याद आ गया फिर
मुझे मेरा बचपन ,
पिता की उंगली थामे,
नन्हें कदमों से नापना,
दूरियाँ, चलते चलते ,
वो थक कर बैठ जाना ,
झुक कर फिर पिता का ,
मुझको गोदी उठाना ,
चलते चलते मेहनत का,
पाठ वो धीरे से समझाना ।
बच्चों पढ़ना है सुखदाई,
मिले इसी मे सभी भलाई,
पहले कुछ दिन कष्ट उठाना,
फिर सब दिन आनंद मनाना,
फिर आ गया याद,
उनका ये गुनगुनाना ,
सिर पर वो उनका हाथ,
भर देता है मुझमे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on July 22, 2013 at 6:30pm — 13 Comments
सूरज की रश्मियों मे ,
चमक बन के रहते हो ।
जाग्रत करते सुप्त मन प्राण ,
सुवर्ण सा दमके तन मन ।
चन्द्रमा की शीतलता मे ,
धवल मद्धम चाँदनी से तुम,
अमलिन मुख प्रशांत हो ।
सागर से गहरे हो तुम ,
कितना कुछ समा लेते हो ।
नूतन पथ के साथी ,
जीवन तरंगो के स्वामी ।
मन हिंडोल के बीच ,
सिर्फ तुम किलोल कालिंदी । .
सुनो प्रिय तुम ही ,
तुम ही .....प्रिय तुम ही ।..... अन्नपूर्णा…
ContinueAdded by annapurna bajpai on July 9, 2013 at 8:30pm — 9 Comments
टूटे रिश्तों की किरचियाँ ,
कभी जुड़ नहीं पातीं ,
शायद कोई जादू की छड़ी ,
जोड़ पाती ये किरचियाँ ।
.
ये चुभ कर निकाल देतीं हैं ,
दो बूंद रक्त की , और अधिक
चुभन के साथ बढ़ जाती है ,
पीड़ा न दिखाई देती हैं ।
.
चुप रह कर सह जाती हूँ ,
आँख मूँद कर देख लेती हूँ ,
शायद कोई प्यारी सी झप्पी ,
मिटा पाती ये दूरियाँ। .... अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on July 9, 2013 at 8:30pm — 6 Comments
(1)
ये ईश का दरबार है ,
खुश रंग गलीचे बिछे है ।
अंबर का है तम्बू तना है ,
रवि चन्द्र तारे जगमगाते ।
कैसी ये मौजे बहार है ॥
(2)
नदियों मे बहता नीर है ,
वायु का वेग गंभीर है ।
सागर की है अनुपम छटा ,
जहां रत्न का भरा भंडार है।।
(3)
न्यायकारी निर्विकारी ,
तू जगत करतार है ।
तेरी महिमा अति अगम ,
नहीं जिसका पारावार है ॥
(4)
इकरार नहीं पूरा किया ,
ज्यो किया गर्भ मे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on July 1, 2013 at 6:00pm — 2 Comments
हरी भरी धरती मन मोहती है ,
चहुं ओर फैली हरियाली मोहती है ,
मुसकुराते खिले कुसुम मोहते हैं,
झूमते पेड़ पौधे मन मोहते है ।
अद्भुत है धरती का सौंदर्य ,
कल कल करती नदिया बहती ,
चम चम करते पोखर तालाब ,
अद्भुत अनुपम धरा है दिखती।
किन्तु .....................
ऐ! धरती पुत्र आज तो ,
धरती माँ न ऐसी दिखती है,
टप टप गिरते आँसू बस रोती है,
मेरा श्रंगार करो बस ये ही कहती है।
किन्तु आज…
ContinueAdded by annapurna bajpai on June 6, 2013 at 8:00am — 18 Comments
चुल्लू भर पानी
चिलचिलाती धूप मे भी तेरह –चौदह वर्षीय किशोर सिर पर मलबे से भरी टोकरी उठाए बहुमंज़िली इमारत से नीचे उतर रहा था । उतरते उतरते उसे चक्कर आने लगा उसने सुबह से कुछ खाया नहीं था । उसके घर मे कोई बनाने वाला नहीं था , उसकी माँ बहुत बीमार थी उसके लिए दवा का बंदोबस्त जो करना था उसी के वास्ते वह काम करने आया था । चक्कर आने पर वह वहीं सीढियों पर दीवाल से सिर टिका कर…
ContinueAdded by annapurna bajpai on June 3, 2013 at 6:30pm — 5 Comments
तपते रेगिस्तान मे पानी की बूंद जैसी,
उफनती नदी के बीच कुशल खिवैया सी ।
ससुराल मे तरसती बहू के लिए माँ सी ,
तमाम गलतियों के बीच समाधान सी ।
…
ContinueAdded by annapurna bajpai on June 3, 2013 at 4:30pm — 11 Comments
शंक निशंक त्रिशंकु मन,
मचि रही उथल पुथल,
जीत हार का फेर करत
उठा पटक यह त्रिशंकु मन।
अंतर्द्वंद हिंडोल के बीच,…
ContinueAdded by annapurna bajpai on May 30, 2013 at 5:30pm — 4 Comments
मान मान मन मूरख मेरे,
मत फंस विषय जाल मे,
जो सुख चाहे भाग विषयन से,
मत इन फंद फंसे री ।
जनम जनम नहि इनसे उबरें,
ताते ध्यान धरे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on May 29, 2013 at 8:30am — 7 Comments
आकंठ डूबे हुये हो क्यों,
अज्ञान तिमिर गहराता है।
ये तेरा ये मेरा क्यों ,
दिन ढलता जाता है।
क्यों सोई अलसाई अंखियाँ,
न प्रकाश पुंज दिखाता है ।
जीवन मरण का फंदा ,
आ गलमाल बन लहराता है।
तब क्यों रोते हो,
जब सब छिनता जाता है।
खोलो ज्ञान चक्षु औ,
हटा दो तिमिर घनेरा।
फैले पुंज प्रकाश का ,
होवे दर्शन नयनाभिराम।
(अप्रकाशित एवं मौलिक)
Added by annapurna bajpai on May 26, 2013 at 12:00pm — 9 Comments
नाथ तुम अनुपम जाल बिछायो,
जगत को यहि मे भरमायो।
गरभवास मे करी प्रतिज्ञा,
यहाँ पर करि बिसरायो।
मातु पिता की गोदी खेलि के,
बाला पनहि बितायो ।
ज्वान भयो नारी घर आई,
तामे मन ललचायो।
सुंदर रूप देखि के भूल्यो,
जगत्पिता बिसरायो।
प्रौढ़ भए पर सुत औ नारी,
लई अंग लपटायो ।
आशा प्रबल भई मन भीतर,
अनगित पाप करायो।
पुण्य कार्य नहीं एकहु कीन्हे,
चारो पनहि बितायो…
ContinueAdded by annapurna bajpai on May 26, 2013 at 12:00pm — 7 Comments
मेरी नींदों मे ख्वाब बन कर रहते थे,
वो तुम ही तो थे ,
जिसके सपने मेरी आँखों ने सँजोये थे,
वो तुम ही तो थे ,
जो रहता था मेरे दिल की किसी ,…
ContinueAdded by annapurna bajpai on April 16, 2013 at 4:00pm — 8 Comments
वो नन्ही नन्ही सी गोल मटोल,
आंखे इधर उधर निहारती ,
कुछ तलाशती सी लगती ,
न पा सकने की स्थिति,
समझ न पाती .............
…
ContinueAdded by annapurna bajpai on April 11, 2013 at 9:00am — 10 Comments
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