For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ajay sharma's Blog (71)

होता रहा नीलाम है ये आम आदमी

सदियों रहा गुलाम है ये आम आदमी 

होता रहा नीलाम है  ये आम आदमी 


रोता है बिलखता है जाता है  बहल फिर
 बच्चों सा ही मासूम है  ये आम आदमी …
Continue

Added by ajay sharma on April 25, 2013 at 9:30pm — 8 Comments

प्यासा था मैं कुछ बूंदों का ...

प्यासा था मैं कुछ बूंदों का, कब सागर भर पीना चाहा,

बस चाहा था दो पल जीना, कब जीवन भर जीना चाहा,

जग को होगा स्वीकार नहीं, ये अपना मिलन मैं शंकित था,

रिश्तों सा कुछ माँगेगा ये प्रमाण हमसे मैं परिचित था,

पर था मुझको विश्वास कभी छोड़ेगा ये जड़ता अपनी,

लेकिन निकला ये क्रूर बहुत दिखला दी निष्ठुरता अपनी,

तुम क्यों विकल्प हो गयी मेरा तुमको ही क्यों चुनना चाहा,

भावुक मन का मैं बोझ उठा कब तक बोलो चलता रहता,

जो गरल बन गया जीवन रस कब तक बोलो पीता…

Continue

Added by ajay sharma on April 17, 2013 at 11:30pm — 7 Comments

हर किसी शख्स को आइना , बनाने वाले ....................

लाख चेहरों को छिपाते हैं, छिपाने वाले, 

तू सबको पहचान ही लेता है, बनाने वाले |



कौन ठोकर पे है किसको सलाम करना है, 

इल्म हर बात का रखते हैं ज़माने वाले |



जब कही सर भी छिपाने की जगह न मिली, 

खूब पछताए मेरे घर को , जलाने वाले |



सच्ची बातें नहीं मरती हैं कभी सच है, 

सच्चे इंसान हो पर, सच को, सुनाने वाले |

 

अपने चेहरे की खो देते हैं वो पहचान "अजय"

हर किसी शख्स को आइना, बनाने वाले |



मौलिक एवं अप्रकाशित …

Added by ajay sharma on January 17, 2013 at 11:00pm — 2 Comments

थकन से चूर मुझसे एक दिन सप्ताह ने बोला

ज़माने को सरल सीधे , नहीं चेहरे सुहाते है 

हैं अब दर्पण वही जिनको , नहीं श्रृंगार भाते हैं 

 
कभी सौगंध पर इक , था चलन सौ बार मरने का 
मगर अब इक कसम निभती नहीं सौ बार खाते है 



वही अब शख्स है मशहूर हर महफ़िल में देखा है 

जिसे बस झूठ और साजिश के सब व्यौहार आते हैं 
 
उसे मंज़ूर कब होंगी फरेब और झूट की दौलत 
वो बन्दा…
Continue

Added by ajay sharma on January 13, 2013 at 11:51pm — 7 Comments

ज़ख्म चेहरे से दिखाना दर्द की है ज़िद पुरानी ............

जब हुई रुसवा तरन्नुम से ग़ज़ल इस ज़िन्दगी की 

आंसुयों ने नज़्म लिखी रख दिया उनवान पानी 



आइनों से शर्त रख दी मुस्कराहट की लबों पे 

इसलिए झूठी ग़मों की कर रहा मैं तर्जुमानी 



और भी अब बढ गयी दुश्वारियां मेरे सफ़र की 

पत्थरों को ढूँढती फिरती मेरी किस्मत दीवानी 



गर ये नादाँ सब्र होती तो मुनासिब था "अजय" …

Continue

Added by ajay sharma on January 7, 2013 at 11:00pm — 3 Comments

चाँद सितारों से लड़ना आसान नहीं

चाँद सितारों से लड़ना आसान नहीं

क्या होगा अब हश्र कोई अनुमान नहीं

वक़्त निभाएगा अपना दायित्व "अजय "

मेरे हांथों में अब कोई सामान नहीं................

.

जो बांटा करता है सबको जीवन रस ,

पीने को बस गरल मिला केवल उसको

जो पथ पर तेरे फूलों का बना बिछौना ,

काँटों का इक सेज मिला केवल उसको

कैसी हैं हम सन्तति , हम पूत कहा के ,

बचा सके इक जननी का सममान नहीं

वक़्त निभाएगा अपना दायित्व "अजय "

मेरे हांथों में अब कोई सामान नहीं…

Continue

Added by ajay sharma on December 31, 2012 at 12:30am — 4 Comments

तुम उजला सन्दर्भ हो , जिसका मैं हूँ वही कहानी...

मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का, तुम रेखा मनमानी |

मैं ठहरा पोखर का जल, तुम हो गंगा का पानी ||

मैं जीवन की कथा-व्यथा का नीरस सा गद्यांश कोई इक |

तुम छंदों में लिखी गयी कविता का हो रूपांश कोई इक |

मैं स्वांसों का निहित स्वार्थ हूँ , तुम हो जीवन की मानी  ||

धूप छाँव में पला बढा मैं विषम्तायों का हूँ सहवासी |

तुम महलों के मध्य पली हो ऐश्वर्यों की हो अभ्यासी | 

मैं आँखों का खारा संचय , तुम हो वर्षा अभिमानी ||

विपदायों, संत्रासों से मेरा अटूट अनुबंध रहा…

Continue

Added by ajay sharma on December 27, 2012 at 10:30pm — 4 Comments

गीत ग़ज़ल की देह तौलते ,,,,,,,,,,,,,,,,,

बदल गयी नीयति दर्पण की चेहेरो को अपमान मिले हैं !

निष्ठायों को वर्तमान में नित ऐसे अवसान मिले हैं !!

शहरों को रोशन कर डाला गावों में भर कर अंधियारे !

परिवर्तन की मनमानी में पनघट लहूलूहान मिले हैं !!

चाह कैक्टसी नागफनी के शौक़ जहाँ पलते हों केवल

ऐसे आँगन में तुलसी को जीवन के वरदान मिले हैं !!

भाग दौड़ के इस जीवन में , मतले बदल गए गज़लों के

केवल शो केसों में सजते ग़ालिब के दीवान मिले हैं !!

गीत ग़ज़ल की देह तौलते अक्सर सुनने वाले देखा !…

Continue

Added by ajay sharma on December 24, 2012 at 11:00pm — 4 Comments

शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ ||

शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |

शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ || 



सूरज की आँखों में कोहरे की चुभन रही 

धुप के पैरो में मेहंदी की थूपन रही 

शर्माती शाम आई छल गयी बाजारों को 

समझ गए रिक्शे भी भीड़…

Continue

Added by ajay sharma on December 22, 2012 at 10:30pm — 3 Comments

आज मसले खत्म सारे हो गए

आज मसले खत्म सारे हो गए 
हम तुम्हारे तुम हमारे हो गए (1)
दोस्ती पे नाज़ था जिनकी हमें 
लो वही दुश्मन हमारे हो गए (2)
 
मुझको तनहा छोड़कर मझधार में 
धीरे धीरे सब किनारे हो गए  (3)
 
ले लिया जबसे  सहारा आपने मुझसे मेरा  
लग रहा हम बे-सहारे हो गए  (4)  
था यकीं इतना उन्हें मेरी वफ़ा…
Continue

Added by ajay sharma on December 13, 2012 at 10:30pm — 5 Comments

ऐतबार नहीं है

दुश्मन न सही काबिल-ए -ऐतबार नहीं है 
कोई भी हो वतन से जिसे प्यार नहीं है 
-------------------------------------------
गैरों से भी अपनों से भी खाता है ठोकरें 
वो शख्स जिसे खुद पे अख्तियार नहीं है 
--------------------------------------------
ज़ालिम वही गुनाह जो करता नहीं कुबूल 
पाता सजा वही जो गुनाहगार…
Continue

Added by ajay sharma on December 13, 2012 at 10:00pm — 3 Comments

जिसको भीड़ सुलभ है जितनी , उतनी ही ज्यादा तन्हाई ,,,,,,,,,,,,,

खुशियों ने ऊँचे दामों की , फिर पक्की दूकान लगायी 

इक तो गाँव अभावों का मैं , और उपर से ये मंहगाई 
 
कुछ टुकड़ों पर ही पंछी ने , सोने का पिंजड़ा स्वीकारा 
क़ैद हुआ जब संगमरमर में , भूल गया सारी अंगड़ाई 
 
एक नहीं जाने कितने ही , सिन्धु रचे मैंने पन्नों पर 
लेकिन जब जब प्यास लगी , बूँद बूँद से ठोकर…
Continue

Added by ajay sharma on December 10, 2012 at 11:12pm — 6 Comments

घर में पलती इसी धूप के साथ पला मैं छाँव हो गया .....................

थकी हुयी शतरंज का, मैं पिटा हुआ इक दांव हो गया 

भाग्य कर्म के घमासान में मैं धरती का घाव हो गया I 
........................................................................................

बचपन में आँगन में खेली तरुडाई में मुंडेरों पे 
घर में पलती इसी धूप के साथ पला मैं छाँव हो गया 
........................................................................................
जब जब बोझ पड़ा अनचाहा जीवन…
Continue

Added by ajay sharma on December 3, 2012 at 10:30pm — 1 Comment

पेट के कहने में फिर हम आ गए

पेट के कहने में फिर हम आ गए 

पीठ पे ढ़ोने शहर , हम आ गए 

माँ ,बहन , भाई , पिता रिश्तें सभी 

छोड़ कर गाँव का घर हम आ गए -----------------

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

ऑफिस का रिक्शा पापा का और मदिर वो घंटा - घंटी 

अम्मा की हर बात रटी थी हमको बरसों पंक्ति पंक्ति …

Continue

Added by ajay sharma on December 3, 2012 at 9:30pm — 1 Comment

इक पुरानी ग़ज़ल

इक पुरानी ग़ज़ल से आप सब के साथ मैं भी अपने पुराने दिनों की याद कर रहा हूँ, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
 

कर्म के ही हल सदा रखती है कन्धों पे नियति 

पर कभी फसलें मेरी बोनें नहीं देती मुझे 
मेरी देहरी ही बड़ा होने नहीं देती मुझे 
पीर पैरों के खड़ा होने नहीं देती मुझे 
फिर वही आँगन की परिधि में बँट…
Continue

Added by ajay sharma on November 26, 2012 at 12:00am — 3 Comments

meri bheegi palke(n)

तुम भी हो चुप- चुप , और मैं भी हूँ मौन /

जाने फिर बोल रहा कौन //
मिलते थे कहने को हम दोनों नित्य प्रति / 
लकिन संबंधों को शायद ही मिली गति /
तुम ही जब कर सकी कोई आरम्भ नहीं /
मेरे मन को लगा इति का अवलम्ब सही /
देहरी से औप्चारिक्तायों की बंधे रहे  , दोनों के आचरण दोनों के कुंठित मौन //
तुम भी हो चुप- चुप मैं भी हूँ  मौन , जाने फिर बोल रहा कौन //
परिचय के…
Continue

Added by ajay sharma on November 19, 2012 at 11:22pm — 2 Comments

मेरे कमरें के केलेंडर पर

मेरे कमरें के केलेंडर पर नया इतवार आया
लग रहा है बाद अरसा इक नया त्यौहार आया

तंग जेबें और झोला देख कर बाज़ार में
कस दिया जुमला किसी ने देखिये "इतवार आया"

झह दिनों की व्यस्तता की धूप से झुलसी हुई
सूखती सी टहनियों में रक्त का संचार आया

छुट्टियो में भी खुलेंगें कारखानें और दफ्तर
हांफता सा ये खबर लेकर सुबह अखबार आया

मौन कमरों में खिली इन आहटों की धूप से
लग रहा है अजय घर में कोई पुराना यार आया

Added by ajay sharma on November 18, 2012 at 10:30pm — 1 Comment

सिमट के रह गयी किताबों में

सिमट के रह गयी किताबों में ज़रुरत मेरे बच्चों की
लूट के ले गयीं ये तालिमें फुर्सत मेरे बच्चों की

खेल खिलौनें सैर सपाटें किताबों की बातें हैं
दुबक के रह गयी दीवारों में ज़न्नत मेरे बच्चों की

पकड़ के अँगुली जब वो मेरी मुझसे आगे आगे चलते
मुझको भली लगती है ऐसी हरकत मेरे बच्चों की

मेरी उम्र का बोझ उठाये नन्हे नन्हे कन्धों पर
कहने को मासूम दिखे है हिम्मत मेरे बच्चों की

Added by ajay sharma on November 14, 2012 at 10:30pm — 2 Comments

बौने अब आसमान हो ग

 

बौने अब आसमान हो गए ,



कौए हंस सामान हो गए



जिसको देख आइना डरता था पहले



अब वे देखो दर्पण के अरमान हो गए

--------------------



जिन्हें तनिक से हवा लगे तो ,…

Continue

Added by ajay sharma on November 13, 2012 at 11:00pm — No Comments

आग का दरिया

आग का दरिया नंगो पैरों करना पार कहाँ  तक अच्छा 

तन्हाई में सिसकी भरकर रोना यार कहाँ तक अच्छा 
 
माना पुराने पन्नों पर ख्वाहिश ने नयी तारीखें लिख दी 
लेकिन पढना फिर फिर बासी वो अखबार कहाँ तक अच्छा 
 
कच्चे रंगों से मिटटी के घर आँगन रंग कर सोच रहा 
बरसाती मौसम में जिद का ये…
Continue

Added by ajay sharma on November 7, 2012 at 7:00pm — 1 Comment

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए ।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service