बीर छंद या आल्हा छंद
(यह छंद १६-१५ मात्रा के हिसाब से नियत होता है. यानि १६ मात्रा के बाद यति होती है. वीर छंद में विषम पद की सोलहवी मात्रा गुरु (ऽ) तथा सम पद की पंद्रहवीं मात्रा लघु (।) होती है. )
एक प्रयास किया है मैंने गुरुजनों का अमूल्य सुझाव मिलेगा ऐसी अपेक्षा है !!
कूद पड़ी जब रण में माता ,दानव दल में हाहाकार !
एक हाथ में भाल लिए थी ,दूजे हाथ पकड़े तलवार !!
हाथ काटती पैर काटती ,कछु दुष्ट का लै सिर उपार !!
दौड़ा -दौड़ाकर तब माता…
Added by ram shiromani pathak on April 9, 2013 at 2:30pm — 11 Comments
कबहुँ सुखी क्या आलसी, ज्ञानी कब निद्रालु ?
वैरागी लोभी नहीं, हिंसक नहीं दयालु!! १
शक्ति क्षीण करते सदा, यदि अवगुण हों पास
दुर्गुण रहित चरित्र में, होता शक्ति निवास!!२
गुरुता का व्यवहार ही, गुरु को करे महान
पूजनीय औ श्रेष्ठ जो, पायें खुद सम्मान!!३
नैतिकता सद्चरित का, जिसमें पूर्ण अभाव
दयाहीन उस मनुज के, रहें मलिन ही भाव!!४
अवगुण निज में देखिये, रख सद्गुण पहचान
त्रुटियों से जो सीख ले, जग में वही…
Added by ram shiromani pathak on April 5, 2013 at 12:30pm — 19 Comments
इस जीवन में लगा रहेगा ,
दुःख-सुख हार जीत!
दृढ़ता से बढ़ते रहो ,
गाओ विजय का गीत !!
अविराम बढ़ते चलो ,
भर लो अन्दर शक्ति भरपूर…
Added by ram shiromani pathak on April 3, 2013 at 9:46pm — 17 Comments
चारपाई पर लेटे लेटे ,
ख्याली पुलाव पका रहा था !
सुन्दर अभिनेत्री के साथ ,
झील में नहा रहा था !!
इशारा किया पास आओ ,
इतने में शर्मा गयी!
उसकी यह चंचल अदा
मुझे और भी भा गयी…
Added by ram shiromani pathak on March 31, 2013 at 12:37pm — 17 Comments
ललित छंद (16+12मात्रायें:- छन्नपकैया की जगह "आनंद करो आनंद करो" का प्रयोग)
आनंद करो आनंद करो ,देखो होली आई !
मजे लेकर सब खा रहे है ,हलवा खीर मिठाई !!१
आनंद करो आनंद करो,इसको उसको रंगा !
झूमते हुड़दंग मचाया ,पीकर सबने भंगा !!२
आनंद करो आनंद करो,रंग भरी…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on March 26, 2013 at 12:00pm — 3 Comments
कपोल पुष्प
अधर पंखुडियां
मनमोहिनी
तोतली बोली
नटखट,चंचल
मन मोहक
खिलखिलाता
बिगड़ता बनाता
बच्चे प्यारे है…
Added by ram shiromani pathak on March 22, 2013 at 5:04pm — 1 Comment
लूट अकूत मची सगरे अरु ,छोड़त नाहि घरै अपना !
आपस में झगड़ाइ रहे सब ,पावत कौन रहा कितना !!
खीचत छीनत मारत पीटत,धोइ रहे जइसे पिटना!
होड़ मची इक दूसर से बस ,कौन बनावत है कितना !!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on March 21, 2013 at 12:52pm — 8 Comments
पीर उठे नहि कष्ट घटे अरु, लागत रात बड़ी अधियारी !
आँखिन आँसु सुखाइ गया अरु, सेज जले जइसे अगियारी !!
आपन रूप बिगाड़ फिरे वह, ताकत राह खड़ी दुखियारी !
लोग कहे पगलाय गयी यह, लागत हो जइसे विधवारी!!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on March 17, 2013 at 12:00pm — 6 Comments
दूर करैं सब कष्ट महा प्रभु ,जाप करो शिव शंकर नामा !
जो नर ध्यान धरै नित शंकर ,ते नर पावत शंकर धामा !!
ध्यान लगाय भजो नित शंकर ,लालच मोह सबै तजि कामा !
जो भ्रमता भव बंधन में तब,पावत ना वह जीव विरामा !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on March 12, 2013 at 12:31pm — 8 Comments
(1)तपता तन
सूरज की किरणें
लाचार जन
(2)धूप का घर
तरुवर की छाया
ठंडी बयार
(3)सभी बेकल
अनुभव करते
उष्ण कम्बल
(4)संध्या हो जाये
रजनी आगमन
सभी मगन
(५) उड़ती जाती
बंद मुठ्ठी में कैद
भाप बनती
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on March 11, 2013 at 8:45pm — 8 Comments
बॆटॊं जैसा ही मिले, इनको भी अधिकार ।
विनती है हर मात सॆ, बेटी को मत मार ॥
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माता,बहना रूप में, मिलता इनका प्यार ।
बेटी मूरत प्रेम की , जानत है संसार ॥
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इनको मिले समाज में, उतना ही सम्मान ।
कुल का दीपक पूत है , बेटी घर की शान ॥
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बदलो अपनी सोच को,दो नवीन आकार ।
नारी कॆ कारन रहॆ , हरा-भरा परिवार ॥
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on March 8, 2013 at 3:00pm — 8 Comments
कांपे निशाचर थर-थर-2 ,देख रूप विकराल !
उनको ऐसा लग रहा ,खड़ा सामने काल !!
खड़ा सामने काल ,सभी निशिचर घबराये!
लिये हाथ में खड्ग ,सबै चंडी दौड़ाये!!
लगे भागने दुष्ट ,मृत्यु सम्मुख जब भांपे ,
देख भयंकर रूप ,तीनो लोक फिर कांपे !!
राम शिरोमणि…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on March 6, 2013 at 8:06pm — 3 Comments
मन को ऐसा राखिये ,जैसे गंगा नीर !
निर्मल जल से जिस तरह ,रहता स्वच्छ शरीर !!
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मोल भाव ना ज्ञान का ,क्रय-विक्रय ना होय!
खर्च करो जितना इसे ,वृद्धि निरंतर होय !!
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Added by ram shiromani pathak on March 5, 2013 at 8:30pm — 5 Comments
कल -कल की ध्वनि आ रही ,सुनो मधुर संगीत !
प्रकृति बांसुरी बजती,होता यही प्रतीत !!
शीतल बयार बह रही ,तन-मन ठंडा होय !
देख भ्रमर दल पुष्प पर,ह्रदय प्रफुल्लित होय !!
तरुवर की छाया मिले ,लिये बिछौना घास !
इस प्रकृति वरदान में ,सब ले खुलकर स्वास !!
पेड़ों की रक्षा करो ,कटने ना दें आप !
सबको ,कमी से इनके ,लगे भयानक श्राप !!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on March 5, 2013 at 3:12pm — 4 Comments
कलयुग है भाई ,
यहाँ सबकुछ बिकता है !
घर ,वाहन,ज़मीन को छोड़ो,
यहाँ इंसान बिकता है !!
बस खरीदने वाला चाहिए ,
यहाँ ईनाम बिकता है !
फ़कत चंद नोटों के लिए ,
यहाँ सम्मान बिकता है !!
गरीब की रोटी बिकती है ,
लाचार,नंगा भूखा बिकता है !
जिससे ढकता बदन वह ,
गरीब की वह धोती बिकती है !!
जिसके पास कुछ नहीं ,
स्वाभिमान को छोड़कर !
उस स्वाभिमानी का अब ,
ईमान बिकता है !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक…
Added by ram shiromani pathak on March 3, 2013 at 11:35am — 2 Comments
झूठे वचन हैं जिसके ,भाषण जिसका काम !
खाये सबकी गालियाँ ,नेता उसका नाम !!
नेता उसका नाम,जो लूटकर ही खाये !
बेचकर शर्म लाज,स्वयं को सही बताये !!
दिखता बंदरबाट ,तो जनता क्यूँ न रूठे !
नहीं रहा विश्वास ,सभी नेता है झूठे!!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
(मौलिक/अप्रकाशित )
Added by ram shiromani pathak on February 28, 2013 at 8:27pm — 9 Comments
यदि अंकुश हो क्रोध पर, सहनशीलता पास !
वहां पाप होता नहीं, हो खुशियों का वास !!
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गुरुजन की सेवा करो, रहो बढ़ाते ज्ञान !
यदि करना जीवन सफल, दो इनको सम्मान !!
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धन की चंचल चाल है, क्यूँ करते विश्वास ,
कुछ दिन तेरे साथ है, कल फिर उसके पास !!
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लोगों में संस्कार हो, उत्तम हो व्यवहार !
कलह क्लेश ना फिर वहां, हो प्रसन्न…
Added by ram shiromani pathak on February 27, 2013 at 9:00pm — 18 Comments
बस लो भाई राम का नाम ,
बन जायेंगे बिगड़े काम !!
आशिकी का बुखार चढ़ा है ,
आशिकी में करना है नाम!
भेजो ऐसी सुन्दर कन्या ,
जो पिलाए इश्क का ज़ाम!!
इधर ढूंढा,उधर ढूंढा,
हो गई सुबह से शाम !
बेबस ,लाचार सा बैठा .
छोड़कर सब अपने काम !
गर्ल्स होस्टल के चक्कर काटकर,
बन गया हूँ उनका दुश्मन!
लड़कियाँ खोज़ती रहती मुझको ,
लिए हाँथ हाकी तमाम !
गर पिट गया तो गम नहीं ,
चलो ये दर्द भी सह लूँगा !
लेकिन अंत में भेज…
Added by ram shiromani pathak on February 26, 2013 at 9:22pm — 5 Comments
घर की रौनक ,
चौधवीं का चाँद हो !
मेरी दुआ .
मेरी फ़रियाद हो !
तुम्ही मेरी ग़ज़ल ,
तुम्ही मेरी गीत हो !
तुम्ही मेरी हार .
तुम्ही मेरी जीत हो !
मेरी…
Added by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 10:00pm — 1 Comment
हे शिव स्नेह के सागर ,
भर दो प्रेम गागर ,
मोह माया के तम से,
मुक्त कीजै आकर!
बंधनों से मुक्त करो ;
इतनी कृपा कर दो !
मुझे मलिन संसार से ,
अब तो पृथक कर दो !…
Added by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 3:40pm — 5 Comments
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