शक करने का काम
वो शक करता है
हर मिलने-जुलने वालों पर
और अपने गुर्गों द्वारा
करता रहता पड़ताल
कहीं कोई भेदिया तो
बदल कर भेस
घुस आया हो
उसके आभा-मंडल में....
वो शक करता है
अपने दरबारी, सिपहसालारों पर
चमचों-चाटुकारों पर
इसीलिये कुछ को देता रहता है सज़ाएँ
कुछ को पुरस्कार
कुछ का तिरस्कार....
वो शक करता…
ContinueAdded by anwar suhail on April 24, 2013 at 10:04pm — 8 Comments
Added by anwar suhail on April 13, 2013 at 8:40pm — 12 Comments
इत्ते सारे लोग यहाँ हैं
इत्ती सारी बातें हैं
इत्ते सारे हंसी-ठहाके
इत्ती सारी घातें हैं...
बहुतों के दिल चोर छुपे हैं
सांप कई हैं अस्तीनों में
दांत कई है तेज-नुकीले
बड़े-बड़े नाखून हैं इनके
अक्सर ऐसे लोग अकारन
आपस में ही, इक-दूजे को
गरियाते हैं..लतियाते हैं
इनके बीच हमें रहना है
इनकी बात हमें सुनना है
और इन्हीं से बच रहना है...
जो थोड़ें हैं सीधे-सादे
गुप-चुप, गम-सुम
तन्हा-तन्हा से जीते हैं…
Added by anwar suhail on April 9, 2013 at 8:44pm — 6 Comments
Added by anwar suhail on March 29, 2013 at 8:59pm — 13 Comments
हमने चुना
अपने लिए
एक नर्क
या धकेल दिया था तुमने
हमें नर्क में...
कोई फर्क नहीं पड़ता...
नर्क
भले ही जैसा था
हमने उसमें बसने का
बना लिया मन
और ठुकरा दिया
तुम्हारे स्वर्ग को
उन लुभावने सपनो को
जिसे दिखलाते रहे तुम
और तुम्हारे दलाल…
ContinueAdded by anwar suhail on March 27, 2013 at 7:52pm — 4 Comments
थका तन
थका मन
कैसे चले जांगर
क्या जा पाएंगे घर ?
हुक्म देने वाले
ठाने बैठे हैं जिद
एक काम होता नही खत्म
कि दूजे का हुक्म मिल जाता..
पंछी भी लौट आते
घर अपने
नियत समय पर
लेकिन हम पंछी नहीं
सूरज भी छिप जाता
क्षितिज पार
नियत समय पर
लेकिन हम सूरज नही
तो क्या हम समंदर की लहरें हैं
जो दिन-रात अनथक
आ-आकर टकराती रहतीं किनारों पर
और…
ContinueAdded by anwar suhail on March 16, 2013 at 9:00pm — No Comments
टूथ-पेस्ट की ट्यूब
और एक दिन ऐसा भी आता है
खूब खूब दबाने से निकलता
चने के दाने बराबर
इत्ता सा टूथ-पेस्ट...
कि बने झाग थोडा सा
मुंह की बदबू दूर हो जाए
मुहलत मिले इतनी कि
शाम खदान से लौटते वक्त
ज़रूर खरीद लाना है
एक नया टूथ-पेस्ट...
अगली सुबह
हड़बड़ी में
वाश बेसिन के सामने
ब्रुश उठाते ही हाथ में
दिख जाता वही
पिचका
चिपटा
तुडा-मुडा टूथपेस्ट
मुंह…
ContinueAdded by anwar suhail on March 13, 2013 at 9:31pm — 4 Comments
समीक्षा: उपन्यास ‘पहचान’
जद्दोजहद पहचान पाने की
-जाहिद खान
किसी भी समाज को गर अच्छी तरह से जानना-पहचाना है, तो साहित्य एक बड़ा माध्यम हो सकता है। साहित्य में जिस तरह से समाज की सूक्ष्म विवेचना होती है, वैसी विवेचना समाजशास्त्रीय अध्ययनों में भी मिलना नामुमकिन है। कोई उपन्यास, कहानी या फिर आत्मकथ्य जिस सहजता और सरलता…
ContinueAdded by anwar suhail on March 12, 2013 at 9:00pm — 1 Comment
ज़रूरी नहीं
कि हम पीटें ढिंढोरा
कि हम अच्छे दोस्त हैं
कि हमें आपस में प्यार है
कि हम पडोसी भी हैं
कि हमारे साझा रस्मो-रिवाज़ हैं
कि हमारी मिली-जुली विरासतें हैं
कतई ज़रूरी नहीं है ये
कि हम दुनिया के सामने
अपने प्यार का इज़हार करें
क्योंकि जब दोस्ती टूटती है
जब प्यार नफरत में बदलता है
तब रिश्तों में खटास आती है
तब दिल टूट जाते हैं
तब अकबका जाते हैं वे लोग
जिनके दिल मोम हैं
जो…
ContinueAdded by anwar suhail on March 10, 2013 at 7:24pm — 8 Comments
जाने क्यों आजकल
जब भी
देखता / सुनता हूँ ख़बरें
तो धड़कते दिल से
यही सुनना चाहता हूँ
न हो किसी आतंकी घटना में
किसी मुसलमान का हाथ...
अभी जांच कार्यवाही हो रही होती है
कि आनन्-फानन
टी वी करने लगता घोषणाएं
कि फलां ब्लास्ट के पीछे है
मुस्लिम आतंकवादी संगठन...
बड़ी शर्मिंदगी होती है
बड़ी तकलीफ होती है
कि मैं भी तो एक मुसलमान हूँ
कि मेरे जैसे
अमन-पसंद मुसलमानों के बारे…
ContinueAdded by anwar suhail on March 8, 2013 at 9:11pm — 11 Comments
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