इस गीत मैं कुछ वांछित बदलाव करने की कोशिश की है आदरणीय सम्पादक महोदय से निवेदन है की इसे सम्पादित करने की कृपा कर मुझे कृतकृत्य करें
तेरे नैनों में, कैसा ये जादू है
देख के मन ये, मेरा बेकाबू है
इन नैनो में, अब डूब के, मैंने ये मन गंवाया
तेरे प्रेम में, मैंने प्रेम गीत गया ,मैंने प्रेम .....................
मन में छुपाया है प्रेम तेरा, तन में बसाया है प्रेम तेरा
आँखों की प्यास है प्रेम तेरा, जीवन की आस है प्रेम तेरा
शीतल सी आग है प्रेम तेरा ,…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2012 at 1:30pm — 17 Comments
तेरी निगाह की जादूगरी मैं कैसे लिखूं
दिखी तराश जो हुश्ने-परी मैं कैसे लिखूं
यहाँ 'न' दिल बिका पामाल का चाहत के लिये
दिवानगी लगी सौदागरी मैं कैसे लिखूं
न कायनात सी दिलकश यहाँ पे शै है कोई
खुदा बता तेरी कारीगरी मैं कैसे लिखूं
न तोड़ आइना झूठा कभी ये होगा नहीं
बड़ी कमाल है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 30, 2012 at 10:30pm — 15 Comments
1
बिन जाने ह्रदय की पीड़ा पिया , दिल तोड़ के ऐसे जाते हो
मैं बैठी राह को तकती यहाँ, मुह मोड़ के ऐसे जाते हो
क्यूँ रूठे हो जरा हमसे कहो, बिन बात के कैसे जानूं मैं
प्रिय मेरे साथ में तुम थे चले, अब छोड़ के ऐसे जाते हो
2…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 24, 2012 at 12:30pm — 9 Comments
तेरी चाहत में डूब रब की इबादत होगी
मेरे इस दिल पे अगर तेरी इनायत होगी
तेरे क़दमों की आहटों पे मिटे बैठे हैं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 23, 2012 at 10:30pm — 7 Comments
===========|| नैन ||==========
मन भावन है गोरी तेरे नैनो की प्यारी भाषा
इन गहरे नैनो में अब तो बसने की है अभिलाषा
देखा जबसे इन नैनो को किस दुनिया में डूबा हूँ
डूबा डूबा सोचे ये मन इन नैनो की परिभाषा
इन नैनो से होती वर्षा चाहत वाले तीरों…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 23, 2012 at 4:37pm — 3 Comments
मुक्तक
तुम देखो हृदय की पीड़ा प्रिये, इस तरह मुझे तडपाती हो
छुप छुप के निहारो एकटक मुझे, दिन रात जिया तरसाती हो
मैं जानूं तुम्हारे मन की व्यथा, दिखलावे को इतराती हो
कह डालो ह्रदय को खोलो…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 23, 2012 at 12:30pm — 4 Comments
लिखना हो कविता तो, भाव को टटोल ले तू |
भाव लिए लय ही तो, कविता में प्राण हैं ||
छंद में जो हो प्रवाह, लोग करें वाह वाह |
ह्रदय को भेदता जो, शब्द रुपी बाण हैं…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 22, 2012 at 10:00pm — 6 Comments
|| माँ शारदे स्तुति "घनाक्षरी छंद" ||
नव नव छंद लिखूं, छंद में आनंद लिखूं |
ऐसा वरदान देना, मेरी माता शारदे ||
जब भी श्रृंगार लिखूं , अपने विचार लिखूं |
मान…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 22, 2012 at 10:30am — 8 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 21, 2012 at 8:00pm — No Comments
"|| "शुद्धगा छंद" ||"
(२८ मात्रा "१ २ २ २ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २ २ २ ")
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यहाँ पर प्रेम पूजा प्रेमियों की जानता हूँ मैं
जहाँ पर है सखी भगवान जैसी मानता हूँ मैं
मिले जब…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 21, 2012 at 2:00pm — 14 Comments
1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2
उसी की…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 10:32pm — 6 Comments
तुझे तो देख के जोरों से मेरा दिल धडकता है
जिये पानी बिना मछली के जैसे मन तडपता है
जिगर को थाम के बैठूं मैं अक्सर सामने तेरे…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 10:00am — 17 Comments
जो इश्क कर लिया हर्फों में नजाकत आ गई
यार दीवानगी से थोड़ी शरारत आ गई
ये नया दौर है इसमें जो लगा उनसे जिगर…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 14, 2012 at 10:30pm — 19 Comments
=========== माँ ===========
मेरे आते ही तेरा मुश्कुराना याद है
वो रोते रोते तुझसे लिपट जाना याद है
तेरे हाथों में माँ जादू रहा मीठा कोई
वो अपने हाथों से मुझको खिलाना याद है
तेरा दर छोड़ा मैंने जब पढ़ाई के लिये
मैं खुद भी रोया माँ तुझको रुलाना याद है
मेरे गम अपने आँचल में छुपा तुमने रखे
मेरी खुशियों में तेरा…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 13, 2012 at 10:19am — 13 Comments
हमारी फिक्र थी ये गाँव अब भी गाँव है
सियासत के करम से गाँव अब भी गाँव है
मखमली सेज सूखी घास से देखो बनी
महल सी झोपड़ी में गाँव अब भी गाँव है
मिलेगी छाँव बरगद नीम पीपल की घनी
मिटे हर पीर जाके गाँव अब भी गाँव है
ख़ुशी हर चेहरे में औ दर्द दिल में दफ़न
रंज औ गम भुलाके गाँव अब भी गाँव है
सखी ऐसे तके है राह हाये प्रियतम की
बिछाये चश्म अपने गाँव अब भी गाँव है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 12, 2012 at 1:44pm — 10 Comments
मनाने का हुनर हमको कभी न आया दोस्तों
बड़ी मगरूर थी वो मैं समझ न पाया दोस्तों
दिखे नादान सा लेकिन खबर सभी की है उसे
जिसे सबने सता के आदमी बनाया दोस्तों
गर्दिशों से मिटा जिसके ख्वाब महलों के रहे
उजालों की ख्वाहिस में झोपड़ी जलाया दोस्तों
बुरा कितना रहा हो आदमी जमाने में मगर
जनाजा चार कांधो ने वही उठाया दोस्तों
तडपता वो रहा जिसके लिये जिगर को थाम…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 11, 2012 at 7:30pm — 10 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 7, 2012 at 9:30am — 15 Comments
मैंने अपनी हर दुआ में बस तुझे मांगा यहाँ
तेरे आने से मिला है अब मुझे सारा जहाँ
लब हैं नाजुक पंखुड़ी से ये गुलाबों की तरह
जुल्फों में उलझे पड़े जो जी रहे हैं अब कहाँ
भूलूं कैसे "दीप" आखिर वो हया रुखसार की
उनके बिन कैसे रहूँगा मैं यहाँ औ वो वहाँ
…………."दीप"…………..
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 6, 2012 at 8:48pm — 3 Comments
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