For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मोहन बेगोवाल's Blog (55)

ग़ज़ल

तू  दर्द से मिलें  हो ये  दौलत  कहाँ कहाँ                     

रहती है प्यार को  भी  शिकायत कहाँ कहाँ

             

दुनिया  बदल  गई  कोई हमको  बता गया                    

मिलती है बोल सोच कि वहशत कहाँ  कहाँ

             

जब  अब   बहा र हो न  हमारे  नसीब  में                   

फिर और  हम बता दो तिजारत कहाँ कहाँ

                    

हम भी तलाश हार  गये  जो     मिला नहीं                   

पाने    को  उस करी न  इबादत कहाँ…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on July 30, 2017 at 9:50am — 1 Comment

विरासत (लघुकथा )

   

विरासत (लघुकथा )

सुबह पढ़ी कहानी से महेंद्र बहुत प्रभावित हुए |

वह चाहते थे कि घर का हर सदस्य भी इसे पढ़ें क्यूंकि इस कहानी में लेखक ने जो बताने की कोशिश की है |

वे आज के दौर के बारे में है जो हमारी आने वाली जिंदगी  को कैसे प्रभावित करेगी के बारे में है |

घर के सदस्य टेलीविज़न देख रहे हैं |

मगर सब से छोटी लड़की सौफे पे बैठी पढ़ रही है |

महेंद्र इस कहानी को पढ़ने के लिए, उसे देना चाह रहा है |

क्यूंकि के उसकी लाइब्रेरी में कई किताबें हैं, मगर वे सब…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on June 19, 2017 at 3:30pm — No Comments

झूठ का साया(लघुकथा)

                       

महिंद्र की सेवानिवृत्ति पार्टी शुरू हो गई | विभाग के कर्मचारियों के साथ महिंद्र के करीब के रिश्तेदार भी आ कर हाल में  बैठ गए | थोड़ी देर बाद साहिब  भी आ गए | साहिब और कार्यालय के कर्मचारियों ने महिंद्र और उसकी पत्नी को आगे पड़ी कुर्सियों पे बिठाया और उनके गले में हार डाले और उनको गिफ्ट दिए |

इसी समय सब को भोजन परोसा गया और सभी ने खाना शुरू किया, समारोह के चलते, कुछ लोगों को महिंद्र के बारे में कुछ कहने के लिए क्रमवार बुलाया गया |

मगर सभी…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on May 28, 2017 at 6:02am — 4 Comments

ड्रामा और हकीकत(लघुकथा)

गेट के सामने भीड़ इकठ्ठी हो रही है, कुछ लोग क्रोध से भर कार्यालय के अंदर जाने की कोशिश कर रहे हैं । द्वारपाल भीड़ को रोकने की कोशिश में नकाम हो रहा है।

प्रेस अपने वीडियो कैमरे के साथ कार्यालय तक पहुँच गई है, और पत्रकार कई तरह के सवाल पुछ रहे हैं जैसे “वार्ड नं ३ में होने वाली मौत के बारे आप क्या कहना चाहेंगा। आप बताएँ मौत कि लिए जिम्मेदार चिकित्सक पर क्या एकशन लिया गया है।“

"आप कैसे कह सकते हैं कि मौत के लिए चिकित्सक ही जिम्मेदार है ?" बड़े टेबल की दुसरी तरफ़ बैठे साहिब ने कहा। मैने…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on May 15, 2017 at 4:30pm — 6 Comments

बंद दरवाज़े (लघुकथा )

“आंटी जी, अगर उस दिन आप ने मेरे सर पर हाथ न रखा होता तो पता नहीं मैं कहाँ होती”

“कीमत तो वो मेरी पहले ही लगा चुके थे,उस रोज़ तो बस पैसे देने ही आए थे ”।

“मुझ को तो कुछ पता ही नहीं चलने दिया था”  ऋतू ये कहती जा रही थी।

“ये तो भला हो, मेरे साथ डांस पार्टी में काम करने वाली सुनीता का,

 "उस बता दिया मुझको  कि  मालिक तो मेरे पैसे ले रहा  हैं, कल तुम किसी और डांस पार्टी में काम करोगी "

  "तब मुझे आप के पास तो आना ही था, आंटी जी" 

 “घर से तो अमली ने  पहले ही…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on May 10, 2017 at 12:30pm — 8 Comments

लिस्ट में नाम (लघुकथा)

                                                       

 

लिस्ट में से नाम और पता लेकर अमर ने खुद को विजट पर जाने के लिए तैयार कर लिया मोटर साइकल स्टार्ट कर वो सलेमपुर की तरफ निकल पड़ा।

अपना प्रोग्राम उसने ऐसे तैयार किया था कि कम से कम तीन कैंसर पीड़ित मैंबर के किसी फैमली मैंबर से वह मिल सके ।

चलने से पहले लिस्ट क्रम में इक नंबर पर महिंद्र कौर के घर वालों की तरफ से दिए गए नंबर पर उसने फौन लगाया ऐसा करना इस लिए भी जरूरी था कि कोई घर मिल जाए खास करके वह आदमी…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on April 25, 2017 at 5:13pm — 1 Comment

हार गई जिंदगी (लघुकथा)

  

हार गई जिंदगी

चार दिन से ऋचा ड्यूटी पर नहीं जा रही थी, बुखार के साथ शरीर में लाल्गी आने से परेशानी और बढ़ गई थी जिस कारण अब बिस्तर से उठकर चलना भी मुश्किल हो रहा था।

प्रशिक्षण दौरान पढ़ाया गया था कि अगर माता रानी की क्रोपी बढ़ी ऊम्र में हो जाए तो रोग जानलेवा भी हो सकता है ।

यह बात वह पति परमेशर कई बार बता चुकी थी, लेकिन अभी तक कोई जवाब उसके द्वारा नहीं मिल रहा था इक बार ऋचा ने कहा कि वह माँ के घर जा आती है, लेकिन सासू माँ ने इनकार कर दिया…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on April 24, 2017 at 5:00pm — 1 Comment

भीख और हक (लघुकथा)

कारपोरेशन की गाड़ी का हूटर बजा और लड़के ने गाड़ी से उतर कर डोर बैल बजाईं, जब मैं घर से बाहर आया तो मल्होत्रा ​​साहिब अपने घर में रखा कूड़ेदान लेकर बाहर आ उस लड़के की तरफ  बढ़ रहे थे ।

"हमारा कूड़ा सुबह सुबह पुराना रेहड़ी वाला ही उठा कि ही ले जाता है" ।

क्योंकि आप तो बहुत देर से आते हैं ।

जब आते हैं तब कोई भी घर नहीं होता "मैने कहा, बच्चे स्कूल व् हम दोनों ड्यूटी जा चुके होते हैं ।

पर वह लड़का अभी भी गेट के पास ही…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on April 15, 2017 at 11:00am — 3 Comments

सम्मान हो इनाम(lलघुकथा)

मिन्दो बस्ती की अकेली लडकी, जिस ने सिलाई कड़ाई के काम में सिखलाई प्राप्त कर घर में काम शुरू किया, मगर उतना काम न मिलता कि गुजरा हो सके, तभी उसने रविन्द्र की फैक्टरी में काम पर रखने के लिए विनती की, तो रविन्द्र ने उस से कुछ बातें की और उसे सिलाई के काम पर रख लिया I बाप तो बचपन में ही उन्हें छोड़ कर कहीं चला गया था I शुरू में तो उसे उनके मुताबिक काम करने व् समझने में समस्या आई, मगर जल्दी ही उसने खुद को बाकी लोगों के साथ अडजस्ट कर लिया और धीरे धीरे उसकी काम में दिलचस्पी बढने लगी तो उस ने…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on January 24, 2016 at 2:00pm — 4 Comments

पहल (लघुकथा)

पवन व अशोक बहुत अच्छे दोस्त, मगर जब भी कभी पवन, अशोक से समाज की किसी समस्या के बारे में बात होती तो उस का बना बनाया एक ही जवाब होता ।

“कि मेरे साथ  राजनीती की बात न करो, सायद उस ने सोच रखा है कि जिन बातों का उस के घर, बच्चों व नौकरी से संबध नहीं, वो सभी बातें फजूल है ।“  

अशोक को घर में भी ऐसी बहस फजूल सी लगती ।

पवन को बात शुरू करते ही अशोक कह देता और कोई  बात करो , राजनीती नहीं , वरना वह शुरू होते ही विराम लगा देता,और कई बार  वहाँ से उठ कर चला जाता ।  

मगर पवन ने…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on December 12, 2015 at 10:30pm — 2 Comments

पलट गई बाज़ी (लघुकथा)

इलेक्शन के ऐलान के बाद राजनीती का बाज़ार गर्म होने लगा,गाँव में हर पार्टी अपने अपने पर तोलने लगी ।

सभी तरफ  वोटर को लुभाने व उनका धर्म ज़ात व कीमत लगाने की तैयारी चल रही थी।

उस दिन मास्टर बजार में खड़ा कह रहा था “अब तो पहले जैसी राजनीती  नहीं रही” ।

“अब तो साये की तरह साथ रहने वाले पार्टी वर्करों पर भी कोई यकीन नहीं रहा”

पास खड़े आदमी ने कहा “ऐसा क्यूँ”, तुम देखते नहीं रेलियों में भीड़ जितनी  होती है, भीड़ को वोट में तब्दील करना एक टेढ़ी खीर बन गया है” । महिंद्र…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on December 8, 2015 at 6:30pm — 5 Comments

जीत-हार (लघुकथा)

 “बीबी जी, आज के बाद आप की कोठी में  काम नहीं करूंगी” कांता ने काम खत्म करते हुए कहा ।

“क्या सभी घरों का काम छोड़ रही हो। ”

“नहीं” “तो मेरा क्यूँ ?” सरबजीत  ने फिक्रमंदी जाहिर करते हुए कहा ।

“तुम बीच में काम कैसे छोड़ जाओगी, मुझे कोई प्रबंध करने का मौका तो दिया होता ।

” बस हम ने तो फैसला कर लिया है कि हम आप की कोठी में काम नहीं करेंगे”

बात को आगे बड़ाते  हुए कांता ने कहा “हमने सोचा था कि आप पढ़े लिखे हैं, मगर अब पता चला कि पढाई ने तो बस आपकी सुरत ही बदली है,…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on December 3, 2015 at 10:30pm — 4 Comments

समाज का जहर (लघुकथा)

कल की बात याद आते ही एक तो उसका दिल करा उस की कोठी मे काम के लिए न जाए, मगर पेट की भूख उस को आज फिर उसकी  कोठी तक खींच लाई थी |    

"कोई ऐसे भी तो नहीं कह देता कि उसके रिश्तेदार की मौत हो गई| " 

मगर जब बीबी ने कहा," रत्ती ! तुम झूठ बोल रही हो", |

“तो उसे लगा, क्या कोई मौत पर भी झूठ बोल सकता है…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on November 7, 2015 at 4:30pm — 1 Comment

, लक्ष्मण- रेखा(लघुकथा)

शाम को देश के हर शहर की तरह मेरे शहर के बाज़ारों में भी बहुत भीड़ होती है I बाज़ार की सड़क के दोनों तरफ खड़ी गाड्यिां के बीच रह गई  सड़क पर हर कोई तेज़ी से आगे निकलने की कोशिश करता दिखाई देता है Iचाहे वो  पैदल,टू-व्हीलर रिक्शा,साईकल व कार पे सवार हो, आज मैं  भी तेज़ी से  हर तरह की भीड़ को चीरता  हुआ, बस स्टॉप की और बढ़ रहा था,मगर मेरा शरीर साथ नहीं दे रहा था I इस लिए लोकल बस का इंतजार करना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था I  थ्री- व्हीलर स्टॉप आते ही मैं रुक गया I…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on November 4, 2015 at 2:30pm — 5 Comments

अमीरी, लघुकथा

घर से निकलते समय मुझे ये पता ही न रहा कि मैने पुरानी चप्पल डाली है | थोड़ी दूर चलने के बाद चप्पल टूट गई, इसी दुबिधा में कि घर वापस जाऊं या आगे,मैं टूटे चप्पल के साथ पैर घसीटते हुए आगे बढ़ गया | अचानक मेरा ध्यान सड़क के किनारे बैठे जूतियाँ गांठने वाले पर पड़ी, उसके नजदीक जा मैने चप्पल आगे बढ़ा दी |

" पांच रुपए लगेंगे " उसने नजरें चप्पल की और डालते हुए कहा |"

कोई बात नहीं " आप इसे ठीक कर दो |,

मैने उसकी आवाज़ पहचानते हुए थोडा सोच पे जोर देते हुए कहा |

"…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on November 3, 2015 at 1:00am — 8 Comments

लघुकथा तीसरी सवारी

"जल्दी करो भाई, देर हो  हो रही मुझे , आज तुझे छोड़, तेरी माँ को अस्पताल  भी दिखा कर फिर ड्यूटी जाऊँगा ” महिंद्र ने नवीन की तरफ देखते हुए कहा । मुश्किल से  दो घंटे की छुट्टी मिली थी ,जल्दी  चलें, तीनों बाहर आए और  मोटर साईकल पर सवार हो  घर से निकल पड़े, अभी चोंक पर आ के रुके तो ट्रैफिक पुलिस के मुलाज़िम ने रोक कर एक तरफ मोटर साईकल खड़ा करके कागज़ दिखाने के लिए कहा, तब महिंद्र ने  धीमी आवाज़ से  कहा “मुलाज़िम हूँ । बीवी ठीक नहीं है इसे अस्पताल दिखाने जा रहें हैं ।”  मगर ट्रैफिक पुलिस के मुलाज़िम…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on October 7, 2015 at 9:30pm — 2 Comments

उलटी गंगा (लघुकथा )

  

उलटी गंगा

बात जब तक  घर में  थी, सभी परिवार के मैंबर  उसे समझा रहे थे । ये तुम  गलत कर रहें हो ,रौशनी का ख्याल हमें पहले रखना चाहिए था, न कि अब हमसाया के  घर की तरफ खिड़की रख कर । मगर वह अपनी फौजियों सी  ज़िद छोड़ नहीं  रहा था ।

पड़ोसी तो इस कि बारे पहले ही विरोध दर्ज करवा चुके थे, “क्योंकि कि बिल्डिंग के पीछे कोई अधिकारित रास्ता न होने की वजह से अपना हक भी नहीं बनता है” उसकी घर वाली ने कहा।  पड़ोसी  के  पास अब क़ानूनी करवाई कि सिवाए कोई चारा नहीं रहा था ।  पर फिर…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on October 4, 2015 at 7:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल

१ २ १ २ १ २ १ २ १ २ १ २ २ २
नही आये जो तुम बना लिए बहाना है |
हमें उमीद में तेरी शमाँ जलाना है |
हसीं लबों का मुस्कराना गुम गया तेरा,
हमें तलाश फिर वही उसे सजाना है |
अभी नई कहानी जिन्दगी लिखें तेरी,
ये फैसला करेंगे कब इसे सुनाना है |
चलो उसी से कोई बात अंधेरें की हो,
बता देगा कहाँ चिराग़ ये जलाना है |
ये खुदकशी नहीं लगे हुई कोई साजिस,
बहार जिंदगी, न मौत उस बुलाना है |

Added by मोहन बेगोवाल on September 10, 2015 at 8:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल

२ १ २ २ १ १ २ २ १ १ २ २ २ २

याद तेरी को ऐसे दिल में छुपा रक्खा है 

राह जिस पे चले उस को भी भूला रक्खा है 

लोग सो जाए हमें नींद न आती है अब ,

रात कैसा तेरा अब साथ निभा रक्खा है 

क्यूँ बता दी हमें उसकी ये कहानी तुमने ,

जो  रहा…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on September 5, 2015 at 4:30pm — 4 Comments

आखिरी सलाम (लघुकथा)

आज उस के चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी । परनीत को लगा जैसे सपना पूरा हो रहा हो । परिवार में ख़ुशी और उदासी दोनों एक साथ नजर आई। पहले जब वो बगैर वीज़ा लोटा तो कई दिन वह उदास रहा था,उसे लगा शायद वह जा न पाऐगा, मगर ऐजेंट ने हौसला देते हुए पूरा यकीन दिलाया था कि बैंड भी पूरे और खाते में बनती रकम भी जमा हो गई है । पर इस बार वीज़े के साथ जाने की टिकट मिल गई । जैसी हवा चली हर कोई , अब तो पूरे एवन्यू में कोई ऐसा घर नहीं जिस में परनीत की उम्र का कोई लड़का हो । परनीत के  ज्यादातर साथी भी स्टूडेंट वीज़ा से बाहर…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on September 3, 2015 at 9:00pm — 6 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
8 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
11 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
12 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
15 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
20 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service