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Dr Ashutosh Mishra's Blog (134)

मेरी पलकें नम हुईं ज्यों आपको क्या हो गया

२१२२  २१२२  २१२२  २१२ 

 

मेरी पलकें नम हुईं ज्यों आपको क्या हो गया 

मेरा तो हर ख्वाब टूटा क्या तुम्हारा खो गया 

 

शख्स  जो कहता था मुझसे राह अब उसकी जुदा है 

देख कर मुझको नशे में, बालकों सा रो…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on April 10, 2015 at 11:00am — 9 Comments

कहूं मरहम इसे या खंजरों का वार ही समझूं

१२२२     १२२२     १२२२  १२२२

इशारों को शरारत ही कहूं या प्यार ही समझूं 

कहूं मरहम इसे या खंजरों का वार ही समझूं 

कशिश बातों में तेरी अब अजब सी मुझ को लगती है 

तेरी बातों को बातें ही या फिर इकरार ही समझूं 

वो डर के भेडियों से आज मेरे पास आये हैं 

कहूं हालात इसको या कि मैं ऐतवार ही समझूं 

तेरी नजरों ने कैसी आग सीने में लगाई है 

तुझे कातिल कहूं मैं या इसे उपकार ही समझूं 

पड़े ओंठों पे ताले पलकें उठती…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on March 24, 2015 at 10:00am — 22 Comments

तेरी मुस्कान तेरी शान तेरा ये जलवा

२१२२  ११२२   १२२२   २२/११२

तेरी मुस्कान तेरी शान तेरा ये जलवा

काजू किशमिश से भरा जैसे बादामी हलवा

तू न होता तो भला कैसे दिल से दिल मिलते

ऐ हंसी गुल किसी जूही से मुझे  भी मिलवा

तेरी खुशबू में छुपा धड़कने दूंगा दिल की

बात जैसे भी बने बात तो मेरी बनवा

फायले दिल में हैं उनके तमामों नाम लिखे

फैसला होने से पहले मेरी अर्जी…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on March 3, 2015 at 4:30pm — 11 Comments

इस जिस्म में अब पंख लगाना ही पड़ेगा

२२१२ २२११ २२१ १२२

अब हाले दिल ये उनको सुनाना ही पड़ेगा

लगता है अपने ओंठ हिलाना ही पड़ेगा

छत पे खड़े हैं आज वो ऊंचे मकान की 

इस जिस्म में अब पंख लगाना ही पड़ेगा 

लौटे हैं कितने रिंद उन्हें मान के पत्थर 

जल्वा- ग़ज़ल का उनको दिखाना ही पड़ेगा 

छुप छुप के देखें आह भरें होगा न हमसे  

नजरों के तीखे तीर चलाना ही पड़ेगा 

ग़ज़लों पे रखिये आप यकी आज भी अपनी 

जलता हुआ दिल ले उन्हें आना ही…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on February 26, 2015 at 10:30am — 15 Comments

वो कातिल शोख नजरों से पिलाती है दिवाली में

तरही ग़ज़ल 

नयी उम्मीद की किरने जगाती है दिवाली में 

वो नन्ही जान जब दीपक जलाती है दिवाली में 

अगर हो हौसला दिल में तो तय है मात दुश्मन की 

जला के खुद को बाती ये सिखातीहै दिवाली में 

बताशे खील खिलते फूल दीपक झिलमिलाते यूं 

नहीं मुफलिस को यादे गम सताती है दिवाली में 

दियों का नूर चेहरे पर चले बल खा के शरमा के 

वो कातिल शोख नजरों से पिलाती है दिवाली में 

है रुत बहकी, हवा महकी, अजब दिलकश नज़ारा…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on February 6, 2015 at 11:30pm — 15 Comments

चारसू उठता धुंआ ही अब नजारों में

२१२२  २१२२   २१२२२

 

रहनुमा वो कह गया है क्या इशारों में

चारसू उठता धुंआ ही अब नजारों में

 

धुंध कुछ छाई है ऐसी अब फलक पे यूं

रोशनी मद्दिम सी लगती चाँद तारों में

 

साजिशों की आ रही है हर तरफ से बू

छुप के बैठी हैं खिजाएँ अब बहारों में

 

खेलते जो लोग थे तूफाँ में लहरों से

वक़्त ने उनको धकेला है किनारों में

 

है नहीं महफूज दुल्हन डोलियों में अब

क्या पता अहबाब ही हों इन…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on January 28, 2015 at 2:11pm — 17 Comments

आँधियों में ही दीपक जलाते हैं हम

२१२/  २१२/    २१२   /२१२

आँधियों में ही दीपक जलाते हैं हम

आहिनी हैं इरादे दिखाते हैं हम

 

आपको देखते देखते क्या हुआ!

आईये दिल की धड़कन सुनाते हैं हम

 

चाँद के सामने चाँद कैसा लगे

सोच कर भी न कुछ सोच पाते हैं हम

 

आईने पर हमारी नजर जब पडी

सोच कर हंस दिए क्या छुपाते हैं हम

 

बेबफा ही सही प्यार तो प्यार है

याद आता है जितना भुलाते हैं हम

 

दोस्तों पे यकी आज भी है हमें

दोस्ती की…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on January 2, 2015 at 5:39pm — 23 Comments

कब तलक दीपक जलेगा ये मुझे मालूम है

२१२२   २१२२   २१२२   २१२

कब तलक दीपक जलेगा ये मुझे मालूम है

तप रहा सूरज ढलेगा ये मुझे मालूम है

 

कौन ऊँचाई पे कितनी ये नहीं मुझको पता

पर जमी में ही मिलेगा ये मुझे मालूम है

 

कितनी दौलत वो कमाता आप उससे पूँछिये

साथ उसके क्या चलेगा ये मुझे मालूम है

 

अपनी खुशियों के लिए जो आज  कांटे बो रहे

कल उन्हें भी ये खलेगा ये मुझे मालूम है

 

वो बबूलों को लगाते आम की उम्मीद में

क्या हकीकत में फलेगा ये मुझे…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on December 27, 2014 at 4:31pm — 16 Comments

मेरे ख्वाबों कि कोई बात अगर हो जाये

२१२     २११    २२१    १२२   २२ 

 

चांदनी रात में बरसात अगर हो जाये

मेरे ख्वाबों कि कोई बात अगर हो जाये

 

यार मेरे तू ज़माने से सदा ही बचना

इक  हसीं  गुल से मुलाकात अगर हो जाये

 

काश! सहरा हो नजर जब भी बने दिल दुल्हा

यूं भी अरमानो कि बारात अगर हो जाये

 

आये हर सिम्त से बस यार महक जूही की  

काश धरती पे ये हालात अगर हो जाये

 

तन ये साँसों से तपे हौले से शब् भर मेरा

काश ऐसी भी कभी रात अगर हो…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on November 21, 2014 at 12:02pm — 18 Comments

तेरे कूंचे से यूं खामोश गुजरकर मैंने

2122   1122   1122  22

तेरे कूंचे से यूं खामोश निकलकर  मैंने 

तेरे दीदार किये रूप बदलकर मैंने 

इक हिमालय  की तरह तुमसे मिला था लेकिन

 पाँव  अब चूम लिए तेरे पिघलकर मैंने 

 भौरों कलियों कि कभी  बात न मुझसे करना 

उम्र अब तक तो है काटी यूं बहलकर मैंने 

आजमाया है हुनर आज किसी बच्चे का

उनसे दिल मांग लिया उनका मचलकर मैंने  

दिल की चाहत तो है इजहारे मुहब्बत करना 

बात पर तुझसे…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on October 9, 2014 at 4:00pm — 14 Comments

आपकी ये खामुशी चुभती है नश्तर सी हमें

2122  2122   2122   २१२ 

 

आज ये महफ़िल सजाकर आप क्यूँ गुम हो गये

हमको महफ़िल में बुलाकर आप क्यूँ गुम हो गये

 

पोखरों को पार करना भी  न सीखा है अभी

सामने सागर दिखाकर आप क्यूँ गुम हो गये

 

लहरों से डरकर खड़े थे हम किनारों पर यहाँ

हौसला दिल में जगाकर आप क्यूँ गुम हो गये

 

तीरगी के साथ में तूफ़ान भी कितने यहाँ

इक दफा दीपक जलाकर आप क्यूँ गुम हो गये

 

आपकी ये खामुशी चुभती है नश्तर सी हमें

हमको यूं…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on September 24, 2014 at 3:01pm — 15 Comments

मैंने हयात सारी गुजारी गुलों के साथ

221   2121   1221    212  

 

जल जल के सारी रात यूं मैंने लिखी ग़ज़ल

दर दर की ख़ाक छान ली तब है मिली ग़ज़ल

 

 मैंने हयात सारी गुजारी गुलों के साथ

पाकर शबाब गुल का ही ऐसे खिली ग़ज़ल

 

मदमस्त शाम साकी सुराही भी जाम भी

हल्का सा जब सुरूर चढ़ा तब बनी ग़ज़ल

 

शबनम कभी बनी तो है शोला कभी बनी

खारों सी तेज चुभती कभी गुल कली ग़ज़ल

 

चंदा की चांदनी सी भी सूरज कि किरणों सी

हर रोज पैकरों में नए है ढली…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on September 20, 2014 at 1:30pm — 13 Comments

पत्थरों को राह के हरदम खला है

२१२२         २१२२       २1२२  

जब भी सागर बनने इक दरिया चला है 

पत्थरों को राह के हरदम खला है 

जूझते दरिया पे जो कसते थे ताने 

आज जलवे देख हाथों को मला है 

यूं नहीं बढ़ता है कोई जिन्दगी में

बढ़ने वाला रात दिन हरदम चला  है

अपने ही हाथों से रोका था हवा को  

तब कहीं ये दीप आंधी में जला है

दोस्तों जिस को गले हमने लगाया 

बस रहा अफ़सोस उसने ही छला है 

मौलिक व…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2014 at 4:00pm — 14 Comments

इश्क कोई अनबुझी सी है पहेली

२१२२   २१२२   २१२२ 

ख्वाब जब दिल में हसीं पलने लगे है

अजनबी दो साथ में चलने लगे हैं 

इश्क कोई अनबुझी सी है पहेली 

जब हुआ सावन में तन जलने लगे हैं 

वक़्त के अंदाज बदले यूं समझ लो 

हुश्न आते पल्लू भी ढलने लगे हैं 

आप के शानो पे सर रखते कसम से 

लम्हे मेरी मौत के टलने लगे हैं 

जिस घड़ी ओंठो को गुल के चूम बैठा 

उस घड़ी से भौरों को खलने लगे हैं 

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2014 at 4:30pm — 11 Comments

नाम चाहे हो जुदा सब का है मालिक इक ही

समस्त गुरुओं को सादर प्रणाम के साथ 

2122     2122  2122     22/112 

रास्ता रब का हमें जिसने दिखाया यारों 

कह गुरु उसको है  सर हमने झुकाया यारों 

ज्ञान दीपक से किया जिसने जहाँ को रोशन 

फन भी जीने का हमें उसने सिखाया यारों 

भेद मजहब में कभी उसने किया ही है नहीं 

पाठ उल्फत का ही कौमों को पढ़ाया यारों 

नाम चाहे हो जुदा सब का है मालिक इक ही 

गूढ़ बातों को सहज उसने बताया यारों 

हाथ अन्दर से…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on September 4, 2014 at 12:46pm — 12 Comments

चूस हाथों के अंगूठे नन्हा बचपन सो गया

२१२२    २१२२     २१२२      २१२ 

 

वो कहें सागर  में मिलकर आज दरिया खो गया 

हम कहें सागर से दरिया मिल के सागर हो गया 

 

सोच कुछ तेरी जुदा है सोच कुछ मेरी अलग

सोचिये सोचों का अंतर आज  कैसा हो…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on August 28, 2014 at 9:57am — 17 Comments

दीप आंधी में जलाना इतना आसाँ है नहीं

२१२२      २१२२     २१२२     २१२  

राह पर्वत पर बनाना इतना आसाँ है नहीं 

दीप आंधी में जलाना  इतना आसाँ है नहीं 

सरहदों पे जान देते आज माँ के लाडले 

गीत आजादी के गाना इतना आसाँ है नहीं 

दोस्ती का हाथ लेकर फिर खड़े अहबाब हैं 

जो दफ़न उसको जगाना इतना आसाँ है नहीं 

बस्तियां चाहें जला लें आप कितनी भी यहाँ 

है हकीकत घर बनाना इतना आसाँ है नहीं 

हाथ हाथों से मिलाये हर किसी ने बज्म में 

दिल से…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on August 22, 2014 at 1:30pm — 24 Comments

सबने पूंछा आदमी को क्या हुआ है ?

२१२२      २१२२         २१२२ 

सबने पूंछा आदमी को क्या हुआ है ?

क्या बताता आदमी को क्या हुआ है ?

खूबसूरत जिन्दगी बख्सी खुदा ने 

गम ने मारा आदमी को क्या हुआ है ?

कोख में पाला हैं जिसने आदमी को 

उसको लूटा आदमी को क्या हुआ ?

अब नहीं महफूज बहनें भी वतन में 

सबने सोचा आदमी को क्या हुआ है ?

जिन्दगी की दौड़ में हो बेखबर यूं 

फर्ज भूला आदमी को क्या हुआ है ?

मौलिक व…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2014 at 2:55pm — 8 Comments

इश्क करना भी हुनर इक हो गया

२१२२  ११२२  २१२

तेरी बातों से बड़ा हैरान हूँ

जिन्दगी मेरी बड़ा परेशान हूँ

क्या खता है, है सही क्या, क्या गलत

बेखबर इन से अभी नादान हूँ

मेरी खातिर है नहीं इक पल उन्हें 

जो कहा करते थे उनकी जान हूँ

इश्क करना भी हुनर इक  हो गया

इस हुनर से तो अभी अनजान हूँ

सांस चलती है तो जिंदा कहते सब

पर खबर मुझको कि मैं बेजान हूँ

है न चाहत का सबब मुझको पता

धड़कने कहती हैं बस  कुरवान…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2014 at 3:25pm — 10 Comments

मैंने सुना तू सोने को मिट्टी बताता है

२२     १२२२      २१२    २१२   २२

कोशिस मसीहा बनने की जब  कर रहा है तू

तो  सूलियों पे चढ़ने से क्यूँ  डर रहा है तू ?

 

मैंने सुना तू सोने को मिट्टी बताता है

क्यूँ फिर तिजोरी सोने से ही भर रहा है तू ?

 

सबको दिखाया करता है तू मुक्ति के पथ ही

खुद सोच क्यूँ घुट घुट के ही यूं मर रहा है तू ?

 

तूने उठायी उंगली सभी के चरित्र पर है

सबको खबर रातों में कहाँ पर रहा है तू

 

ले नाम क्यूँ मजहब का लड़ाता सभी को…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on July 15, 2014 at 4:30pm — 21 Comments

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