१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
सरल सा रिश्ता भी अब तो चलाना हो गया टेढ़ा
वफा तुझ में नहीं बाकी बताना हो गया टेढ़ा।१।
मुहर मुंसिफ लगा बैठे सही अब बेवफाई भी
कि बन्धन सात फेरों का निभाना हो गया टेढ़ा।२।
कहो थोड़ा किसी को कुछ तो पत्थर ले के दौड़े है
किसी को आईना जैसे दिखाना हो गया टेढ़ा।३।
बुढ़ापा गर धनी हो तो निछावर हुस्न है उस पर
हुनर से …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 30, 2018 at 5:30am — 20 Comments
२२१/ २१२१/ १२२१/ २१२
वाजिब हुआ करे था जो तकरार मर गया
आजाद जिन्दगी में भी इन्कार मर गया।१।
दोनों तरफ है कत्ल का सामान बा-अदब
इस पार बच गया था जो उस पार मर गया।२।
जीने लगे हैं लोग यहाँ खुल के नफरतें
साँसों की जो महक था वही प्यार मर गया।३।
सौदा वतन का रोज ही शासक यहाँ करें
सैनिक ही नाम देश के बेकार मर गया।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 27, 2018 at 9:00pm — 21 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
सुनते हैं खूब न्याय की सच्चाइयाँ जलीं
कैसा अजब हुआ है कि अच्छाइयाँ जलीं।१।
वर्षों पुरानी बात है जिस्मों का जलना तो
इस बार तेरे शहर में परछाइयाँ जलीं।२।
कितने हसीन ख्वाब हुये खाक उसमें ही
ज्वाला में जब दहेज की शहनाइयाँ जलीं।३।
सब कुछ यहाँ जला है, तेरी बात से मगर
हाकिम कभी वतन में न मँहगाइयाँ जलीं।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 25, 2018 at 2:30am — 18 Comments
२१२२ /२१२२ /२१२२/ २१२
दर्द का आँखों में सबकी इक समंदर कैद है
चार दीवारी में हँसता आज हर घर कैद है।१।
हो न जाये फिर वो हाकिम खूब रखना ध्यान तुम
जिसके सीने में नहीं दिल एक पत्थर कैद है।२।
जब से यारो ये सियासत हित परस्ती की हुयी
हो गया आजाद नेता और अफसर कैद है।३।
राज्य कैसा राम का यह ला रहे ये देखिये
बंदिशों से मुक्त रहजन और रहबर कैद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 24, 2018 at 7:30am — 18 Comments
नेताओं की मौज है, राजनीति के गाँव
छाले लेकर घूमती, जनता दोनों पाँव।१।
सत्ता बाहर सब करें, यूँ तो हाहाकार
पर मनमानी नित करें, बनने पर सरकार।२।
जन की चिंता कब रही, धन की चिंता छोड़
कौन मचाये लूट बढ़, केवल इतनी होड़।३।
कत्ल,डैकेती,अपहरण, करके लोग हजार
सिखा रहे हैं देश को, हो कैसा व्यवहार।४।
साठ बरस पहले जहाँ, मुद्दा रहा विकास
आज वही संसद करे, बेमतलब बकवास।५।
राजनीति में आ बसे, अब तो खूब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 17, 2018 at 1:04pm — 4 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
अब न केवल प्यार की ही दुख बयानी है गजल
भूख गुरबत जुल्म की भी अब कहानी है गजल।१।
कल तलक लगती रही जो बस गुलाबों का बदन
अब पलाशों की उफनती धुर जवानी है गजल।२।
वो जमाना और था जब जुल्फ लब की थी कथा
माँ पिता के प्यार की भी अब निशानी है गजल।३।
पंछियों की चहचहाहट फूल की मुस्कान भी
गीत गाती एक नदी की ज्यों रवानी है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 14, 2018 at 3:30pm — 23 Comments
२२१/२१२१/ १२२१/२१२
दिल से चिराग दिल का जलाकर गजल कहें
नफरत का तम जहाँ से मिटाकर गजल कहें।१।
पुरखे गये हैं छोड़ विरासत हमें यही
रोते हुओं को खूब हँसाकर गजल कहें।२।
कोई न कैफियत है अभी जलते शहर को
आओ धधकती आग बुझाकर गजल कहें।३।
रखता नहीं वजूद ये वहशत का देवता
सोया जमीर खुद का जगाकर गजल कहें।४।
बैठा दिया दिलों में सियासत ने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 8, 2018 at 6:34am — 14 Comments
२२१/१२२२/२२१ /१२२२
इस द्वार गड़े मुर्दे उस द्वार गड़े मुर्दे
जीवन में लड़ाते हैं क्यों यार गड़े मुर्दे।१।
हर बार नया मुद्दा पैदा तो नहीं होता
देते हैं सियासत को आधार गड़े मुर्दे।२।
मौसम है चुनावी क्या राहों में खड़ा यारो
लेने जो लगे हैं फिर आकार गड़े मुर्दे।३।
भाता नहीं जिनको भी याराना जमाने में
लड़ने को उखाड़ेंगे दो चार गड़े मुर्दे ।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 20, 2018 at 10:00am — 16 Comments
खाता क्यों है खार पड़ौसी
क्या मन है बीमार पड़ौसी।१।
इतनी जल्दी भूल गया क्यों
बचपन के हम यार पड़ौसी।२।
सच जाने पर खूब करे क्यों
बेमतलब तकरार पड़ौसी।३।
जो कहना है सम्मुख कह दे
मत कर पीछे वार पड़ौसी।४।
जबरन हम तो नहीं घुसेंगे
क्यों ढकता है द्वार पड़ौसी।५।
लड़ना भिड़ना पागलपन है
इसमें सब की हार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 19, 2018 at 12:02am — 16 Comments
221 2121 222 1212
हाकिम ही देश लूट के जब यूँ फरार हो
ऐसे में किस पे किस तरह तब ऐतबार हो।१।
रूहों का दर्द बढ़ के जब जिस्मों को आ लगे
बातों से सिर्फ बोलिए किसको करार हो।२।
इनकी तो रोज ऐश में कटती है खूब अब
क्या फर्क इनको रोज ही जनता शिकार हो।३।
हर शख्श जब तलाश में अवसर की लूट के
हालत में देश की भला फिर क्या सुधार हो ।४।
मुट्ठी में सबको चाहिए पलभर में चाँद भी
मंजिल के बास्ते किसे तब इन्तजार हो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2018 at 4:56am — 13 Comments
२२१/ २१२१ /२२२/१२१२
हर शख्स जो भी दूर से भोंदू दिखाई दे
देखूँ करीब से तो वो चालू दिखाई दे।१।
अब तो हवा भी कत्ल का सामान हो रही
लाज़िम नहीं कि हाथ में चाकू दिखाई दे।२।
मालिक वतन के भूख से मरते रहे यहाँ
सेवक की तस्तरी में नित काजू दिखाई दे।३।
सच तो यही कि जग में है मन से फकीर जो
सोना भी उसको दोस्तो बालू दिखाई दे।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2018 at 9:01pm — 6 Comments
शिक्षक दिवस के दोहे
बनते शिष्य महान तब, शिक्षक अगर महान
शिक्षक बिन हर इक रहा, अधकचरा इन्सान।१।
जिसने जीवन भर किया, शिक्षक का सम्मान
जग ने उसका है किया, इत उत बड़ा बखान।२।
शिक्षक थोड़ा सा अगर, दे दे जो उत्साह
भटका बालक चल पड़े, सदा सत्य की राह।३।
पथ की बाधा नित हरी, जिसने राह बुहार
दे थोड़ा सा मान कर, शिक्षक का आभार।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 4, 2018 at 9:00pm — 9 Comments
मुहब्बत भी कहानी हो गयी हमसे
बहुत बद ये जवानी हो गयी हमसे।१।
कोई देकर गया था इक खुशी यारो
कहीं गुम वो निशानी हो गयी हमसे।२।
जमाना सारा ही दुश्मन हुआ है यूँ
जरा सी सच बयानी हो गयी हमसे।३।
कसक सी दिल में उठ्ठी है कहीं यारो
किसी से बद जबानी हो गयी हमसे।४।
भला यूँ कम कहाँ हम थे मगर अब तो
ये दुनिया भी सयानी हो …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2018 at 9:55am — 10 Comments
२२ २२ २२ २
पूछ न इस रुत कैसा हूँ
अबतक तो बस तन्हा हूँ।१।
बारिश तेरे साथ गयी
दरिया होकर प्यासा हूँ।२।
आता जाता एक नहीं
मैं भी कैसा रस्ता हूँ।३।
जब तन्हाई डसती है
सारी रात भटकता हूँ।४।
हाथों में चुभ जाते हैं
काँटे जो भी चुनता हूँ।५।
जाने कौन चुनेगा अब
उतरन वाला कपड़ा हूँ।६।
तारों सँग कट जाती है
शरद अमावस रैना हूँ।७।
अनमोल भले बेकार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2018 at 11:57am — 18 Comments
सुखिया को संसार में, सब कुछ मिलता मोल
पर दुखिया के वास्ते, सकल जिन्दगी झोल।१।
हर देहरी पर चाह ले, आँगन बैठे लोग
भूखों को दुत्कार नित, मंदिर मंदिर भोग।२।
पाले कैसी लालसा, हर मानव मजबूर
हुआ पड़ोसी पास अब, सगा सहोदर दूर।३।
बिकने को कोई बिके, पर ये दुख का योग
औने-पौने बिक रहे, ऊँचे कद के लोग।४।
घुट्टी में सँस्कार की, अब क्या क्या खास
रिश्तों से आने लगी, अब जो खट्टी बास।५।
मौलिक व…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2018 at 5:28pm — 12 Comments
२२१ २१२१ २२२ १२१२
कहते नहीं हैं आपसे रस्ता सुझाइये
राहों में यूँ न देश की रोड़ा लगाइये।१।
आता है भेड़िया तो कुछ हरकत दिखाइये
कमजोर गर ये हाथ हैं हल्ला मचाइये।२।
कहते हो दूसरों की है सूरत अगर मगर
खुद को भी रोशनी में ये दर्पण दिखाइये।३।
होती नहीं है भोर इक सूरज उगे से ही
गर देखनी हो भोर तो खुद को जगाइये।४।
बातों को दिल की रोज ही ऐ …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 7, 2018 at 12:00pm — 13 Comments
२२१ १२२२ २२१ १२२२
जितना भी सनम माँगा यूँ हमने है कम माँगा
मरने की नहीं हिम्मत जीने का ही दम माँगा।१।
होते ही सवेरा नित साया भी डराता है
घबरा के उजाले से यूँ रात का तम माँगा।२।
सुनते हैं सभी कहते कम अक्ल हमें लेकिन
खुशियों में अकेले थे इस बात से गम माँगा।३।
चौपाल से बढ़ शायद महफूज लगा हो कुछ
ऐसे ही नहीं उसने रहमत में हरम माँगा।४।
ऐसे ही नहीं शबनम पड़ जाती है रातों को
धरती का रह इक कोना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2018 at 6:30am — 16 Comments
२२१ /२१२१ /२२२ /१२१२
खासों से बढ़ के खास यूँ होते हैं आम भी
जिसने समझ लिया उसे मिलते हैं राम भी।१।
कैसे अजब हैं लोग जो कहते हैं यार ये
बदनामियों के साथ ही होता है नाम भी।२।
आती है जिसको भोर यूँ झट से अगर कहीं
ढलती है उसकी दोस्तो ऐसे ही शाम भी।३।
अभिषेक हो रहा है अब सुनते शराब से
करने लगी हवस पतित देवों का धाम भी।४।
जब से गमों …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2018 at 7:35pm — 21 Comments
2122 1122 1122 22
तम की रातों में कहीं दूर उजाला देखो
डूबती नाव को तिनके का सहारा देखो।१।
दिन जो तपता हो तो रोओ न उसे तुम ऐसे
धूप कोमल सी हो जिसमें वो सवेरा देखो।२।
कहने वालों ने कहा है कि ये दुनिया घर है
हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो।३।
आप हाकिम हो रहो दूर तरफदारी से
न्याय के हक में न अपना न पराया देखो।४।
सिर्फ कुर्सी की सियासत में रहो मत डूबे
कैसे करता है ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2018 at 7:00pm — 18 Comments
२२२२ २२२२ २२२२ २२२
पोथा पढ़ना पंडित भूले शुभ मंगल में आग लगी
जो माथे को शीतल करता उस संदल में आग लगी।१।
जहर भरा है खूब हवा में हर मौसम दमघोटू है
पंछी अब क्या घर लौटेंगे जिस जंगल में आग लगी।२।
कैसी नफरत फैल गयी है बस्ती बस्ती देखो तो
जिसकी छाँव तले सब खेले उस पीपल में आग लगी।३।
धन दौलत की यार पिपासा इच्छाओं का कत्ल करे
चढ़ते यौवन जिसकी चाहत उस आँचल में आग लगी।४।
किस्मत फूटी है हलधर की नदिया पोखर सब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2018 at 4:55pm — 19 Comments
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