तू दर्द से मिलें हो ये दौलत कहाँ कहाँ
रहती है प्यार को भी शिकायत कहाँ कहाँ
दुनिया बदल गई कोई हमको बता गया
मिलती है बोल सोच कि वहशत कहाँ कहाँ
जब अब बहा र हो न हमारे नसीब में
फिर और हम बता दो तिजारत कहाँ कहाँ
हम भी तलाश हार गये जो मिला नहीं
पाने को उस करी न इबादत कहाँ…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on July 30, 2017 at 9:50am — 1 Comment
विरासत (लघुकथा )
सुबह पढ़ी कहानी से महेंद्र बहुत प्रभावित हुए |
वह चाहते थे कि घर का हर सदस्य भी इसे पढ़ें क्यूंकि इस कहानी में लेखक ने जो बताने की कोशिश की है |
वे आज के दौर के बारे में है जो हमारी आने वाली जिंदगी को कैसे प्रभावित करेगी के बारे में है |
घर के सदस्य टेलीविज़न देख रहे हैं |
मगर सब से छोटी लड़की सौफे पे बैठी पढ़ रही है |
महेंद्र इस कहानी को पढ़ने के लिए, उसे देना चाह रहा है |
क्यूंकि के उसकी लाइब्रेरी में कई किताबें हैं, मगर वे सब…
Added by मोहन बेगोवाल on June 19, 2017 at 3:30pm — No Comments
महिंद्र की सेवानिवृत्ति पार्टी शुरू हो गई | विभाग के कर्मचारियों के साथ महिंद्र के करीब के रिश्तेदार भी आ कर हाल में बैठ गए | थोड़ी देर बाद साहिब भी आ गए | साहिब और कार्यालय के कर्मचारियों ने महिंद्र और उसकी पत्नी को आगे पड़ी कुर्सियों पे बिठाया और उनके गले में हार डाले और उनको गिफ्ट दिए |
इसी समय सब को भोजन परोसा गया और सभी ने खाना शुरू किया, समारोह के चलते, कुछ लोगों को महिंद्र के बारे में कुछ कहने के लिए क्रमवार बुलाया गया |
मगर सभी…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on May 28, 2017 at 6:02am — 4 Comments
गेट के सामने भीड़ इकठ्ठी हो रही है, कुछ लोग क्रोध से भर कार्यालय के अंदर जाने की कोशिश कर रहे हैं । द्वारपाल भीड़ को रोकने की कोशिश में नकाम हो रहा है।
प्रेस अपने वीडियो कैमरे के साथ कार्यालय तक पहुँच गई है, और पत्रकार कई तरह के सवाल पुछ रहे हैं जैसे “वार्ड नं ३ में होने वाली मौत के बारे आप क्या कहना चाहेंगा। आप बताएँ मौत कि लिए जिम्मेदार चिकित्सक पर क्या एकशन लिया गया है।“
"आप कैसे कह सकते हैं कि मौत के लिए चिकित्सक ही जिम्मेदार है ?" बड़े टेबल की दुसरी तरफ़ बैठे साहिब ने कहा। मैने…
Added by मोहन बेगोवाल on May 15, 2017 at 4:30pm — 6 Comments
“आंटी जी, अगर उस दिन आप ने मेरे सर पर हाथ न रखा होता तो पता नहीं मैं कहाँ होती”
“कीमत तो वो मेरी पहले ही लगा चुके थे,उस रोज़ तो बस पैसे देने ही आए थे ”।
“मुझ को तो कुछ पता ही नहीं चलने दिया था” ऋतू ये कहती जा रही थी।
“ये तो भला हो, मेरे साथ डांस पार्टी में काम करने वाली सुनीता का,
"उस बता दिया मुझको कि मालिक तो मेरे पैसे ले रहा हैं, कल तुम किसी और डांस पार्टी में काम करोगी "
"तब मुझे आप के पास तो आना ही था, आंटी जी"
“घर से तो अमली ने पहले ही…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on May 10, 2017 at 12:30pm — 8 Comments
लिस्ट में से नाम और पता लेकर अमर ने खुद को विजट पर जाने के लिए तैयार कर लिया मोटर साइकल स्टार्ट कर वो सलेमपुर की तरफ निकल पड़ा।
अपना प्रोग्राम उसने ऐसे तैयार किया था कि कम से कम तीन कैंसर पीड़ित मैंबर के किसी फैमली मैंबर से वह मिल सके ।
चलने से पहले लिस्ट क्रम में इक नंबर पर महिंद्र कौर के घर वालों की तरफ से दिए गए नंबर पर उसने फौन लगाया ऐसा करना इस लिए भी जरूरी था कि कोई घर मिल जाए खास करके वह आदमी…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on April 25, 2017 at 5:13pm — 1 Comment
हार गई जिंदगी
चार दिन से ऋचा ड्यूटी पर नहीं जा रही थी, बुखार के साथ शरीर में लाल्गी आने से परेशानी और बढ़ गई थी जिस कारण अब बिस्तर से उठकर चलना भी मुश्किल हो रहा था।
प्रशिक्षण दौरान पढ़ाया गया था कि अगर माता रानी की क्रोपी बढ़ी ऊम्र में हो जाए तो रोग जानलेवा भी हो सकता है ।
यह बात वह पति परमेशर कई बार बता चुकी थी, लेकिन अभी तक कोई जवाब उसके द्वारा नहीं मिल रहा था इक बार ऋचा ने कहा कि वह माँ के घर जा आती है, लेकिन सासू माँ ने इनकार कर दिया…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on April 24, 2017 at 5:00pm — 1 Comment
कारपोरेशन की गाड़ी का हूटर बजा और लड़के ने गाड़ी से उतर कर डोर बैल बजाईं, जब मैं घर से बाहर आया तो मल्होत्रा साहिब अपने घर में रखा कूड़ेदान लेकर बाहर आ उस लड़के की तरफ बढ़ रहे थे ।
"हमारा कूड़ा सुबह सुबह पुराना रेहड़ी वाला ही उठा कि ही ले जाता है" ।
क्योंकि आप तो बहुत देर से आते हैं ।
जब आते हैं तब कोई भी घर नहीं होता "मैने कहा, बच्चे स्कूल व् हम दोनों ड्यूटी जा चुके होते हैं ।
पर वह लड़का अभी भी गेट के पास ही…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on April 15, 2017 at 11:00am — 3 Comments
मिन्दो बस्ती की अकेली लडकी, जिस ने सिलाई कड़ाई के काम में सिखलाई प्राप्त कर घर में काम शुरू किया, मगर उतना काम न मिलता कि गुजरा हो सके, तभी उसने रविन्द्र की फैक्टरी में काम पर रखने के लिए विनती की, तो रविन्द्र ने उस से कुछ बातें की और उसे सिलाई के काम पर रख लिया I बाप तो बचपन में ही उन्हें छोड़ कर कहीं चला गया था I शुरू में तो उसे उनके मुताबिक काम करने व् समझने में समस्या आई, मगर जल्दी ही उसने खुद को बाकी लोगों के साथ अडजस्ट कर लिया और धीरे धीरे उसकी काम में दिलचस्पी बढने लगी तो उस ने…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on January 24, 2016 at 2:00pm — 4 Comments
पवन व अशोक बहुत अच्छे दोस्त, मगर जब भी कभी पवन, अशोक से समाज की किसी समस्या के बारे में बात होती तो उस का बना बनाया एक ही जवाब होता ।
“कि मेरे साथ राजनीती की बात न करो, सायद उस ने सोच रखा है कि जिन बातों का उस के घर, बच्चों व नौकरी से संबध नहीं, वो सभी बातें फजूल है ।“
अशोक को घर में भी ऐसी बहस फजूल सी लगती ।
पवन को बात शुरू करते ही अशोक कह देता और कोई बात करो , राजनीती नहीं , वरना वह शुरू होते ही विराम लगा देता,और कई बार वहाँ से उठ कर चला जाता ।
मगर पवन ने…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on December 12, 2015 at 10:30pm — 2 Comments
इलेक्शन के ऐलान के बाद राजनीती का बाज़ार गर्म होने लगा,गाँव में हर पार्टी अपने अपने पर तोलने लगी ।
सभी तरफ वोटर को लुभाने व उनका धर्म ज़ात व कीमत लगाने की तैयारी चल रही थी।
उस दिन मास्टर बजार में खड़ा कह रहा था “अब तो पहले जैसी राजनीती नहीं रही” ।
“अब तो साये की तरह साथ रहने वाले पार्टी वर्करों पर भी कोई यकीन नहीं रहा”
पास खड़े आदमी ने कहा “ऐसा क्यूँ”, तुम देखते नहीं रेलियों में भीड़ जितनी होती है, भीड़ को वोट में तब्दील करना एक टेढ़ी खीर बन गया है” । महिंद्र…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on December 8, 2015 at 6:30pm — 5 Comments
“बीबी जी, आज के बाद आप की कोठी में काम नहीं करूंगी” कांता ने काम खत्म करते हुए कहा ।
“क्या सभी घरों का काम छोड़ रही हो। ”
“नहीं” “तो मेरा क्यूँ ?” सरबजीत ने फिक्रमंदी जाहिर करते हुए कहा ।
“तुम बीच में काम कैसे छोड़ जाओगी, मुझे कोई प्रबंध करने का मौका तो दिया होता ।
” बस हम ने तो फैसला कर लिया है कि हम आप की कोठी में काम नहीं करेंगे”
बात को आगे बड़ाते हुए कांता ने कहा “हमने सोचा था कि आप पढ़े लिखे हैं, मगर अब पता चला कि पढाई ने तो बस आपकी सुरत ही बदली है,…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on December 3, 2015 at 10:30pm — 4 Comments
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Added by मोहन बेगोवाल on November 7, 2015 at 4:30pm — 1 Comment
शाम को देश के हर शहर की तरह मेरे शहर के बाज़ारों में भी बहुत भीड़ होती है I बाज़ार की सड़क के दोनों तरफ खड़ी गाड्यिां के बीच रह गई सड़क पर हर कोई तेज़ी से आगे निकलने की कोशिश करता दिखाई देता है Iचाहे वो पैदल,टू-व्हीलर रिक्शा,साईकल व कार पे सवार हो, आज मैं भी तेज़ी से हर तरह की भीड़ को चीरता हुआ, बस स्टॉप की और बढ़ रहा था,मगर मेरा शरीर साथ नहीं दे रहा था I इस लिए लोकल बस का इंतजार करना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था I थ्री- व्हीलर स्टॉप आते ही मैं रुक गया I…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on November 4, 2015 at 2:30pm — 5 Comments
घर से निकलते समय मुझे ये पता ही न रहा कि मैने पुरानी चप्पल डाली है | थोड़ी दूर चलने के बाद चप्पल टूट गई, इसी दुबिधा में कि घर वापस जाऊं या आगे,मैं टूटे चप्पल के साथ पैर घसीटते हुए आगे बढ़ गया | अचानक मेरा ध्यान सड़क के किनारे बैठे जूतियाँ गांठने वाले पर पड़ी, उसके नजदीक जा मैने चप्पल आगे बढ़ा दी |
" पांच रुपए लगेंगे " उसने नजरें चप्पल की और डालते हुए कहा |"
कोई बात नहीं " आप इसे ठीक कर दो |,
मैने उसकी आवाज़ पहचानते हुए थोडा सोच पे जोर देते हुए कहा |
"…
Added by मोहन बेगोवाल on November 3, 2015 at 1:00am — 8 Comments
"जल्दी करो भाई, देर हो हो रही मुझे , आज तुझे छोड़, तेरी माँ को अस्पताल भी दिखा कर फिर ड्यूटी जाऊँगा ” महिंद्र ने नवीन की तरफ देखते हुए कहा । मुश्किल से दो घंटे की छुट्टी मिली थी ,जल्दी चलें, तीनों बाहर आए और मोटर साईकल पर सवार हो घर से निकल पड़े, अभी चोंक पर आ के रुके तो ट्रैफिक पुलिस के मुलाज़िम ने रोक कर एक तरफ मोटर साईकल खड़ा करके कागज़ दिखाने के लिए कहा, तब महिंद्र ने धीमी आवाज़ से कहा “मुलाज़िम हूँ । बीवी ठीक नहीं है इसे अस्पताल दिखाने जा रहें हैं ।” मगर ट्रैफिक पुलिस के मुलाज़िम…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on October 7, 2015 at 9:30pm — 2 Comments
उलटी गंगा
बात जब तक घर में थी, सभी परिवार के मैंबर उसे समझा रहे थे । ये तुम गलत कर रहें हो ,रौशनी का ख्याल हमें पहले रखना चाहिए था, न कि अब हमसाया के घर की तरफ खिड़की रख कर । मगर वह अपनी फौजियों सी ज़िद छोड़ नहीं रहा था ।
पड़ोसी तो इस कि बारे पहले ही विरोध दर्ज करवा चुके थे, “क्योंकि कि बिल्डिंग के पीछे कोई अधिकारित रास्ता न होने की वजह से अपना हक भी नहीं बनता है” उसकी घर वाली ने कहा। पड़ोसी के पास अब क़ानूनी करवाई कि सिवाए कोई चारा नहीं रहा था । पर फिर…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on October 4, 2015 at 7:30pm — 3 Comments
Added by मोहन बेगोवाल on September 10, 2015 at 8:30pm — 4 Comments
२ १ २ २ १ १ २ २ १ १ २ २ २ २
याद तेरी को ऐसे दिल में छुपा रक्खा है ।
राह जिस पे चले उस को भी भूला रक्खा है ।
लोग सो जाए हमें नींद न आती है अब ,
रात कैसा तेरा अब साथ निभा रक्खा है ।
क्यूँ बता दी हमें उसकी ये कहानी तुमने ,
जो रहा…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on September 5, 2015 at 4:30pm — 4 Comments
आज उस के चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी । परनीत को लगा जैसे सपना पूरा हो रहा हो । परिवार में ख़ुशी और उदासी दोनों एक साथ नजर आई। पहले जब वो बगैर वीज़ा लोटा तो कई दिन वह उदास रहा था,उसे लगा शायद वह जा न पाऐगा, मगर ऐजेंट ने हौसला देते हुए पूरा यकीन दिलाया था कि बैंड भी पूरे और खाते में बनती रकम भी जमा हो गई है । पर इस बार वीज़े के साथ जाने की टिकट मिल गई । जैसी हवा चली हर कोई , अब तो पूरे एवन्यू में कोई ऐसा घर नहीं जिस में परनीत की उम्र का कोई लड़का हो । परनीत के ज्यादातर साथी भी स्टूडेंट वीज़ा से बाहर…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on September 3, 2015 at 9:00pm — 6 Comments
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