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बेशर्म लोगों की
बड़ी -बड़ी फ़ौज है
चोर हैं उचक्के हैं
लूट रहे मौज हैं
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थाने अदालत में
'चोर' बड़े दिखते हैं
नेता के पैरों में
'बड़े' लोग गिरते हैं
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बूढा किसान साल-
बीस ! आ रगड़ता है
परसों तारीख पड़ी
कहते 'वो' मरता है
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बाप की पगड़ी में
'भीख' मांग फिरता है
'नीच' आज नीचे…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 16, 2013 at 10:30am — 14 Comments
इस रचना में एक अधिवक्ता की पत्नी का दर्द फूट पड़ा है ..................
ना जइयो तुम कोर्ट हे !
मेरे दिल को लगा के ठेस ....
जब जग जाहिर ये झूठ फरेबी
बार-बार लगते अभियोग
अंधी श्रद्धा भक्ति तुम्हारी
क्यों फंसते झूठे जप-जोग
आँखें खोलो करो फैसला
ना जाओ लड़ने तुम केस .............
ना जइयो तुम कोर्ट हे !
मेरे दिल को लगा के ठेस…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 8, 2013 at 4:30pm — 12 Comments
घर ही उजाड़ दिया
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मतलब की दुनिया है
मतलब के रिश्ते हैं
कौन कहे मेले में
आज कहीं अपने हैं
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छोटे से पौधे को
बड़ा किया प्यार दिया
सींचा सम्हाल दिया
फूल दिया फल दिया
तूफ़ान आया जो
घर ही उजाड़ दिया
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बिच्छू के बच्चों ने
बिच्छू को खा लिया
इधर – उधर, डंक लिये
'खा' लो सिखा…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 4, 2013 at 11:00am — 12 Comments
धरती भी काँप गयी
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उड़ान भरती चिड़िया
जलती दुनिया
आंच लग ही गयी
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दाढ़ी बाल बढ़ाये
साधू कहलाये
चोरी पकड़ा ही गयी
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इतना बड़ा मेला
पंछी अकेला
डाल भी टूट गयी
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खंडहर भी चीख उठा
रक्त-बीज बाज बना
धरती भी काँप गयी
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कानून सोया था
सपने में रोया था
देवी…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 27, 2013 at 12:30am — 8 Comments
वंजर धरती को जोते हम
डाल उर्वरक हरा बनाये
सालों साल वृथा मिटटी जो
आज हँसे लहके लहराए !
कुंठित मन को कुंठा से भर
दुखी रहें क्यों हम अलसाये
कुंठित बीज हरी धरती में
कुंठित फसल भी ना ला पायें !
नाश करें खुद के संग धरती
वंजर वृथा ह्रदय अकुलाये
जोश उर्जा क्षीण हो निशि दिन
ख़ुशी हंसी मन को खा जाए !
सहज सरल भी चुभें तीर सा
बिन बात बतंगड़ बनती जाए
घुन ज्यों अंतर करे…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 21, 2013 at 11:00pm — 14 Comments
अनेकता में एकता --अपना भारत
प्रिय दोस्तों और ..मेरे नन्हे मुन्ने मित्रों आप सब को भ्रमर की तरफ से स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं ...
मेरा भारत महान है , हम सब की शान है अपनी जान हैं गौरव है यह एक शब्द नहीं है अपितु हर भारतवासी के दिल की धड़कन है। ये अपनी पहचान है। हम इस पवित्र भूमि में पैदा हुए हैं। हमारे लिए यह उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि हमारे माता-पिता हम सब के लिए । भारत केवल एक भू-भाग का नाम नहीं है बल्कि यह हो इस भू-भाग में बसे लोगों, उसकी…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 14, 2013 at 8:30pm — 6 Comments
छटपटाया बहुत चाँद
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रात बारिश बहुत जोर की थी प्रिये
देख चेहरा तेरा चाँद में खो गया…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 24, 2013 at 10:30pm — 19 Comments
पर कटे से पड़े तडफडाते रहे
इश्क़ में उनके ऐसे फँसे दोस्तोँ !
रूबरू वो हुये चार पल के लिए
जाम नैनों अधर के पिला दोस्तों !
मयकशी में मुकद्दर के मारे तभी
लूट हँसते चले रोते हम दोस्तों…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 10, 2013 at 1:00am — 16 Comments
छोटी छोटी बातों पर
अनायास ही अनचाहे
मन मुटाव हो जाता है
दुराव हो जाता है
दूरी बढ़ जाती है
हम तिलमिला जाते हैं
मौन हो जाते हैं
अहम भाग जाता है …
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 24, 2013 at 12:09am — 12 Comments
ये आनन्द चीज क्या कैसा??
ये आनन्द चीज क्या कैसा क्या इसकी परिभाषा
भाये इसको कौन कहाँ पर कौन इसे है पाता
उलझन बेसब्री में मानव जो सुकून कुछ पाए
शान्ति अगर वो पा ले पल भर जी आनंद…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2013 at 12:11am — 12 Comments
हम सहिष्णु हैं भोले भाले मूंछें ताने फिरते
अच्छे भले बोल मन काले हम को लूटा करते
भाई मेरे बड़े बहुत हैं खून पसीने वाले
अत्याचार सहे हम पैदा बुझे बुझे दिल वाले
कुछ प्रकाश की खातिर जग के अपनी कुटी जलाई
चिथड़ों में थी छिपी आबरू वस्त्र लूट गए भाई
माँ रोती है फटती छाती जमीं गयी घर सारा
घर आंगन था भरा हुआ -कल- कोई नहीं सहारा
बिना जहर कुछ सांप थे घर में देखे भागे जाते
बड़े विषैले इन्ही बिलों अब सीमा पार से आते
ज्वालामुखी दहकता दिल में मारूं काटूं…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 26, 2013 at 10:30pm — 4 Comments
पीत वसन से सजी धरती सखि
सोन से भाव में तोलि रही सब
सोंधी सी खुश्बू हिया अब उमड़ति
प्रीति के चन्दन लपेटि रही अंग
कुसुमाकर बनि काम कुसुम तन
सिहरन बनि झकझोरि रहे हैं
नील गगन रक्तिम बदरी मुख …
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 14, 2013 at 11:56pm — 17 Comments
भारत देश हमारा प्यारा, न्यारा इसका संविधान है
शीतल धवल दुग्ध धार है कहीं उबलता क्या विधान है
तरह तरह की भाषा बोली हैं हम जोली
दुश्मन-मित्र हैं अपने घर ही कहीं है गोली
आस्तीन के सांप बनाये रखना दूरी
तिलक देख है फंस -फंस जाती भोली-
जनता ! त्राहि -त्राहि कर न्याय मांगती
मुंह में राम बगल में छूरी कहाँ जानती…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on January 27, 2013 at 12:58pm — 2 Comments
मन में मेरे जो आएगा लिख कर उसको रख दूंगा
चाह नहीं कुछ नाम कमाऊँ दिया ह्रदय में रख दूंगा !
घर में मेरे जो आएगा मान दिए खुश कर दूंगा
जीवन मेरे जो छाएगा प्यार किये जीवन दूंगा
उपवन मेरा जो सींचेगा खुशहाली छाया दूंगा
पथ में राही साथ चले मुस्कान भरे स्वागत दूंगा
मै एक तपस्वी कांटे बोकर प्राण भी लो ,
कभी नहीं कह पाऊँगा ..
मन में मेरे जो आएगा लिख कर उसको रख दूंगा ………..
सूरज के गर साथ चलेंगे गर्मी हम पाएंगे ही
अंगार अगर हम…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 25, 2012 at 10:30pm — 15 Comments
मै भी अभी जिन्दा हूँ !!
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तीव्र झोंके ने पर्दा उड़ा दिया
सारे बाज -इकट्ठे दिखा दिया
चालबाज, कबूतरबाज , दगाबाज
अधनंगे कुछ कपडे पहनने में लगे
दाग-धब्बे -कालिख लीपापोती में जुटे
माइक ले बरगलाने नेता जी आये
जोकर से दांत दिखा हँसे बतियाये
“ये मंच अब हमारा है” खेती…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 30, 2012 at 8:51pm — 13 Comments
भारत प्यारा वतन हमारा सबसे सुन्दर न्यारा देश
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 15, 2012 at 11:30am — 9 Comments
एक ‘कवि’ जब खिन्न हुआ तो बीबी से ‘वो’ अकड़ा
कमर कसा ‘बीबी’ ने भी शुरू हुआ था झगडा
कितनी मेहनत मै करता हूँ दिन भर ‘चौपाये’ सा
करूँ कमाई सुनूं बॉस की रोता-गाता-आता
सब्जी का थैला लटकाए आटे में रंग आता…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 12, 2012 at 7:15am — 4 Comments
कान्हा कृष्णा मुरली मनोहर आओ प्यारे आओ
व्रत ले शुभ सब -नैना तरसें और नहीं तरसाओ
जाल –जंजाल- काल सब काटे बन्दी गृह में आओ…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 10, 2012 at 8:00am — 10 Comments
"कील चुभी वो नहीं विलग "
वे कहते हैं सब भूल गये
हम कहते कुछ भी याद नहीं
कारण मैंने भी किया वही
जो उसने पिछले साल किये
अब उसके भी एक आगे है
मेरे भी पीछे बाँध दिए !!
रस्में पूर्ण समाज…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 7, 2012 at 1:02am — 19 Comments
अरे गुलामी छोड़ो यारों
हरित-क्रांति कर के कुछ पा लो
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तुम गरीब हो भूखे प्यासे
लिए कटोरा घूम रहे
दो टुकड़ों की खातिर दिल को
छलनी अपनी करवाते
इज्जत मान प्रतिष्ठा अपनी
घूँट -घूँट विष पी जाते
अरे गुलामी छोड़ो यारों
हरित-क्रांति कर के कुछ पा लो
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पेट भरे -ना-हुयी पढाई
'आदिम मानव' जग हुयी हंसाई
पीछे…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 2, 2012 at 12:00am — 6 Comments
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