…

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Added by वीनस केसरी on June 20, 2013 at 11:00am — 36 Comments

ऐ दोस्त ! खुशतरीन वो मंज़र कहाँ गए

दोस्तो, एक और ग़ज़ल जो होते होते मुकम्मल हुई है, आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ जैसी लगे वैसे नवाजें   ....



ऐ दोस्त ! खुशतरीन वो मंज़र कहाँ गए

हाथों में फूल हैं तो वो पत्थर कहाँ गए



डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें

तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए…



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Added by वीनस केसरी on June 6, 2013 at 12:30am — 34 Comments

वो एक बार तबीअत से आजमाए मुझे

एक ताज़ा ग़ज़ल आप सभी की मुहब्बतों के हवाले ....

वो एक बार तबीअत से आजमाए मुझे

पुकारता भी रहे और नज़र न आए मुझे

मैं डर रहा हूँ कहीं वो न हार जाए मुझे

मेरी अना के मुक़ाबिल नज़र जो आए मुझे



मुझे समझने का दावा अगर है सच्चा तो …

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Added by वीनस केसरी on June 4, 2013 at 1:00am — 32 Comments

नवगीत ::: नेता काटें ‘मोटा माल’

सामयिक मुद्दों पर एक नवगीत ...

 

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

साम्यवाद के पक्ष में

जितने दावे थे

सब ख़ारिज हैं…

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Added by वीनस केसरी on May 10, 2013 at 3:00pm — 24 Comments

दिल से दिल के बीच जब नज़दीकियाँ आने लगीं

तमाम विसंगतियों के विरोध में एक ताज़ा ग़ज़ल .....



दिल से दिल के बीच जब नज़दीकियाँ आने लगीं 

फैसले को ‘खाप’ की कुछ पगड़ियाँ आने लगीं 



किसको फुर्सत है भला, वो ख़्वाब देखे चाँद का

अब सभी के ख़्वाब में जब रोटियाँ आने लगीं



आरियाँ…

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Added by वीनस केसरी on May 6, 2013 at 9:30pm — 52 Comments

परेशां है समंदर तिश्नगी से - ग़ज़ल

परेशां है समंदर तिश्नगी से 

मिलेगा क्या मगर इसको नदी से



अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे  

कमाया है जो हमने मुफलिसी से

 …

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Added by वीनस केसरी on April 25, 2013 at 10:00pm — 12 Comments

किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से - वीनस

मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से

किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से



महब्बत यूँ मुझे है बतकही से

निभाए जा रहा हूँ खामुशी से



उन्हें कुछ काम शायद आ पड़ा है

तभी मिलते हैं मुझसे खुशदिली से



उजाला बांटने वालों के सदके

हमारी निभ रही है तीरगी से



ये कैसी बेखुदी है जिसमे मुझको

मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से



उतारो भी मसीहाई का चोला

हँसा बोला…

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Added by वीनस केसरी on April 19, 2013 at 12:14am — 16 Comments

इंसान

जीतने के सौ तरीके खोजने वाले,

ग्लूकान-डी के सहारे

सूरज से लड़ने वाले हम इंसान

उजले सच को भी बर्दाशत नहीं कर पाते



प्रकृति पर विजय की लालसा लिए,

हम इंसान

पर्वत विजय का जश्न मनाते हैं,

इंगलिश चैनल को तैर कर पार करते हैं,

भू-गर्भ की गहराइयों को 'मीटर' में नापते हैं, 

'मीटर' के ऊपर के सारे पैमाने जाने कहाँ चले जाते हैं उस समय !!!



चाहते हैं,

चाँद पर खेती करें,

मंगल पर पानी मिल जाए,

नए तारों की खोज में ,

हमने…

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Added by वीनस केसरी on April 12, 2013 at 12:52am — 10 Comments

सच मन को आहत करता है - वीनस केसरी

सच बोलने वालो

तुमको हमेशा सूली पर लटकाया गया

मगर यह गलत कहाँ है

तुम्हारे कारण

आहत होती हैं कितनी भावनाएँ,

शून्य से शिखर तक पहुँचते-पहुँचते

कितने शीशे टूट जाते है



सच बोलने वालो

तुम अलगाव वादी हो   

तुमसे बर्दाशत नहीं होती

अखंडता की भावना

तुम्हें मसीहाई सूझती है

तुम्हें अप्राकृतिक सुन्दर अट्टालिकाएँ नहीं दिखतीं

केवल भूखे लोग दीखते हैं

जोर से बोलने पर

सच भी जोरदार माना जा रहा है

तारे भी सूरज है…

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Added by वीनस केसरी on April 9, 2013 at 5:00pm — 5 Comments

नई कविता - वीनस केसरी

नई कविता जो आज रात पुरानी हो गई



मैं चाहता था

ख़्वाब मखमली हों और उनमें परियां आएँ

सूरज की तरह किस्मत हर दिन चमकदार हो

और जब सलोना चाँद रास्ता भटक जाए,

तो तारों से राह पूछने में उसे शर्म न लगे

 

ये भी चाहा कि,

मैं पूरी शिद्दत से किसी को पुकारूं

और वो मुड कर मुझे देख कर मुस्कुराए  

हम सुलझते सुलझते, थोडा सा फिर उलझ जाएँ

प्यार करते करते लड़ पड़ें

और…

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Added by वीनस केसरी on April 9, 2013 at 3:11am — 10 Comments

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