For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Satish mapatpuri's Blog (95)

त्यागपत्र (कहानी)



त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

अंक 5 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

-------------- अंक - 6  ---------------

दोषी लोगों को सज़ा दिलाने के लिए प्रबल प्रताप सिंह कृतसंकल्प थे, किन्तु राजनीतिक हलकों में उनकी पहुँच अच्छी थी. पार्टी अध्यक्ष उमाकांत ने सिंह साहेब से स्वयं मिलकर कहा - ' आपने जिन लोगों को दोषी करार दिया…

Continue

Added by satish mapatpuri on November 4, 2011 at 2:00am — 2 Comments

त्यागपत्र (कहानी)

त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

अंक 4 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

-------------- अंक - 5 ---------------

... एक दिन सुबह-सुबह प्रबल बाबू ने समाचार पत्र उठाया ही था किउन्हें सांप सूंघ गया... " नकली दवा के कारण सात लोगों की मौत "

खबर ने तो उन्हें झकझोर कर रख दिया. समाचार के विस्तार में लिखा था -- " सरकारी अस्पताल…

Continue

Added by satish mapatpuri on November 3, 2011 at 3:00am — 2 Comments

त्यागपत्र (कहानी)

त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

-------------- अंक - 4 --------------- '

अंक 3 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

मैं कुछ समझा नहीं ..' प्रबल बाबू के माथे पर बल पड़ गए थे.  उनकी इस असहज स्थिति का लाभ उठाने में उमाकान्त जी ने कोई कसर नहीं छोड़ी. अपने सपाट से चेहरे पर कुटिल मुस्कान लाते हुए उन्होंने तत्क्षण कहा -…

Continue

Added by satish mapatpuri on November 2, 2011 at 2:00am — 3 Comments

त्यागपत्र (कहानी)



त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

अंक 2 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

-------------- अंक - 3 ---------------

प्रबल बाबू को अध्यक्ष महोदय की बातें सुनकर कुछ खटका सा लगा और उन्होंने बीच में ही उन्हें टोकते हुए कहा -  'शायद, इस प्रसंग पर बात करने के लिए यह उचित समय नहीं…

Continue

Added by satish mapatpuri on November 1, 2011 at 2:00am — 5 Comments

त्यागपत्र (कहानी)

त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी.

अंक 1 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

.............. अंक -- 2 .....................

राज्य के विधायकों में पी. पी. सिंह का एक अलग ही स्थान था. अपनी स्पष्टवादिता एवं निर्भीकता के लिए वे विख्यात थे.सत्तापक्ष के विधायक होने के बावजूद भी सरकार की गलत नीतियों की आलोचना वे सार्वजनिक रूप में किया…

Continue

Added by satish mapatpuri on October 30, 2011 at 11:30pm — 5 Comments

त्यागपत्र (कहानी)

त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

................ अंक -- एक ...................

'प्रबल प्रताप ज़िन्दावाद ' के नारे से पंडाल गूंज उठा. पी. पी.सिंह के नाम से जाने जानेवाले प्रबल प्रताप सिंह के मंत्री बनने के उपलक्ष में इस समारोह का आयोजन हुआ था. जनता - जनार्दन के बीच उनकी अच्छी -खासी लोकप्रियता थी. उनके दर्शनार्थ भीड़ उमड़ पड़ी थी. गिरधरपुर निर्वाचन -क्षेत्र की जनता - जनार्दन को नाज़ था कि वो प्रदेश को एक मंत्री देने का गौरव हासिल करने जा रहे हैं.सच ही तो है…

Continue

Added by satish mapatpuri on October 30, 2011 at 3:00am — 5 Comments

दिवाली का रूप बदल गया

जब से दिल दिवाल हुआ है, दिवाली का रूप बदल गया.

जब से नियति मलिन हुई है, अर्द्धरात्रि में धूप निकल गया.

पर पीड़ा पर होने वाली, धड़कन जानें कहाँ गयी?

संवेदना- चेतना - निष्ठा, मानवता अब कहाँ गयी ?

जब से नफ़रत- क्रोध बसा है, इंसानों का रूप बदल गया.

जब से दिल दिवाल हुआ है, दिवाली का रूप बदल गया.

रीति - रिवाज़ में लोग  बाग. अब छिपकर सेंध लगाते हैं.

पटाखों के बीच, गोलियों का भी शोर मिलाते हैं.

जब से इसका चलन हुआ है, पर्व - त्यौहार का रूप बदल…

Continue

Added by satish mapatpuri on October 26, 2011 at 2:43pm — No Comments

दीपावली हार्दिक शुभकामनाएं

कीजिये कामना सबके अपने मिले.

सबकी आँखों को सुन्दर से सपने मिले.

सारी धरती पे खुशियों की बरसात हो.

ईद का दिन - दिवाली की हर रात हो.

OBO परिवार के सभी सदस्यों को दीपावली हार्दिक शुभकामनाएं.

Added by satish mapatpuri on October 26, 2011 at 2:53am — No Comments

होना चाहिए

 

हुस्न है तो हुस्न का सिंगार होना चाहिए.

 

है किसी से इश्क तो इज़हार होना चाहिए.

 

गर क़यामत आ भी जाए तो भी कोई ग़म नहीं.

 

बस नज़र में खुबसूरत प्यार होना चाहिए.

 

जीतने के बाद गिरगिट सा बदलते रंग जो.

 

उनको वापस लाने का अधिकार होना चाहिए.

 

ताज़ और तख़्त का कब का ज़माना लद गया.

 

आज तो जनहित का ही सरोकार होना चाहिए.

 

चाहते हैं हमसे वो जुड़ना…
Continue

Added by satish mapatpuri on October 25, 2011 at 12:53am — 1 Comment

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

---------------अंतिम अंक   --------------------

"कौन है?" मैंने हड़बड़ाकर पूछा .



"साहब ,दरवाजा खोलिए, गजब हो गया ." रामरतन के स्वर में घबड़ाहट थी. मैंने दौड़कर…
Continue

Added by satish mapatpuri on September 26, 2011 at 10:00pm — 2 Comments

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - छः  ---------------------

बम सदृश धमाका हुआ  ......................मुझे कानों पर पर विश्वास नहीं हो रहा था पर यथार्थ हर हालत में यथार्थ ही होता है. मैं शालू का प्रस्ताव सुनकर अवाक था .

"शालू ,  जानती हो तुम क्या कह रही हो ?"

"अच्छी तरह. आपने ही तो कहा था कि बार-बार कहा जाने वाला झूठ भी सच हो जाता है . आज सब लोग मुझे आपकी प्रेमिका और महबूबा कह रहे हैं . मेरे नाम के साथ आपका नाम जोड़…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 24, 2011 at 10:20pm — No Comments

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

 लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - पांच ---------------------

उसे देखते ही शालू तीर की तरह निकल गयी

सुबह संजय से मालूम हुआ कि रात में शालू को बेहरहमी से पीटा गया है . समाज की संकीर्णता देखकर मेरा मन क्षुब्ध हो उठा .किसी लड़की का किसी लड़के से मिलने का एक ही मतलब निकालने वाला यह समाज सजग एवं सचेत रहने के नाम पर भयंकर लापरवाही का परिचय देता रहता है . शालू पर , जो अभी यौवन के पड़ाव से कुछ दूर ही थी , उसकी मां ने सुरक्षा के ख्याल…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 23, 2011 at 9:06pm — 2 Comments

नहीं आऊंगी

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - चार ---------------------

 

मैं सोच नहीं पा रहा था की इस नयी परिस्थिति का किस तरह सामना करूँ . शालू जाने लगी तो मैनें उसे पकड़ कर पुनः बिठा दिया .

" शालू ,मुझे गलत मत समझो. मेरे दिल में तुम्हारे लिए अब भी वहीँ स्नेह है, पर मां की आज्ञा तुम्हें माननी चाहिए."

शालू का मेरे यहाँ आना-जाना अब काफी कम हो गया था. वह मेरे यहाँ तब ही आती थी जब उसकी मां और मधु या तो घर से बाहर हों या सो गयी…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 22, 2011 at 10:56pm — 2 Comments

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

 

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - तीन  ---------------------

वह बड़ी हो चुकी थी. सदैव की भाँती एक दिन वह आकर मेरे बगल में बैठ गयी . मैं कुछ परेशान था .

"मुझसे नाराज है अंकल?" उसने पूछा .

"नहीं तो . सर में हल्का दर्द है ."  मैंने यूं ही उसे टालने के ख्याल से…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 21, 2011 at 11:26pm — 3 Comments

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

                   लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - दो ---------------------

तब मैं बी. ए. पार्ट -1 का छात्र था जब वर्माजी मेरे मकान में बतौर किरायेदार रहने आये थे . वे पिताजी का एक सिफारिशी खत अपने साथ लाये थे कि वर्मा जी मेरे आज्ञाकारी छात्र रहे हैं, बगलवाले फ्लैट में इनके रहने की व्यवस्था करा देना . मुझे भला क्यों आपत्ति होती . वर्माजी रहने लगे और मैं…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 20, 2011 at 11:00pm — No Comments

नहीं आऊँगी (कहानी )

नहीं आऊँगी (कहानी )

           लेखक - सतीश मापतपुरी

----------------- अंक - एक --------------------

मैं जब कभी बरामदे में बैठता हूँ , अनायास मेरी निगाहें उस दरवाजे पर जा टिकती है, जिससे कभी शालू निकलती थी और यह कहते हुए मेरे गले लग जाती थी - " अंकल, आप बहुत अच्छे हैं."

         कई साल गुजर गए उस  मनहूस घटना को बीते हुए. वक़्त ने उस घटना को अतीत का रूप तो दे दिया, किन्तु ...............  मेरे लिए वह घटना आज भी ................. शालू की यादें शायद कभी भी मेरा पीछा…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 20, 2011 at 12:43am — No Comments

मानसरोवर -- 7

 मतिमान सोचा करते हैं, चिंता भीरु करते हैं.

क्षणिक मोद में जो इठलाते, वही विपति से डरते हैं.

                जिस तरह गोधुलि का होना, निशा - आगमन का सूचक है.

               जैसे छाना जगजीवन का, पावस का सूचक है.

               वैसे ही सुख के पहले, दुःख सदैव आता है.

             जो मलिन होता दुःख से, सुख से वंचित रह जाता है.

सुख - दुःख सिक्के के दो पहलू , भेद मूर्ख ही करते हैं.

मतिमान सोचा करते हैं, चिंता भीरु करते हैं.

            दुःख…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 18, 2011 at 3:45am — 2 Comments

मुझे देख के एक लड़की ................

मुझे देख के एक लड़की, बस हौले -हौले हँसती है I

प्रेम - जाल मैं डाल के थक गया, पर कुड़ी नहीं फंसती हैI

 

        रहती है मेरे पड़ोस में वो,    कुछ चंचल कुछ शोख है वो I

        ना गोरी - ना काली है, सांवली है मतवाली है I

        झील सी गहरी आँखें हैं , ज़ुल्फ़ यूँ काली रातें हैं I

        लहरों जैसी बल खाती, दुल्हन जैसी शरमाती I

        चेहरा चाँद है पूनम का, होंठ सुमन है उपवन का I

        नाम है उसका नील कमल, वो है ज़िंदा ताजमहल…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 12, 2011 at 12:00am — 3 Comments

मैं शिक्षक हूँ.......... (शिक्षक -दिवस पर विशेष )

शिक्षा ही सबसे उत्तम धन,और ना धन कोई दूजा है.
शिक्षक होते वन्दनीय, और गुरु -श्रद्धा ही पूजा है.
जिस समाज में शिक्षक का,सम्मान नहीं होता है.
उस समाज में उन्नति और, उत्थान नहीं होता…
Continue

Added by satish mapatpuri on September 6, 2011 at 12:30am — 5 Comments

आँख

  चेहरा ये कैसा होता गर आँख नहीं होती.

दिल कैसे फिर धड़कता गर आँख नहीं होती.

रक़ीब से भी बदतर हो जाते कभी अपने.

मालूमात कैसे होता गर आँख नहीं होती.

कितना हसीन है दिल चाक करने वाला.

एहसास कैसे होता गर आँख नहीं होती.

कुर्सी के नीचे बर्छी आखिर रखी है क्यूँ कर.

तहक़ीकात कैसे होती गर आँख नहीं होती.

मिलती औ झुकती - उठती फिर चार…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 1, 2011 at 12:08am — 10 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
23 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
23 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service