स्वप्न
पावस-अमावस में, निविड़ में बीहड़ में
साहस की मूर्ति बनी कृष्ण अभिसारिका I
नीर नेत्र-नीरज में धर्म वृत्ति धीरज में
श्रृद्धा भक्ति भाव भरी आयी सुकुमारिका I
देखा प्रिय पंथ में खड़े है अड़े भासमान
धाय गिरी अंक मे अधीर हुयी चारिका I
चौंकि उठी उसी क्षण स्वप्न सुख भंग हुआ
हाय ! कहाँ कान्ह वे तो जाय बसे द्वारिका I
मुक्ति-चतुष्टय
(भारतीय दर्शन में चार प्रकार की मुक्ति मानी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 1, 2014 at 7:00pm — 22 Comments
काम से थककर चूर पत्नी ने कमर पीड़ा से कराहते हुए दर्द भरे स्वर में कहा - ‘हाय रा s sम !’
बिस्तर पर लेटे –लेटे पति ने पत्नी की व्यथा सुनी, बुरा सा मुंह बनाया और जोर से आह भरी – ‘हाय सी s sता !'
[अप्रकाशित व् मौलिक]
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 30, 2014 at 4:00pm — 37 Comments
प्रोषितपतिका मंदिर में स्थित देवता पर फूल चढाने वाली ही थी कि उसका आठ वर्षीय बेटा दौड़ा हुआ आया और हांफते हुए बोला -'मम्मी , पूरे दस महीने बाद आज डैडी घर आये है i' इतना कह्कर लड़का वापस चला गया i माँ ने झटपट पूजा संपन्न की और घर की ओर भागी i उसके पहुचते ही बेटे ने टिप्पड़ी की माँ आपके दोनों पैरो में अलग - अलग किस्म की चप्पले है i माँ ने झेप कर पैरो की ओर देखा फिर लाज की एक रेखा सी उसके चेहरेपर दौड़ गयी i पतिदेव शरारत से मुस्कराये i
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 29, 2014 at 1:08pm — 24 Comments
याद की छाई घटाये चाँद उनमे खो गया I
रोते-रोते थक गया तो नील नभ पर सो गया I
ह्रदय सागर की लहर पर ज्वार का छाया नशा
स्वप्न के टूटे किनारे चांदनी में धो गया I
पर्वतो के श्रृंग पर है शाश्वत हिम का मुकुट
मौन के सम्राट का भी ह्रदय प्रस्तर हो गया I
देखकर इस देह के पावन मरुस्थल का धुआं
एक सहृदय रेत में कुछ आंसुओ को बो गया I
कल्पना के कलश में करुणा अभी 'गोपाल'…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 24, 2014 at 9:00pm — 43 Comments
आपगा सरस्वती
मंत्र है प्रमाण इस भारत मही में कभी
वाणी की प्रतीक देवि आपगा यशस्विनी I
बहती थी मंद -मंद सींचती थी छंद -छंद
बोलती थी कल , कल -कंठ से मनस्विनी I
स्नान करते थे आर्य, पान करते थे वारि
ध्यान धरती थी यह धारिणी तपस्विनी I
आज यदि होती वह , मेरे पाप धोती वह
ज्ञान बीज बोती, मेरी मातः पयस्विनी I
(मौलिक और अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 21, 2014 at 1:00pm — 14 Comments
'साहेब हमरी किडनी ख़राब है I इलाजु चलि रहा है I उनकी जगह हमरे लरिकऊ का नौकरी तो दिहेव मालिक पर अकेलु लरिका नोडा (नॉएडा) चला जाई तो हमार देखभाल कौन करी I इसै हियें लखनऊ माँ जगह दै देव साहेब , नहीं तो ई बुढ़िया मरि जाई I
'हाँ साहेब !" बेटे ने भी हाथ जोड़कर मिन्नत की I
' ठीक है, तुम लोग बाहर जाओ I मै कुछ करता हूँ I"
माँ-बेटे बाहर चले गए I 'थोड़ी देर में माँ को बाहर छोड़ कर बेटा फिर अन्दर आया I
'येस?' - साहेब ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा I
'सर, मेरी माँ…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 10, 2013 at 1:00pm — 32 Comments
हां ठीक था, अर्जुन !
तुम अपने युयुत्सु परिजनों पर
शस्त्र न उठाते i
उन्हें अपने गांडीव की प्रत्यंचा
की सीध में न लाते i
तुम्हारा यह निर्णय ठीक होता या न होता
हां सभी मर जाते तो शवो पर कौन रोता ?
किन्तु यह क्या---
तुम्हारे शरीरांग कांपे क्यों ?
वदन सूखा क्यों, दशन चांपे क्यों ?
वेपथु क्यों हुआ, क्यों हुआ लोमहर्षण
अभी तो शंख घोष था, नही था अस्त्र वर्षण
तब भी तुम्हारे हाथ से गांडीव खिसका
तुम्हारी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2013 at 5:24pm — 33 Comments
नदी पर काठ का एक छोटा किन्तु मजबूत सेतु बना था I उसके नीचे माधवी झाड़ियो से रंग-बिरंगे फूल चुन रही थी I अचानक उसने विटप की ओर देखा और कहा - ' हमारे तुम्हारे गाँव के बीच यही एक नदी है जिस पर यह सेतु है I इसका मतलब समझे ?'
'नहीं----' विटप ने हंसकर कहा I
'बुद्धू ---- दो दिलो को ऐसा ही सेतु आपस में मिलाता है I ' -माधवी ने फूलो का ढेर लगाते हुए कहा ' और----- वह सेतु है विवाह i ' माधवी ने थोडा रूककर फिर कहा -' विटप, वहा सेतु पर…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 9:30pm — 18 Comments
छंद - दोहा
काव्य रसिक समवेत है ,अद्भुत दिव्य समाज I
माते ! अपनी कच्छपी , ले कर आओ आज II
वीणा के कुछ छेड़ दो , ऐसे मधुमय तार I
सारी पीडाये भुला , स्वप्निल हो संसार II
सपनो में ही प्राप्त है , जग को अब आनंद I
अतः मदिर माते i करो , हम कवियों के छंद II
यदि भावों से गीत से, जग को मिलता त्राण I
रस से सीचेंगे सदा , उनके आकुल प्राण …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 30, 2013 at 12:00pm — 22 Comments
मौन के शव ?
बोलते चुपचाप
बात करते आप
रौंदते है मूक अन्तस को
बधिर होता है हाहाकार
दग्ध पर नहीं होते वो
ध्वंस लेता है फिर आकार
यही होता है प्रकृति में
भावनाओ की विकृति में
सतत क्रम सा बार बार
सभी है सहते उसे
और हाँ कहते उसे
निष्ठुर प्रेम !
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2013 at 11:49am — 26 Comments
छंद- द्रुतविलंबित
लक्षण - 12 वर्णों के चार चरणों वाले इस छंद के प्रत्येक चरण में 1 नगण 2 भगण तथा 1 रगण होता है I
111 211 211 212
प्रकट है तटबंध प्रवाहिका
नयन गोचर है सरिता नहीं
इक तना लघु था सहसा तना
न चरता पशु भी इक पास में I
सरित का कुछ गान हुआ नहीं
पवन का कुछ भान हुआ नहीं
विरल जीवन मात्र पिपीलिका
सघन है वन नीरव देश भी I
उस तने पर है सब जीव…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 27, 2013 at 8:00pm — 12 Comments
'क्या सोचा?'
'अभी कुछ नहीं सोचा I '
'वैसे तुम बेकार घबरा रही हो i'
'मै घबरा नहीं रही '
'फिर-----?'
'सोचती हूँ यह कोई विकल्प नहीं है I '
'क्यों ------?'
'कल यही स्थिति फिर आएगी I '
'तब की तब देखा जायेगा I '
'तो अभी क्यों न देख ले ?'
'तुम समझी नहीं --'
'क्या---?'
'अभी हमें इसमें फंसने की क्या जरूरत है ?'
'क्यों ----?'
'ये दिन मौज करने के है, ऐश करने के है I '
'और-----बहारो के मजे लूटने के…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2013 at 12:17pm — 7 Comments
आह ! वह सुख ----
पावसी मेह में भीगा हुआ चंद्रमुख I
यौवन की दीप्ति से राशि-राशि सजा
जैसे प्रसन्न उत्फुल्ल नवल नीरजा I
मुग्ध लुब्ध दृष्टि ----
सामने सदेह सौंदर्य एक सृष्टि I
अंग-प्रत्यंग प्रतिमान में ढले
ऐसा रूप जो ऋतुराज को छले I
नयन मग्न नेत्र------
हुआ क्रियमाण कंदर्प-कुरुक्षेत्र I
उद्विग्न प्राण इंद्रजाल में फंसे
पंच कुसुम बाण पोर-पोर में धंसे I
वपु धवल कान्त…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 22, 2013 at 1:06pm — 32 Comments
आता रहे
जीवन में यह
दिन बार बार
स्वप्न करे साकार
महका हो हर आज
आदरणीय योगराज
आपके विकास में
भव्यता विलास में
बूँद बने सागर
सबके प्रिय प्रभाकर
मैं और क्या कहूं ?
भावना में क्या बहूँ ?
खुशिया हज़ार हो
शांति भी अपार हो
मै निहारता रहूँ
या पुकारता रहूँ
स्वामी जो जगत के
प्रभु जो प्रणत के
उनकी जय जय करू
और यह विनय करू
आता रहे जीवन में
यह…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 18, 2013 at 2:16pm — 13 Comments
क्या कभी देखा है
छोटे - छोटे बच्चो को
कूड़ा बीनते
या फिर किसी होटल में
जूठे प्याले धोते
या फूटपाथ पर जूते सिलते
या किसी सेठ की
भव्य दूकान में
अपनी उम्र और वज़न से
ज्यादा बोझ उठाते
या श्रम करते ?
तो क्या यही सचमुच
भारत के बच्चे है,
देश के भविष्य है ?
क्या इन बच्चो के
प्यारे-प्यारे मन में
हमने कभी झाँका है ?
क्या उनके सपनो को
जग ने कभी नापा…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 14, 2013 at 8:30am — 11 Comments
मेघ भी है, आस भी है और आकुल प्यास भी है,
पर बुझा दे जो हृदय की आग वह पानी कहाँ है ?
स्वाति जल की कामना में, 'पी कहाँ?' का मंत्र पढ़कर
बादलो को जो रुला दे, मीत ! वह मानी कहाँ है ?
क्षत-विक्षत है उर धरा का, रस रसातल में समाया,
सत्व सारा जो लुटा दे, अभ्र वह दानी कहाँ है ?
पार नभ के लोक में, जो बादलो पर राज करता,
छल-पराक्रम का धनी वह इंद्र अभिमानी कहाँ है ?
मौन पादप, वृक्ष नीरव, वायु चंचल, प्राण…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 12, 2013 at 12:30pm — 14 Comments
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |