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Chetan Prakash's Blog (68)

गीत.... असल कामयाबी जीवन की

असल कामयाबी जीवन की

सहज सरल सादा जीवन हो



बचना होगा वासना लिप्सा

अतिशय कामना नहीं मन हो

चल सकता काम अगर दो रोटी

तो एक गाय कुत्ते को दे दो !

पेट भरा होने पर भैया

उसे कभी अवकाश भी दो

असल कामयाबी जीवन की

सहज सरल सादा जीवन हो

होता सूर्य है उत्तरायण

सुनहला है अब वातावरण

निकली है अब धूप धुंध से

क्षमा भाव अपनाते सज्जन

सहने की सामर्थ्य बढ़ा लो

असल कामयाबी जीवन की

सहज…

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Added by Chetan Prakash on January 17, 2023 at 10:00pm — 2 Comments

एक गीत

अजब मौसम हुआ है आज वो  सूरज नहीं है

है बर्फीली फज़ा जारी साज़ तो सूरज नहीं है !

मरें मुफ़लिस अभी ठंडी उन्हें घर क्या क़मी है

लगे हैं लाव लश्कर दर अमीरों  क्या ग़मी है

अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नहीं है !

दरीचों पर जमी है बर्फ ठिठुरन हड्डियों है

है बिस्तर गर्म नेताओं के गरमी गड्डियों है

बुलाकर अफसरों को घर अभी फाइल पढ़ी है

है मौसम ये पकोड़ो का अभी दारू उड़ी है

गरीबों को लगे अब ठंड चढ़ती फुरफुरी…

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Added by Chetan Prakash on January 6, 2023 at 9:00pm — No Comments

दिल से अपने हमें गिला है ये

2122   1212    22

खुद ब खुद हो गया जुदा है ये

दिल हमारा तो मनचला है ये

गुम है दिल ये किसी पहेली में

और कई दिन से सिलसिला है ये

ज़िन्दगी का कोई सबूत नहीं

बस धड़कता सा हादसा है ये

बात करता नहीं कुछिक दिन से

" दिल से अपने हमें गिला है ये "

है समन्दर भी ये हरा अब तो

चांद पूनम तो ज़लज़ला है ये 

बदहवासी रही है हावी दिल

भागता बेहिसी मरा है ये

आखिरी दांव…

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Added by Chetan Prakash on October 5, 2022 at 5:30pm — 1 Comment

ग़ज़ल : बहुत वो देर लगी आग दिल लगाने में

1212     1122     1212     22 / 122

 

बहुत  सी देर लगी आग दिल  लगाने  में 

उन्होंने खेल जो खेला उसे  उसे मिटाने में 

अभी तो आप नहीं भूल पाए प्यार सनम !

लगेगा वक़्त अभी आग वो  बुझाने  में 

वो रात कल भी तो गुज़री है भारी मुझ पर जाँ 

 अभी कोशिश मिरी बस ज़िन्दगी बनाने में

तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा हमें रुलाकर भी

कि शम'अ बुझ अभी जाती है आज़माने…

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Added by Chetan Prakash on September 19, 2022 at 3:30pm — 5 Comments

ग़ज़ल: : हिन्दी

1222     1222     1222     1222

बह्रे  हजज़  मुसम्मन सालिम 

जो बोला है  वही लिखती मेरा सम्मान है हिन्दी 

है बिन्दी माँ के  माथे सी पिता का मान है हिन्दी 

तुम्हारी माँ अग्रजा मम शिखा का मान है हिन्दी

है सरकारी वो रोटी आज भोजन आन है हिन्दी

खड़ी बोली है हरियाणा कि  दिल्ली प्रान है हिन्दी 

न है अनजान  कोई उससे मेरी शान है हिन्दी 

कहूँ क्या आपसे साथी स्वयं भण्डार भाषा है

वो सुमधुर गीत फिल्मों के बड़ा…

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Added by Chetan Prakash on September 16, 2022 at 7:30pm — No Comments

गज़ल

ग़ज़ल

1222 1222 1222 122

रहे जिससे मरासिम थे वही अखबार निकला

मुसीबत है अभी जीवन निरा श्रृंगार निकला

शबे ग़म दिल मिरा टूटा रही वो आँख रोती

कई दिन हो गये सूरज न वो संसार निकला

अँधेरे अधखुली आँखों मुझे अब देखते हैं

बुरा हो इश्क़ तेरा यार वो अख़बार निकला

न कोई दोस्त है दुनिया न ही हमदम यहाँ है

जिसे गलहार समझा था अभी खूँख़्वार निकला

न हमजोली बचा है आज तो…

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Added by Chetan Prakash on September 12, 2022 at 8:30pm — No Comments

कह मुकरियाँ

         ( 1 )

आ जाये दिल खुश हो जाये

चला जाय तो भादों आवे

चाकर बन पैरों गिर पसरा

क्या सखि  साजन ? ना सखि भँवरा !

           ( 2 )

दादुर मोर पपीहा बोले 

कोयल सी वो  बोली बोले 

समीर बहती है दिल-आँगन 

क्या सखि साजन ? ना सखि सावन !

           ( 3 )

पोर- पोर में रस भर जावे

चहुँओर मुरलिया सी बाजे

खुशियों का नहीं जग में अंत

क्या सखि साजन ? ना सखि…

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Added by Chetan Prakash on September 4, 2022 at 3:36pm — No Comments

गज़ल

गज़ल

1212 1122 1212 22

वो जिसकी मैंने मदद की शरर पे बैठ गया

सितारा हो गया सबकी नज़र पे बैठ गया

गरीब जान के जिसकी कभी मदद की थी

वही ये शहर का बालक तो ज़र पै बैठ गया

वो बार-बार मुझे अपने घर बुलाता था

जो एक बार गया मैं तो दर पे बैठ गया

तुम्हारे जाने से पहले न कोई मुश्किल थी

लो फिर हुआ ये कि तूफाँ डगर पे बैठ गया

बदल गये हैं वो हालात ज़िन्दगी के अब

अगर कहूँ तो शनीचर ही सर पे बैठ…

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Added by Chetan Prakash on August 26, 2022 at 4:00am — No Comments

गज़ल

गज़ल

221 2121 1221 212

उम्मीद अब नहीं कोई वो दीदावर मिले

बहतर खुुदा कसम वही चारागर मिले ( मतला )

लगता नहीं है दिल कोई तो हमसफर मिले

अब लौट आ कि हम सनम सारी उमर मिले

अनजान तुम नहीं हो कि मिलते नहीं कभी

कुछ कर सको तो तुम करो मुझको दर मिले

उलझन भरी हैं रातें बड़ी बेहिसी वो दिन

हो दोस्त कोई अपना सही रहगुज़र मिले

दिन- रात हो गये बड़े मुश्किल भी बढ़…

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Added by Chetan Prakash on August 9, 2022 at 11:30am — 1 Comment

गज़ल

गज़ल

221 2121 1221 212

अख़लाक पर मुहब्बत  भरोसा रहा नहीं

हमदम रहा कोई कहाँ जानाँ हुआ नहीं

दिल जानता है तुझसे अभी प्यार भी कहाँ

जो बिक चुका है वो जहाँ तो मन बसा नहीं

लगता उन्हे नहीं है वो दरकार भारती

गर चाहिए है मुल्क तो मौसम रहा नहीं

गुलदस्ता हिन्दुस्तान है था और होगा भी

क़मज़र्फ था सदा वो तो भाई हुआ नहीं

औरंगजेब तेरा तो राणा हमारा है

मत खेल तू ज़मीर से…

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Added by Chetan Prakash on June 30, 2022 at 10:00am — 1 Comment

पाँच दोहे

 घटा - घोप   अन्धेर  है, कहीं    न   पहरेदार ।

 तक्षक  बनता काल है, क्या  होगा  घर-बार ।। ( 1 )

+++++++++++++++++++++++++ 

 

नागफनी  वन हो गये, जंगल  ...नम्बरदार  ।

बना कैक्टस मुँहलगा, फुदकता - बार  बार ।।   ( 2 )

++++++++++++++++++++++++++++++

रोशन  जो  दिखती  नहीं, गाँव  सखा  तक़दीर  ।

बुझा- बुझा सा मन हुआ, सोच  रहा ताबीर  ।।  ( 3…

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Added by Chetan Prakash on March 27, 2022 at 12:30am — 2 Comments

दोहावली.... स्वागत करो बसंत का....

स्वागत करो बसंत का, अब.. अनंग दरवेश। 

बदन..सुलगने ..हैं लगे, खिल उठा परिवेश ।।

रथ सवार सूरज हुआ,  बढ़ती ..आँगन ..धूप। 

मकरंद  बसा प्राण में,  प्रतिपल प्रिया अनूप ।।

अलसाया सी डाल पर, उतर ..पड़ी  है.. धूप। 

कलियाँ  मुस्काने लगीं, जगमग गाँव अनूप ।।

गंधायी ..अब है ..हवा,  खिलने.. लगे.. प्रसून। 

गश्त बढ़ गई भ्रमर की, कली लाल सी खून ।।

मौलिक व अप्रकाशित 

प्रोफ. चेतन प्रकाश…

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Added by Chetan Prakash on February 8, 2022 at 9:22am — No Comments

ग़ज़ल......अब आदमी में जोश का ज़ज्बा नहीं रहा !

221     2121     1221     212

अब आदमी में जोश का ज़ज्बा नहीं रहा

मौसम  बहार का  वो सुहाना नहीं रहा 

हमको  तुम्हारा  तो सहारा  नहीं  रहा

वो  दर्द  ज़िन्दगी का अपना नहीं रहा

उम्मीद कब रही हमें इस ज़ीस्त से कभी

मंज़िल का जाँ कभी भी वो चहरा नहीं रहा

कोशिश बहुत की कोई हमदम कहाँ हुआ

इक दोस्त न मिला कभी साया नहीं रहा 

धोका मिला जहाँ हमें वुसअत के नाम पर 

सुन दोस्त ज़िन्दगी  का निशाना नहीं…

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Added by Chetan Prakash on February 3, 2022 at 7:00pm — 1 Comment

दोहा - छक्का

उम्र  गँवा  दी  लोमड़ी, उछल- कूद  वनवास। 

 ईश  साधना की नहीं, भजन हुआ सन्यास।।

दोहा  कवि को  साध्य है, मूर्ख सदैव असाध्य। 

लंगड़ी  जब  भी  मारता, गिरता ठोकर खाय।।

काव्य - धर्म है साधना, प्राण बसे मम आग ।

साधू - संगति  चाहिए , तुलसी सम अनुराग।।

काव्य - कर्म जागृति जगत, हास्य-व्यंग्य है राग।

कविता  -  गंगा   है    सदा, नवरस का अनुराग।।

काव्यशास्त्र  विलास  कवि, पंडित को ही साध्य। 

तप - काव्य विरल भाव…

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Added by Chetan Prakash on February 1, 2022 at 6:30pm — 5 Comments

कविता ...अतुकांत

हार का हाहाकार .....

ऐसा क्यों हो कि मेरी हार हो

लाख सच की मनुहार  हो

आँखें बंद  कर लूँ  न  ?

कह दूँ  यह बहार नहीं

चाहे खूब हाहाकार हो....!

पर मेरी जय जयकार  हो  !

कह दूँ, वो मेरी माँ नहीं है

मैं उसका जाया नहीं हूँ, 

बाप को पहले ही मार चुका हूँ

सच का हिसाब चुकता  कर चुका हूँ

हरकारे एक नहीं कई, मेरे पास हैं ही.....

होने दो हल्ला....खूब खाओ गल्ला...

पर नाहक सच मत बोलो यार

झूठा हूँ…

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Added by Chetan Prakash on January 30, 2022 at 5:00pm — No Comments

गीत ,, विछोह मुझे मिलन लगता है.......!

विछोह मुझे मिलन लगता  है.....!

जीना मुझे यज्ञ  में आहुति

मरना गंगा जल लगता  है 

जब से होठ, छुए होठों से,

गाँव गुमा शहर वो लगता है 

विछोह मुझे मिलन लगता है !

अथाह  गहरा है समन्दर वो

मगर  मोती सीप  रहता  है

पालनहार जानता सब कुछ,

रू में उसकी वो खुद रहता है

विछोह मुझे मिलन लगता है !

ग़ज़ल मुझे बाँसुरी कान्हा की

दिल वो अलगोझा  लगता  है 

तेरे    मेरे   बोझ   दुखों …

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Added by Chetan Prakash on January 1, 2022 at 12:23pm — No Comments

ग़ज़ल

संगदिल फिर ज़िन्दगी है उससे टकराना भी क्या !

फोड़कर सर अपना यारो रोना-चिल्लाना भी क्या !!

कीमती आँसू हैं तेरे वो निशाँ जुल्म ओ सितम,

बंद दरवाजों के आगे सर को टकराना भी क्या !

कर खुदा की बन्दगी और एहतराम उसका कर ले,

लोग ही क़मज़र्फ हों गर उनको जतलाना भी क्या !

बढ़ रही तन्हाईयाँ है उम्र के बढ़ने के साथ,

खाली-खाली जीस्त है गर वो सर खुजलाना भी क्या !

नौंचनी हैं उनको लाशें क़ौम भी तो बाँटनी,

शहर सौदागर आये उनको…

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Added by Chetan Prakash on October 29, 2021 at 6:30am — No Comments

ग़ज़ल: संगदिल गर ज़िन्दगी है उस से टकराना भी क्या ...!

संगदिल गर ज़िन्दगी  है उससे टकराना भी क्या ।

फोड़कर सर अपना यारो रोना चिल्लाना भी क्या ।।

ज़िन्दगी गर है चुनौती मुँह छिपाकर जीना क्या ।

हाथ  दो - दो होने  दो फिर सच को झुठलाना भी क्या 

कीमती आँसू हैं तेरे वो निशाँ जुल्म ओ सितम, 

बंद दरवाजों के आगे  सर वो फुड़वाना भी  क्या ।

कर खुदा की  बन्दगी  और एहतराम उसका  कर ले, 

लोग  ही क़मज़र्फ हैं गर उनको जतलाना भी  क्या ।

नोंचनी  लाशें हैं उनको कौम को है…

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Added by Chetan Prakash on October 10, 2021 at 7:25am — No Comments

ग़ज़ल

1212     1122     1212     22 / 112

मेरे  अपनों  का  ही खंजर मेरी तलाश में है ।

जिन्हें बनाया था अफसर मेरी तलाश में है ।।

जड़ों को सींच रहा हूँ शुरू से ओ बी ओ की,

नये  आए हैं  वो  चाकर  मेरी तलाश  में हैं ।

जताते झूूठा वो हक़ जो ग़ज़ल की शोहरत पर,

उन्हीं  के  हाथ  का  पत्थर  मेरी  तलाश में है ।

बहुत गुमान है उनको तो जन्म के शहर का,

नगर का हूँ  मैं तो रहबर  मेरी  तलाश  में हैं ।

जहाँ में सच…

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Added by Chetan Prakash on August 24, 2021 at 7:00pm — 5 Comments

ग़ज़ल

रहगुज़र को मेरी कारवाँ दे गया....

212     212     212     212

रहगुज़र  को  मेरी कारवाँ  दे गया

वो खुदी  को अभी पासवाँ दे गया

मुफलिसी वो बुरा ख्वाब थी ज़िन्दगी 

था खुदा जात वो कहकशाँ  दे  गया

आँख भर आए है याद कर के उसे

वो खुदा  था मुझे  बागवाँ  दे गया

ज़िन्दगी  को रज़ा की जबाँ दे गया

रास्ता  एक  था  दो  जहाँ  दे गया

जो बुरा ख्वाब  होता मुझे नींद में

वो बदल  कर नई दास्ताँ  दे…

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Added by Chetan Prakash on August 7, 2021 at 6:00pm — No Comments

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