22-22-22-22-----22-22-22-2
जीवन पथ में, तेज़ धूप, तुम घने पेड़ की छाया माँ।
इस मन्दिर सा पावन दूजा, मन्दिर कहीं न पाया माँ।।
जब भी दुख के बादल छाये, मन तूफ़ाँ से घिरा कभी।
इस चेहरे पर दर्द की रेखा, और कौन पढ़ पाया माँ।।
तुम अपने सारे बच्चों को, कैसे बांधे रखती हो।
जबकी सबके अलग रास्ते, फिर भी एक बनाया माँ।।
विह्वल व्यथित हृदय की धड़कन, ज्यूँ अमृत पा जाती है।
जब भी सर पर कभी स्नेह से, तुमने हाथ फिराया माँ।।
जब भी दर्द यहाँ उट्ठा है, चोट कहीं…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 30, 2016 at 1:30pm — 10 Comments
22-22-22-22----------2212-1222
सोते रहिये, किसने टोका, जगना कहाँ ज़रूरी है?
ढ़ोते रहिये, जीवन बोझा, रखना कहाँ ज़रूरी है?
क्या मतलब है, और किसी से, अपने रहें सलीके से।
लिखते रहिये, इन पन्नों से, हटना कहाँ ज़रूरी है।।
घर से बाहर, भूले से भी, मेहनत ज़रा न करियेगा।
चिंतन करिये यूँ ही, कुछ भी, करना कहाँ ज़रूरी है।।
राहों में घायल को छोड़ें, व्याकुल पड़े ही रहने दें।
कलयुग में सिद्धार्थ का बुद्धा,बनना कहाँ ज़रूरी है।।
रावण…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 28, 2016 at 8:00pm — 11 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 25, 2016 at 11:02pm — 15 Comments
अगर मैं मर जाऊँ, प्रियतमा मत रोना तुम।
स्वर्ग लोग की तभी, घण्टियाँ सुन पाओगी।
अधम पतित संसार, को देना सूचना तुम।।
एक रूह इस जगत, अपावन से अब चल दी।।
तू ये रचना पढ़े, रचयिता याद न आये।
चाहत तो थी कई, किन्तु चाहत है ये अब।
दीवाना ये मनस, नगर में रह ना पाये।।
क्योंकि यदि सोचोगे, शोक में डूबोगे तब।।
जबकि माटी होकर, गीत ये लिखता हूँ मैं।
कहीं प्रेम का भाव, न जग जाये फिर तुझमें।
हो ना तू बदनाम, प्रियतमा डरता हूँ मैं।
मेरा नाम तलाश,…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 24, 2016 at 9:00am — 2 Comments
तुम गए तो प्राण का जाना लिखा
बिन तेरे निःश्वांस हो जाना लिखा।
देखिये ना प्रेम की जादूगरी
स्वयं को मीरा तुम्हें कान्हा लिखा।।1।।
जब कभी भी पूर्णिमा का चाँद निकला
खिडकियों से झांककर आगे चला।
भाग कर छत पर गया देखा तुम्हें
और झट से तेरा आ जाना लिखा।।।।2।।
एक भीनी सी सुरभि जब भी कभी
मेरे कमरों की हवाओं में घुली।
मैंने खुद को फिर मचलता देखकर
रात रानी का महक जाना लिखा।।3।।
जब कभी अवसाद सागर में मेरी
नाव मन की…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 14, 2016 at 6:35pm — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 12, 2016 at 3:44pm — 2 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 30, 2016 at 6:38pm — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 23, 2016 at 10:48am — 4 Comments
2212 122 2212 122
दुःख सर पे चढ़ गया है, पीड़ा पिघल रही है।
हालात की तपिश से, नदिया निकल रही है।।
मरघट सा हो गया है, हर रास्ता शहर का।
इंसानियत चिता पर, हर ओर जल रही है।।
ज़िंदा अभी तलक हैं, रावण दहेज़ वाले।
अब भी दहेज़ वाली, क्यों सोच पल रही है।।
विद्रोह कर रही है, अब सोच भी हमारी।
क्यों मौन हूँ अभी तक, ये बात खल रही है।।
ग़र चे कलम के बदले, हथियार उठ गया तो।
पंकज से फिर न…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 21, 2016 at 11:30am — 6 Comments
122 122 122 122
निगाहें भला क्यूँ मिलाते नहीं हो।
मनस पृष्ठ मुझको पढ़ाते नहीं हो।।
छिपाते हो तुम राज अपने जिया के।
बताओ मुझे क्यों बताते नहीं हो।।
हैं चेहरे पे क्यों ये उदासी की पर्तें।
भला नूर क्यूँ तुम दिखाते नहीं हो।।
सघन वेदना के जो घन हैं हृदय में।
भला फिर क्यूँ दरिया बहाते नहीं हो।।
मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है।
सिवा इसके तुम मुस्कुराते नहीं हो।।
है 'पंकज'का नाता अगर नीर ही से।
तो नैनों में…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 14, 2016 at 12:00am — 17 Comments
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर समस्त शिव भक्तों को सादर भेंट
.
जटाओं से निकल रही है, धार गंग नाथ शिव।
मुस्कुरा रहे गले में, धर भुजंग नाथ शिव।।
डमड्ड डमड्ड निनाद पर, हैं नृत्य कर रहे सभी।
मन लुभाये रूप आपका, मलंग नाथ शिव।।1।।
पाँव में कड़ा है और, त्रिशूल हाथ में धरे।
बाँध कर कमर में छाल, व्याह को चले हरे।।
चन्द्र ये ललाट पर, है विश्व दंग नाथ शिव।
मन लुभाये रूप आपका, मलंग नाथ शिव।।2।।
भंग की खुमार में हैं मस्त आज तो सभी।
सिर विहीन…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 6, 2016 at 9:30pm — 2 Comments
2212 121 1222 212
इतना कमाल हुस्न, दिखाया ही किसलिये।
होनी नही थी बात, बुलाया ही किसलिये।।
मौका नहीं था देना, इबादत का ग़र हमें।
बुत से भला नक़ाब, हटाया ही किस लिये।।
सुननी नहीं थी तुमको, अगर मेरी आरज़ू।
फिर नाम का भजन ये, सिखाया ही किसलिये।।
हम भूल ही गये थे, कि लेनी है साँस भी।
जब मारना ही था तो, जिलाया ही किसलिये।।
अरमान सब थे दफ़्न, सुकूँ में बहुत थे हम।
बर्बाद गुल था करना, खिलाया ही किसलिये।।
मौलिक…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 5, 2016 at 12:00am — 9 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 29, 2016 at 12:30am — 9 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 22, 2016 at 12:45pm — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2016 at 10:01am — 7 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 9, 2016 at 11:00pm — 13 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 17, 2016 at 5:00pm — 5 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 14, 2016 at 2:45pm — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 12, 2016 at 10:50pm — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 6, 2016 at 12:27am — 12 Comments
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