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Sushil Sarna's Blog (835)

तन्हा सफ़र ....

तन्हा सफ़र ....

२ २ १ २ / २ १ २ २ /२ २ २ २ / २ १ २

तन्हा सफर और तेरी परछाईयाँ साथ हैं

तुमसे मिली संग मेरे तन्हाईयाँ साथ हैं !!१ !!//

अब तो हमें ज़िंदगी से नफरत सी हो ने लगी

यादें तुम्हारी और वही रुसवाईयाँ साथ हैं !!२!!//



भीगी हुई चांदनी में वो शोला सा इक बदन//

भीगे बदन की ज़हन में अँगड़ाइयाँ साथ हैं !!३!!//

लगने लगे मौसम सभी अब बेगाने से हमें

यादें वही और तेरी रुसवाईयाँ साथ हैं !!४!!//

लगने लगा है अब *हरीफ़…

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Added by Sushil Sarna on May 3, 2016 at 5:49pm — 6 Comments

जब से पिया गए परदेस ...



जब से पिया गए परदेस ...

प्रेम हीन अब

इस जीवन में

कुछ भी नहीं है शेष

जब से पिया गए परदेस//

नयन घट

सब सूख गए

बिखरे घन से केश

जब से पिया गए परदेस//

दर्पण सूना

हुआ शृंगार से

सूना हिया का देस

जब से पिया गए परदेस//

लगे दंश से

बीते मधुपल

दीप जलें अशेष

जब से पिया गए परदेस//

बिरहन का तो

हर पल सूना

रहे अश्रु न शेष

जब से पिया गए…

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Added by Sushil Sarna on May 2, 2016 at 4:54pm — 14 Comments

1. रोशनी ..../२. यकीन ....

1. रोशनी ....

क्या ज़मीं

क्या आसमां

हर तरफ

चटख़ धूप है

सहर से सांझ तक

उजालों की बारिश है

बस, तुम आ जाओ

कि मेरी तारीकियों को

रोशनी मिले //

२. यकीन ....

चटख धूप में भी

अब्र चैन नहीं लेते

आधी सी धूप में

आधी सी बारिश है

जैसे अधूरी सी ज़िंदगी की

अधूरी से ख्वाहिश है

सबा भी बेसब्र नज़र आती है

लगता है कोई रूठा पल

मिलन को बेकरार है

शायद कोई वादा

मेरी तन्हाई में

आरज़ू-ऐ-शरर बन के…

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Added by Sushil Sarna on April 28, 2016 at 2:27pm — 6 Comments

हौले हौले-(ग़ज़ल - एक प्रयास)

हौले हौले-(ग़ज़ल - एक प्रयास)

बहर -२२ २२ २२ २

हौले हौले रात चली

हौले हौले बात चली !!१!!

हौले हौले  होंठ  हिले

हौले से बरसात चली !!२!!

हौले  हौले   आँखों    में

प्यासी प्यासी रात चली !!३!!

हौले   हौले   जीत   हुई

आलिंगन की बात चली !!४!!

हौले  हौले  ख़्वाबों की

आँखों से बरसात चली !!५!!

हौले  हौले  आँखों   से

जागी जागी रात चली !!६!!

हौले  हौले  वो  महकी

जुगनू की बारात चली !!७!!



सुशील सरना…

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Added by Sushil Sarna on April 27, 2016 at 4:40pm — 15 Comments

सुधि आँगन ....

सुधि आँगन ....

याद  आये  वो   बैन   तुम्हारे

तृषित नयनों का सिंगार हुआ

संग समीर के

उलझी अलकें

स्मृति कलश से फिर

छलकी पलकें

याद  आये  वो  अधर तुम्हारे

फिर मूक पल हरसिंगार हुआ



स्मृति मेघों की

निर्मम गर्जन

देह कम्पन्न का

करती अभिनन्दन



याद आये वो स्पर्श तुम्हारे

आलिंगन क्षण अंगार हुआ



जब देह से देह की

गंध मिली

तब स्वप्निल पवन

मकरंद चली

याद आये…

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Added by Sushil Sarna on April 26, 2016 at 9:41pm — 8 Comments

ज़िंदगी के सागर से ....

ज़िंदगी के सागर से ....



मेरी आँखों के मुंडेरों पर

तुम आज भी

मेरे ख़्वाबों के

रूहे मुहब्बत का

पहला अहसास बने बैठे हो //



तुम्हारे साथ गुजरे लम्हे

मेरी तन्हाईयों के साथ

सरगोशियां करते हैं //



तमाम शब मेरा बदन

तुम्हारे लम्स की गिरफ़्त में

करवटें बदलता है //



बारिशों के मौसम में

रुख़सार पर गिरी ज़ुल्फ़ों के ख़म

अब तक किसी के इंतज़ार में उलझे

हवाओं से शिकायत करते हैं //



तुम्हारे अलम * में

गुजरता… Continue

Added by Sushil Sarna on April 22, 2016 at 10:03pm — 11 Comments

ज़िंदगी डूब जाती है ....

ज़िंदगी डूब जाती है ....

ऐ बशर !

इतना ग़रूर अच्छा नहीं

ये दौलत का सुरूर अच्छा नहीं

साया तेरे करमों का

हर कदम तेरे साथ है

कुछ दूर तक दिन है

फिर लम्बी अंधेरी रात है

रातों में साये भी रूठ जाते हैं

दिन के करम

तमाम शब सताते हैं

शब की तारीकियों में

अहम के पैराहन

जिस्म से उतर जाते हैं

ज़न्नत और दोज़ख

सब सामने आ जाते हैं

बशर ख़ाके सुपुर्द हो जाता है

लाख चाहता है

फिर लौट नहीं पाता है

फिर न कोई रहबर होता…

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Added by Sushil Sarna on April 19, 2016 at 9:48pm — 4 Comments

आईने तो आईने हैं ...

आईने तो आईने हैं ...

क्यूँ ,आखिर क्यूँ

आईनों से बात करते हो

ये करीबियां ये दूरियां

सब फ़िज़ूल हैं

कांच के टुकड़ों की तरह

टूटे हुए ज़ज़्बात

कब जुड़ पाते हैं

गर्द की आंधियां

ज़र्द पत्तों पर ही कहर ढाती हैं

बेज़ान जिस्मों पर

कब कोई तरस खाता है

बेमन से ही सही

हर कोई उसे ख़ाके सुपुर्द कर जाता है

कुछ भी तो हासिल न होगा

यूँ अपने अक्स से बात करके

हर सवाल मुंह चिढ़ाएगा

हर जवाब मुहं मोड़ जाएगा

आँखों का भीगापन…

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Added by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 9:49pm — 2 Comments

कुछ लम्हे ....

कुछ लम्हे ....

वो कुछ लम्हे

जो हमने मिलकर

अपनी झोली फैलाकर

ख़ुदा की हर चौखट पर

सर झुकाकर

मांगे थे //

वो कुछ लम्हे

जो हमारे ज़हन में

आज तक

इक दूसरे के वास्ते

वक्ते इज़हार के इंतज़ार में

ज़िंदा हैं //

वो कुछ लम्हे

जो हम दोनों ने

दो जिस्म इक जां

हो जाने के लिए मांगे थे

अब जब वो लम्हे

हमें नसीब हुए

तुम उनसे विमुख होने का सोच रही हो

अपनी ही आरज़ुओं का

अजन्मे ही गला घोंट…

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Added by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 2:01pm — 2 Comments

वही नर्म अहसास ....

वही नर्म अहसास ....

वही नर्म अहसास

किसी सुर्ख शफ़क़ से

पलकों की खिड़की में

यादों की शरर बन

जाने कब

मेरी रूह में उतर गए//

वही नर्म अहसास

मेरी तन्हाईयों को

मुझसे लिपट

मेरी करवटों को

ख़ुशनुमा सुरों से सजा

मेरी हयात को

जीने की अदा दे गए//

वही नर्म अहसास

फिर किसी गुजरे लम्हे से निकल

दिल के करीब यूँ हंसे

मानो फ़िज़ाओं ने हौले से

अपनी पाज़ेब छनकाई हो

शोखियों में डूबी

जैसे कोई…

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Added by Sushil Sarna on April 6, 2016 at 9:00pm — 2 Comments

पी लेने दो ...

पी लेने दो ... (एक प्रयास एक ग़ज़ल )

२२ २२ २२ २२

इक लम्हा तो जी लेने दो
अब जी भर के पी लेने दो !!१!!

एक   कतरा  है पैमाने में
खो के  हस्ती  पी लेने दो !!२!!
आये न कभी अब होश हमें
अब लब अपने सी लेने दो !!३!!

दम घुटता है अब यादों का
अब शब को भी जी लेने दो !!४!!

जाने   कैसा   तूफां   है   ये 
हाँ मिट कर फिर जी लेने दो !!५!!

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on April 1, 2016 at 5:26pm — 10 Comments

बस मैं जानूं या तुम जानो ......

बस मैं जानूं या तुम जानो ......



पीर पीर   को    क्या    जाने

नैन   विरह   से      अनजाने

वो दृग स्पर्श की अकथ कथा

बस   मैं   जानूं या तुम जानो ....... 



पल बीता  कुछ  उदास  हुआ

रुष्ट श्वास से  मधुमास   हुआ

क्यूँ दृगजल से घन बरस पड़े

बस  मैं  जानूं  या  तुम जानो ....... .

तुम   हर   पल   मेरे साथ थे

मेरी   श्वास   के  विशवास थे

क्यूँ   शेष   बीच  अवसाद रहे

बस  मैं   जानूं  या तुम जानो…

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Added by Sushil Sarna on March 31, 2016 at 5:00pm — 12 Comments

बेवफाई ....

बेवफाई ....

एक जानवर

अपने मालिक को

इंसान समझने की

गलती कर बैठा

उसे अपना खुदा समझ बैठा

वक्त बेवक्त उसकी रक्षा करने को

अपना फर्ज समझ बैठा

उसके हर इशारे पर

जानवर होते हुए भी

खुद को न्योछावर कर बैठा

डाल दिये टुकड़े तो खा लिए

वरना खामोशी से

अपने पेट से समझोता कर बैठा

अपने दर्द को

अपने कर्मों की सजा समझ बैठा

जगता रहा वो रातों को

ताकि मालिक चैन से सो सके

इक जरा सी गलती ने

मालिक ने उसकी पीठ पर

जानवर का…

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Added by Sushil Sarna on March 29, 2016 at 2:53pm — 2 Comments

कुछ गीत सुनाने हैं मुझको .....

कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ......

कुछ गीत सुनाने हैं मुझको 

कुछ मीत मनाने हैं मुझको

जो अब तक पूरे हो  न सके 

वो  गीत   बनाने हैं मुझको

कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....

कब मौसम जाने रूठ गया

कब शाख से पत्ता टूट गया

जो रिश्तों में हैं सिसक रहे

वो दर्द अपनाने हैं  मुझको

कुछ गीत सुनाने हैं मुझको ....

क्यूँ नैन शयन में  बोल उठे

क्यूँ सपन व्यर्थ में डोल उठे

अवगुंठन में तृषित हिया के

अंगार   मिटाने  …

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Added by Sushil Sarna on March 26, 2016 at 6:22pm — 10 Comments

मन बहुत उदास है ...

मन बहुत उदास है ...

जाने क्यूँ आज

मन बहुत उदास है

वज़ह भी कोई ख़ास नहीं

फिर भी एक

अंजानी से उदासी ने

हृदय में पाँव पसार रखे हैं //

लगता है शायद

कुछ ऐसा रह गया

जो अपनी पूर्णता को

प्राप्त न कर सका हो //

या फिर कोई लम्हा

शब की चादर में

अधूरी ख्वाहिशों की उदासी के साथ

धीरे धीरे अंगड़ाई लेते लेते

जाग गया हो //

या फिर कोई याद

तन्हाईयों में रक्स करती

उदासी के घरौंदे में…

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Added by Sushil Sarna on March 22, 2016 at 4:25pm — 4 Comments

संग तुम्हारे नाम के ......

संग तुम्हारे नाम के ......

इस लम्हा

जब शून्यता ने

मुझे अंगीकार कर लिया है //

मेरे ख्वाब

सूखे शज़र के ज़र्द पत्तों से

बिखर गए हैं 

कम से कम

मुझ पर इतना तो रहम कर दो

तुम अपनी याद का

इक चराग तो जलने दो//

इस लम्हा

जब मेरा वज़ूद

ख़ाक में मिलने से पहले

अंतिम साँसों से

जीने की जिद्दो ज़हद में उलझा है

अपने अस्तित्व की याद को

मेरे ज़हन में जी लेने दो//

इस लम्हा जब

मेरी तमाम हसरतें…

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Added by Sushil Sarna on March 21, 2016 at 2:15pm — 4 Comments

कैनवास ...

कैनवास ...

मुझे बहुत खुशी हुई थी

जब हर शख़्श

तुम्हें सलाम कर रहा था

तुम्हारे हर रंग की कद्र हो रही थी

तुम वाहवाही के नशे में गुम थे //



भीड़ में तन्हा

मैं तुम्हारे चहरे को निहार रही थी

इतने चहरे लिए

न जाने लोग कैसे जी लेते हैं

खुद को ज़िंदा रखने के लिए

न जाने

कितनों की खुशियाँ पी लेते हैं //



तुम कैसे पुरुष हो

औरत चाहते हो पर

उसे समझ नहीं पाते

उसके अहसासों से खिलवाड़ करते हो

न जाने कौन से…

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Added by Sushil Sarna on March 13, 2016 at 6:16pm — 12 Comments

अनाम रिश्ते......

अनाम रिश्ते......

 

मैंने कभी

उसके बारे में सोचा न था

न कभी

उसे ख्वाब में देखा था

उसके नाम से

मैं कभी आशना न थी

न कभी अपने दिलोदिमाग में

उसे पाने की तमन्ना का

कोई बीज बोया था

फिर भी न जाने क्यूँ 

सदा मुझे किसी साये के

करीब होने का अहसास होता था

शब की तारीकियों हों

या मेरी तन्हाईयाँ हों

मेरे हर लम्हे को

वो अपनी मौजूदगी के अहसास से

लबरेज़ करता था

उसके अहसास ने…

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Added by Sushil Sarna on March 10, 2016 at 3:39pm — 7 Comments

मैंने सोचा न था ......

मैंने सोचा न था ......

मुझे गीत का नाम देकर

तुम बार बार

मुझे गुनगुनाओगे

सच ! ऐसा तो कभी

मैंने सोचा न था//

मेरे रक्ताभ अधरों पर

अपनी अनुभूति का

अनमोल स्पर्श छोड़ जाओगे

सच ! ऐसा तो कभी

मैंने सोचा न था//

मेरे अंतरंग पलों में

प्रेम घनों की

नन्ही बूंदों सा बरसता

तुम कोई राग छोड़ जाओगे

सच ! ऐसे तो कभी

मैंने सोचा न था//

कभी मेरी मूक व्यथा

शून्यता से मिल

उसके अंक में…

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Added by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 9:34pm — 14 Comments

इक उम्र जी जाती हूँ ....

इक उम्र जी जाती हूँ ....

उसके जाने के बाद मैं

कितनी बेख़बर सी हो गयी हूँ

नींदें सुहाती नहीं

यादें सुलाती नहीं

आईना बेगाना सा लगता है

अक्स भी अंजाना सा लगता है

लिबास बदलूं

तो किस के लिए

शाम-ओ-सहर उदासियों के

मंज़र कहर ढाते हैं

ज़िस्म पर लम्स के अहसास

कतरनों से सजे नज़र आते हैं

चलती हूँ तो न जाने

कितने लम्हे साथ चलते हैं

एक आहट के इंतज़ार में

काफिले अश्कों के पिघलते हैं

शब् तो अब भी होती है मगर

अब हर…

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Added by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 2:06pm — 14 Comments

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