सदियों रहा गुलाम है ये आम आदमी
Added by ajay sharma on April 25, 2013 at 9:30pm — 8 Comments
प्यासा था मैं कुछ बूंदों का, कब सागर भर पीना चाहा,
बस चाहा था दो पल जीना, कब जीवन भर जीना चाहा,
जग को होगा स्वीकार नहीं, ये अपना मिलन मैं शंकित था,
रिश्तों सा कुछ माँगेगा ये प्रमाण हमसे मैं परिचित था,
पर था मुझको विश्वास कभी छोड़ेगा ये जड़ता अपनी,
लेकिन निकला ये क्रूर बहुत दिखला दी निष्ठुरता अपनी,
तुम क्यों विकल्प हो गयी मेरा तुमको ही क्यों चुनना चाहा,
भावुक मन का मैं बोझ उठा कब तक बोलो चलता रहता,
जो गरल बन गया जीवन रस कब तक बोलो पीता…
ContinueAdded by ajay sharma on April 17, 2013 at 11:30pm — 7 Comments
लाख चेहरों को छिपाते हैं, छिपाने वाले,
तू सबको पहचान ही लेता है, बनाने वाले |
कौन ठोकर पे है किसको सलाम करना है,
इल्म हर बात का रखते हैं ज़माने वाले |
जब कही सर भी छिपाने की जगह न मिली,
खूब पछताए मेरे घर को , जलाने वाले |
सच्ची बातें नहीं मरती हैं कभी सच है,
सच्चे इंसान हो पर, सच को, सुनाने वाले |
अपने चेहरे की खो देते हैं वो पहचान "अजय"
हर किसी शख्स को आइना, बनाने वाले |
मौलिक एवं अप्रकाशित …
Added by ajay sharma on January 17, 2013 at 11:00pm — 2 Comments
ज़माने को सरल सीधे , नहीं चेहरे सुहाते है
हैं अब दर्पण वही जिनको , नहीं श्रृंगार भाते हैं
Added by ajay sharma on January 13, 2013 at 11:51pm — 7 Comments
जब हुई रुसवा तरन्नुम से ग़ज़ल इस ज़िन्दगी की
आंसुयों ने नज़्म लिखी रख दिया उनवान पानी
आइनों से शर्त रख दी मुस्कराहट की लबों पे
इसलिए झूठी ग़मों की कर रहा मैं तर्जुमानी
और भी अब बढ गयी दुश्वारियां मेरे सफ़र की
पत्थरों को ढूँढती फिरती मेरी किस्मत दीवानी
गर ये नादाँ सब्र होती तो मुनासिब था "अजय" …
Added by ajay sharma on January 7, 2013 at 11:00pm — 3 Comments
चाँद सितारों से लड़ना आसान नहीं
क्या होगा अब हश्र कोई अनुमान नहीं
वक़्त निभाएगा अपना दायित्व "अजय "
मेरे हांथों में अब कोई सामान नहीं................
.
जो बांटा करता है सबको जीवन रस ,
पीने को बस गरल मिला केवल उसको
जो पथ पर तेरे फूलों का बना बिछौना ,
काँटों का इक सेज मिला केवल उसको
कैसी हैं हम सन्तति , हम पूत कहा के ,
बचा सके इक जननी का सममान नहीं
वक़्त निभाएगा अपना दायित्व "अजय "
मेरे हांथों में अब कोई सामान नहीं…
Added by ajay sharma on December 31, 2012 at 12:30am — 4 Comments
मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का, तुम रेखा मनमानी |
मैं ठहरा पोखर का जल, तुम हो गंगा का पानी ||
मैं जीवन की कथा-व्यथा का नीरस सा गद्यांश कोई इक |
तुम छंदों में लिखी गयी कविता का हो रूपांश कोई इक |
मैं स्वांसों का निहित स्वार्थ हूँ , तुम हो जीवन की मानी ||
धूप छाँव में पला बढा मैं विषम्तायों का हूँ सहवासी |
तुम महलों के मध्य पली हो ऐश्वर्यों की हो अभ्यासी |
मैं आँखों का खारा संचय , तुम हो वर्षा अभिमानी ||
विपदायों, संत्रासों से मेरा अटूट अनुबंध रहा…
ContinueAdded by ajay sharma on December 27, 2012 at 10:30pm — 4 Comments
बदल गयी नीयति दर्पण की चेहेरो को अपमान मिले हैं !
निष्ठायों को वर्तमान में नित ऐसे अवसान मिले हैं !!
शहरों को रोशन कर डाला गावों में भर कर अंधियारे !
परिवर्तन की मनमानी में पनघट लहूलूहान मिले हैं !!
चाह कैक्टसी नागफनी के शौक़ जहाँ पलते हों केवल
ऐसे आँगन में तुलसी को जीवन के वरदान मिले हैं !!
भाग दौड़ के इस जीवन में , मतले बदल गए गज़लों के
केवल शो केसों में सजते ग़ालिब के दीवान मिले हैं !!
गीत ग़ज़ल की देह तौलते अक्सर सुनने वाले देखा !…
Added by ajay sharma on December 24, 2012 at 11:00pm — 4 Comments
शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |
शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ ||
सूरज की आँखों में कोहरे की चुभन रही
धुप के पैरो में मेहंदी की थूपन रही
शर्माती शाम आई छल गयी बाजारों को
समझ गए रिक्शे भी भीड़…
Added by ajay sharma on December 22, 2012 at 10:30pm — 3 Comments
Added by ajay sharma on December 13, 2012 at 10:30pm — 5 Comments
Added by ajay sharma on December 13, 2012 at 10:00pm — 3 Comments
खुशियों ने ऊँचे दामों की , फिर पक्की दूकान लगायी
Added by ajay sharma on December 10, 2012 at 11:12pm — 6 Comments
थकी हुयी शतरंज का, मैं पिटा हुआ इक दांव हो गया
Added by ajay sharma on December 3, 2012 at 10:30pm — 1 Comment
पेट के कहने में फिर हम आ गए
पीठ पे ढ़ोने शहर , हम आ गए
माँ ,बहन , भाई , पिता रिश्तें सभी
छोड़ कर गाँव का घर हम आ गए -----------------
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ऑफिस का रिक्शा पापा का और मदिर वो घंटा - घंटी
अम्मा की हर बात रटी थी हमको बरसों पंक्ति पंक्ति …
Added by ajay sharma on December 3, 2012 at 9:30pm — 1 Comment
कर्म के ही हल सदा रखती है कन्धों पे नियति
Added by ajay sharma on November 26, 2012 at 12:00am — 3 Comments
तुम भी हो चुप- चुप , और मैं भी हूँ मौन /
Added by ajay sharma on November 19, 2012 at 11:22pm — 2 Comments
मेरे कमरें के केलेंडर पर नया इतवार आया
लग रहा है बाद अरसा इक नया त्यौहार आया
तंग जेबें और झोला देख कर बाज़ार में
कस दिया जुमला किसी ने देखिये "इतवार आया"
झह दिनों की व्यस्तता की धूप से झुलसी हुई
सूखती सी टहनियों में रक्त का संचार आया
छुट्टियो में भी खुलेंगें कारखानें और दफ्तर
हांफता सा ये खबर लेकर सुबह अखबार आया
मौन कमरों में खिली इन आहटों की धूप से
लग रहा है अजय घर में कोई पुराना यार आया
Added by ajay sharma on November 18, 2012 at 10:30pm — 1 Comment
सिमट के रह गयी किताबों में ज़रुरत मेरे बच्चों की
लूट के ले गयीं ये तालिमें फुर्सत मेरे बच्चों की
खेल खिलौनें सैर सपाटें किताबों की बातें हैं
दुबक के रह गयी दीवारों में ज़न्नत मेरे बच्चों की
पकड़ के अँगुली जब वो मेरी मुझसे आगे आगे चलते
मुझको भली लगती है ऐसी हरकत मेरे बच्चों की
मेरी उम्र का बोझ उठाये नन्हे नन्हे कन्धों पर
कहने को मासूम दिखे है हिम्मत मेरे बच्चों की
Added by ajay sharma on November 14, 2012 at 10:30pm — 2 Comments
बौने अब आसमान हो गए ,
कौए हंस सामान हो गए
जिसको देख आइना डरता था पहले
अब वे देखो दर्पण के अरमान हो गए
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जिन्हें तनिक से हवा लगे तो ,…
Added by ajay sharma on November 13, 2012 at 11:00pm — No Comments
आग का दरिया नंगो पैरों करना पार कहाँ तक अच्छा
Added by ajay sharma on November 7, 2012 at 7:00pm — 1 Comment
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