"फोन करने और 'ईद मुबारक़' कहने की क्या ज़रूरत थी ?" शबाना ने एतराज़ जताते हुए कहा।
" तो तुमने इतने सालों बाद भी मेरी आवाज़ पहचान ली थी ! फिर तुमने अपने शौहर को क्यों दे दिया फोन ?" कुछ नाराज़गी के लहज़े में आफताब ने पूछा।
"ग़ैर मर्दों से यूँ फोन पर बातें करना हमारे यहाँ मना है। आवाज़ क्या, तुम्हारी तो रग-रग से वाकिफ हूँ मैं तो !" लम्बी साँस लेते हुए शबाना ने उसे समझाया- " देखो, गढ़े मुर्दे उखाड़ कर ज़ख़म कुरेदने से कोई फायदा नहीं ! तुम्हारे वालिद साहब ही घर आये थे और उन्होंने बहुत…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2015 at 8:00am — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 12, 2015 at 8:48am — 7 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 11, 2015 at 10:39pm — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 11, 2015 at 3:29pm — 5 Comments
अपनी सास और जेठ-जिठानी से पिंड छुड़ाने के बाद, खुद को नये ज़माने की कहने वाली मात्र बारहवीं पास छोटी बहू काजल अब काफी संतुष्ट थी। बेटे को दूध पिलाने के लिए पति को राजी कर एक बकरी भी अब उसने पाल ली थी। गांव की एक लड़की से हर रोज़ की तरह घर की साफ-सफाई और लीपा-पोती करवाने के बाद आज काजल भोजन पकाने की तैयारी कर ही रही थी कि पति की ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी। आज फिर पड़ोसी से झगड़ा हो गया था। बेटे को वहीं रसोई में छोड़ फुर्ती से वह बाहर की ओर भागी। जैसे-तैसे झगड़ा शांत कराकर जब वापस…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on October 9, 2015 at 9:00am — 6 Comments
गीतिका, आधार छंद- वाचिक महालक्ष्मी
(212 212 212)
शब्द अब गीत रचने लगे,
राज़ दिल के बिखरने लगे। /1/
दोस्त दुश्मन सभी दूर हैं
अब स्वयं को समझने लगे। /2/
नौकरी रिश्वतों से मिली,
आज अक्षम चमकने लगे। /3/
ठोकरें दीं सभी ने हमें,
पैर रखकर कुचलने लगे। /4/
प्रेम, दोस्ती रही आज तक,
शक हमें दूर रखने लगे। /5/
युग्म जुड़ कर करेंगे भला,
गीतिका-भाव भरने लगे। /6/
(मौलिक व अप्रकाशित)
_शेख़…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2015 at 8:07am — 9 Comments
क्रिकेट मैच जीतने के बाद मोहल्ले के लड़के जश्न मनाते हुए एक टीले पर बैठे हुए थे। मोटू सोनू ने अपनी टाइट शर्ट के बटन सही करते हुए कहा- "अब मैं करता हूँ आमिर खान की नकल ! टी.वी. पे वो नया विज्ञापन देखा है न....
"हम अब भी वहीं के वहीं खड़े हैं, न हम बदले, न हम मोटे हो रहे हैं।
ये तो कमबख़्त कपड़ों की है शरारत, जो अपने आप छोटे हो रहे हैं! "
"वाह, क्या बात है, इसी पे पैरोडी हो जाये। बोल संजू अब तू बोल "- उनमें से एक ने कहा।
संजू शुरू हो गया- "हम अब भी वहीं खड़े हैं, न हम बदले,…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 7, 2015 at 11:00am — 6 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 6, 2015 at 12:07pm — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 6, 2015 at 8:29am — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 6, 2015 at 7:31am — 6 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 2, 2015 at 9:44pm — 14 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 30, 2015 at 12:51am — 11 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 28, 2015 at 12:58pm — 6 Comments
"वाह, भाभी इस बार तो ग़ज़ब की जीन्स-टोप लायी हो आगरा से ....लेकिन कुछ ज़्यादा ही महंगा है.....भाई साहब को मना ही लिया आपने !"- शालू ने चहकते हुये लक्ष्मी से कहा ।
"देखो, अभी यहाँ किसी को बताना मत, वरना ख़ानदानी सड़ल्ले रीति-रिवाज़ों के भाषण अभी शुरू हो जायेंगे। जहाँ तक महंगे होने की बात है, तो सुन मैं लक्ष्मी हूँ लक्ष्मी ! मुझे 'लक्ष्मी' को टेकल करने और हैण्डल करने की टेकनीक अच्छी तरह आती है। मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ ये मुझे बीमार ननंद जी को देेखने जबरन आगरा ले तो गये, लेकिन मैं धन-दौलत…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 26, 2015 at 2:00pm — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 24, 2015 at 10:25am — 5 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 12:22am — 2 Comments
आज सुबह उस चाय की गुमटी पर गरमा गरम चाय पीते-पीते कुछ मुखों से शब्दों के अग्नि-बाण से निकल रहे थे।
"अरे सुना तुमने, मज़हब की बंदिशें तोड़ ग़रीब दोस्त संतोष को मुस्लिम युवक रज़्ज़ाक ने कल मुखाग्नि दी !"
यह सुनकर एक पंडित जी बड़बड़ाने लगे-
"सारा अंतिम संस्कार अपवित्र हो गया, पता नहीं आत्मा को कैसे शान्ति मिलेगी ?"
इस पर एक शिक्षित युवक बोला-
"अरे ये सब वो धर्मान्तरित मुसलमान हैं जो आज भी अपने मूल धार्मिक कर्मकांड गर्व से करते हैं।"
तभी एक दाढ़ी वाले ने दाढ़ी पर…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 21, 2015 at 9:30am — 24 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 19, 2015 at 8:42am — 12 Comments
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