Added by Manan Kumar singh on July 31, 2015 at 12:03am — 2 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 30, 2015 at 8:49am — 4 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 27, 2015 at 12:30pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
हो गया सागर लबालब अब उफनना चाहिए,
चल रहा मंथन बहुत कुछ तो निकलना चाहिए।
आग यह कबसे दबायी है अभी अंतर सुनो,
कब तलक सुलगे उसे अब तो धधकना चाहिये।
बेइमां अब साहिबां सब क्यूँ हमारे हो गये?,
आज एक उनमें कहीं वाजिब निकलना चाहिये।
है सड़क से राह ले जाती सियासत तक अभी,
अब तुझे भी आप ही घर से निकलना चाहिये।
ले गये सब मोड़ते नदियाँ कहाँ ये बावरे?
इक नदी का रुख अभी भी तो बदलना चाहिये।…
Added by Manan Kumar singh on July 26, 2015 at 7:30am — 13 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 19, 2015 at 7:30pm — 6 Comments
अनुभव(लघुकथा)
-नहीं।
-क्यों?
-डरती हूँ,कुछ इधर-उधर न हो जाए।
-अब डर कैसा?बहुत सारी दवाएँ आ गयी हैं,वैसे भी हम शादी करनेवाले हैं न।
-कब तक?
-अगले छः माह में।
-लगता है जल्दी में हो।
-क्यों?
-क्योंकि बाकि सब तो साल-सालभर कहते रहे अबतक।
लड़के की पकड़ ढीली पड़ गयी।दोनों एक-दूसरे को देखने लगे।फिर लड़की ने टोका
-क्यों,क्या हुआ?तेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ है क्या?
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन
Added by Manan Kumar singh on June 27, 2015 at 12:01am — 4 Comments
भूख(लघु कथा)
आखिरी बस जा चुकी।सन्नाटा पसर चला।उसे चूल्हे की आग बुझती-सी लगी,पर यूँ ही बैठी रही।अचानक उसका ध्यान भंग हुआ,
--बस छूट गयी क्या?
दूकान बंद करते पानवाले ने पूछा।
-नहीं,बस यूँ ही---उसने मुड़कर पीछे देखा।पानवाला उसे अंदर तक घूरता-सा लगा।
--अब कोई नहीं आयेगा,चल न मेरे यहाँ आज।
--नहीं,घर में बच्चे भूखे होंगे,और फिर तेरी घरवाली.........?
-मैके चली गयी है।बगल के…
Added by Manan Kumar singh on June 23, 2015 at 3:52pm — 14 Comments
उम्र
‘आप मुझे जानते हैं ?’
‘आप ही बता दें’।
‘फ्रेंड– रेकुएस्ट तो आपका था न?’
‘हाँ, एक दोस्त के साथ आपका नाम था’।
‘दोस्त का नाम बताइये’।
‘था कुछ नाम जी’।
‘अच्छा चलिये, अपने ही बारे में बता दीजिये’। उधर से महिला ने संदेश भेजा ।
‘ मेरे बारे में तो मेरे प्रोफ़ाइल में है सब कुछ’।
‘कहाँ रहते हैं?’
‘आप बताइये’।
‘मैं तो जट मारवाड़ से हूँ, आप ?’
‘कोल्हापुर से जी’।
‘पर, आप बावन के हैं , मैं तो बस…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on June 14, 2015 at 12:30pm — 1 Comment
Added by Manan Kumar singh on June 13, 2015 at 11:00pm — 1 Comment
Added by Manan Kumar singh on June 9, 2015 at 10:52pm — 3 Comments
2122 2122 2122 2122
जब कहेगी तब करेंगे नाम तेरे जिंदगी री।
कब रहेगी जो चलेगी साथ घेरे जिंदगी री?
माँगता हूँ मैं हमेशा जिंदगी से जिंदगी पर,
दे कहाँ पायी अभी जो बात टेरे जिंदगी री।
आ गयी थीं तब सलोनी ऊँघती कैसी घटाएँ,
दे गयी थी देख तब भी उष्ण फेरे जिंदगी री।
बैठकर मैं शांत कैसा देखता था बूँद जल का
आग जैसा फिर जलाया रे घनेरे जिंदगी री।
कब लगी मैं सोचता हूँ रे लगी कैसे भला…
Added by Manan Kumar singh on June 5, 2015 at 10:00am — 2 Comments
पाठ्य पुस्तक में अपनी कविता देखकर कविता बहुत खुश हुई।पर यह क्या,कवयित्री की जगह तो नाम किसी कामिनी देवी का था।उसने कामिनी देवी का पता नोट किया,पता करने पर पता चला कि कामिनी एक बहुत ही लब्ध-प्रतिष्ठ हिंदी साहित्यकार के खानदान से है,जो अब इस दुनिया में नहीं हैं।कविता कामिनी से मिलने पहुँच गयी,बोली-
'तुमसे ऐसी उम्मीद न थी ।तूने मेरी कविता अपने नाम से पाठ्य क्रम में शामिल करा लिया।'
- 'ऐसी उम्मीद तो तुमसे मुझे नहीं थी,तू मेरी कविता को अपनी कह रही।'
-'अच्छा,चोरी और सीनाजोरी?'…
Added by Manan Kumar singh on June 3, 2015 at 5:00pm — 14 Comments
अब चुनावों की आती बारात देखिये,
लुटता है कौन अब इस रात देखिये।
जात-पाँत की चर्चा जोरों की होगी,
पहले देखी,फिर से यह बात देखिये।
क्या होगा,न होगा, है सब गाछ पर,
है नमूनों की बनती जमात देखिये।
सहेजने में लगे हैं छितराई छतरी,
बातों की तो इनकी बिसात देखिये।
कन्हुआ-कन्हुआ गिनते सब कुर्सी,
दिखा रहे, इनकी औकात देखिये।…
Added by Manan Kumar singh on June 2, 2015 at 10:00am — 4 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 29, 2015 at 10:15am — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 27, 2015 at 9:30pm — 7 Comments
दरमियाँ के फासले जाने लगेंगे एक दिन,
आते-आते याद हम आने लगेंगे एक दिन।
जगते-सोते ख्वाब हम सहेजते तेरे अभी
अब तेरे ख्वाब हम आने लगेंगे एक दिन।
अपने दीये जले घर तेरे,ऐसा लगता है,
दीप तेरे अपने घर छाने लगेंगे एक दिन।
तेरी हीधुन को सहेजे गीत पिरोये मैंने जी,
मेरे नगमे तेरे लब आने लगेंगे एक दिन।
चाहतें अपनी मुकम्मल नाम तेरे हो गयीं,
हम तुझको लगताअबभाने लगेंगे एक दिन।
मांगता हूँ जिंदगी,तो भाव खाती जिंदगी,
जिंदगी से भाव हम खाने लगेंगे एक…
Added by Manan Kumar singh on May 26, 2015 at 10:00am — 5 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 25, 2015 at 6:59am — 7 Comments
मजदूर कह औरत की तौहीन मत कर,
गम हैं बहुत उसे,और गमगीन मत कर।
उसके आँसू लबरेज हैं तीखी कथाओं से,
अब उन्हें देख,ज्यादा नमकीन मत कर।
खूब धुली अबतक कलम उसकी धार में,
लेखनी को देख,ज्यादा हसीन मत कर।
अर्थ की माफिक उसकी हकीकत कब ?
अर्थ वह खुद, खुद को जहीन मत कर।
नूर बख्शती रही वह ज़माने को कबसे,
छोड़ फिकरे,फिर पर्दानशीन मत कर।
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन(01/05/2015)
Added by Manan Kumar singh on May 24, 2015 at 8:00pm — 6 Comments
तू कितनी अजीज है!(ककिता)
कैसे कहें ये दास्ताँ कि तू कितनी अजीज़ है
क्या पता कबआया दिल आजाने की चीज है
उड़ने लगीं हवाएँ जब तेरी जुल्फों से टकरा
तब लगा हर शय तुम्हारे सामने नाचीज है।
दिल को रहें सँभालते दिललगी से डर जिन्हें
लगता हर बंदा जहाँ में हुश्न का मरीज है।
कितनी कलाएँ चाँद की तेरे मुखड़े की बला,
चूमती हो गैर को,देख मुझको तो खीज है।
गड़ गयीं नजरें जहाँ की देख तेरी हर लहर,
भीड़ से रौंदा गया मैं,फट गयी कमीज है।
'मौलिक व अप्रकाशित'
Added by Manan Kumar singh on May 24, 2015 at 11:00am — 3 Comments
थोड़ा-थोड़ा तुझसे अटकने लगा हूँ,
थोड़ा-थोड़ा अब मैं भटकने लगा हूँ।
छोटी-छोटी बातें न समझा कभी,
थोड़ा-थोड़ा अब मैं समझने लगा हूँ।
गरजा हूँ बहुत पहले बातों पे मैं,
थोड़ा-थोड़ा अब मैं सरसने लगा हूँ।
बदली वह लदी कब से ढोये चला ,
थोड़ा-थोड़ा अब मैं बरसने लगा हूँ।
शुकूं में था प्यासा,नजर तेरी पी के ,
थोड़ा-थोड़ा अब मैं तरसने लगा हूँ।
कहाँ-कहाँ अबतक अटकता रहा था,
थोड़ा-थोड़ा अब मैं झटकने लगा हूँ।
भटकता फिरा हूँ मैं ,तेरी नजर में
थोड़ा-थोड़ा अब मैं…
Added by Manan Kumar singh on May 23, 2015 at 7:00am — 3 Comments
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