असल कामयाबी जीवन की
सहज सरल सादा जीवन हो
बचना होगा वासना लिप्सा
अतिशय कामना नहीं मन हो
चल सकता काम अगर दो रोटी
तो एक गाय कुत्ते को दे दो !
पेट भरा होने पर भैया
उसे कभी अवकाश भी दो
असल कामयाबी जीवन की
सहज सरल सादा जीवन हो
होता सूर्य है उत्तरायण
सुनहला है अब वातावरण
निकली है अब धूप धुंध से
क्षमा भाव अपनाते सज्जन
सहने की सामर्थ्य बढ़ा लो
असल कामयाबी जीवन की
सहज…
Added by Chetan Prakash on January 17, 2023 at 10:00pm — 2 Comments
अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नहीं है
है बर्फीली फज़ा जारी साज़ तो सूरज नहीं है !
मरें मुफ़लिस अभी ठंडी उन्हें घर क्या क़मी है
लगे हैं लाव लश्कर दर अमीरों क्या ग़मी है
अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नहीं है !
दरीचों पर जमी है बर्फ ठिठुरन हड्डियों है
है बिस्तर गर्म नेताओं के गरमी गड्डियों है
बुलाकर अफसरों को घर अभी फाइल पढ़ी है
है मौसम ये पकोड़ो का अभी दारू उड़ी है
गरीबों को लगे अब ठंड चढ़ती फुरफुरी…
Added by Chetan Prakash on January 6, 2023 at 9:00pm — No Comments
2122 1212 22
खुद ब खुद हो गया जुदा है ये
दिल हमारा तो मनचला है ये
गुम है दिल ये किसी पहेली में
और कई दिन से सिलसिला है ये
ज़िन्दगी का कोई सबूत नहीं
बस धड़कता सा हादसा है ये
बात करता नहीं कुछिक दिन से
" दिल से अपने हमें गिला है ये "
है समन्दर भी ये हरा अब तो
चांद पूनम तो ज़लज़ला है ये
बदहवासी रही है हावी दिल
भागता बेहिसी मरा है ये
आखिरी दांव…
ContinueAdded by Chetan Prakash on October 5, 2022 at 5:30pm — 1 Comment
1212 1122 1212 22 / 122
बहुत सी देर लगी आग दिल लगाने में
उन्होंने खेल जो खेला उसे उसे मिटाने में
अभी तो आप नहीं भूल पाए प्यार सनम !
लगेगा वक़्त अभी आग वो बुझाने में
वो रात कल भी तो गुज़री है भारी मुझ पर जाँ
अभी कोशिश मिरी बस ज़िन्दगी बनाने में
तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा हमें रुलाकर भी
कि शम'अ बुझ अभी जाती है आज़माने…
ContinueAdded by Chetan Prakash on September 19, 2022 at 3:30pm — 5 Comments
1222 1222 1222 1222
बह्रे हजज़ मुसम्मन सालिम
जो बोला है वही लिखती मेरा सम्मान है हिन्दी
है बिन्दी माँ के माथे सी पिता का मान है हिन्दी
तुम्हारी माँ अग्रजा मम शिखा का मान है हिन्दी
है सरकारी वो रोटी आज भोजन आन है हिन्दी
खड़ी बोली है हरियाणा कि दिल्ली प्रान है हिन्दी
न है अनजान कोई उससे मेरी शान है हिन्दी
कहूँ क्या आपसे साथी स्वयं भण्डार भाषा है
वो सुमधुर गीत फिल्मों के बड़ा…
ContinueAdded by Chetan Prakash on September 16, 2022 at 7:30pm — No Comments
ग़ज़ल
1222 1222 1222 122
रहे जिससे मरासिम थे वही अखबार निकला
मुसीबत है अभी जीवन निरा श्रृंगार निकला
शबे ग़म दिल मिरा टूटा रही वो आँख रोती
कई दिन हो गये सूरज न वो संसार निकला
अँधेरे अधखुली आँखों मुझे अब देखते हैं
बुरा हो इश्क़ तेरा यार वो अख़बार निकला
न कोई दोस्त है दुनिया न ही हमदम यहाँ है
जिसे गलहार समझा था अभी खूँख़्वार निकला
न हमजोली बचा है आज तो…
ContinueAdded by Chetan Prakash on September 12, 2022 at 8:30pm — No Comments
( 1 )
आ जाये दिल खुश हो जाये
चला जाय तो भादों आवे
चाकर बन पैरों गिर पसरा
क्या सखि साजन ? ना सखि भँवरा !
( 2 )
दादुर मोर पपीहा बोले
कोयल सी वो बोली बोले
समीर बहती है दिल-आँगन
क्या सखि साजन ? ना सखि सावन !
( 3 )
पोर- पोर में रस भर जावे
चहुँओर मुरलिया सी बाजे
खुशियों का नहीं जग में अंत
क्या सखि साजन ? ना सखि…
ContinueAdded by Chetan Prakash on September 4, 2022 at 3:36pm — No Comments
गज़ल
1212 1122 1212 22
वो जिसकी मैंने मदद की शरर पे बैठ गया
सितारा हो गया सबकी नज़र पे बैठ गया
गरीब जान के जिसकी कभी मदद की थी
वही ये शहर का बालक तो ज़र पै बैठ गया
वो बार-बार मुझे अपने घर बुलाता था
जो एक बार गया मैं तो दर पे बैठ गया
तुम्हारे जाने से पहले न कोई मुश्किल थी
लो फिर हुआ ये कि तूफाँ डगर पे बैठ गया
बदल गये हैं वो हालात ज़िन्दगी के अब
अगर कहूँ तो शनीचर ही सर पे बैठ…
Added by Chetan Prakash on August 26, 2022 at 4:00am — No Comments
गज़ल
221 2121 1221 212
उम्मीद अब नहीं कोई वो दीदावर मिले
बहतर खुुदा कसम वही चारागर मिले ( मतला )
लगता नहीं है दिल कोई तो हमसफर मिले
अब लौट आ कि हम सनम सारी उमर मिले
अनजान तुम नहीं हो कि मिलते नहीं कभी
कुछ कर सको तो तुम करो मुझको दर मिले
उलझन भरी हैं रातें बड़ी बेहिसी वो दिन
हो दोस्त कोई अपना सही रहगुज़र मिले
दिन- रात हो गये बड़े मुश्किल भी बढ़…
ContinueAdded by Chetan Prakash on August 9, 2022 at 11:30am — 1 Comment
गज़ल
221 2121 1221 212
अख़लाक पर मुहब्बत भरोसा रहा नहीं
हमदम रहा कोई कहाँ जानाँ हुआ नहीं
दिल जानता है तुझसे अभी प्यार भी कहाँ
जो बिक चुका है वो जहाँ तो मन बसा नहीं
लगता उन्हे नहीं है वो दरकार भारती
गर चाहिए है मुल्क तो मौसम रहा नहीं
गुलदस्ता हिन्दुस्तान है था और होगा भी
क़मज़र्फ था सदा वो तो भाई हुआ नहीं
औरंगजेब तेरा तो राणा हमारा है
मत खेल तू ज़मीर से…
Added by Chetan Prakash on June 30, 2022 at 10:00am — 1 Comment
घटा - घोप अन्धेर है, कहीं न पहरेदार ।
तक्षक बनता काल है, क्या होगा घर-बार ।। ( 1 )
+++++++++++++++++++++++++
नागफनी वन हो गये, जंगल ...नम्बरदार ।
बना कैक्टस मुँहलगा, फुदकता - बार बार ।। ( 2 )
++++++++++++++++++++++++++++++
रोशन जो दिखती नहीं, गाँव सखा तक़दीर ।
बुझा- बुझा सा मन हुआ, सोच रहा ताबीर ।। ( 3…
ContinueAdded by Chetan Prakash on March 27, 2022 at 12:30am — 2 Comments
स्वागत करो बसंत का, अब.. अनंग दरवेश।
बदन..सुलगने ..हैं लगे, खिल उठा परिवेश ।।
रथ सवार सूरज हुआ, बढ़ती ..आँगन ..धूप।
मकरंद बसा प्राण में, प्रतिपल प्रिया अनूप ।।
अलसाया सी डाल पर, उतर ..पड़ी है.. धूप।
कलियाँ मुस्काने लगीं, जगमग गाँव अनूप ।।
गंधायी ..अब है ..हवा, खिलने.. लगे.. प्रसून।
गश्त बढ़ गई भ्रमर की, कली लाल सी खून ।।
मौलिक व अप्रकाशित
प्रोफ. चेतन प्रकाश…
ContinueAdded by Chetan Prakash on February 8, 2022 at 9:22am — No Comments
221 2121 1221 212
अब आदमी में जोश का ज़ज्बा नहीं रहा
मौसम बहार का वो सुहाना नहीं रहा
हमको तुम्हारा तो सहारा नहीं रहा
वो दर्द ज़िन्दगी का अपना नहीं रहा
उम्मीद कब रही हमें इस ज़ीस्त से कभी
मंज़िल का जाँ कभी भी वो चहरा नहीं रहा
कोशिश बहुत की कोई हमदम कहाँ हुआ
इक दोस्त न मिला कभी साया नहीं रहा
धोका मिला जहाँ हमें वुसअत के नाम पर
सुन दोस्त ज़िन्दगी का निशाना नहीं…
ContinueAdded by Chetan Prakash on February 3, 2022 at 7:00pm — 1 Comment
उम्र गँवा दी लोमड़ी, उछल- कूद वनवास।
ईश साधना की नहीं, भजन हुआ सन्यास।।
दोहा कवि को साध्य है, मूर्ख सदैव असाध्य।
लंगड़ी जब भी मारता, गिरता ठोकर खाय।।
काव्य - धर्म है साधना, प्राण बसे मम आग ।
साधू - संगति चाहिए , तुलसी सम अनुराग।।
काव्य - कर्म जागृति जगत, हास्य-व्यंग्य है राग।
कविता - गंगा है सदा, नवरस का अनुराग।।
काव्यशास्त्र विलास कवि, पंडित को ही साध्य।
तप - काव्य विरल भाव…
ContinueAdded by Chetan Prakash on February 1, 2022 at 6:30pm — 5 Comments
हार का हाहाकार .....
ऐसा क्यों हो कि मेरी हार हो
लाख सच की मनुहार हो
आँखें बंद कर लूँ न ?
कह दूँ यह बहार नहीं
चाहे खूब हाहाकार हो....!
पर मेरी जय जयकार हो !
कह दूँ, वो मेरी माँ नहीं है
मैं उसका जाया नहीं हूँ,
बाप को पहले ही मार चुका हूँ
सच का हिसाब चुकता कर चुका हूँ
हरकारे एक नहीं कई, मेरे पास हैं ही.....
होने दो हल्ला....खूब खाओ गल्ला...
पर नाहक सच मत बोलो यार
झूठा हूँ…
ContinueAdded by Chetan Prakash on January 30, 2022 at 5:00pm — No Comments
विछोह मुझे मिलन लगता है.....!
जीना मुझे यज्ञ में आहुति
मरना गंगा जल लगता है
जब से होठ, छुए होठों से,
गाँव गुमा शहर वो लगता है
विछोह मुझे मिलन लगता है !
अथाह गहरा है समन्दर वो
मगर मोती सीप रहता है
पालनहार जानता सब कुछ,
रू में उसकी वो खुद रहता है
विछोह मुझे मिलन लगता है !
ग़ज़ल मुझे बाँसुरी कान्हा की
दिल वो अलगोझा लगता है
तेरे मेरे बोझ दुखों …
ContinueAdded by Chetan Prakash on January 1, 2022 at 12:23pm — No Comments
संगदिल फिर ज़िन्दगी है उससे टकराना भी क्या !
फोड़कर सर अपना यारो रोना-चिल्लाना भी क्या !!
कीमती आँसू हैं तेरे वो निशाँ जुल्म ओ सितम,
बंद दरवाजों के आगे सर को टकराना भी क्या !
कर खुदा की बन्दगी और एहतराम उसका कर ले,
लोग ही क़मज़र्फ हों गर उनको जतलाना भी क्या !
बढ़ रही तन्हाईयाँ है उम्र के बढ़ने के साथ,
खाली-खाली जीस्त है गर वो सर खुजलाना भी क्या !
नौंचनी हैं उनको लाशें क़ौम भी तो बाँटनी,
शहर सौदागर आये उनको…
Added by Chetan Prakash on October 29, 2021 at 6:30am — No Comments
संगदिल गर ज़िन्दगी है उससे टकराना भी क्या ।
फोड़कर सर अपना यारो रोना चिल्लाना भी क्या ।।
ज़िन्दगी गर है चुनौती मुँह छिपाकर जीना क्या ।
हाथ दो - दो होने दो फिर सच को झुठलाना भी क्या
कीमती आँसू हैं तेरे वो निशाँ जुल्म ओ सितम,
बंद दरवाजों के आगे सर वो फुड़वाना भी क्या ।
कर खुदा की बन्दगी और एहतराम उसका कर ले,
लोग ही क़मज़र्फ हैं गर उनको जतलाना भी क्या ।
नोंचनी लाशें हैं उनको कौम को है…
ContinueAdded by Chetan Prakash on October 10, 2021 at 7:25am — No Comments
1212 1122 1212 22 / 112
मेरे अपनों का ही खंजर मेरी तलाश में है ।
जिन्हें बनाया था अफसर मेरी तलाश में है ।।
जड़ों को सींच रहा हूँ शुरू से ओ बी ओ की,
नये आए हैं वो चाकर मेरी तलाश में हैं ।
जताते झूूठा वो हक़ जो ग़ज़ल की शोहरत पर,
उन्हीं के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है ।
बहुत गुमान है उनको तो जन्म के शहर का,
नगर का हूँ मैं तो रहबर मेरी तलाश में हैं ।
जहाँ में सच…
ContinueAdded by Chetan Prakash on August 24, 2021 at 7:00pm — 5 Comments
रहगुज़र को मेरी कारवाँ दे गया....
212 212 212 212
रहगुज़र को मेरी कारवाँ दे गया
वो खुदी को अभी पासवाँ दे गया
मुफलिसी वो बुरा ख्वाब थी ज़िन्दगी
था खुदा जात वो कहकशाँ दे गया
आँख भर आए है याद कर के उसे
वो खुदा था मुझे बागवाँ दे गया
ज़िन्दगी को रज़ा की जबाँ दे गया
रास्ता एक था दो जहाँ दे गया
जो बुरा ख्वाब होता मुझे नींद में
वो बदल कर नई दास्ताँ दे…
ContinueAdded by Chetan Prakash on August 7, 2021 at 6:00pm — No Comments
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