टूटी चूड़ियाँ
बह गया सिन्दूर
साथ ही टूटा
अनवरत
यंत्रणा का सिलसिला
बह गया फूटकर
रिश्तों का एक घाव
पिलपिला
अब चाँद के संग नहीं आएगा
लाल आँखें लिए
भय का महिषासुर
कभी कभी अच्छा होता है
असर
जहरीली शराब का ..
... नीरज कुमार ‘नीर’
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on November 14, 2013 at 8:30pm — 32 Comments
रांची का रेलवे स्टेशन.
फुलमनी ने देखा है
पहली बार कुछ इतना बड़ा .
मिटटी के घरों और
मिटटी के गिरिजे वाले गाँव में
इतना बड़ा है केवल जंगल.
जंगल जिसकी गोद में पली है…
ContinueAdded by Neeraj Neer on October 26, 2013 at 9:30am — 20 Comments
समतल उर्वर भूमि पर
उग आयी स्वतंत्रता
जंगली वृक्ष की भांति
आवृत कर लिया इसे
जहर बेल की लताओं ने
खो गयी इसकी मूल पहचान
अर्थहीन हो गए इसके होने के मायने .
..
गुलाब की पौध में,
नियमित काट छांट के आभाव में
निकल आती हैं जंगली शाख.
इनमे फूल नहीं खिलते
उगते हैं सिर्फ कांटे.
लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह ...
… नीरज कुमार ‘नीर’
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on October 22, 2013 at 7:30pm — 17 Comments
सांझ ढली
कुछ टूटा ,
भर गयी रिक्तता.
सब मूंद दिया कसकर.
अन्दर बाहर अब है,
एक रस.
घुप्प अँधियारा.
दिवस का…
ContinueAdded by Neeraj Neer on October 18, 2013 at 10:30pm — 10 Comments
कलियुग की कैसी माया देखो
रावण, रावण को आग लगाये
दशानन था रावण
इनके हैं सौ- सौ सर
लोभ, मोह, मद, इर्ष्या ,
द्वेष, परिग्रह, लालच,
राग , भ्रष्टाचार, मद, मत्सर
रहे बजबजा इनके भीतर
फिर भी जरा नहीं शर्माए .
कलियुग की कैसी माया देखो
रावण, रावण को आग लगाये .
पंडित था रावण ,
था, अति बलशाली ,
धर्महीन हैं ये, हृदयहीन ,
विवेकशून्य , मर्यादा से खाली.
आचरण हो जिनका राम सा
जनता जिनके राज्य…
ContinueAdded by Neeraj Neer on October 14, 2013 at 10:30am — 18 Comments
सागर , सरिता ,
निर्झर , मरू
कलरव करते विहग
सुन्दर फूल , गिरि , तरु
अरुणाई उषा की
रजनी से मिलन शशि का
जल, वर्षा , इन्द्रधनुष
कोटि जीव , वीर पुरुष
सब कितना मंजुल जग में
प्रकृति का रूप अनूप
लेकिन
नारी, तुम हो जगत में
प्रकृति का सबसे सुन्दर रूप.
......मौलिक एवं अप्रकाशित ....
Added by Neeraj Neer on October 1, 2013 at 8:30am — 17 Comments
Added by Neeraj Neer on September 23, 2013 at 8:30pm — 25 Comments
अर्द्ध रजनी है , तमस गहन है,
आलस्य घुला है, नींद सघन है.
प्रजा बेखबर, सत्ता मदहोश है,
विस्मृति का आलम, हर कोई बेहोश है.
ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?
रंगशाला रौशन है, संगीत है, नृत्य है,
फैला चहुँओर ये कैसा अपकृत्य है.
जो चाकर है, वही स्वामी है
जो स्वामी है, वही भृत्य है .
ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?
बिसात बिछी सियासी चौसर की
शकुनी के हाथों फिर पासा है .
अंधे, दुर्बल के हाथों सत्ता…
ContinueAdded by Neeraj Neer on September 15, 2013 at 4:30pm — 16 Comments
अपनों को खोके बहुत रोता है आदमी,
यादों के जब बोझ को ढोता है आदमी.
रिश्ते जो हो न सके कामयाब सफ़र में
उन्हीं को करके याद दामन भिगोता है आदमी
पहले काटता है पेड़, जलाता है जंगलात ,
एक टुकड़ा छांव को फिर रोता है आदमी .
बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय,
पाता वही वही है जो बोता है आदमी ..
......... नीरज कुमार ‘नीर’
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on September 14, 2013 at 3:00pm — 13 Comments
काल के चूल्हे पर
काठ की हांडी
चढ़ाते हो बार बार .
हर बार नयी हांडी
पहचानते नहीं काल चिन्ह को
सीखते नहीं अतीत से .
दिवस के अवसान पर
खो जाते हो
तमस के…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 31, 2013 at 9:07am — 26 Comments
दुमहले के ऊँचे वातायन से
हलके पदचापों सहित
चुपके से होती प्रविष्ट
मखमली अंगों में समेट
कर देती निहाल
स्वयं में समाकर एकाकार कर लेती
घुल जाता मेरा अस्तित्व
पानी में रंग की तरह
अम्बर के अलगनी पर
टांग दिए हैं वक्त ने काले मेघ
चन्द्रमा आवृत है , ज्योत्सना बाधित
अस्निग्ध हाड़ जल रहा
सीली लकड़ियों की तरह
स्मृति मञ्जूषा में तह कर रखी हुई हैं
सुखद स्मृतियाँ.....
.. नीरज कुमार…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 24, 2013 at 3:30pm — 23 Comments
कौन हो तुम ?
जन गण मन के अधिनायक.
कहाँ रहते हो ?
मैं तुम्हारी जय कहना चाहता हूँ.
बरसों से हूँ मैं तुम्हारी खोज में,
तुम शून्य हो या हो सर्वव्यापी,
ईश्वर की तरह .
कौन हो तुम ?
तुम भारत भूमि तो नहीं ,
भारत तो माता है,
माता कभी अधिनायक तो नहीं होती .
तुम हो भारत भाग्य विधाता .
फिर बदला क्यों नहीं भारत का भाग्य.
भारत के भाग्य का ऐसा क्यों लिखा विधान.
कैसे विधाता हो ?
तुम्हारा स्वरुप तुम्हारी…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 14, 2013 at 9:11pm — 13 Comments
सूरज के घोड़े चलते हैं निरंतर,
इस कोने से उस कोने तक ताकि
प्रकाश फैले कोने कोने में.
लेकिन घोड़ों के घर ही में रहता है अँधेरा.
प्रकाश उनसे ही रहता है दूर.
लेकिन उन्हें बोलने की इजाजत नहीं
मांगना उन्हें वर्जित है
घोड़े के मुंह में लगा होता है लगाम
उन्हें रूकने, हांफने और सुस्ताने की भी इजाजत नहीं
उन्हें बस चलते रहना है ताकि सूरज चल सके
निरंतर, निर्बाध.
डर है, रुके तो हिनहिना उठेंगे .
उनके आँखों पर लगी होती…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 11, 2013 at 7:52pm — 13 Comments
शरीफों में शराफत नहीं
सिंह बकरी सा मिमियाए.
देख के, भारत माता का
आंचल भी शर्माए.
**********
दुष्ट कब समझा है जग में
निश्छल प्रेम की परिभाषा.
अपनी ही लाशों पर लिखोगे
क्या देश की अभिलाषा.
लाल पत्थर की दीवारें भी
महफूज़ नहीं रख पाएंगी .
सीमा पर बही रक्त जब
दिल्ली तक तीर आएगी .
सत्ता सुख क्षणिक है
सदैव नहीं रह पायेगा.
दिल्ली की चौड़ी सड़कों पर
जब फिर से नादिर…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 9, 2013 at 11:30am — 14 Comments
दर्पण पे जमी हो धूल तो श्रृंगार कैसे हो,
भूखा हो जब आदमी तो प्यार कैसे हो .
पढ़ लिख कर सब बन गए दफ्तर के बाबू ,
खेतों में अनाज की अब पैदावार कैसे हो .
मंहगाई को जीद है अब छूने को आसमां,
गरीबों के घर तीज और त्यौहार कैसे हो .
मतलब नहीं है देश के आदमी को देश से,
राम जाने इस देश का बेड़ा पार कैसे हो .
ले चल मुझे अब दूर कहीं मुर्दों के शहर से ,
मुर्दों के शहर में गजल का कारोबार कैसे हो.
.…
ContinueAdded by Neeraj Neer on July 16, 2013 at 10:30pm — 13 Comments
(पति पत्नी में मंहगाई को लेकर होली पर नोकझोक)
बलम ना करो बलजोरी
अबके फागुन खेलूंगी ना
तोरे संग मैं होरी .
बलम ना करो बलजोरी .
मेरी बात माने नाहीं
मैं ना मानूंगी तोरी.
बलम ना करो बलजोरी.
बलम ना करो बलजोरी.
चांदी की पिचकारी लाओ,
लाओ रंग गुलाबी लाल,
जयपूर से लंहगा लाओ
तब जाकर छुओ गाल.
***********
मंहगाई की मार ने गोरी
जीना किया मुहाल.
पिचकारी मंहगी…
ContinueAdded by Neeraj Neer on March 24, 2013 at 11:44am — 8 Comments
जब तुम बुझा रहे थे अपनी आग,
मै जल रही थी.
मैं जल रही थी पेट की भूख से,
मैं जल रही थी माँ की बीमारी के भय से,
मैं जल रही थी बच्चों की स्कूल फीस की चिंता से .
जब तुम बुझा रहे थे अपनी आग,
मै जल रही थी.
*******
मैं बाहर थी
जब तुम मेरे अंदर प्रवेश कर रहे थे
मैं बाहर थी
हलवाई की दुकान पर.
पेट की जलन मिटाने के लिए
रोटियां खरीदती हुई.
मैं बाहर थी ,
दवा की दुकान पर
अपनी अम्मा के…
ContinueAdded by Neeraj Neer on March 21, 2013 at 10:31pm — 10 Comments
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