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Gumnaam pithoragarhi's Blog (55)

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२ २२ २२ २२ २

किसके गम का ये मारा निकला
ये सागर ज्यादा खारा निकला

दिन रात भटकता फिरता है क्यों
सूरज भी तो बन्जारा निकला

सारे जग से कहा फकीरों ने
सुख दुःख में भाईचारा निकला

हथियारों ने भी कहा गरजकर
इन्सा खुद से ही हारा निकला

चाँद नगर बैठी बुढ़िया का तो
साथी कोई न सहारा निकला



मौलिक व अप्रकाशित

Added by gumnaam pithoragarhi on August 7, 2014 at 7:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२  २२  २२  २

 

दीवारों को दर कर लें

ऐसा अपना घर कर लें

 

वरना होगा शोर बहुत

ज़ख्मों को अक्षर कर लें

 

झुकने को तैयार रहे

ऐसा अपना सर कर लें

 

मान बढ़ेगा नारी का

लज्जा को ज़ेवर कर लें

 

है कीमत जीवन की ,गर

यादों को हम जर कर लें

 

जीना आसां होगा , गर

गुमनाम हमसफ़र कर लें

 

मौलिक व अप्रकाशित

Added by gumnaam pithoragarhi on July 31, 2014 at 9:30pm — 7 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२  २२  २२   २२

 

सन्नाटा भी पसरा सा है

उसका कमरा बिखरा सा है

 

अब तुम पास नहीं हो ,शायद

उसका मुखड़ा उतरा सा है

 

बुत  से कैसा कहना सुनना

हाफ़िज़ भी तो बहरा सा है

 

जीवन हुआ दिसंबर जैसा

आँखों में क्यों कुहरा सा है

 

देख के तुझे लगता है ये

चाँद कांच का कतरा सा है

 

गुमनाम बना लो घर कोई

अब खंजर का खतरा सा है

 

मौलिक व अप्रकाशित

 गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on July 29, 2014 at 2:30pm — 5 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

ये  तो गूंगों की नगरी है भैया जी

सरकार हमारी बहरी है भैया जी

 

दंगों में दोस्त दोस्त क्यों मरते हैं

प्यार मुहब्बत भी बकरी है भैया जी

 

राजा को वनवास कहाँ अब मिलता है

आस लगाये अब शबरी है भैया जी

 

दिखावटी का अफ़सोस जताता है वो

वो शख्स बड़ा ही शहरी है भैया जी

 

कुछ खत जले कहीं जब शहनाई गूँजी

आशिक की डूबी गगरी है भैया जी

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on July 24, 2014 at 10:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़

२१२२  १२२२   २

झोपड़ी को डुबाने निकले
सारे बादल दिवाने   निकले

खेत घर हो गए बंजर से
बच्चे बाहर कमाने  निकले

द्रोपदी सी प्रजा है बेबस
जब से राजा ये काने  निकले

आदमी भूल आदम की पर
पाक खुद को बताने  निकले

जब्त गम को किया तब हम भी
इस जहां को हँसाने  निकले

माँ को खोया तो समझा मैंने
हाथ से जो खजाने  निकले

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on July 22, 2014 at 7:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

१२२२   १२२२   १२२२    १२२२ 

 

मिलो गर ज़िन्दगी से तुम कोई फ़रियाद मत करना

बिठाना बैठना हँस  लेना दिल  नाशाद  मत करना

 

रखो दिल  काबू में  पहली नज़र के प्यार में यारो

जमाना कहता खुद को कैस ओ फरहाद मत करना

 

किताबें मजहबी रहने दो इन अलमारियों में बंद

मिलो जो आदमी से पोथियों को याद मत करना

 

सियासत की फरेबी चाल में फंसकर ऐ लोगो तुम

मुहब्बत चैन अमन को तुम कभी बर्बाद मत करना

 

मैं उधड़े जख्मो की तुरपाई…

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Added by gumnaam pithoragarhi on July 16, 2014 at 11:00pm — 15 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२     २१२२   २…

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Added by gumnaam pithoragarhi on July 13, 2014 at 1:01pm — 8 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२ २२ २२ २२ २२ २२ २



पीते अश्क़ समंदर के आवारा ये बादल

लुटते हैं दुनिया के लिए हमेशा ये बादल



माँगा नहीं हिसाब कभी अपने अहसानो का

निभा रहे हैं दस्तूर भी निराला ये बादल



हर एक चेहरे पर देखो प्यास झुलसती सी

किसकी प्यास बुझाए एक अकेला ये बादल



कभी रुलाये कभी हसए बतियाये संग में

कजरारी आँखों की याद दिलाता ये बादल



गरजकर सुनाये हाले दिल भी अपना लेकिन

सब दरवाजे बंद खड़ा तनहा ये बादल



दुनिया में…

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Added by gumnaam pithoragarhi on July 11, 2014 at 4:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

जब यादों की शबनम रोती है   

तब सारी शब नम सी होती है



मेरी परवाह करे क्यों दुनिया

ज़ख्मो पर वाह सदा होती है



जगमग देखी जो मेरी दुनिया

जग मग में खार पिरोती हैं

प्रिय तम में उसको छोड़ गया

वो प्रियतम की खातिर रोती है



मूसा फिर आये राह दिखाने

राह…

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Added by gumnaam pithoragarhi on July 1, 2014 at 4:00pm — 11 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

दिल के मिले ना  दाम बाजार में

खुद को किया नीलाम बाजार में

 

दो वक़्त की रोटी जुटाने में भी

जेबें   हुई  नाकाम  बाजार में

 

औरत ने अपना चीर खुद छोड़ा है

देखें खड़े ये श्याम बाजार में

 

अब दाल रोटी मुश्किलों से मिले

कैसे खरीदें आम बाजार में

 

थे पेट भूखे जिनको भरने को ही

कमसिन गुजारे शाम बाजार में

 

२२१२    २२१२      २१२

 

मौलिक व अप्रकाशित

Added by gumnaam pithoragarhi on June 26, 2014 at 10:30am — 4 Comments

कविता ,,,,,,,, क्योंकि अक्सर ,,,,,,,,

लोग अक्सर राह चलते

देखकर मादा शरीर

ठिठक जाते हैं

और लेने लग जाते हैं जायजा

शरीर के उतार चढ़ाओं का

खोजने लगते हैं परिस्थितियाँ

जहाँ मादा शरीर उपभोग की वस्तु हो जाए

अक्सर वो ही लोग

देख कर गर्भों में मादा शरीर

डर जाते हैं

नष्ट कर उसे

आश्वस्त हो जाते हैं

क्योंकि अक्सर

लोग अपनी ही नज़र से

तोलते हैं दुनिया को

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,



गुमनाम… Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on June 21, 2014 at 1:13pm — 3 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

 २२  २२ २२  २

शायद सूरज हार गया

छुप के दरिया पार गया

शाह हुए गुम हरमों में

कड़ी खिंचा बेकार गया

चुनाव आये फिर से तो

संसद गुनाहगार गया

कपडा जब हुआ…

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Added by gumnaam pithoragarhi on June 16, 2014 at 5:03pm — 5 Comments

वो बरगद आरियों का निशाना हो गया है

1222  122  1222  122

वो बरगद आरियों का निशाना हो गया है

परिन्दा दर ब दर बेसहारा हो गया है

 

हवस दुनिया की बरबाद कर देती उसे भी

चलो मुफ़लिस की बेटी का रिश्ता हो गया है

 

गरीबी थी कि मजबूरी थी बच्चे की कोई…

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Added by gumnaam pithoragarhi on May 29, 2014 at 8:30pm — 15 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

उन फाका मस्त फकीरों की हस्ती ऐसी थी

माल पुवे फीके थे उनकी मस्ती ऐसी थी

 

राग द्वेष नफ़रत के शहरों में जले फैले

प्यार बढ़ाती थी नानक की बस्ती ऐसी थी

 

जीवन की सोन चिरैया है हवस में अब

ढाई आखर सीखे ना ख़ुदपरस्ती ऐसी…

Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on May 27, 2014 at 8:30am — 4 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२ २२ २२ २२

क्या तुमने ये सोचा पगली
गर मैं तेरा होता पगली

तेरी यादें फूलों जैसी
कांटे होते रोता पगली

इन आँखों के वादे पढ़कर
बन बैठा मैं झूठा पगली

मैं तो तेरा साया हूँ ,अब
तू है मेरी काया पगली

तेरी बातें तू ही जाने
मैं तो हूँ बस तेरा पगली

राहों पर यूँ नज़र बिछाना
गुमनाम करे दीवाना पगली


मौलिक व अप्रकाशित

Added by gumnaam pithoragarhi on May 15, 2014 at 4:00pm — 13 Comments

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