२१२२ २१२२ २१२२ २१२
मेरी पलकें नम हुईं ज्यों आपको क्या हो गया
मेरा तो हर ख्वाब टूटा क्या तुम्हारा खो गया
शख्स जो कहता था मुझसे राह अब उसकी जुदा है
देख कर मुझको नशे में, बालकों सा रो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on April 10, 2015 at 11:00am — 9 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
इशारों को शरारत ही कहूं या प्यार ही समझूं
कहूं मरहम इसे या खंजरों का वार ही समझूं
कशिश बातों में तेरी अब अजब सी मुझ को लगती है
तेरी बातों को बातें ही या फिर इकरार ही समझूं
वो डर के भेडियों से आज मेरे पास आये हैं
कहूं हालात इसको या कि मैं ऐतवार ही समझूं
तेरी नजरों ने कैसी आग सीने में लगाई है
तुझे कातिल कहूं मैं या इसे उपकार ही समझूं
पड़े ओंठों पे ताले पलकें उठती…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 24, 2015 at 10:00am — 22 Comments
२१२२ ११२२ १२२२ २२/११२ तेरी मुस्कान तेरी शान तेरा ये जलवा काजू किशमिश से भरा जैसे बादामी हलवा तू न होता तो भला कैसे दिल से दिल मिलते ऐ हंसी गुल किसी जूही से मुझे भी मिलवा तेरी खुशबू में छुपा धड़कने दूंगा दिल की बात जैसे भी बने बात तो मेरी बनवा फायले दिल में हैं उनके तमामों नाम लिखे फैसला होने से पहले मेरी अर्जी… |
Added by Dr Ashutosh Mishra on March 3, 2015 at 4:30pm — 11 Comments
२२१२ २२११ २२१ १२२
अब हाले दिल ये उनको सुनाना ही पड़ेगा
लगता है अपने ओंठ हिलाना ही पड़ेगा
छत पे खड़े हैं आज वो ऊंचे मकान की
इस जिस्म में अब पंख लगाना ही पड़ेगा
लौटे हैं कितने रिंद उन्हें मान के पत्थर
जल्वा- ग़ज़ल का उनको दिखाना ही पड़ेगा
छुप छुप के देखें आह भरें होगा न हमसे
नजरों के तीखे तीर चलाना ही पड़ेगा
ग़ज़लों पे रखिये आप यकी आज भी अपनी
जलता हुआ दिल ले उन्हें आना ही…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on February 26, 2015 at 10:30am — 15 Comments
तरही ग़ज़ल
नयी उम्मीद की किरने जगाती है दिवाली में
वो नन्ही जान जब दीपक जलाती है दिवाली में
अगर हो हौसला दिल में तो तय है मात दुश्मन की
जला के खुद को बाती ये सिखातीहै दिवाली में
बताशे खील खिलते फूल दीपक झिलमिलाते यूं
नहीं मुफलिस को यादे गम सताती है दिवाली में
दियों का नूर चेहरे पर चले बल खा के शरमा के
वो कातिल शोख नजरों से पिलाती है दिवाली में
है रुत बहकी, हवा महकी, अजब दिलकश नज़ारा…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on February 6, 2015 at 11:30pm — 15 Comments
२१२२ २१२२ २१२२२
रहनुमा वो कह गया है क्या इशारों में
चारसू उठता धुंआ ही अब नजारों में
धुंध कुछ छाई है ऐसी अब फलक पे यूं
रोशनी मद्दिम सी लगती चाँद तारों में
साजिशों की आ रही है हर तरफ से बू
छुप के बैठी हैं खिजाएँ अब बहारों में
खेलते जो लोग थे तूफाँ में लहरों से
वक़्त ने उनको धकेला है किनारों में
है नहीं महफूज दुल्हन डोलियों में अब
क्या पता अहबाब ही हों इन…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on January 28, 2015 at 2:11pm — 17 Comments
२१२/ २१२/ २१२ /२१२
आँधियों में ही दीपक जलाते हैं हम
आहिनी हैं इरादे दिखाते हैं हम
आपको देखते देखते क्या हुआ!
आईये दिल की धड़कन सुनाते हैं हम
चाँद के सामने चाँद कैसा लगे
सोच कर भी न कुछ सोच पाते हैं हम
आईने पर हमारी नजर जब पडी
सोच कर हंस दिए क्या छुपाते हैं हम
बेबफा ही सही प्यार तो प्यार है
याद आता है जितना भुलाते हैं हम
दोस्तों पे यकी आज भी है हमें
दोस्ती की…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on January 2, 2015 at 5:39pm — 23 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
कब तलक दीपक जलेगा ये मुझे मालूम है
तप रहा सूरज ढलेगा ये मुझे मालूम है
कौन ऊँचाई पे कितनी ये नहीं मुझको पता
पर जमी में ही मिलेगा ये मुझे मालूम है
कितनी दौलत वो कमाता आप उससे पूँछिये
साथ उसके क्या चलेगा ये मुझे मालूम है
अपनी खुशियों के लिए जो आज कांटे बो रहे
कल उन्हें भी ये खलेगा ये मुझे मालूम है
वो बबूलों को लगाते आम की उम्मीद में
क्या हकीकत में फलेगा ये मुझे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 27, 2014 at 4:31pm — 16 Comments
२१२ २११ २२१ १२२ २२
चांदनी रात में बरसात अगर हो जाये
मेरे ख्वाबों कि कोई बात अगर हो जाये
यार मेरे तू ज़माने से सदा ही बचना
इक हसीं गुल से मुलाकात अगर हो जाये
काश! सहरा हो नजर जब भी बने दिल दुल्हा
यूं भी अरमानो कि बारात अगर हो जाये
आये हर सिम्त से बस यार महक जूही की
काश धरती पे ये हालात अगर हो जाये
तन ये साँसों से तपे हौले से शब् भर मेरा
काश ऐसी भी कभी रात अगर हो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on November 21, 2014 at 12:02pm — 18 Comments
2122 1122 1122 22
तेरे कूंचे से यूं खामोश निकलकर मैंने
तेरे दीदार किये रूप बदलकर मैंने
इक हिमालय की तरह तुमसे मिला था लेकिन
पाँव अब चूम लिए तेरे पिघलकर मैंने
भौरों कलियों कि कभी बात न मुझसे करना
उम्र अब तक तो है काटी यूं बहलकर मैंने
आजमाया है हुनर आज किसी बच्चे का
उनसे दिल मांग लिया उनका मचलकर मैंने
दिल की चाहत तो है इजहारे मुहब्बत करना
बात पर तुझसे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on October 9, 2014 at 4:00pm — 14 Comments
2122 2122 2122 २१२
आज ये महफ़िल सजाकर आप क्यूँ गुम हो गये
हमको महफ़िल में बुलाकर आप क्यूँ गुम हो गये
पोखरों को पार करना भी न सीखा है अभी
सामने सागर दिखाकर आप क्यूँ गुम हो गये
लहरों से डरकर खड़े थे हम किनारों पर यहाँ
हौसला दिल में जगाकर आप क्यूँ गुम हो गये
तीरगी के साथ में तूफ़ान भी कितने यहाँ
इक दफा दीपक जलाकर आप क्यूँ गुम हो गये
आपकी ये खामुशी चुभती है नश्तर सी हमें
हमको यूं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 24, 2014 at 3:01pm — 15 Comments
221 2121 1221 212
जल जल के सारी रात यूं मैंने लिखी ग़ज़ल
दर दर की ख़ाक छान ली तब है मिली ग़ज़ल
मैंने हयात सारी गुजारी गुलों के साथ
पाकर शबाब गुल का ही ऐसे खिली ग़ज़ल
मदमस्त शाम साकी सुराही भी जाम भी
हल्का सा जब सुरूर चढ़ा तब बनी ग़ज़ल
शबनम कभी बनी तो है शोला कभी बनी
खारों सी तेज चुभती कभी गुल कली ग़ज़ल
चंदा की चांदनी सी भी सूरज कि किरणों सी
हर रोज पैकरों में नए है ढली…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 20, 2014 at 1:30pm — 13 Comments
२१२२ २१२२ २1२२
जब भी सागर बनने इक दरिया चला है
पत्थरों को राह के हरदम खला है
जूझते दरिया पे जो कसते थे ताने
आज जलवे देख हाथों को मला है
यूं नहीं बढ़ता है कोई जिन्दगी में
बढ़ने वाला रात दिन हरदम चला है
अपने ही हाथों से रोका था हवा को
तब कहीं ये दीप आंधी में जला है
दोस्तों जिस को गले हमने लगाया
बस रहा अफ़सोस उसने ही छला है
मौलिक व…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2014 at 4:00pm — 14 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
ख्वाब जब दिल में हसीं पलने लगे है
अजनबी दो साथ में चलने लगे हैं
इश्क कोई अनबुझी सी है पहेली
जब हुआ सावन में तन जलने लगे हैं
वक़्त के अंदाज बदले यूं समझ लो
हुश्न आते पल्लू भी ढलने लगे हैं
आप के शानो पे सर रखते कसम से
लम्हे मेरी मौत के टलने लगे हैं
जिस घड़ी ओंठो को गुल के चूम बैठा
उस घड़ी से भौरों को खलने लगे हैं
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2014 at 4:30pm — 11 Comments
समस्त गुरुओं को सादर प्रणाम के साथ
2122 2122 2122 22/112
रास्ता रब का हमें जिसने दिखाया यारों
कह गुरु उसको है सर हमने झुकाया यारों
ज्ञान दीपक से किया जिसने जहाँ को रोशन
फन भी जीने का हमें उसने सिखाया यारों
भेद मजहब में कभी उसने किया ही है नहीं
पाठ उल्फत का ही कौमों को पढ़ाया यारों
नाम चाहे हो जुदा सब का है मालिक इक ही
गूढ़ बातों को सहज उसने बताया यारों
हाथ अन्दर से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 4, 2014 at 12:46pm — 12 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
वो कहें सागर में मिलकर आज दरिया खो गया
हम कहें सागर से दरिया मिल के सागर हो गया
सोच कुछ तेरी जुदा है सोच कुछ मेरी अलग
सोचिये सोचों का अंतर आज कैसा हो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 28, 2014 at 9:57am — 17 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
राह पर्वत पर बनाना इतना आसाँ है नहीं
दीप आंधी में जलाना इतना आसाँ है नहीं
सरहदों पे जान देते आज माँ के लाडले
गीत आजादी के गाना इतना आसाँ है नहीं
दोस्ती का हाथ लेकर फिर खड़े अहबाब हैं
जो दफ़न उसको जगाना इतना आसाँ है नहीं
बस्तियां चाहें जला लें आप कितनी भी यहाँ
है हकीकत घर बनाना इतना आसाँ है नहीं
हाथ हाथों से मिलाये हर किसी ने बज्म में
दिल से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 22, 2014 at 1:30pm — 24 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
सबने पूंछा आदमी को क्या हुआ है ?
क्या बताता आदमी को क्या हुआ है ?
खूबसूरत जिन्दगी बख्सी खुदा ने
गम ने मारा आदमी को क्या हुआ है ?
कोख में पाला हैं जिसने आदमी को
उसको लूटा आदमी को क्या हुआ ?
अब नहीं महफूज बहनें भी वतन में
सबने सोचा आदमी को क्या हुआ है ?
जिन्दगी की दौड़ में हो बेखबर यूं
फर्ज भूला आदमी को क्या हुआ है ?
मौलिक व…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2014 at 2:55pm — 8 Comments
२१२२ ११२२ २१२
तेरी बातों से बड़ा हैरान हूँ
जिन्दगी मेरी बड़ा परेशान हूँ
क्या खता है, है सही क्या, क्या गलत
बेखबर इन से अभी नादान हूँ
मेरी खातिर है नहीं इक पल उन्हें
जो कहा करते थे उनकी जान हूँ
इश्क करना भी हुनर इक हो गया
इस हुनर से तो अभी अनजान हूँ
सांस चलती है तो जिंदा कहते सब
पर खबर मुझको कि मैं बेजान हूँ
है न चाहत का सबब मुझको पता
धड़कने कहती हैं बस कुरवान…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2014 at 3:25pm — 10 Comments
२२ १२२२ २१२ २१२ २२
कोशिस मसीहा बनने की जब कर रहा है तू
तो सूलियों पे चढ़ने से क्यूँ डर रहा है तू ?
मैंने सुना तू सोने को मिट्टी बताता है
क्यूँ फिर तिजोरी सोने से ही भर रहा है तू ?
सबको दिखाया करता है तू मुक्ति के पथ ही
खुद सोच क्यूँ घुट घुट के ही यूं मर रहा है तू ?
तूने उठायी उंगली सभी के चरित्र पर है
सबको खबर रातों में कहाँ पर रहा है तू
ले नाम क्यूँ मजहब का लड़ाता सभी को…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 15, 2014 at 4:30pm — 21 Comments
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