Added by Manan Kumar singh on May 21, 2015 at 8:38pm — 2 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 20, 2015 at 6:59am — 4 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 19, 2015 at 7:17am — 7 Comments
आ दुआ करें
आ दुआ करें मिलजुल,
निःस्वार्थ हो बिलकुल,
प्रभु!रचना तेरी चुलबुल,
हँसने दे अभी खुलखुल।…
Added by Manan Kumar singh on May 15, 2015 at 8:30am — 3 Comments
*मैं वह और तुम*
मैं पुरुष हूँ,
वह स्त्री,
तुम तुम हो--
श्रोता,पाठक, निर्णायक
सबकुछ।
मैंने उसे अपने को कहने
यानी लिखने के लिए
प्रेरित करना चाहा,
अपना युग-धर्म निबाहा,
बोली-मुझे हिंदी में लिखना
नहीं आता,है मुझे सीखना।
'सीखा दूँगा सब', मैंने कहा,
मामला बस वहीं तक रहा।
एक दिन एक कथा आयी-
'मेरी सहेली ने ड्राइविंग
सीखना चाहा,
उसके बॉस ने हामी भर दी,
कहा, 'सीखा दूँगा सब',
फिर ड्राइविंग शुरू होती
कि…
Added by Manan Kumar singh on May 14, 2015 at 8:47am — 6 Comments
जब बातों में आ जाता हूँ।
तब मैं धोखा खा जाता हूँ,
तू नैनों में बसती हरदम,
तेरी पलकें छा जाता हूँ।
मेरी जां तू कह देती है,
तुझपे जां लु'टा जाता हूँ।
बज़मे-बेदिल से मैं भी तो,
देखो अब रुठा जाता हूँ।
तुझको सहरा फरमाते लेे
फिर मैं अब बु'झा जाता हूँ।
दीया जलने दे जानेमन,
शब तेरी अब उ'ड़ा जाता हूँ।
जल-जल कर जलता दीया हूँ,
तम पी हर दिश छा जाता हूँ।…
Added by Manan Kumar singh on May 8, 2015 at 11:00pm — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 3, 2015 at 9:47am — 4 Comments
-नहीं।
-क्यों?
-डरती हूँ,कुछ इधर-उधर न हो जाए।
-अब डर कैसा?बहुत सारी दवाएँ आ गयी हैं,वैसे भी हम शादी करनेवाले हैं न।
-कब तक?
-अगले छः माह में।
-लगता है जल्दी में हो।
-क्यों?
-क्योंकि बाकि सब तो साल-सालभर कहते रहे अबतक।
लड़के की पकड़ ढीली पड़ गयी।दोनों एक-दूसरे को देखने लगे। फिर लड़की ने टोका
-क्यों,क्या हुआ?तेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ है क्या?
'मौलिक व अप्रकाशित' @मनन
Added by Manan Kumar singh on May 1, 2015 at 8:30pm — 12 Comments
गजल/गीतिका (12/04/2015)
अश्क इधर अपने रुख़्सार आया है,
तब उधर प्यार पर एतबार आया है।
तू सिसकता रहा,लमहे गये कितने,
एक कहाँ,दफा हजार बार आया है।
आह भरती चुप उसने मिलायी नजर
ऐसी ही उसकी अदा प्यार आया है।
तू दफा कई था आशियाँ उसके गया,
उसे लगा कोई कसूरवार आया है।
भूल सब रंजोगम,बस जगायेआरजू,
उसके दर आज गुनहगार आया है।
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन
Added by Manan Kumar singh on April 12, 2015 at 10:46am — 6 Comments
नवगीत
मन थोड़ा भटका हुआ है!
सपने टूटे,दिल भी टूटा,
रातें रूठीं,दिन भी रूठा,
उम्मीदों का चाँद झाड़ पर
देखो ना अटका हुआ है!
मन थोड़ा भटका हुआ है!
नयन-गगन में नजर गड़ी,
कैसी फिजा पल्ले पड़ी,
सूख चले अब जलद-नयन,
मानस में खटका हुआ है!
मन थोड़ा भटका हुआ है!!
उठती-सी लहरें उमंगित,
उर-अर्णव कितना तरंगित,
पूरी पूनम थी कल की रात,
प्रात हुआ, झटका हुआ है!
मन थोड़ा भटका हुआ है!!!
@मनन
Added by Manan Kumar singh on April 11, 2015 at 10:30pm — 4 Comments
आते-आते मैंने भी ललना से लगन लगाई है
थोड़ी कह लो देर भले,मैंने भी बीबी पायी है
आयी,मन की कोई भी कली नहीं मुरझाई है
लगता सब हरा-हरा,ख़ुशी चतुर्दिक छाई है।
हूरों की मशहूर कथाएँ होंगी,मुझे भला क्या,
मुझको तो अपनीवाली सबसे आगे भायी है
खाते ठोकर रह गये, कुछ भी तो मिला नहीं,
मुझको तो अपनीवाली मीठी-सी खटाई है।
बूँद-बूँद पानी को तरसा,चलती रहीं हवाएँ,
बेमौसम बरसात हुई,रूप की बदली छाई है।
फूल-फूल भटका हूँ ,काँटों की ताकीद रही,
मधु का अक्षय कोष ले…
Added by Manan Kumar singh on April 5, 2015 at 12:00pm — 5 Comments
ले लो एक सलाम
आने को फागुन,
है सुन रही गुनगुन,
किसकी अहो,किसकी कहो?
हटा घूँघट अब कली-कली का,
कौन रहा यह मुखड़े बाँच?
कलियों से अठखेली करता,
नाच रहा है घूर्णन नाच ?
हुआ व्यग्र,पहचान नहीं कि
कौन कली खुशबू की प्याली,
कौन रूप की होगी थाली,
खिलखिलाकर खिलने देता,
रूप-वयस को मिलने देता,
देता कुछ सपने उधार,
कलियाँ कहतीं रूप उघाड़---
आज तो अब जा रहा,
हम आज के कल हैं,
अबल कब?सबल…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on February 8, 2015 at 10:00am — 1 Comment
अब हद हो गयी आजमाने की,
मेरे बुलाने की, तेरे न आने की।
रहे छुपाते अपनी-अपनी कबसे,
पर्दाशुदा हुआ नजर ज़माने की।
बेदम पड़ी ख्वाहिशें भी देख लो,
तेरी पाने की,अपनी लुटाने की।
कितना कहें शेर? फिजां तेरे रुत
में आने की,मेरे कसम निभाने की।
अपनी खुदी खुद मिटा माँगता मैं
कुछ तेरी नेमतें गले लगाने की।
@मनन (मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Manan Kumar singh on November 24, 2014 at 10:33pm — 7 Comments
नाटिका
ग्राम –महोत्सव गरिमा बिखेर रहा था । लक –दक सजावट, बार –बालाओं की अठखेलियाँ, हास्य कलाकारों के करतब गज़ब ढाये हुए थे । सोम –रस की सरिता जन से लेकर प्रतिनिधि तक को सराबोर किये थी । शीत ऋतु में उष्णता का अहसास ऐसा ही होता है। तन आधे –अधूरे ढँके होने से क्या? मन की उमंगों पर कोई लगाम न होनी चाहिए । हर तरफ मादकता छितरायी –सी जाती है, जो जितना लपक -झटक ले। एक पत्रकार ने नेताजी से मुखातिब हो सलाम ठोंका । नेताजी मुँह बिचकाते –बिचकाते रह गये ।कैमरे…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 14, 2014 at 7:54am — 3 Comments
हथेली
अभी –अभी बुद्धिजीवियों की नगरी में सत्ता का चुनाव हुआ । किसी दल को जरूरी बहुमत नहीं हासिल हुआ । सत्ता –दल धूल फाँकता नजर आया ।वह चुने हुए प्रतिनिधियों की संख्या के आधार पर तीसरे स्थान पर रहा । पहले सबसे बड़े दल की उम्मीदों पर झाडू फिर गया, हसरतों का फूल मुरझाते –मुरझाते बचा । । एक नवोदित दल को सदन में संख्या के अनुसार दूसरा दर्जा प्राप्त हुआ । अब सरकार बने तो कैसे ? शासन –कार्य कौन देखेगा ?सत्ता –च्युत दल ने विपक्ष में बैठने की अपनी बात कही । दूसरे दर्जे वाले…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 13, 2014 at 9:02am — 11 Comments
एक छईण्टी आलू
बात पुरानी है , गाँव से जुड़ी हुई । बटेसर के काका यानि पिताजी विद्या बोले जाते थे । सब उनको बाबा कहते तथा बटेसर को काका । लिखने –पढ़ने के नाम पर बाबा का बस अंगूठे के निशान से ही काम चल जाता था , पर अच्छे –अच्छों को बातों में धूल चटा देना उनके बायें हाथ का खेल था ।बथान में बैलों को सानी (खाना –पानी ) दे रहे बटेसर से बात करते –करते भोला को कुछ याद आया, तो वह कुएँ से पानी निकलते बाबा की ओर मुड़कर बोला , ‘ बाबा ! उ महेसर भाई के आलू…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 12, 2014 at 9:00am — 7 Comments
इश्क बेक़रार करता,खूब बेक़रार करता,
कहते मर जायेंगे,न कोई बेक़रार मरता।
तौबा करेंगे, हद हो गयी राह तकने की,
मुरीद-ए-इश्क,बे-इंतहा इन्तजार करता?
हुआ-सो-हुआ,न करेंगे इश्क,खूब अकड़ता,
क्या पता फिर क्यूँ इश्क बार-बार करता?
मरने की ख़्वाहिश कहीं पालता है कोई?
कैसे कहें क्यूँ इश्क पर बार-बार मरता?
इश्क का कायल,कह देते,टूट जाता आदमी,
पर,दिखता खुद से लड़ता,सरहदों पे मरता।
*"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on October 15, 2014 at 8:30am — 4 Comments
अहसास
मधुप की ट्रेन खुल चुकी था। छुट्टियों के बाद वह वापस नौकरी पर जा रहा था। माधवी से मोबाइल पर बात होते –होते रह गयी, माधवी का गला जैसे रुँध गया हो। कुछ देर की चुप्पी के बाद वह ‘ठीक है ....’ ही कह पायी थी।मधुप भी अतीत की स्मृतियों में खोने लगे, ‘कितना खयाल रखती है माधवी उसका तथा परिवार के सभी लोगों का ? वह तो छोटी –छोटी बातों पर भी चिढ़ जाता है। तब माधवी कितने शांत लहजे में कहती है कि भला ऐसा क्या हो जाता है उन्हें कभी –कभी? बच्चों की तकलीफ जरा भी बर्दाश्त नहीं आपको।…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 12, 2014 at 10:30am — 2 Comments
तलाश एक कथा की
तलाश,
फिर-फिर तलाश,
हर पल,हर पहर,
तलाशा है तुझे,
इस उम्मीद के साथ कि
तू मिल जायेगी मुझे,
कभी-न-कभी,कहीं-न-कहीं।
सब कुछ तो साथ लिए चलता रहा,
भाव,अभिव्यक्ति,
कामना तेरे मिल जाने की,
उमंगें हसरतें खिल जाने की,
शब्दों के जिंदा रहने के,
दूरस्थता-बोध सहने के,
अहसास अभी जिंदा हैं,
रहेंगे भी तबतक शायद
जबतक तू अवतरित न हो
शब्दों का बन…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on October 12, 2014 at 10:30am — No Comments
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