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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ''s Blog (137)

देना ख़ुशी अल्लाह सहूलत के मुताबिक(९८ )

(221 1221 1221 122 )

.

देना ख़ुशी अल्लाह सहूलत के मुताबिक

ग़म देना हमें सिर्फ़ ज़रूरत के मुताबिक

**

ये ध्यान रहे कोई न दीवाना कभी हो

अल्लाह न दे इश्क़ भी चाहत के मुताबिक

**

कर ले न गिरफ़्तार अना जीत से हमको

हर जीत का हो दाम हज़ीमत के मुताबिक

**

दुनिया में हर इक शय की है इक तयशुदा…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 9, 2020 at 10:30am — 11 Comments

बेकली कुछ बेबसी दीवानगी(९७ )

ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल

(2122 2122 212 )

.

बेकली कुछ बेबसी दीवानगी

हो गई है आज कैसी ज़िंदगी

**

साथ में रहते मगर हैं दूरियाँ

अब घरों में छा गई बेगानगी

**

आरती में भी भटकता ध्यान है

रस्म बन कर रह गई हैं बंदगी

**

आदमी है अब अकेला भीड़ में

ढूंढ़ते हैं रिश्ते ख़ुद बाबस्तगी

**

यूँ तो बिजली से मुनव्वर है जहाँ

फ़िक्र की है बात दिल की तीरगी

**

कट रहे हैं हम…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 7, 2020 at 3:30pm — 6 Comments

मयख़ाने आ गया हूँ ज़माने को छोड़कर (९६ )

(221 2121 1221 212 )

.

मयख़ाने आ गया हूँ ज़माने को छोड़कर

मत बैठ साक़ी आज यूँ रुख़ अपना मोड़कर

**

आँखों से अब पिला कि दे जाम-ए-शराब तू

साक़ी सुबू में डाल दे ग़म को निचोड़कर

**

वक़्ते-क़ज़ा अगर यहीं रहने हैं ज़र-ज़मीँ

पी लूँ ज़रा सी क्या करूँ दौलत को जोड़ कर

**

कोई कभी शिकस्त मुझे दे न पाएगा

बादा-कशी में यार तू मुझसे न होड़ कर

**

पीकर ज़रा कहासुनी मामूली बात है

मय के लिए न…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 4, 2020 at 3:30pm — 6 Comments

संकट दूर कभी होता है संकट संकट कहने से क्या ?(९५)

एक गीत

===========

संकट दूर कभी होता है

संकट संकट कहने से क्या ?

त्राण मिलेगा तभी आप यदि

समाधान ढूंढें संकट का |

**

जीवन में खुशियाँ यदि हैं तो, संकट का भी तय है आना |

गिरगिट जैसे रंग बदलकर ,रूप दिखाता है यह नाना |

धीरज रखकर हिम्मत रखकर , इससे मानव लड़ सकता है

ख़ुद पर संयम रखने से ही , तय होगा संकट का जाना |

पूरा जोर लगा दें अपना , हम भारत के लोग अगर…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 3, 2020 at 1:00pm — 7 Comments

बरस हुए हैं कई न तुमने  की गुफ़्तगू है न हाल पूछा(९४ )

121 22  121 22  121 22  121 22 

.

बरस हुए हैं कई न तुमने  की गुफ़्तगू है न हाल पूछा

कहाँ हो तुम ये  पता नहीं क्यों न हमने कोई सवाल पूछा

**

सँभाल कर सब रखे जो ख़त हैं उन्हीं को पढ़कर करें गुज़ारा

किताब  के सूखे फूल ने भी है कैसा हुस्न-ओ-जमाल पूछा

**

बिना तुम्हारे फ़ज़ा में ख़ुश्बू   न संदली अब रही है जानाँ

बहार ने तितलियों से इक दिन तुम्हारा भी हाल चाल पूछा

**

तुम्हारा  जायज़ है  रूठना पर तवील इतना कभी नहीं  था

हमारे …

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 2, 2020 at 11:30am — No Comments

तू यार हवा गर है तो मानन्द-ए-सबा रह(९३ )

221 1221 1221 122 

तू यार हवा गर है तो मानन्द-ए-सबा रह

तू है दुआ तो एक असर वाली  दुआ रह

**

तू अब्र है तो बर्क़ से झगड़ा न किया कर

हर हाल में पाबंद-ए-रह-ए-रस्म-ए-वफ़ा रह

**

तू शम'अ है तो ताक़  में रह कर ही  जला कर

तूफ़ान है तो दिल में मेरे यार उठा रह

**

तू याद किसी की है तो हिचकी में समा जा

तू ज़ख़्म अगर दिल का है दिन रात हरा रह

**

आज़ाद तेरे इश्क़ से हो पाऊँ न…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 30, 2020 at 3:30pm — 6 Comments

ज़मीँ पर हल चलाता है इसी उम्मीद में कोई(९२ )

एक ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल  (1222 *4 )

.

ज़मीँ पर हल चलाता है इसी उम्मीद में कोई

कभी तो जाग जाएगी मेरी क़िस्मत अगर सोई

**

मेरे किरदार की दौलत रहे महफूज़, काफ़ी है

मुझे कुछ ग़म नहीं होगा मेरी दौलत अगर खोई

**

भले इल्ज़ाम मुझ पर बेवफ़ा होने का लग जाये

मगर बर्दाश्त कैसे हो उसे रुस्वा करे कोई

**

अभी भी रोक दो सब क़ह्र क़ुदरत पे न बरपाओ

अरे बर्बाद कर देगी कभी क़ुदरत अगर रोई

**

मेरा…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 29, 2020 at 12:00pm — 6 Comments

न हो किरदार अपना रब गिरी दीवार की सूरत(९१ )

++ग़ज़ल++ ( 1222 *4 )

न हो किरदार अपना रब गिरी दीवार की सूरत

कभी बिगड़े नहीं या रब मेरे पिंदार की सूरत

**

ख़ुदाया ख़म कभी सर हो न मेरा इस ज़माने में

सदा क़ायम रहे हर पल मेरे मेआ'र की सूरत

**

दिखाए मुख़्तलिफ़ रंगों में उसने प्यार के जलवे

कभी इक़रार की सूरत कभी इंकार की सूरत

**

सितम कर दिल्लगी कर बस ख़याल इतना ज़रा रखना

न हो ये ज़िंदगी ज़िंदान-ए-तंग-ओ-तार की सूरत

**

जवानों के नए अंदाज़…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 26, 2020 at 8:30am — 6 Comments

न भुज-बल है और न धन-बल , सबसे बड़ा मनुज बुद्धि-बल |(९०)

एक गीत

**

न भुज-बल है और न धन-बल ,

मनुज बड़ा सबसे   बुद्धि-बल |

**

अभिमानी करते हैं केवल नित्य प्रदर्शन अपने धन का |

डर फैलाते चन्द भुजबली रोब दिखाकर अपने तन का |

लक्ष्मी जैसे ही रूठेगी सर्वनाश होना निश्चित है |

मिला स्वयं से शक्तिमान तो गर्व नाश होना निश्चित है |

कहने का बस अर्थ यही है धन-बल भुज-बल हैं अस्थायी,

किन्तु भ्रष्ट नहीं हो जब तक

अक़्ल कभी न…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 24, 2020 at 11:00pm — 4 Comments

महीना-ए-मुहर्रम में मह-ए-रमज़ान ले आये-ग़ज़ल (८९ )

(1222 *4 )

.

महीना-ए-मुहर्रम में मह-ए-रमज़ान ले आये

ग़रीबों के रुख़ों पर गर कोई मुस्कान ले आये

**

किनारे पर हमेशा बह्र-ए-दिल के एक ख़तरा है

न जाने मौज ग़म की  कब कोई  तूफ़ान ले आये

**

नहीं है मोजिज़ा तो और इसको क्या कहेंगे हम

ख़ुशी का ज़िंदगी में पल कोई  अनजान ले आये

**

ये कैसा वक़्त आया है न जाने कब कोई मेहमाँ

हमारी ज़िंदगी में  मौत का सामान ले आये 

**

कभी सोचा नहीं था घर बनेगा एक दिन ज़िंदाँ 

मगर…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 22, 2020 at 4:00pm — 4 Comments

गर बढ़ा असर किसी भी रोग के इ'ताब का(८८ )

( 212 1212 1212 1212 )

गर बढ़ा असर किसी भी रोग के इ'ताब का

है पलटना तय तुरंत ज़िंदगी के बाब का

**

जिन्न एक सैंकड़ों हयात क़त्ल कर रहा

इंतज़ार है ख़ुदा सदाओं के जवाब का

**

हसरतें न दिल की हों दिमाग़ पर कभी सवार

इख़्तियार हो नहीं लगाम पर रिकाब का

**

बैठ कर ये सोचना हुज़ूर इतमिनान से

क्या किया है हश्र प्यार के हसीन ख़्वाब का

**

सोच अम्न-ओ-चैन की रहे हर एक दिल में गर

देखना पड़े न…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 20, 2020 at 8:30pm — 4 Comments

ये साफ़ नहीं है कोरोना कितनी ज़ालिम बीमारी है( ८७ )

एक नज़्म-कोरोना

.

ये साफ़ नहीं है कोरोना कितनी ज़ालिम बीमारी है

मालूम नहीं है दुनिया को ये किसकी कार-गुज़ारी है

**

कुछ लोग अज़ाब इसे कहते कुछ कहते कि महामारी है

आसेब हक़ीक़त में अब ये सारी दुनिया पर भारी है

**

हल्के में मत लेना इसको ये रोग शरर भी शोला भी

बच्चों बुड्ढों की ख़ातिर यह क़ुदरत की आतिश-बारी है

**

हैरान परेशां कर डाला दुनिया के लोगों को इसने

घर को ज़िन्दान बनाना अब हर इंसां की…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 19, 2020 at 2:30pm — 6 Comments

रिवायतें तो सनम सब निभाई यारी की (८६ )

(1212 1122 1212 22 /112 )

रिवायतें तो सनम सब निभाई यारी की

तमाम तोड़ हदें हमने दुनिया-दारी की

**

करोगे बात किसी की गर इंतजारी की

जुड़ेगी इस से कहानी भी बेक़रारी की

**

जब आब सर से हमारे लगा गुज़रने तब

निराश होके सनम हमने दिलफ़िगारी की 

**

रक़ीब से जो मिले आप बे-हिज़ाब मिले

हमीं से सिर्फ़ लगातार पर्दे-दारी की

**

जूनून और गुमाँ में हुज़ूर भूल गए

क़सम भी कोई निभानी है राज़-दारी…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 14, 2020 at 11:00am — 5 Comments

मज़ाक था वो मगर हमने प्यार मान लिया(८५ )

 ( 1212 1122 1212 22 /112 )

मज़ाक था वो मगर हमने प्यार मान लिया

कि ख़ुद को तीर-ए-नज़र का शिकार मान लिया

**

ग़मों को क़ल्ब का हमने क़रार मान लिया

ख़िज़ाँ के रूप में आई बहार मान लिया

**

ख़ुशी ने बारहा इतना दिया फ़रेब हमें

ख़ुशी को ज़िंदगी से अब फ़रार मान लिया

**

समझने सोचने की ताब खो चुके हैं हम

दिमाग़ में है हमारे दरार मान लिया

**

पिलाई साक़िया ने चश्म से हमें वो मय

हयात भर को चढ़ा…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 12, 2020 at 9:30pm — No Comments

आइये फिर आरज़ू का जलजला दिल में उठा(८४ )

(2122 2122 2122 212 )

आइये फिर आरज़ू का जलजला दिल में उठा

आइये फिर दिल की वादी में चली बाद-ए-सबा

**

आइये फिर वस्ल का पैग़ाम ले आई हवा

आइये फिर से क़मर भी बादलों में छुप गया

**

आइये फिर से जवाँ है रात भी माहौल भी

आइये फिर आसमाँ पे छा गई काली घटा

**

आइये फिर मरमरी बाँहों में हमको लीजिये

आइये फिर ख़ुशबुओं ने दिल मुअत्तर कर दिया

**

आइये फिर कश्तियाँ ग़म की डुबोने के…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 11, 2020 at 10:00am — No Comments

ज़िन्दान-ए-हिज्र से अरे आज़ाद हो ज़रा (८३ )

( 221 2121 1221 212 )

ज़िन्दान-ए-हिज्र से अरे आज़ाद हो ज़रा 

नोहे* तू क़त्ल-ए-इश्क़ के दुनिया को मत सुना 

**

अक़्स-ए-रुख़-ए-सनम तेरे आएगा रू ब रू

माज़ी के आईने पे लगी धूल तो हटा 

**

दुनिया में जीने के लिए हैं और भी सबब

चल नेकियों के वास्ते कुछ तू समय लगा

**

फिर साज़-ए-दिल पे छेड़ कोई राग पुरसुकूँ

दुनिया के वास्ते नया पुरअम्न गीत गा

**

हैं इंतज़ार में तेरी दुनिया की…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 10, 2020 at 2:00pm — No Comments

सलाखों में क़फ़स के गर लगा ज़र(८२ )

(1222 1222 122 )

सलाखों में क़फ़स के गर लगा ज़र

रहेंगे क्या उसी में ज़िंदगी भर ?

**

किसी की ज़िंदगी क्या ज़िंदगी है

अगर ता-उम्र उसका ख़म रहे सर ?

**

तुम्हारी ज़िंदगी से कौन खेले

किसानों ख़ुदक़ुशी की रह दिखा कर ?

**

सियासत के मिलेंगे ख़ूब मौक़े

ज़रा हालात को होने दो बेहतर

**

तलातुम आजकल ख़बरों के आते

भरोसा कीजिए मत हर ख़बर पर

**

महामारी सुबूत अब दे…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 9, 2020 at 8:00am — No Comments

जुबान इतनी तेरी दोस्त आतिशीं मत रख (८१ )

(1212 1122 1212 22 /112 )

जुबान इतनी तेरी दोस्त आतिशीं मत रख

कि जिसमें मार* पले ऐसी आस्तीं मत रख (*सॉंप )

**

मैं तज़र्बें की बिना पर ये बात कहता हूँ

बहुत दिनों के लिए कोई दिलनशीं मत रख

**

सजाने ज़ुल्फ़ को कुछ देर यासमीं काफ़ी

तवील वक़्त की ख़ातिर तू यासमीं*मत रख 

**

फिसलते दस्त हैं जब हमकिनार करता हूँ 

क़बा पहन के नई यार रेशमीं मत रख

**…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 5, 2020 at 5:30pm — 2 Comments

ग़रीब हूँ मैं मगर शौक इक नवाबी है(८०)

(1212 1122 1212 22 /112 )

ग़रीब हूँ मैं मगर शौक इक नवाबी है

ख़िज़ाँ की उम्र में भी दिल मेरा गुलाबी है

**

अधूरा काम कोई छोड़ना नहीं आता

कि मुझ में बचपने से एक ये ख़राबी है

**

मेरे लिए ही सनम क्यों हया का है…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 4, 2020 at 12:30pm — 8 Comments

अंतस के हिम निर्झर से जब भाव पिघलने लगते है|(७९ )

अंतस के हिम निर्झर से जब

भाव पिघलने लगते है|

गीतों में ढलने को मेरे

शब्द मचलने लगते हैं ॥

***

लेखन आता नहीं मुझे पर लिखता हृद उद्गारों को |

और बुझा लेता हूँ लिखकर हिय तल के अंगारों को |

कहाँ निभा पाता हूँ अक्सर मैं छंदो का अनुशासन

अलंकार-से भूल गया हूँ शब्दों के श्रृंगारों को |

भाषा शुद्ध न हुई भले ही

लय सुर ताल रहे बाक़ी

बिम्ब-प्रतीक सृजन से जब…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 1, 2020 at 8:00pm — 4 Comments

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