पीढ़ियां !
सीढ़ियों पर चढ़ कर
पीढ़ियां !
थूंकती आसमान पर
धरा आर्द्रवश सहेज लेती
नदियों के कछार
दलदल - सदाबहार वन
आमंत्रित मेघ
बरसते नहीं.
पीढ़ियां !
असमय कड़क कर चमकतीं
गिरती बिजलियां
जलते घास-पूस के छप्पर
ढह जाते दुर्ग
सम्मान के...
संस्कृति के.
बिखरे अवशेष कराहते
खण्डहर में उग आते बांस
सीढ़ियां बनने को उत्सुक
पीढ़ियां उत्साह में फिसल…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 20, 2016 at 8:30am — No Comments
सावन के दिन झर गये, ठरी पूस की रात.
रंग बसंती रो रही, पतझड़ करते घात.१
आंखों का सावन कभी, हुआ न तन का मीत.
कहें बसंती-फाग रस, पतझड़ जग की रीत.२
वन उपवन नद ताल को, देकर दु:ख अतीव.
दशा दिशा श्रुति ज्ञान सब, बिगड़े मौसम जीव.३
सरोकार रखते नहीं, जो समाज के साथ.
श्वेत वस्त्र उनके मगर, रंगे रक्त से हाथ.४
तंत्र मंत्र हर यंत्र जब, हारे हरि का नाम.
कृषक छात्र जन आज खुद, हुये कृष्ण-बलराम.५
राम…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 14, 2016 at 9:00pm — 6 Comments
नवगीत........सेंभल के फूल
खिले जो फूल सेंभल के
रहे वह मात्र दस दिन के
वो दुनियां देख न पाये
अहं के झूठ के साये
लड़े हर वक्त मौसम से
हुये बस धूल कण-कण के.............खिले जो फूल सेंभल के
रुई की नर्म फाहें उड़
गगन को भेदना चाहें
हवा रुख को बदल देती
उगाती रक्त की बांहें.
पकड़ कर ठूंसते-पीटें
लिहाफों में भरें धुन के...............खिले जो फूल सेंभल के
हवाओं से भरे फूले
निशक्तों…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 8, 2016 at 10:30pm — 6 Comments
कुण्डलिया
धुंआ हवा को छेड़ती, पानी करे पुकार.
धरती निशदिन लुट रही, अम्बर है लाचार.
अम्बर है लाचार, प्रेम की वर्षा सूखी.
सरिता नदिया ताल, रेत में उलझी रूखी.
सूरज रखता खार, करें क्या सत्यम-फगुवा.
मानव अति बेशर्म, उड़ाता खुद…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 5, 2016 at 9:55pm — No Comments
गज़ल............उसी से दिल्लगी...
बहरे रुक्न.....हज़ज़ मुसम्मन सालिग
दिखा कर रोशनी जिसने किया है सृष्टि को पावन.
सघन तम में बसी जिसने किया है सृष्टि को पावन.
रही चर्चा यही जिसने किया है सृष्टि को पावन.
नहीं मिलती फली जिसने किया है सृष्टि को पावन.
हवाओं में, गुबारों में, समन्दर में वही साया
कहे मुझको परी जिसने किया है सृष्टि को पावन.
दिवाकर सांझ से मिलकर सितारे रात से कहते
वही सबसे बली जिसने किया है…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 3, 2016 at 10:12pm — 8 Comments
पंचामृत......दोहे
सावन-भादों सूखते, ठिठुरी आश्विन-पूस.
माघ-फाल्गुनी रक्त रस, रही प्रेम से चूस. १
अपने सारे दर्द हुए, जीवन के अभिलेख.
कुछ पन्ने इतिहास से, कुछ इस युग के देख. २
सत्य अहिंसा प्रेम-धन, सब पर्वत के रूप.
मन-मंदिर को ठग रहे, जैसे अंधे कूप. ३
राग-द्वेष नेतृत्व की, धारा प्रबल प्रवाह.
जन गण मन को डुबा कर, कहें स्वयं को शाह. ४
मौसम के हर रंग हैं, जीवन के संदेश.
कभी…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 26, 2016 at 9:30pm — 1 Comment
किसान का बेटा...
गंदे फटे वस्त्रों में उलझी धूल
झाड़ती सोंधी-सोंधी खुशुबू.
नीम की छांव में बैठ कर
निमकौड़ी !
खुद पिघल कर रचती
नये-नये अंकुर.
सावन मस्त होकर झूमता
वर्षा निछावर करती
जीवन के जल-कण
छप्पर रो पड़ते
किसान फटी आंखों से सहेज लेता...
जल-कण
बटुली में
थाली में.
धान के खेत लहलहाते
गंदे-फटे वस्त्र धुल जाते
चमकते सूर्य सा
साफ आसमान…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 26, 2016 at 6:00pm — No Comments
[१]
प्यार मुहब्बत संग दया समता,करुणाकर ही रखते हैं.
क्रूर कठोर अघोर सभी जन मे, सदबुद्धि वही फलते हैं.
रावण कौरव कंस बली हिरणाक्ष,सभी पल मे क्षरते हैं.
धर्म सधे जनमानस के हित, सत्यम नित्य कहा करते हैं.
[२]
वक्त बली अति सौम्य तुला रख, नीति सुनीति सदा पगता है.
काल अकाल विधी विधना, सबके सब मूक बयां करता है.
मीन - नदी अति व्यग्र रहें, बगुला - तट शांत मजा चखता है.
वक्त समग्र विकास करे, पर मानव सत्य नहीं गहता…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 23, 2016 at 12:00am — 2 Comments
आठ भगण पर आधारित सवैया...किरीट सवैया कहलाती है.
-१-
पावन हैं ऋतुराज समाजिक, मान सुज्ञान विधान प्रतिष्ठित.
पर्वत दृश्य समीर नदी रस, धार सुप्रीति समान प्रतिष्ठित.
काम कमान लिये फिरता, रति संग रखे हर बाण प्रतिष्ठित.
शंकर भस्म करे पल में, वर काम अनंग प्रधान प्रतिष्ठित.
-२-
गंग तरंग उमंग लिये नव प्राण धरा रस से कर सिंचित.
पाप विकार अनिष्ट गरिष्ठ समेट बही यश से कर सिंचित.
शुद्ध प्रबुद्ध प्रणाम करे…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 21, 2016 at 5:13am — 2 Comments
आनंद..!
आनंद का आकार.....
निराकार!
बात-बात पर अट्टहास करते
पल झपकते ही स्वर
हवा में बह जाते.
दिशाओं की कोंख
नित्य जन्मतीं
सूर्य-चंद्र अगणित तारे
सृष्टि के सृजन में
सत्यम शिवम सुंदरम
स्वयं शव!
शांति का संदेश देते ब्रह्म !
ऊंकार,
जीवन पुष्ट करता
जीव !
चक्रवत निरंतर खोजता
जीवन का आनंद..
परमानंद...पर,
आनंद की अनुभूति कभी न हो पाती
मिलता केवल दु:ख
सुख…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 17, 2016 at 8:17am — 4 Comments
मन आंगन की चुनमुन चिड़िया,
चंचल चित्त पर धैर्य सिखाती.
गांव-शहर हर घर-आंगन में
इधर फुदकती उधर मटकती
फिर तुलसी चौरे पर चढ़ कर
चीं चीं स्वर में गीत सुनाती
आस-पास के ज्वलन प्रदूषण
दूर करे इतिहास बुझाती. 1 मन आंगन की चुनमुन चिड़िया..
देह धोंसले घास-पूस के
मिट्टी रंग-रोगन अति सोंधी
आत्मदेव-गुरु हुये कषैले
सिर पर यश की थाली औंधी
बच्चों के डैने जब नभ को
लगे नापने, मां ! हर्षाती. २ मन…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 13, 2016 at 3:00pm — 4 Comments
१- अच्छे दिन !
सुबह-शाम !
घर-चौबारे आशंकित
प्रतीक्षारत सहेजते हैं...
दीप-बाती और तेल
आक्रोशित तम व्यग्रतावश बिखेर देता
असंख्य नक्षत्र....
भद्रा से प्रभावित
आर्द्रा-रोहिणी
व्यथित कृष्ण-ध्रुव की राह तकती
चांद, बादलों के घात से दु:खी
हवायें दृश्य बदल देतीं
बसंत के इशारों पर पतझड़
होलिका दहन कर बिखेरते
रोशनी,
चांदनी में लम्बी-लम्बी छाया...
ठूंठ वृक्ष,
नंगी टहनियां सब…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 5, 2016 at 10:05pm — 27 Comments
उपेक्षित....
दसों दिशाओं में डंका बजाता
चक्रवर्ती सम्राट......दिन!
यशस्वी-प्रकाशवान
निरंतर गतिमान
नित्य महासमर के उपरांत शिथिल,
क्लांत वश पिघल जाता
रक्त का कण-कण
संगठित करता लाल सागर
विचलित होती आत्मा
अश्रु आश्चर्यचकित...!
कपोलों पर ठिठके...
हवाएं अट्टहास करती
मचलती ज्वार-भाटा आदत से…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 3, 2016 at 7:12am — 9 Comments
प्रेम दीवानी होती है.....
सबको अपनी उम्र निभानी होती है.
खुद अपनी पहचान बनानी होती है.
मत उलझो आडम्बर में यदि हो इंसा,
इंसा की खुद आत्म कहानी होती है.
धर्म कर्म आहार भुनाने में उसको,
सपनों की दीवार गिरानी होती है.
मत उगलो तुम जह्र आग तूफान यहां,
जीवन पानीदार सयानी होती है.
बाल न बांका तुम मेरा कर पाओगे,
सत्य-खुदा से आंख मिलानी होती है.
मत रोना संसार रुलाता है…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 24, 2015 at 3:00pm — 5 Comments
कुंडलिया
आश्विन मासे प्रतिपदा, शुक्ल पक्ष संज्ञान.
शारदीय नवरात्रि यह, नव दुर्गा की शान.
नव दुर्गा की शान, ध्यान नौ दिन तक चलते.
भक्ति सहित उपवास, शक्ति संयम यश फलते.
कन्या पूजन दान, पाप को क्ष्ररते निशदिन.
करे सत्य उत्थान, योग का स्वामी आश्विन.
के0पी0 सत्यम / मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 21, 2015 at 9:00am — 6 Comments
दोहा छ्न्द-----नवरात्रि-उपहार
प्रथम शैलपुत्री मनन, है नवरात्रि विधान.
वृद्धि करें वन जीव जड, तप बल योग प्रमाण.1
ब्रह्मचारिणी मां प्रखर, दिव्य ज्योति की सार.
सकल सिद्धि यश विजय का, देती हैं उपहार.2
देवि चंद्र घंटा करें, रोग - दोष से मुक्त.
सुखद शांति सुख सम्पदा, वर देतीं उपयुक्त.3
दिव्य हास्य से प्रकट कर, सकल ब्रह्म रस छ्न्द.
खुले हृदय से बांटतीं, कूष्माण्डा मां कंद.4
शक्ति पांचवीं स्कंद…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 14, 2015 at 10:30am — 6 Comments
गीत (नयन झील के हंस अकेले)
सत्य कामना प्रेम साधना, प्राण हवा प्रभु को भाते हैं.
नयन झील के हंस अकेले, मोती सारे चुंग जाते हैं..
प्रिय तुम्हारे आकर्षण से,
मन-दर्पण सब शरमाते हैं
सूरज- चंदा, गगन-सितारे,
सागर-घन सब घबराते हैं.
अहं बावरे रसिक दिवाने,
मूक-पंगु बन पछताते हैं.
नयन झील के हंस अकेले, मोती सारे चुंग जाते हैं..1
देह चांदनी छुवन मर्मरी,
सहज भाव यश वंदन करती.
पथ के घुंघुरू बांध…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 9, 2015 at 9:40pm — 7 Comments
गज़ल........122, 122, 122, 122
तुम्हारी कसम बेसहारा नहीं हूँ.
महज़ इक गज़ल हित आवारा नहीं हूँ.
सँवारे ज़मी आस्माँ चाँद तारें
वही इक जुगनू बेचारा नहीं हूँ.
गली घाट घर गाँव सबका सहारा
सजग कौम कुत्ता दुलारा नहीं हूँ.
लगी आग महलों दुमहलों में जब भी
बुझाया हमेशा लुकारा नहीं हूँ.
सकल जीव मे आत्मा एक सत्यम
सदा सच कहूं इक तुम्हारा नहीं हूँ.
के0पी0 सत्यम / मौलिक व…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 4, 2015 at 9:06pm — 5 Comments
गीतिका छंद
[प्रत्येक पंक्ति 14-12 की यति से कुल 26 मात्रा होती है तथा प्रत्येक पंक्ति की तीसरी, दसवीं, सत्रह्वीं और चौबिसवीं मात्रा लघु ही होती हैं]
शारदे मां वर्ण-व्यंजन में प्रचुर आसक्ति दो।
शब्द-भावों में सहज रस-भक्ति की अभिव्यक्ति दो।।
प्रेम का उपहार नित संवेदना से सिक्त हो।
हर व्यथा-संघर्ष में भी क्रोध से मन रिक्त हो।।1
वृक्ष सा जीवन हमारा हो नदी सी भावना।
तृप्त ही करते रहें निश-दिन यही है…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 2, 2015 at 8:00pm — 5 Comments
मुरली तो मन मोहनी, हरे जगत की पीर.
उसे चुरा कर राधिका, स्वयं हुई गम्भीर.
मुरली हर मन मोहती, लिये फकीरी रूप.
सरस कण्ठ निष्काम रख,…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 11, 2015 at 8:30pm — 4 Comments
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