पलक पर अश्क मत लाओ मेरे जो बाद बाकी है
फ़साना खत्म है मेरा मगर कुछ याद बाकी हैं
मेरा चर्चा करेंगे लोग महफिल में के जश्नों में
समझलेना दिवाने आज भी आबाद बाकी हैं
हजारों मिन्नतें करलीं खुदा के वास्ते उनसे
रहीं कुछ हसरतें बाकी फकत फरियाद बाकी हैं
मेरे कातिल मेरे दुश्मन जरा कुछ हौंसला रखना
बचाने को मेरी खातिर के कुछ इमदाद बाकी हैं
अ़मन के दुश्मनों से भी जरा कहदो जहाँ वालो
अभी तक आज तक इस देश में आजाद…
ContinueAdded by umesh katara on April 20, 2014 at 7:26pm — 17 Comments
मेरी धडकन में हो तुम ही,मेरी आबाज भी हो तुम
मेरी साँसों में तुम ही हो,मेरा अन्दाज भी हो तुम
यहाँ है अब तलक चर्चा हमारी ही मुहब्बत का
मगर मत भूल जाना तुम ,मेरे हमराज भी हो तुम
तुम्हारे ही निशाने पर रहा हूँ मैं हमेशा ही
कभी लगता है क्यों मुझको निशानेबाज भी हो तुम
कभी पल भर मैं ठहरा था, तेरी जुल्फों के साये मे
मुझे अहसास है अब तक ,मेरे सरताज भी हो तुम
गये लम्हों की कहकर थे ,कई अरसे गुजारे हैं
नहीं फिर…
ContinueAdded by umesh katara on April 17, 2014 at 8:12am — 14 Comments
वो तेरे नखरे तुझे कुछ खास करते हैं
आज भी हम तो मिलन की आस करते हैं
इन हवाओं में महकती है तेरी खुशबू
खोलकर खिडकी तेरा अहसास करते हैं
बन गयी नासूर मुझको खामुशी मेरी
ये जुबां वाले मेरा उपहास करते हैं
बेवफाई कर नहीं सकता सनम मेरा
लोग यूँ ही आजकल बकवास करते हैं
कौन आगे बोलता है अब सितमगर के
बैठते हैं साथ में और लाश करते हैं
उमेश कटारा
मौलिक एंव अप्रकाशित
Added by umesh katara on December 18, 2013 at 9:30am — 16 Comments
1222 1222
मेरे पीछे रुधन क्यों है
ये अश्कों का बज़न क्यों है
सजाया है जनाजे पर
उधारी का कफ़न क्यों है
कमायी पाप से दौलत
न काफी फिर ये धन क्यों है
बजा कर लाश पर बाजे
जगाने का जतन क्यों है
चले गोरे गये लेकिन
रुआँसा ये वतन क्यों है
हजारों घर जलाकर भी
ये माथे पर शिकन क्यों है
मौलिक एंव अप्रकाशित
उमेश कटारा
Added by umesh katara on December 10, 2013 at 3:30pm — 31 Comments
बह्र--222 221 122
लुट लुट कर बदहाल रहा हूँ
गम के आँसू पाल रहा हूँ
जीवन से ता उम्र लडा मैं
हथियारों को डाल रहा हूँ
किस्मत ने भी खूब नचाया
मैं पिटता सुरताल रहा हूँ
सब हमको ही बेच रहे थे
सस्ता बिकता माल रहा हँ
मकडी मरती आप उलझकर
खुदको बुनता जाल रहा हूँ
मरजाऊँ तो आँख न भरना
मैं अश्कों का ताल रहा हूँ
कर बैठा मैं प्यार अनौखा
रो रोकर बे-हाल रहा हूँ
मौलिक व…
Added by umesh katara on November 23, 2013 at 9:30am — 12 Comments
लाश मुहब्बत की उठाता फिरता हूँ
गीत गमों के गुनगुनाता फिरता हूँ
काश के मिल जाये खुशी का पल कोई
हाथ फकीरों को दिखाता फिरता हूँ
नींद हमें आती नहीं दुनिया वालो
साथ सितारों को जगाता फिरता हूँ
हो न अँधेरा आशियाने में उनके
सोच यही खुद को जलाता फिरता हूँ
खूब किया है फैसला किस्मत तूने
जख्म भरे दिल को छुपाता फिरता हूँ
उमेश कटारा
मौलिक एंव अप्रकाशित
Added by umesh katara on November 16, 2013 at 8:55am — 17 Comments
2122 2121 222
आप तो सचमुच कमाल करते हो
बेवफा होकर सवाल करते हो
जंग में तो हार जीत जायज है
हारने का क्यों मलाल करते हो
क्या हुआ जो बेवफा मुहब्बत थी
मुद्दतों से ही बवाल करते हो
.
पत्थरों के शह्र में बसर है तो
क्यों बिखरने का ख़याल करते हो
.
आदमी तो मर गया कभी से था
आत्मा को भी हलाल करते हो
उमेश कटारा
मौलिक एंव अप्रकाशित रचना
Added by umesh katara on November 8, 2013 at 7:00pm — 18 Comments
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