पहले तो रविन्द्र ने चाहा,कि न कर दूँ ,क्यूंकि दस बज चुके थे, और सर्दी भी बढ़ रही थी, पर एक साथ पाँच सवारियां देख कर उस ने फेरा लगाने का मन बना लिया । सुबह से कोई अच्छा फेरा भी तो नहीं लगा था । वह सवारियों को थ्रिविलर में बिठा बस स्टैंड से शहर के सुनसान एरिया की तरफ निकल पड़ा जो कभी रौनक भरा होता था, पर जब का हस्पताल को यहाँ से कहीं और शिफ्ट किया तब ज्यादातर दुकानदारों ने दुकानों को पक्के तौर पर ताले लगा दिए,और बाकी अब तक बंद हो चुकी थी ।
हिचकोले खाता थ्रिविलर चारों तरफ फैली…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on August 5, 2015 at 9:30pm — 4 Comments
संशोधित तरही गज़ल
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
नींदों से जब मिलकर आये कुछ पल बैठ कयाम किया
ऐसा करके सपनों ने भी कुछ तो मेरा काम किया
कब ये दुनिया औरत को घर अपने का हिस्सा माने
मर्द की जेब को हर पल देखा सुबह व् शाम सलाम किया
मुझ को अक्सर आके वो बातें ऐसी बदलाती है
रौशन कैसे दुनिया होगी न अँधेरा नाकाम किया
हर पल उसके पास रहूँ मैं,फिर भी गुम हो जाती है
साथ तो उसका पाया अक्सर याद मेंरी गुमनाम किया
बीत गई जिंद सोच में उलझे कैसे होती तो फुर्सत
रात…
Added by मोहन बेगोवाल on August 4, 2015 at 1:16am — 3 Comments
चल पड़े राह जो गुनाह में थे ।
गुम गए वो सभी सियाह में थे ।
वो क्या थी अदा हमें दिखाई ,
जब हमारी रहे निगाह में थे ।
वो क्या ये बतायें तुझे अब ,
जब रहे वो न उस सलाह में थे ।
हम कहें भी क्या तो वेसा क्या ,
जब रहे हम उसी पनाह में थे ।
क्यों लगे वो यहीं रुके होंगे ,
जो सदा के लिए प्रवाह में थे।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by मोहन बेगोवाल on April 9, 2014 at 1:00am — 7 Comments
Added by मोहन बेगोवाल on November 20, 2013 at 7:00pm — 5 Comments
वो हमें कब मिला है खुदा की तरह ।
जो रहा है सदा बन हवा की तरह ।
अब उसे कैसे पहचान वो पायेगा,
जो यहाँ बदलता है अदा की तरह ।
अब वही राह दिखाने आया है मुझे,
जो मेरा था कभी बेवफा की तरह।
वो क्या भर देगा खुशिय़ा दामन तेरे,
जिन का अपना रहा है खला की तरह।
हम भुलाया जमाने को जिस के लिये ,
साथ वो फिर क्यूँ है सज़ा की…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on November 10, 2013 at 1:30pm — 10 Comments
१ २ २ १ २२ १ २ २ १ २ २
अभी जो यूँ सपनो में आने लगें हे /
वो अनहोनी बातें बताने लगें हे /
पता उनके सच का कहाँ झूठ का हे,
जो हर बात पे छटपटाने लगें हे /
चलों नाम लिख दे जरा साथ उन के ,
यहाँ आते जिन को जमाने लगें हे,/
जो दिन बीत जाये दुबारा ना आये ,
कई राज दिल को लुभाने लगें हे /
यूँ शोलों की खातर जलेंगे नहीं हम ,
अँधेरों में दीये जलाने लगें हे /
"मौलिक व…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on September 8, 2013 at 5:00pm — 8 Comments
२ १ २ २ १ १ २ २ २ २
जिंदगी कैसी कज़ा चाहती है
मर के जीने की दुआ चाहती है
.
बीत गया जो तुझे साथ मुबारक
मेरी दुनिया तो नया चाहती है
.
वो अगर चाहे हमें क्षमा कर दे,
अब मगर वो भी सज़ा चाहती है
.
छीन ली उस ने हमारी दुनिया,
छीन अब न सके खुदा चाहती है
.
वो छुपा लेती है अँधेरा खुद में
जिन से लौ उन का पता चाहती है
.
जो थी मंजल हमें दिखाने निकली ,
राह में भटकी पता चाहती है
मौलिक…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on August 31, 2013 at 10:30pm — 10 Comments
२ २ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २
नायक या खलनायक उसे किस खाते लिखूं
या भटकी लाली के संग उस को जाते लिखूं
जिस को खुदा माना कभी हम ने दोस्त
दीया कोई उस की चोखट पर जलाते लिखूं
गा कोई तुम नगमा सुरीला सा मेरे दिल
तुझ को करीब पाऊं लोरी सुनाते लिखूं
वो छोड़ गया जो मुझ को इस भंवर में अब
अब तुम बता मुझको अपना किस नाते लिखूं
उस का करें किस बात पै हम यकीं मोहन ,
करते …
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on July 8, 2013 at 11:00pm — 5 Comments
२१२२ २१२२ २१२ १२
हाथ मिला के जो हमे तन्हा जता गया
साथ मन में चल रहा था वो बता गया
उस को केसे में दयालु मेरे दिल लिखूँ
जेसे वो भगवान बन दुनिया सता गया
फिर चलेंगे तो हमारी होगी कहानी
फिर क्या वो राह हम से कर खता गया
राह कब उस शहर की तरफ मुझे ले गई
राहबर जिस का जाते हुए दे पता गया
दरख्त बूढ़े पै बैठा तन्हा पक्षी मगर
जिंदगी का सच्च राही को बता…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on July 7, 2013 at 8:00am — 1 Comment
फूलों ने जब खिलना है तशीर मुताबिक
फेलेगी खुशबु भी तब समीर मुताबिक
कर ले, कह ले, कुछ भी ये हक है तेरा
कलम लिखेगी जब,अपनी जमीर मुताबिक
यूँ तो सपने हजारों तेरे मन में हें,
याद करेंगे लोग पर तदबीर मुताबिक
साथ निभाएँगे कब तक पंख जो मंगवें,
तुम कब उड़ोगे न खुद की जमीर मुताबिक
शख्स जिसका उम्र भर घर ना हुआ था अपना
ऐसा मिलेगा जब भी तो फकीर मुताबिक
चाल ढाल मेरी भी मुझ को समझ ना आई
चलता रहाँ…
Added by मोहन बेगोवाल on March 31, 2013 at 6:30pm — 10 Comments
फिलहाल कुछ ऐसा कीजिए
चुन के कांटे फूल धर दीजिए
और कुछ संभव हो या ना ,
छत को चोग से भर दीजिए
बहुत अंधेरो की बोई फसल
रौशनी की भी मगर बीजिए
तीसरा नेत्र खोल के रखिए
चाहे दोनों आंखे भर लीजिए
हर कोई फोटो फ्रेम लगाए,
दिल में जगह मगर दीजिए
Added by मोहन बेगोवाल on March 25, 2013 at 10:30pm — 6 Comments
चाहत के पंछी को जब उडाता हूँ
दर्दे -ए -दिल और करीब पाता हूँ
घूम कर जब तक वो घर नहीं आता
घर का दर हूँ कब चेन पाता हूँ
मैनें मुस्करा कर हाथ बढाया
उस के अहं से क्यूँ टकराता हूँ
तब मुझ को होने…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on March 9, 2013 at 5:51pm — 6 Comments
बुझा चिराग तूफान बताया होगा
अँधेरा मन ही मन मुस्कराया होगा
पतंग यूँ तो चाहे ऊँची उडारी
जिस के हाथ मर्जी से उडाया होगा
जला चिराग करें जो खुंजा रोशन,
उसको अँधेरी रात ने डराया होगा
जुर्म चाहे पेट से जन्मा नहीं,मगर
भूख पेट की ने जुर्म कराया होगा
अभी ये बस्ती उस को जानती नहीं
लगता हैं इंसान बन दिखाया होगा
Added by मोहन बेगोवाल on February 23, 2013 at 7:30pm — 2 Comments
जीत कर भी हार जाना होगा,
ऐसा कमाल कर दिखाना होगा |
कुछ गुजरे कुछ गुजर जाएँगे,
लम्हों का अपना अफ्शाना होगा |
रंगे खुशबु जो तलाशते हें बजार,
उन्हें भी गुलसिताँ में आना होगा |
टूटते जुड़ते ख्वाबों सी है जिंदगी,
जिंदगी है, साथ तो निभाना होगा |
अंधेरों में घिरा है सारा आलम,
तुझे भी एक चिराग जलाना होगा |
Added by मोहन बेगोवाल on February 20, 2013 at 11:00pm — 3 Comments
दरिया के साथ कभी बहता नहीं,
वृक्ष किनारे पे अभिज रहता नहीं ।
तमन्ना है दिये जला करूं रौशनी,
आतिश के शोले मगर सहता नहीं ।
कैसे करें, क्यों करें उस पे यकीं,
मन की बात खुल के कहता नहीं ।
शहर मेरे कैसा मौसम आ…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on February 19, 2013 at 11:30pm — 2 Comments
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