2122 1122 1212 22
सीधे सीधे वो कलेजे पे वार करता है
खूब दिलबर है वो हँसके शिकार करता है //१
चाल होती है अज़ब उसकी मीठी बातों में
झूठी बातें वो बड़ी शानदार करता है //२
खूब हिस्सा जो दवाओं में खा रहा है वो
डॉक्टर अब तो दवा से बीमार करता है //३
जिस्म औ रूह के सुकून को मिटा डाला
और कहता है कि वो मुझसे प्यार करता है //४
ख़ून का प्यासा हुआ है ग़ज़ब का अब इंसां
ख़ून के रिश्ते को भी तार तार करता है…
Added by क़मर जौनपुरी on November 23, 2018 at 9:22pm — 7 Comments
122 122 122 122
हक़ीक़त न बोले बनाये फ़साना
अज़ब ये तरक्की अज़ब है ज़माना //१
नहीं आज उसमें ज़रा सी भी शफ़क़त
ग़रीबों की लाशों में ढूंढे ख़ज़ाना //२
सँवारा जिसे था बड़ी आरज़ू से
बुढ़ापा में छीना वही आशियाना //३
ज़रूरी कहाँ है गिराना ज़मीं पे
है काफ़ी उसे बस नज़र से गिराना //४
गुलों की तरह है मेरे दिल की हसरत
मसल दो न छोड़े ये ख़ुशबू लुटाना //५
क़मर जाने कब से भटक ही रहा है
तेरा शह्र दर शह्र ढूंढे ठिकाना…
Added by क़मर जौनपुरी on November 21, 2018 at 12:30am — 9 Comments
2122 2122 2122 212
चल गया जादू सभी अंधे औ बहरे हो गए
ज़ालिमों के ज़ुल्म के दिन अब सुनहरे हो गए //१
था किया वादा बनाएगा महल सपनों का वो
यूँ किया उसने कि गड्ढे और गहरे हो गए //२
चुप है हाकिम चुप है मुंसिफ चुप है ये सारा जहाँ
मुजरिमों की लिस्ट में मासूम चेहरे हो गए //३
हाथ में अब आ गया है ज़ालिमों के वो हुनर
राम हारे रावणों के अब दशहरे हो गए //४
झूठ बोले हर सभा में और पा जाए सनद
सच जो बोले उस ज़ुबाँ पे सख़्त पहरे हो गए //५
--…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on November 20, 2018 at 8:00am — 7 Comments
Added by क़मर जौनपुरी on November 18, 2018 at 10:24pm — 3 Comments
साथी सो न, कर कुछ बात।
यौवन में मतवाली रात,
करती है चंदा संग बात,
तारें छुप-छुप देख रहे हैं, उनकी ये मुलाकात।
साथी सो न, कर कुछ बात।
झींगुर की झंकार उठी,
रह-रह, बारंबार उठी,
चकवा-चकवी की पुकार उठी, अब छोड़ो न मेरा हाथ।
साथी सो न, कर कुछ बात।
लज्जा से मुख को छुपाती,
अधरों से मधुरस टपकाती,
विहँस रही मुरझाई पत्ती, तुहिन कणों के साथ।
साथी सो न, कर कुछ बात।
-- क़मर जौनपुरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by क़मर जौनपुरी on November 18, 2018 at 9:30am — 2 Comments
2122 2122 2122 212
दोपहर की धूप में बादल के जैसे छा गए
मह्रबां बन कर वो मेरी ज़िंदगी मेें आ गए//१
ज़िन्दगी जीते रहे हम दुश्मनों की भीड़ में
रहबरों के संग में ही आके धोका खा गए //२
झूठ सीना तान कर मैदान में अब चल रहा
सच ज़ुबाँ पे जो भी लाए वे खड़े शरमा गए //३
सर उठाओ ना हमारे सामने सागर हैं हम
ताल हो तुम एक बारिस देखकर बौरा गए //४
भीड़ में वो खो गए जो मर मिटे ईमान पर
छापकर अख़बार झूठे…
Added by क़मर जौनपुरी on November 16, 2018 at 9:00pm — 7 Comments
2122 2122 2122 212
सब परिंदे लड़ रहे हैं, आसमां भी कम है' क्या
इन सभी के हाथ में अब मज़हबी परचम है' क्या //१
क्यूँ सभी के अम्न के, क़ातिल बने हो रहबरों
घर चलाने के लिए घर में कहीं कम ग़म है क्या //२
एक क़तरा अश्क भी जो दे नहीं, वो हमसफ़र
दर्द से जो रोज़ खेले वो भला हमदम है क्या //३
दर्द से व्याकुल मरीज़ों के बने थे चारागर
जो दवा नासूर कर दे वो भला मरहम है क्या //४
जल रही हो जब ये धरती जल रहा हो जब चमन
ऐसे में जब आग बरसे…
Added by क़मर जौनपुरी on November 15, 2018 at 3:30pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा बस एक पल में आ गया,
नाम तेरा इक महक बन साँस में जब छा गया
उम्र भर भटका किये, इक पल सुकूँ की चाह में,
वो मिले तो रूह बोली, तूू सफ़ीना पा गया।
बस जुनूँ था आसमां में घर नया अपना बने
इस जुनूँ की चाह में सब घर ज़मीं का ढा गया
था किया वादा लड़ूँगा भूख से जो फ़र्ज है
भूख मेरी ही बड़ी थी सब अकेला खा गया
अब मसीहा सर झुकाकर खूब सेवा में लगे
लग रहा है दिन चुनावों का सुहाना आ गया
--…
Added by क़मर जौनपुरी on November 15, 2018 at 9:30am — 9 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
बच्चे रस्ता देखा करते पंछी के घर आने तक
पंछी दाना देता रहता बच्चों के पर आने तक।
सोना जगना गिरना उठना ये सब लक्षण जीवन के
सूखा पत्ता डाली को क्या देखे मंजर आने तक
छोटी लम्बी तन्हाई से क्या अंदाज़ा होता है
सच्चा प्रेमी संगी होगा अंतिम पत्थर आने तक
तू महफ़िल में गाता रहता मैं ही सच्चा रहबर हूँ।
तेरी महफ़िल ज़िंदा है बस सच के ऊपर आने तक
खट्टी मीठी यादें तेरे जीवन का सरमाया हैं
इन यादों को साथी कर…
Added by क़मर जौनपुरी on November 15, 2018 at 1:00am — 6 Comments
2122 1122 1122 22
ग़ज़ल
*****
तेरे दिल को मैं निगाहों में बसा लेता हूँ।
तेरा ख़त जब मैं कलेजे से लगा लेता हूँ
तेरी यादों में छलकती हैं उनींदी आंखें
तेरी यादों में ही मैं गंगा नहा लेता हूँ
दिल में जन्नत का यकीं मेरे उतर आता है
जब तेरी ज़ुल्फ़ों के साये में हवा लेता हूँ
तुझसे वाबस्ता हैं हाथों की लकीरें मेरी
इन लकीरों से ही अब तेरा पता लेता हूँ
ऐ क़मर ग़म के अंधेरों का मुझे खौफ़ नहीं
चाँद मेरा है उसे छत पे बुला लेता…
Added by क़मर जौनपुरी on November 13, 2018 at 10:14pm — 8 Comments
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