हम तो हल के दास ओ राजा
कम देखें मधुमास ओ राजा।१।
*
रक्त को हम हैं स्वेद बनाते
क्या तुमको आभास ओ राजा।२।
*
अन्न तुम्हारे पेट में भरकर
खाते हैं सल्फास ओ राजा।३।
*
पीता हर उम्मीद हमारी
कैसी तेरी प्यास ओ राजा।४।
*
हम से दूरी मत रख इतनी
आजा थोड़ा पास ओ राजा।५।
*
खेती - बाड़ी सब सूखेगी
जो तोड़ेगा आस ओ राजा।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 4, 2021 at 9:56am — 23 Comments
हर लहर से बढ़ के अब तो रार साथी तेज कर
पार जाने के लिए पतवार साथी तेज कर।१।
*
ये लहर ऐसे न साथी साथ देगी अब यहाँ
झील के पानी में थोड़ी मार साथी तेज कर।२।
*
जुल्म के पत्थर इसी से कट गिरेंगे देखना
पहले पत्थर पर कलम की धार साथी तेज कर।३।
*
काट दी है जीभ इन की चीखना सम्भव नहीं
सच कहेंगी बेड़ियाँ झन्कार साथी तेज…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2021 at 7:58pm — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
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शेष इस में क्या रहा इनकार कहने के लिए
कह गया कनखी में सब दरवार कहने के लिए।१।
*
काम जनता के न आयी आज तक ये एक दिन
यूँ तो जनता की रही सरकार कहने के लिए।२।
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इश्तहारों के सिवा जनहित का उसमें कुछ नहीं
शेष है बस नाम ही अखबार कहने के लिए।३।
*
काम कोई भी किया ऐसा न जिसका दम भरें
बात ही उस की रही दमदार कहने के लिए।४।
*
सब दिहाड़ी पर बुलाए उस के ही मजदूर थे
लोग जितने भी जुटे आभार कहने के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2021 at 3:30am — 3 Comments
नहीं कुछ गाँव सा सुनता हुआ निष्ठुर नगर
दिखाने घाव मत जाना सखा निष्ठुर नगर।१।
*
उसे डर है कि उसके हित कमीं आजायेगी
नहीं देता किसी का भी पता निष्ठुर नगर।२।
*
नदी सूखी हुई कहती है प्यासे खेत से
तेरे हिस्से का पानी पी गया निष्ठुर नगर।३।
*
कहाँ तुम बात दुख की यार करते हो भला
खुशी तक में अकेला ही दिखा निष्ठुर नगर।४।
*
निकल पाया न खुद के व्यूह से सायास…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 31, 2021 at 8:59am — 9 Comments
दो आशीष नया हो भारत
जग में और बड़ा हो भारत।१।
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आयु बढ़े नित जितनी इसकी
उतना और युवा हो भारत।२।
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ज्ञाता हो विज्ञान का लेकिन
साथ ही वेद पढ़ा हो भारत।३।
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दुख के नाले सब सूखे हों
सुख का एक किला हो भारत।४।
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जिनके घर ढब बन्द पड़े हैं
कहते और खुला हो भारत।५।
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उनको सबक सिखाना वीरों
जिनकी चाह डरा हो भारत।६।
*
सीमाओं का द्वन्द मिटाकर
दोनों ओर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2021 at 8:30am — 9 Comments
२२/२२/२२/२२
तोड़ के घर का ताला उसने
ढूँढा सिर्फ निवाला उसने।१।
*
लत पीने की ऐसी लगायी
बेच दी माँ की माला उसने।२।
*
खुद औरों के कन्धे पर चढ़
कहता बोझ सँभाला उसने।३।
*
दूध पिलाना था बच्चों को
पर नागों को पाला उसने।४।
*
जिसको हमने माना सूरज
रोका नित्य उजाला उसने।५।
*
जिसको सब खोटा कहते हैं
सिक्का वही उछाला उसने।६।
*
अपनों को ही चोट है मारी
फेंका जब जब भाला…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2021 at 6:35am — 10 Comments
२२/२२/२२/२२
दुनिया जिससे डरती होगी
प्यार न उससे करती होगी।१।
*
जैसा इसको नोच रहे हम
कैसी कल ये धरती होगी।२।
*
चाँद नगर क्या जाना यारो
भूमि वहाँ भी परती होगी।३।
*
जितना विष हम पिला रहे हैं
नित्य नदी एक मरती होगी।४।
*
चाँद को जब बदसूरत करने
दुनिया रोज उतरती होगी।५।
*
धरती के मन की हर पीड़ा
पलपल और उभरती होगी।६।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 15, 2021 at 8:04am — 4 Comments
२२/२२/२२/२२
जनता पर हर वार सियासी
नेता की है हार सियासी।१।
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खून खराबा झेल रहा नित
होकर यह सन्सार सियासी।२।
*
बाहर बाहर फूट का दिखना
भीतर जुड़ना तार सियासी।३।
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बस्ती में आने मत देना
कोई भी अंगार सियासी।४।
*
घर फूटेगा हो जाने दो
बातें बस दो चार सियासी।५।
*
देश का पहिया जाम पड़ा है
दौड़ रही बस कार सियासी।६।
*
संकट का क्या अन्त करेगा
झूठा हर अवतार सियासी।७।
*
दम घोटे है नित जनता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2021 at 10:17am — 12 Comments
मन में जब है प्यास रे जोगी
क्या लेना सन्यास रे जोगी।१।
*
महलों जैसे सब सुख भोगे
क्यों कहता बनवास रे जोगी।२।
*
व्यर्थ किया क्यों झूठे मद में
यौवन का मधुमास रे जोगी।३।
*
हम से कहता वासना त्यागो
छिप के करता रास रे जोगी।४।
*
खुद ही जब ये निभा न पाया
औरों से क्या आस रे जोगी।५।
*
मत कह बन्धन मुक्त हुआ है
तू भी हम सा दास रे जोगी।६।
*
तन का है या मन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2021 at 7:30am — 6 Comments
भूल मन पीड़ा विगत की गा रहा है
शुभ रहे नव वर्ष ये जो आ रहा है।१।
*
आँख जब आँसू झराने को विवश थी
अन्त उस मौसम का होने जा रहा है।२।
*
जिन्दगी होगी सुहानी आज से फिर
भोर का सूरज हमें समझा रहा है।३।
*
बह न पाए फिर लहू इन्सानियत का
ये वचन मन को सभी के भा रहा है।४।
*
पेट भर भूखे को रोटी नित मिलेगी
साथ यह उम्मीद साथी ला रहा है।५।
*
बाँटना …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2021 at 8:25am — 11 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
धरती माता ने सारे दुख हलधर को दे डाले हैं
लेकिन उसने हँसते हँसते पेट अनेकों पाले हैं।१।
*
उद्योगों को नीर बहुत है करने को उपयोग मगर
इसकी खेती को जल जीवन तो नदियों में नाले हैं।२।
*
इसके हर साधन पर कब्जा औरों की मनमानी का
मौसम के हालातों जैसे हालात स्वयम् के ढाले हैं।३।
*
खेती करके भूखा रहता हलधर देखो रोज यहाँ
व्यापारी के श्वानों के मुँह मक्खन भरे निवाले हैं।४।
*
सरकारों ने पथ पथरीले जो शूलों के साथ दिये
उनके…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 27, 2020 at 8:32pm — 6 Comments
खेतीहर का ध्यान बँटाकर दाना चोरी करता है
मल्लाहों से नौका लेकर नदिया चोरी करता है।१।
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बात उजाले की नित कर के तारा चोरी करता है
मन्दिर मस्जिद रटकर सबकी पूजा चोरी करता है।२।
*
मन्जिल पास बड़ी है अब तो राहत पाँवों को देदो
ऐसा कह कर सब के पग से रस्ता चोरी करता है।३।
*
ये कैसा राजा आया है आज हमारी नगरी में
सन्तों जैसे पहरावे में …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2020 at 7:04am — 9 Comments
बाढ़-सूखा सूदखोरी हर समय डर अन्नदाता के लिए
कौन सी सरकार चिन्तित है यहा पर अन्नदाता के लिए।१।
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हर समय उद्योगपतियों की उन्हें चिन्ता सताती है मगर
खोज पाये संकटों का हल न अफसर अन्नदाता के लिए।२।
*
कर के उद्यम से यहा तैयार उसको नित्य बोता है उपज
मायने रखता नहीं कुछ खेत ऊसर अन्नदाता के लिए।३।
*
नित्य भूखे पेट सोता है उपज को वो बचाने खेत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 14, 2020 at 8:00am — 12 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
कौन कहता है कि उनसे और वादा कीजिए
है निवेदन जो किया था वो ही पूरा कीजिए।१।
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सब्र दशकों से किये है आमजन इस देश का
अब गरीबी भूख का कुछ तो सफाया कीजिए।२।
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बस चुनावों में विरोधी बाद उस के सब सखा
मूर्ख जनता को समझ ऐसे न साधा कीजिए।३।
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जल रहा कश्मीर तुमको फिक्र अपने कुनबे की
सिर्फ कुर्सी के लिए …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2020 at 7:30am — 10 Comments
२१२२//१२२१/२२१२
मुफलिसी में ही जिसका गुजारा हुआ
कौन शासन जो उस का सहारा हुआ।१।
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उसको जूठन का मतलब न समझाइए
जिस ने पहना हो सब का उतारा हुआ।२।
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चाद किस्मत में उस के नहीं था मगर
आस भर को भी कोई न तारा हुआ।३।
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जिस ने जीवन जिया है सहज कष्ट में
आप कहते हैं उस को ही हारा हुआ।४।
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है …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 21, 2020 at 6:22am — 8 Comments
मेटती आयी है घर की तीरगी दीपावली
सब के मन में भी करे अब रोशनी दीपावली।१।
**
रीत कितने ही युगों से चल रही हो ये भले
हर बरस लगती है सब को पर नई दीपावली।२।
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तोड़ आओ ये नगर का जाल कहती साथियों
गाँव की नीची मुँडेरों पर जली दीपावली।३।
**
दीप सब ये प्रेम और' विश्वास के हैं इसलिए
आँख चुँधियाती नहीं साथी घनी दीपावली।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 14, 2020 at 8:57am — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कहते हैं झूठ ज़ुल्म हिरासत में आ गया
हाँ न्याय ज़ालिमों की हिमायत में आ गया।१।
*
लूटा गया था रात में अस्मत को जिसकी ढब
उसका ही नाम दिन को सिकायत में आ गया।२।
*
अन्धा है न्याय जानता होगी सजा नहीं
बेखौफ जुल्मी यूँँ न अदालत में आ गया।३।
*
बचना था जेल जाने से ऊँँची पहुँँच के बल
शासन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 31, 2020 at 2:00pm — 12 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
पेट जब भरता नहीं गुफ़्तार उसका दोस्तो
ढोइए अब और मत यूँ भार उसका दोस्तो।१।
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नोटबंदी का मुनाफा काले धन की वापसी
हर वचन जाता रहा बेकार उसका दोस्तो।२।
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है खबर रस्ते से करने वो लगा है दरकिनार
रास्ता जिस ने किया तैयार उस का दोस्तो।३।
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हाल देखे से न भरनी जो हमारी झोलियाँ
क्या करें इस हाल में दीदार उसका दोस्तो।४।
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यूँ चमन पूरा खफ़ा हैं फूलों से बरताव पर
दे रहे हैं साथ लेकिन ख़ार उसका दोस्तो।५।
**
भाण…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 24, 2020 at 9:54am — 9 Comments
हाथ पकड़ कर चाहा जिसका हो जाना
उसको भाया भीड़ का होकर खो जाना।१।
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किस्मत किस्मत रटते सबको देखा पर
एक न पाया जिस ने किस्मत को जाना।२।
**
मीत अकेलेपन सा कोई और नहीं
लेकिन ये भी सब को पाया तो जाना।३।
**
नींद न आये तो ये कैसे भूलें हम
झील किनारे गोद में सर रख सो जाना।४।
**
पीर हमें अब लगती सच में अपनी सी
फूल के बदले पथ में काँटे बो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 13, 2020 at 6:40pm — 13 Comments
देश की सुन्दर तस्वीरें अब रचने वाले नेता कम
सच में जन के हित में नेता बनने वाले नेता कम।१।
**
बाँट रहे हैं जाति-धर्म में दशकों पहले जैसा ही
एक रहो सब देश की खातिर कहने वाले नेता कम।२।
**
सब धनिकों का पक्ष उठाते अपनी अण्टी भरने को
अब निर्धन की पीड़ाओं को सुनने वाले नेता कम।३।
**
ठाठ पुराने राजा जैसे अब हर नेता अपनाता
लाल …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 6, 2020 at 7:01pm — 4 Comments
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