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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (481)

हम तो हल के दास ओ राजा-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२/२२/२२/२२



हम तो हल के दास ओ राजा

कम देखें  मधुमास  ओ राजा।१।

*

रक्त  को  हम  हैं  स्वेद  बनाते

क्या तुमको आभास ओ राजा।२।

*

अन्न तुम्हारे पेट में भरकर

खाते हैं सल्फास ओ राजा।३।

*

पीता  हर  उम्मीद  हमारी

कैसी तेरी प्यास ओ राजा।४।

*

हम से दूरी  मत  रख इतनी

आजा थोड़ा पास ओ राजा।५।

*

खेती - बाड़ी  सब  सूखेगी

जो तोड़ेगा आस ओ राजा।६।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 4, 2021 at 9:56am — 23 Comments

ये लहर ऐसे न साथी साथ देगी अब यहाँ -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



हर लहर से बढ़ के अब तो रार साथी तेज कर

पार  जाने  के  लिए  पतवार  साथी  तेज  कर।१।

*

ये  लहर  ऐसे  न  साथी  साथ  देगी  अब  यहाँ

झील के  पानी  में  थोड़ी  मार  साथी तेज कर।२।

*

जुल्म  के  पत्थर  इसी  से  कट  गिरेंगे  देखना

पहले पत्थर पर कलम की धार साथी तेज कर।३।

*

काट दी है जीभ इन की चीखना सम्भव नहीं

सच कहेंगी  बेड़ियाँ  झन्कार  साथी  तेज…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2021 at 7:58pm — 10 Comments

यूँ तो जनता की रही सरकार कहने के लिए - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

.

शेष इस में  क्या  रहा  इनकार  कहने के लिए

कह गया कनखी में सब दरवार कहने के लिए।१।

*

काम जनता के न आयी आज तक ये एक दिन

यूँ तो जनता  की  रही  सरकार  कहने के लिए।२।

*

इश्तहारों के सिवा जनहित का उसमें कुछ नहीं

शेष है बस  नाम  ही  अखबार  कहने के लिए।३।

*

काम कोई भी किया ऐसा न जिसका दम भरें

बात ही  उस की  रही  दमदार  कहने के लिए।४।

*

सब दिहाड़ी पर  बुलाए  उस के ही मजदूर थे

लोग जितने  भी  जुटे  आभार  कहने के…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2021 at 3:30am — 3 Comments

निष्ठुर नगर -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२२/१२२२/१२२२/१२



नहीं कुछ गाँव सा सुनता हुआ निष्ठुर नगर

दिखाने घाव मत  जाना सखा निष्ठुर नगर।१।

*

उसे डर है कि उसके हित कमीं आजायेगी

नहीं देता किसी  का  भी  पता निष्ठुर नगर।२।

*

नदी सूखी हुई  कहती  है  प्यासे खेत से

तेरे हिस्से का पानी पी गया निष्ठुर नगर।३।

*

कहाँ तुम बात दुख की यार करते हो भला

खुशी तक में अकेला ही दिखा निष्ठुर नगर।४।

*

निकल पाया न खुद के व्यूह से सायास…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 31, 2021 at 8:59am — 9 Comments

दो आशीष नया हो भारत - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२/२२/२२/२२



दो आशीष  नया हो भारत

जग में और बड़ा हो भारत।१।

*

आयु बढ़े नित जितनी इसकी

उतना  और  युवा  हो  भारत।२।

*

ज्ञाता हो विज्ञान का लेकिन

साथ ही वेद पढ़ा हो भारत।३।

*

दुख  के  नाले  सब  सूखे  हों

सुख का एक किला हो भारत।४।

*

जिनके घर ढब बन्द पड़े हैं

कहते और खुला हो भारत।५।

*

उनको सबक सिखाना वीरों

जिनकी चाह डरा हो भारत।६।

*

सीमाओं का द्वन्द मिटाकर

दोनों ओर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2021 at 8:30am — 9 Comments

ढूँढा सिर्फ निवाला उसने - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२/२२/२२/२२



तोड़ के घर का ताला उसने

ढूँढा सिर्फ निवाला उसने।१।

*

लत पीने की ऐसी लगायी

बेच दी माँ की माला उसने।२।

*

खुद औरों के कन्धे पर चढ़

कहता बोझ सँभाला उसने।३।

*

दूध पिलाना था बच्चों को

पर नागों को पाला उसने।४।

*

जिसको हमने माना सूरज

रोका नित्य उजाला उसने।५।

*

जिसको सब खोटा कहते हैं

सिक्का वही उछाला उसने।६।

*

अपनों को ही चोट है मारी

फेंका जब जब भाला…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2021 at 6:35am — 10 Comments

चाँद को जब बदसूरत करने - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२/२२/२२/२२


दुनिया जिससे डरती होगी
प्यार न उससे करती होगी।१।
*
जैसा इसको नोच रहे हम
कैसी कल ये धरती होगी।२।
*
चाँद नगर क्या जाना यारो
भूमि वहाँ भी  परती होगी।३।
*
जितना विष हम पिला रहे हैं
नित्य नदी  एक  मरती होगी।४।
*
चाँद को जब बदसूरत करने
दुनिया  रोज  उतरती  होगी।५।
*
धरती के मन की हर पीड़ा
पलपल और उभरती होगी।६।


मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 15, 2021 at 8:04am — 4 Comments

सब कुछ है अब यार सियासी- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२/२२/२२/२२



जनता पर हर वार सियासी

नेता  की  है  हार  सियासी।१।

*

खून खराबा झेल रहा नित

होकर यह सन्सार सियासी।२।

*

बाहर बाहर फूट का दिखना

भीतर जुड़ना  तार सियासी।३।

*

बस्ती में  आने  मत देना

कोई भी अंगार सियासी।४।

*

घर  फूटेगा  हो  जाने  दो

बातें बस दो चार सियासी।५।

*

देश का पहिया जाम पड़ा है

दौड़ रही  बस कार  सियासी।६।

*

संकट का क्या अन्त करेगा

झूठा हर  अवतार  सियासी।७।

*

दम घोटे है नित जनता…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2021 at 10:17am — 12 Comments

औरों से क्या आस रे जोगी-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२/२२/२२/२२



मन में जब है प्यास रे जोगी

क्या लेना  सन्यास  रे जोगी।१।

*

महलों जैसे  सब  सुख भोगे

क्यों कहता बनवास रे जोगी।२।

*

व्यर्थ किया क्यों झूठे मद में

यौवन का मधुमास रे जोगी।३।

*

हम से कहता वासना त्यागो

छिप के करता रास रे जोगी।४।

*

खुद ही जब ये निभा न पाया

औरों से  क्या  आस रे जोगी।५।

*

मत कह बन्धन मुक्त हुआ है

तू भी हम  सा  दास रे जोगी।६।

*

तन का है या मन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2021 at 7:30am — 6 Comments

भूल मन पीड़ा विगत की गा रहा है - लक्ष्मण धामी'मुसाफिर' (गजल)

२१२२/२१२२/२१२२



भूल मन पीड़ा विगत की गा रहा है

शुभ रहे नव  वर्ष  ये  जो आ रहा है।१।

*

आँख जब आँसू झराने को विवश थी

अन्त उस मौसम  का होने जा रहा है।२।

*

जिन्दगी होगी सुहानी आज से फिर

भोर का  सूरज  हमें  समझा रहा है।३।

*

बह न पाए फिर लहू इन्सानियत का

ये वचन मन को  सभी के भा रहा है।४।

*

पेट भर भूखे को रोटी नित मिलेगी

साथ यह उम्मीद  साथी  ला रहा है।५।

*

बाँटना …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2021 at 8:25am — 11 Comments

धरती माता ने सारे दुख -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



धरती माता ने सारे दुख हलधर को दे डाले हैं

लेकिन उसने हँसते हँसते पेट अनेकों पाले हैं।१।

*

उद्योगों को नीर बहुत है करने को उपयोग मगर

इसकी खेती को जल जीवन तो नदियों में नाले हैं।२।

*

इसके हर साधन पर कब्जा औरों की मनमानी का

मौसम के हालातों  जैसे  हालात स्वयम् के ढाले हैं।३।

*

खेती करके भूखा रहता हलधर देखो रोज यहाँ

व्यापारी के श्वानों के मुँह मक्खन भरे निवाले हैं।४।

*

सरकारों ने पथ पथरीले जो शूलों के साथ दिये

उनके…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 27, 2020 at 8:32pm — 6 Comments

चोरी करता है - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



खेतीहर का ध्यान बँटाकर दाना चोरी करता है

मल्लाहों से नौका लेकर नदिया चोरी करता है।१।

*

बात उजाले की  नित  कर के तारा चोरी करता है

मन्दिर मस्जिद रटकर सबकी पूजा चोरी करता है।२।

*

मन्जिल पास बड़ी है अब तो राहत पाँवों को देदो

ऐसा कह कर सब के  पग से रस्ता चोरी करता है।३।

*

ये कैसा राजा  आया  है  आज  हमारी नगरी में

सन्तों  जैसे  पहरावे  में …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2020 at 7:04am — 9 Comments

अन्नदाता के लिए -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२१२२/२१२२/२१२२/२१२२/२१२



बाढ़-सूखा सूदखोरी  हर  समय  डर अन्नदाता के लिए

कौन सी सरकार चिन्तित है यहा पर अन्नदाता के लिए।१।

**

हर समय उद्योगपतियों की उन्हें चिन्ता सताती है मगर

खोज पाये संकटों का हल न अफसर अन्नदाता के लिए।२।

*

कर के उद्यम से यहा तैयार उसको नित्य बोता है उपज

मायने रखता नहीं कुछ  खेत  ऊसर अन्नदाता के लिए।३।

*

नित्य भूखे पेट सोता  है  उपज  को वो बचाने खेत…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 14, 2020 at 8:00am — 12 Comments

सब्र दशकों से किये है -लक्ष्मण धामी'मुसाफिर' (गजल)

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



कौन कहता है कि उनसे और वादा कीजिए

है निवेदन जो किया था वो ही पूरा कीजिए।१।

*

सब्र दशकों से किये  है  आमजन इस देश का

अब गरीबी भूख का कुछ तो सफाया कीजिए।२।

*

बस चुनावों में विरोधी बाद उस के सब सखा

मूर्ख जनता को समझ ऐसे न साधा कीजिए।३।

*

जल रहा कश्मीर तुमको फिक्र अपने कुनबे की

सिर्फ  कुर्सी  के  लिए …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2020 at 7:30am — 10 Comments

मुफलिसी में ही जिसका गुजारा हुआ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२१२२//१२२१/२२१२



मुफलिसी में ही जिसका गुजारा हुआ

कौन शासन जो  उस का सहारा हुआ।१।

**

उसको जूठन का मतलब न समझाइए

जिस ने पहना हो  सब का उतारा हुआ।२।

**

चाद किस्मत में उस के नहीं था मगर

आस भर को भी  कोई  न तारा हुआ।३।

**

जिस ने जीवन जिया  है सहज कष्ट में

आप कहते  हैं  उस को  ही  हारा हुआ।४।

**

है …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 21, 2020 at 6:22am — 8 Comments

दीपावली - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' ( गजल )

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



मेटती  आयी  है  घर  की  तीरगी  दीपावली

सब के मन में भी करे अब रोशनी दीपावली।१।

**

रीत कितने ही  युगों  से  चल रही हो ये भले

हर बरस लगती है सब को पर नई दीपावली।२।

**

तोड़ आओ ये नगर का जाल कहती साथियों

गाँव  की  नीची  मुँडेरों  पर  जली  दीपावली।३।

**

दीप सब ये प्रेम और' विश्वास के हैं इसलिए

आँख चुँधियाती नहीं  साथी  घनी दीपावली।४।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 14, 2020 at 8:57am — 8 Comments

लूटा गया था रात में अस्मत को जिसकी ढब -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



कहते हैं झूठ  ज़ुल्म  हिरासत  में आ गया

हाँ न्याय ज़ालिमों की हिमायत में आ गया।१।

*

लूटा गया था रात में अस्मत को जिसकी ढब

उसका ही नाम दिन को सिकायत में आ गया।२।

*

अन्धा है न्याय  जानता  होगी सजा नहीं

बेखौफ जुल्मी यूँँ न अदालत में आ गया।३।

*

बचना था जेल जाने  से  ऊँँची पहुँँच के बल

शासन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 31, 2020 at 2:00pm — 12 Comments

नोटबंदी का मुनाफा काले धन की वापसी - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



पेट जब भरता नहीं गुफ़्तार उसका दोस्तो

ढोइए अब और मत यूँ भार उसका दोस्तो।१।

**

नोटबंदी का मुनाफा काले धन की वापसी

हर वचन जाता रहा  बेकार उसका दोस्तो।२।

**

है खबर रस्ते से करने वो लगा है दरकिनार

रास्ता जिस ने किया  तैयार उस का दोस्तो।३।

**

हाल देखे से न भरनी जो हमारी झोलियाँ

क्या करें इस हाल में दीदार उसका दोस्तो।४।

**

यूँ चमन पूरा खफ़ा हैं फूलों से बरताव पर

दे रहे हैं साथ लेकिन  ख़ार उसका दोस्तो।५।

**

भाण…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 24, 2020 at 9:54am — 9 Comments

उसको भाया भीड़ का होकर खो जाना -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२/२२२२/२२२



हाथ पकड़ कर चाहा जिसका हो जाना

उसको भाया भीड़ का होकर खो जाना।१।

**

किस्मत किस्मत रटते सबको देखा पर

एक न पाया जिस ने किस्मत को जाना।२।

**

मीत  अकेलेपन  सा  कोई  और  नहीं

लेकिन ये भी सब  को पाया तो जाना।३।

**

नींद  न  आये  तो  ये  कैसे  भूलें  हम

झील किनारे गोद में सर रख सो जाना।४।

**

पीर हमें अब लगती सच में अपनी सी

फूल के  बदले  पथ में  काँटे  बो…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 13, 2020 at 6:40pm — 13 Comments

नेता कम - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



देश की सुन्दर तस्वीरें अब रचने वाले नेता कम

सच में जन के हित में नेता बनने वाले नेता कम।१।

**

बाँट रहे  हैं  जाति-धर्म  में  दशकों  पहले जैसा ही

एक रहो सब देश की खातिर कहने वाले नेता कम।२।

**

सब धनिकों का पक्ष उठाते अपनी अण्टी भरने को

अब निर्धन की पीड़ाओं  को  सुनने वाले नेता कम।३।

**

ठाठ  पुराने  राजा  जैसे  अब  हर  नेता अपनाता

लाल …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 6, 2020 at 7:01pm — 4 Comments

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