For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Neeraj Neer's Blog (77)

जो छला जाए कभी विश्वास मत देना

मौत देना मौत का अहसास मत देना, 
जो छला  जाए कभी विश्वास मत देना ।

पंख दे पाओ नहीं गर तो वही अच्छा
सामने मेरे खुला आकाश मत देना।

दश्त देना, धूप देना , गरमियाँ देना
ऐसे में लेकिन खुदाया प्यास मत देना ।

है हमे मंजूर अंधेरा उम्र भर का
जुगनुओं से ले मुझे प्रकाश मत देना ।
---------------
नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neeraj Neer on May 27, 2015 at 10:28pm — 11 Comments

क्या होगा तब

जब करूंगा अंतिम प्रयाण

ढहते हुए भवन को छोडकर

निकलूँगा जब बाहर

किस माध्यम से होकर गुज़रूँगा ?

वहाँ हवा होगी या निर्वात होगा?

होगी गहराई या ऊंचाई में उड़ूँगा

मुझे ऊंचाई से डर लगता है

तैरना भी नहीं आता

क्या यह डर तब भी होगा

मेरा हाथ थामे कोई ले चलेगा

या मैं अकेले ही जाऊंगा

चारो ओर होगा प्रकाश

या अंधेरे ने मुझे घेरा होगा

मुझे अकेलेपन और अंधकार से भी डर लगता है

क्या यह डर तब भी होगा?

भय तो विचारों से होते हैं उत्पन्न

क्या…

Continue

Added by Neeraj Neer on May 3, 2015 at 6:47pm — 12 Comments

बाराती

मौसा, मौसी, ताऊ, फूफा

दुल्हे के सब साथी

बज रहे हैं गाजे बाजे

नाच रहे बाराती.

मेट्रो सी चमक रही

दिल्ली वाली भाभी

चक्करघिन्नी सी घूमे अम्मा

टांग कमर में चाभी

घुटनों का दर्द छुपाये

देख सभी को मुस्काती



नई सूट पहन कर भैया,

नाश्ते का पैकेट बाँट रहा

अपने लिए भी कोई

कटरीना, करीना छांट रहा

लहंगा चोली पहन के छोटी

घूमती है इतराती



जनक जीवन की मुश्किल बेला

विदा हो रही सीता

भीतर में कुछ टूट रहा…

Continue

Added by Neeraj Neer on April 25, 2015 at 12:03pm — 14 Comments

हॉकी खेलने जाती लड़कियां

पैरों में एक जोड़ी हवाई चप्पल,

और छोटी छोटी ख़्वाहिशों से चमकती आँखों  के साथ

हाथों में स्टिक लिए

कुछ लड़कियां हॉकी  खेलने जाती है

भागती है गेंद के पीछे

गेंद में छुपा बैठा है पेट भर खाने का सुख

पहाड़ के उस पार

जंगलों के बीचों बीच नंगे पाँव

एक वृद्ध आदिवासी दंपति

सखुआ के पत्तों को हटाकर

पौधों की जड़ें खोद

रात के खाने का इंतजाम करता है।

उसने कभी हॉकी का स्टिक नहीं देखा है

पर वह सपने देखता है

गेंद  से…

Continue

Added by Neeraj Neer on April 4, 2015 at 1:30pm — 7 Comments

ऊर्ध्वारोहण

एक सत्यान्वेषी ,

मुक्ति का अभिलाषी

था उर्ध्वारोही।

कर रहा था आरोहण

पर्वत की दुर्लंघ्य ऊचाईयां का।

पर्वत से उतरती नदी ने कहा :

मैदानों में तो जीवन कितना सरल , सुगम है,

यहाँ जीवन है कितना दुष्कर।

अविचलित रहकर इसपर

दिया उसने उत्तर

मैंने भीतर जाकर देखा है,

वाह्य सौंदर्य तो धोखा है।

मैदानों में जीवन सरल है,

पर राह लक्ष्य की वक्र है।

जीवन रथ मे लगे

कर्म फल के दुष्चक्र हैं।

मैं राह सीधी लेना चाहता हूँ।

इसलिए नीचे…

Continue

Added by Neeraj Neer on February 24, 2015 at 8:48am — 12 Comments

कहाँ गए वो लोग

कहाँ गए वो लोग

औरों के गम में रोने वाले

संग दालान में सोने वाले।

साँझ ढले मानस का पाठ

सुनने और सुनाने वाले ।

होती थी जब बेटी विदा

पड़ोस की चाची रोती थी

फूल खिले किसी के आँगन

मिलकर सोहर गाने वाले

पाँव में भले दरारें थी

पर निश्छल निर्दोष हंसी

शादी के महीनो पहले

ब्याह के गीत गाने वाले

पूजा हो या कार्य प्रयोजन

पूरा गाँव उमड़ता था

किसी के घर विपत्ति हो

सामूहिक रूप से लड़ता था…

Continue

Added by Neeraj Neer on October 19, 2014 at 3:45pm — 8 Comments

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ : नीरज नीर

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ,

नापना गगन वितान चाहता हूँ ।

फुनगियों पर अँधेरा है

आसमान में पहरा है।

जवाब है जिसको देना

वो हाकिम ही बहरा है।

तमस मिटे नव विहान चाहता हूँ।

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,

नापना गगन वितान चाहता हूँ।

अंबर कितना पंकील है,

धरा पर लेकिन सूखा है।

दल्लों के घर दूध मलाई,

मेहनत कश पर भूखा है।

पेट भरे ससम्मान चाहता हूँ।

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,

नापना गगन वितान चाहता…

Continue

Added by Neeraj Neer on October 16, 2014 at 9:07am — 14 Comments

पानी को तलवार से काटते क्यों हो ? /नीरज नीर

पानी को तलवार से काटते क्यों हो ?

हिन्दी हैं हम सब, हमे बांटते क्यों हो ?

चरखे पे मजहब की पूनी चढ़ा कर के ,

सूत नफरत की यहाँ काटते क्यों हो ?

हो सभी को आईना फिरते दिखाते ,

आईने से खुद मगर भागते क्यों हो ?

गर करोगे प्यार , बदले  वही पाओगे,

वास्ता मजहब का दे, मांगते क्यों हो ?

भर लिया है खूब तुमने तिजोरी तो ,

चैन से सो, रातों को जागते क्यों हो ?

दाम कौड़ियों के हो बेचते सच को

रोच परचम झूठ का…

Continue

Added by Neeraj Neer on September 6, 2014 at 11:48am — 16 Comments

कांच की दीवार :नीरज कुमार नीर

तुम्हारे और मेरे बीच है

कांच की एक मोटी दीवार

जो कभी कभी अदृश्य प्रतीत होती है

और पैदा करती है विभ्रम

तुम्हारे मेरे पास होने का

मैं कह जाता हूँ अपनी बात

तुम्हें सुनाने की उम्मीद में

तुम्हारे शब्दों का खुद से ही

कुछ अर्थ लगा लेता हूँ.

क्या तुम समझ पाती होगी

मैं जो कहता हूँ

क्या मैं सही अर्थ लगाता हूँ

जो तुम कहती हो ..

कांच की इस दीवार पर

डाल दिए हैं कुछ रंगीन छीटें

ताकि विभ्रम की स्थिति में

मुझे…

Continue

Added by Neeraj Neer on June 23, 2014 at 8:00pm — 16 Comments

प्यार और बेड़ियाँ

एक पुरुष करता है
अपनी स्त्री  से बहुत प्यार.
उसने डाल दी है
उसके पांवों में बेड़ियाँ.
वह उसे खोना नहीं चाहता.
स्त्री भी करती है
उससे बेपनाह मुहब्बत.
वह भी उसे खोना नहीं चाहती.
पर वह नहीं डाल पाती है
उसके पैरों में बेड़ियाँ.
बेड़ियाँ मिलती हैं बाजार में
खरीदी जाती हैं पैसों के बल पर.


नीरज कुमार नीर ..
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neeraj Neer on June 22, 2014 at 3:00pm — 15 Comments

न जाने कब चाँद निकलेगा

जब सूरज चला जाता है

अस्ताचल की ओट में

और चाँद नहीं निकलता है.

दिखती है उफक पर

पश्चिम दिशा की ओर

लाल लकीरें.

पूरब में काली आँखों वाला राक्षस

खोलता है मुंह

लेता है जोर की साँसे

चलती है तेज हवाएं.

लाल लकीरें डूब जाती हैं,

फिर सब हो जाता है प्रशांत.

मैं पाता हूँ स्वयं को

एक अंध विवर में

हो जाता हूँ विलीन

तम से एकाकार .

खो जाता है मेरा वजूद.

न जाने कब चाँद निकलेगा.

..नीरज कुमार नीर .

मौलिक एवं…

Continue

Added by Neeraj Neer on June 12, 2014 at 5:10pm — 14 Comments

दो हाथ की दुनियां

लकीरें  गहरी हो गयी है ,

बुधुआ मांझी के माथे की .

स्याह तल पर उभर आये कई खारे झील .

सिमट गया  है आकाश का सारा विस्तार

उसके आस पास. 

दुनियां हो गयी है दो हाथ की.

 

मिट्टी का घर, छोटे बच्चे, बैल, बकरियां और

खेत का छोटा सा टुकड़ा

इससे आगे है एक मोटी दीवार

बिना खेत और घर के कैसे जियेगा?

इससे जुदा क्या दुनियां हो सकती है ?

  

उनकी जमीन के नीचे ही क्यों निकलता है कोयला ?

पर  वह  किस पर करे…

Continue

Added by Neeraj Neer on June 4, 2014 at 7:57pm — 16 Comments

बहेलिया और जंगल में आग .. :नीरज

जब जब जागी उम्मीदें ,

अरमानों ने पसारे पंख.

देखा बहेलियों का झुंड, 

आसपास ही मंडराते हुए,

समेट  लिया खुद को

झुरमुटों के पीछे.

अँधेरा ही भाग्य बना रहा.

हमारे ही लोग,

हमारे जैसे शक्लों वाले,

हमारे ही जैसे विश्वास वाले,

करते रहे बहेलियों का गुण गान.

उन्हें बताते रहे हमारी कमजोरियों के बारे में

बहेलिये भी हराए जा सकते हैं.

कभी सोचा ही नहीं .

उनकी शक्ति प्रतीत होती थी अमोघ.

जंगल में लगी आग में…

Continue

Added by Neeraj Neer on May 23, 2014 at 9:36am — 23 Comments

खारे पानी के जीव

जब सूरज डूब जायेगा
सब कुछ समा जाएगा
महासागर की अतल गहराइयों में.
पर्वत का तुंग शिखर भी
नहीं बचेगा तृण मात्र
हड्डियों तक का नहीं रहेगा अस्तित्व.
जीवित रहेंगे फिर भी
खारे पानी के जीव ..
...............
नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neeraj Neer on May 15, 2014 at 9:09am — 24 Comments

मेरी अगर माँ ना होती

मेरी अगर माँ ना होती

मैं कहाँ से होता,

किसकी अंगुली पकड़ के चलता

किसका नाम लेकर रोता.

चलना फिरना हँसना गाना

तेरी भांति माँ मुस्काना

प्रेम के एक एक आखर

पग पग संस्कार सिखलाना

गोदी में सिर रखकर आखिर

निर्भीक कहाँ मैं सोता .

दुनियांदारी के कथ्य अकथ्य

जीवन यात्रा के सत्य असत्य

रंगमंच के सारे पक्ष

कुछ प्रत्यक्ष, कुछ नेपथ्य

राजा रानी  के किस्सों संग

मन माला में कौन पिरोता..

ये जो वायु, आती जाती…

Continue

Added by Neeraj Neer on May 10, 2014 at 10:07am — 14 Comments

हम फिर से गुलाम हो जायेंगे

हमारे जीवन मूल्य

सरेआम नीलाम हो जायेंगें

हम फिर से गुलाम हो जायेंगें ..

स्वतंत्रता का काल स्वर्णिम

तेजी से है बीत रहा

हासिल हुआ जो मुश्किल से

तेजी से है रीत रहा.

धरी रह जाएगी नैतिकता,

आदर्श सभी बेकाम हो जाएँगे .

हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..

कहों ना ! जो सत्य है.

सत्य कहने से घबराते हो

सत्य अकाट्य है , अक्षत

छूपता नहीं छद्मावरण से

जो प्राचीन है , धुंधला,

गर्व उसी पर करके बार बार दुहराते हो.

टूटे…

Continue

Added by Neeraj Neer on April 23, 2014 at 8:30am — 10 Comments

क्यों गाती हो कोयल : नीरज नीर

क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल

है पिया मिलन की आस

या बीत चुका मधुमास

वियोग की है वेदना

या पारगमन है पास

मत जाओ न रह जाओ यह छोड़ अम्बर भूतल

क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल



तू गाती तो आता

यह वसंत मदमाता

तू आती तो आता

मलयानिल महकाता

तू जाती तो देता कर जेठ मुझे बेकल

क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल



कलि कुसुम का यह देश

रह बदल कोई वेष

सुबह सबेरे आना

हौले से तुम गाना…

Continue

Added by Neeraj Neer on April 19, 2014 at 8:30pm — 9 Comments

स्वप्न और सत्य /नीरज नीर

कभी कभी खो जाता हूँ ,

भ्रम में इतना कि 

एहसास ही नहीं रहता कि 

तुम एक परछाई हो..

पाता हूँ तुम्हें खुद से करीब 

हाथ बढ़ा कर छूना चाहता हूँ.

हाथ आती है महज शुन्यता .

स्वप्न भंग होता है ..

पर सत्य साबित होता है

क्षणभंगुर.

स्वप्न पुनः तारी होने लगता है.

पुनः आ खड़ी होती हो

नजरों के सामने .. 

नीरज कुमार नीर 

मौलिक एवं प्रकाशित 

Added by Neeraj Neer on April 16, 2014 at 8:07am — 13 Comments

मेरे जीवन के मधुबन में : गीत /नीरज नीर

सुगंध बनकर आ जाओ तुम

मेरे जीवन के मधुबन में

प्रेम सिंचित हरी वसुंधरा

पल पल में जीवन महकाओ

परितप्त ह्रदय के मरुतल पर

मेघा दल बन कर छा जाओ

बस जाओ न प्रतिबिम्ब बनकर

मेरे जीवन के दर्पण में.

सुगंध बनकर आ जाओ तुम

मेरे जीवन के मधुबन में ..

तुझ से ही है मेरा होना

तुझ से मिलकर हँसना रोना

तुम चन्दा , मैं टिम टिम तारा

अर्पण तुझ पर जीवन सारा

तुझ से दूर रहूँ मैं कैसे

आसक्त बंधा हूँ बंधन में

सुगंध बनकर आ जाओ…

Continue

Added by Neeraj Neer on April 9, 2014 at 10:01am — 14 Comments

गाँव , मसान एवं गुडगाँव

गाँव की फिजाओं में

अब नहीं गूंजते

बैलों के घूँघरू ,

रहट की आवाज.

नहीं दिखते मक्के के खेत

और ऊँचे मचान .

उल्लास हीन गलियां

सूना दृश्य

मानो उजड़ा मसान.

नहीं गूंजती  गांवों में

ढोलक की थाप पर

चैता की तान

गाँव में नहीं रहते अब

पहले से बांके जवान.

गाँव के युवा गए सूरत, दिल्ली और

गुडगांव

पीछे हैं पड़े

बच्चे , स्त्रियाँ, बेवा व बूढ़े

गाँव के स्कूलों में शिक्षा की जगह

बटती है खिचड़ी.

मास्टर साहब…

Continue

Added by Neeraj Neer on April 6, 2014 at 12:30pm — 26 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service