For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Featured Blog Posts (1,175)

जिंदगी

जिंदगी फ़िर हमें उस मोड़ पे क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।

जिंदगी तेरे हर फ़साने को , मैंने कोशिश किया भुलाने को ।

मेरी आंखों से खून के आंसू , कब से बेताब हैं गिर जाने को ।

मेरे माजी को मेरे सामने क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।

मैंने बस मुठ्ठी भर खुशी मांगी , प्यार की थोड़ी सी ज़मीं मांगी ।

अपनी तन्हाइयों से घबड़ाकर , अपनेपन की कुछ नमीं मांगी ।

क्या मिला- क्या ना मिला फ़िर वो बात याद आई । याद आई वो आँख मेरी भर आई ।

जिंदगी मैंने तेरा रूप… Continue

Added by satish mapatpuri on July 16, 2010 at 3:58pm — 6 Comments

सत्य दिखता नही ,

सत्य दिखता नही ,

या सच्चाई से परहेज हैं ,

सच्चाई स्वीकारते नहीं ,

इसी बात का खेद हैं ,

सच्चाई न स्वीकारना ,

कितना महंगा पड़ता है ,

आप ही देखिये ,

महाभारत गवाह हैं ,

रामायण ही लीजिये ,

रावण की लंका जली ,

सत्य दिखा तुलसी को ,

तो तुलसी दास बने ,

सत्य दिखा बाल्मीकि को ,

तो उत्तम प्रकाश बने ,

सत्य दिखा अर्जुन को ,

कितनो का कल्याण किये ,

सत्य दिखा सिद्धार्थ को ,

तो गौतम महान बने ,

सत्य दिखा हरिश्चंद्र को… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on July 15, 2010 at 3:00pm — 1 Comment

दिनचर्या

मैं नदियो पर बाँध बनाकर

और नहरें खोदकर ,

पानी किसानों के खेतों तक पहुचाता हू ॥

मैं सिंचाई विभाग में काम करता हू ॥





किसान कहते है

सर , जब फसलों में बालियां आती है

मेरे चेहरे में खुशियाली आती है ॥



पत्नी कहती है

जब किचन में लौकी काट देते हो

तुम अच्छे और सच्चे लगने लगते हो ॥







जब एक खिलाडी कम होता है

बच्चे कहते है ...

अंकल , बोल्लिंग कर दो न

कर देता हू ...

फिर कहते है ..थैंक अन्कल ॥



मैं… Continue

Added by baban pandey on July 14, 2010 at 6:37am — 1 Comment

मेरी कविता को लिफ्ट करो

हे ! प्रभु !!

महंगाई की तरह

मेरी कविता को लिफ्ट करो ॥

सब मेरे प्रशंसक बन जाए

ऐसा कुछ गिफ्ट करो ॥





जब भारतीय नेता न माने

जनता -जनार्दन की बात

डंके की चोट पर

वोटिंग मशीन पर हीट करो ॥

मेरी कविता को लिफ्ट करो





जब न पटे , हमारी - तुम्हारी

और काम न बने न्यारी -न्यारी

मत देखो इधर - उधर

दूसरी पार्टी में शिफ्ट करो ॥

मेरी कविता को लिफ्ट करो ॥





जब कानून की जड़े हिल जायें

और न्याय व्यवस्था सिल… Continue

Added by baban pandey on July 13, 2010 at 10:50pm — 2 Comments

मेरी कविता जलेबी नहीं है

मित्रो , कविता पढना प्रायः दुरूह कार्य है ...यह तब और कठिन हो जाता है ..जब कविता जलेबी हो हो जाती है , मेरा मतलब है , उसका अर्थ केवल ही कवि महोदय ही

explain कर सकते है ...कई मित्रो ने चाटिंग के दौरान मुझे बताया कि आप सरल रूप में लिखते है और कविता का भाव मन में घुस ... जाती है ।, आज अभी इसी के ऊपर एक कविता ....धन्यवाद



मेरी कविता कोई जलेबी नहीं है ॥



रहती है गरीबों के घर

किसानों की सुनती है यह

ये कोई हवेली नहीं है

मेरी कविता कोई जलेबी नहीं है… Continue

Added by baban pandey on July 13, 2010 at 12:52pm — 3 Comments

बंजारा मन

जब बंजारा मन
ज़िन्दगी के किसी
अनजान मोड़ पे
पा जाता है
मनचाहा हमसफ़र
चाहता है,कभी न
रुके यह सफ़र
एक एक पल बन जाये
एक युग का और
सफ़र यूं ही चलता रहे
युग युगांतर

Added by rajni chhabra on July 12, 2010 at 10:13pm — 2 Comments

हक ???

मुझे भी हक है

कुछ भी करूँ.

दूँ सबको दुख-दर्द

या करुँ किसी का कत्ल.

सबको मारूँ,

लाशों की ढेर पर नाचूँ,

देखकर मेरा मृत्युताण्डव,

काँप जाएँ,भाग जाएँ,

मौत का खेल खेलनेवाले दानव.

मुझे भी हक है

दूँ सबको गाली,

हो जाएँ

अपशब्द की पुस्तकें खाली.

ना देखूँ मैं,

माँ,बहन,भाई,

लगूँ मैं कसाई.

देखकर मेरा ऐसा रंग,

मर जाए मानवता,भाईचारा

और प्रेम का तन.

जब मैं ऐसा हो जाऊँगा,

थर्रा जाएँगे,

अपशब्द बोलने…
Continue

Added by Prabhakar Pandey on July 12, 2010 at 2:18pm — 4 Comments

सत्य आने के बाद

जब सत्य की नदी बहती है
तो, झूठ के पत्थर
अपना वजूद खो देते है ॥

जब सत्य की आंधी आती है
तो, झूठ के बांस -बल्लियों से
बने मकान ढह जाते है ॥

जब सत्य के रामचन्द्र आते है
तो झूठ का रावण
भस्म हो जाता है ॥


और जब सत्य से प्यार हो जाता है
तो , हम शबरी की तरह
जूठे बैर भगवान को भोग लगाते है ॥

Added by baban pandey on July 12, 2010 at 7:39am — 2 Comments

** " आँगन " **

**********

" आँगन "

**********



अब कोई चिड़िया नहीं आती मेरे आँगन के दरख़्त पर...



बेटे को गाँव के मेले से एक गुलेल दिलाई थी मैंने...



अब कोई तितली नहीं मंडराती

मेरे आँगन में बने कुए के पास लगे गेंदे के पौधे पर...



बेटे ने कुछ तितलियाँ पकड़ कर अपनी कॉपी में दबा ली थीं..



अब गैया नहीं खड़ी होती मेरे द्वार पर...



भगवान को लगे भोग की रोटी खाने...



बहुएं अब आँगन को गोबर से… Continue

Added by Dinesh Choubey on July 11, 2010 at 6:58pm — 6 Comments

आओ , दोस्ती को पंख लगायें

दोस्ती ... एक कलम

और मित्रों का प्यार .....एक अमित स्याही

दोस्तों से गुजारिश

ये स्याही मुझे देते रहो

इस स्याही से लिखना है मुझे

एक ऐसी कहानी

जिसे पढ़कर ......

कोई कभी ना कहे

"दोस्त , दोस्त ना रहा " ॥





दोस्त .... एक कुदाल

और दोस्ती ....मेहनत

आओ ... साथ मिलकर

मोहब्बत के कुछ ऐसे पेड़ लगायें

जिसके फल

प्रभु के चरणों में रखे जा सकें ॥



दोस्त है.... फूल

और दोस्ती ...उसकी खुशबू

आओ ! मेरे दोस्त

दिल… Continue

Added by baban pandey on July 11, 2010 at 8:45am — 3 Comments


मुख्य प्रबंधक
पहली ग़ज़ल

वो इक अलाव सा जिगर में लिए फिरते हैं ,

चिराग महल के झोपडी के खूँ से जलते हैं !



बंद भारत ने ठंडे कर दिए चूल्हे लाखों ,

है किस तरह की जंग रहनुमा जो लड़ते हैं



रोटियां सेंकते लाशों पे आपने लालच की,

ये कर्णधार मुझे तो जल्लाद लगते हैं !



वो ढूँढते है भगवान को मंदिर की ओट से,

हमारी आस्था ऐसी जो चक्की भी पूजते हैं !



अपना जाना जो उन्हें जान जाएगी "बागी"

वो ज़हरी नाग हैं जो आस्तीं में रहते है !



( मैं आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ,… Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 10, 2010 at 11:30pm — 10 Comments

आज फैशन का ज़माना हैं ,

आज फैसन का जमाना हैं ,

सारा जग माना हैं ,

हम सब अब ये भूल गए हैं ,

सच्चाई से दूर गए हैं ,

जिसको छुपाना हैं ,

उसकी नुमाइस होती हैं ,

जिसको दिखाना हैं ,

उसको छुपाई जाती हैं,

मैं नहीं ये तो ,

सारा जग माना हैं ,

आज फैसन का जमाना हैं ,

खाने में भी इसकी ,

अब होती नुमाइस हैं ,

भुट्टे को भूलने लगे ,

पापकोन की चोवाइस हैं ,

थोड़े में पेट भर जाये ,

खर्चा भी कम आये ,

मगर रोटी चावल नहीं ,

रेडी फॉर इट लाना हैं ,

आज… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on July 9, 2010 at 1:42pm — 1 Comment

गरीबी और भ्रष्टाचार

गरीबी और भ्रष्टाचार

एक तरह से देखे तो गरीबी और भ्रष्टाचार शास्वत समस्या है | यह समस्या सृष्टि के उद्भव से ही है और शायद सृष्टि के अंत तक रहेगी | जब हमारा राष्ट्र विश्व गुरु हुआ करता था तब भी ये समस्या किसी न किसी रूप में विद्यमान थी | शास्त्रों में भी इसका वर्णन मिलता है | समय के साथ ये समस्या बढती गई और अब इसने उग्र रूप ले लिया है | आज समाज का कोई भी कोना और वर्ग इससे अछूता नहीं है |

अगर हम चिंतन करे तो पता चलता है कि गरीबी और भ्रष्टाचार एक दूसरे के पूरक है | गरीबी से त्रस्त ब्यक्ति… Continue

Added by BIJAY PATHAK on July 9, 2010 at 1:30pm — 3 Comments

झरना --

श्वेत धवल सी ओ झरना

जीवन मेरा सहज कर देना

कैसे तुम वेगमय हो

इसका राज मुझे बतला देना .... ॥



सब कहते है ऊपर जाओ

पर तुम नीचे क्यों आती हो

क्यों अपने साथ -साथ

पथ्थरो पर कहर बरपाती हो ॥



जीवों के तुम तृप्तिदायक

माना , संगीत तुम्हारा है पायल

पर , अपने थपेड़ों से तुमने

वृक्षों को क्यों कर दिया घायल ॥



भर बरसात उछलती हो तुम

पक्षियो जैसी साल भर नहीं कूकती

गर्मियों में जब हलक हो आतुर

उसी समय तुम क्यों सूखती…
Continue

Added by baban pandey on July 10, 2010 at 5:30pm — 3 Comments

नौ की महत्ता - इति सिद्धम्

महानुभावों "नौ" की महत्ता तो जगजाहिर है ।

यह सबसे बड़ा अंक है । (० से ९)

नौ का गुणनफल करने पर भी प्राप्त संख्या के

अंकों का योग नौ ही होता है । जैसे- अठारह (१+८=९),

सत्ताईस (२+७=९),छत्तीस (३+६=९),पैंतालिस (४+५=९),

चौवन (५+४=९),तिरसठ (६+३=९),बहत्तर (७+२=९),

एकासी (८+१=९),नब्बे (९+०=९) ..........जहाँ तक जाएँगे...वहाँ तक...(९०+९=९९= ९+९=१८= ९)..........अनंत......



नौ की महत्ता को प्रतिपादित करती हैं ये मेरी पंक्तियाँ -



राम के नाम को…
Continue

Added by Prabhakar Pandey on July 10, 2010 at 5:26pm — 2 Comments

एक सैनिक की पत्नी

वृक्ष की जड़े मांगती धूप

धूप मांगती बरसा

घर से बाहर , मेरे साजन

सावन में मन तरसा ॥



गोलियां रोज खाती हू

तुम्हारे आने की आस का

गालियां रोज सुनती हू

ननद- ससुर -सास का ॥



देश के दुश्मन तुम भगाओ

मैं जुझू , घर के आँगन से

मेरी गदराई जवानी

कब तक बचेगी , रावण से ॥



पायल की झंकार अब सुनी

गीत नहीं निकलता कंगन से

बुला रही है मुझे गोपियां

अब मथुरा -वृन्दावन से ॥



जोगन बन मैं भाग चलुगी

तुम देश -देश को… Continue

Added by baban pandey on July 10, 2010 at 7:42am — 1 Comment

जब भगवान शिव ने सृष्टि की

जब चारों ओर केवल अन्धकार का अस्तित्व था, न सूर्य था न चन्द्रमा और न कहीं ग्रह-नक्षत्र या तारे थे, दिन एवं रात्रि का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था, अग्नि, पृथ्वी, जल एवं वायु का भी कोई अस्तित्व नहीं था, तब एकमात्र भगवान शिव की ही सत्ता विद्यमान थी; और यह वह सत्ता थी जो अनादि एवं अनंत है।



एक बार भगवान शिव की इच्छा सृष्टि की रचना करने की हुई। उनकी एक से अनेक होने की इच्छा हुई। मन में ऐसे संकल्प के जन्म लेते ही भगवान शिव ने अपनी परा शक्ति अम्बिका को प्रकट किया। उन्होंने उनसे कहा, ‘‘हमें सृष्टि… Continue

Added by Neelam Upadhyaya on July 9, 2010 at 4:07pm — 6 Comments

ग़ज़ल-४

ज़िन्दगी जो भी तेरे अहकाम रहे

..वो सब के सब मिरे मुक़ाम रहे |



अय्यार कम नहीं हर बशर-ए-मौजूदा

पर तेरी जिद के आगे सब नाकाम रहे |



हर रास्ता खत्म था इक दोराहे पर..

क्या कहें किस तलातुम बेआराम रहे |



रंग-ए-खूं की खबर हर सम्त थी फैली

हम फिर भी गफ़लत में सुबहोशाम रहे |



इक मौत ही है जो बेख़ौफ़ तुझसे

वरना जो लड़े गुजरे अय्याम रहे |



हर शख्स ख्वाहिशमंद है केवल इतना

कुछ न हो बस वो चर्चा-ए-आम रहे |



सतर ना छुप सकेगी… Continue

Added by विवेक मिश्र on July 9, 2010 at 3:30pm — 6 Comments

चालीसा मन्त्र इत्यादि

श्री सूर्य नमस्कार मन्त्र

~~

ॐ मित्राय नम:॥1॥

ॐ रवये नम:॥2॥

ॐ सूर्याय नम:॥3॥

ॐ भानवे नम:॥4॥

ॐ खगाय नम:॥5॥

ॐ पूष्णे नम:॥6॥

ॐ हिरण्यगर्भाय नम:॥7॥

ॐ मरीचये नम:॥8॥

ॐ आदित्याय नम:॥9॥

ॐ सवित्रे नम:॥10॥

ॐ अर्काय नम:॥11॥

ॐ भास्कराय नम:॥12॥



-:##############:-



श्री गायत्री मन्त्र

~~

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यम्

भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on July 9, 2010 at 3:16pm — 9 Comments

दुनिया (लोककथा)

एक लड़का था । बचपन में ही उसके माता-पिता गुजर गए । उसका लालन-पालन उसके नाना ने किया । लड़का अभी आठ-नौ साल का था तभी उसपर दुनिया देखने का भूत सवार हो गया । वह बार-बार अपने नाना से कहता कि मैं दुनिया देखना चाहता हूँ ? नाना समझाते कि बेटा अभी तो तुम्हारे पास बहुत समय है, जब तू बड़ा होगा, दुनियादारी में लगेगा तो तूझे खुद मालूम हो जाएगा कि दुनिया क्या है ? पर लड़का अपने नाना की एक न सुनता और बार-बार दुनिया देखने की रट लगाता ।

एक दिन लड़के के नाना ने कहा, "चलो आज मैं तुमको दुनिया दिखाता हूँ" ।… Continue

Added by Prabhakar Pandey on July 9, 2010 at 10:08am — 4 Comments

Featured Monthly Archives

2025

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service