उड़ाया किसी ने किसी ने कमाया मुझे क्या
कहाँ अब्र बरसा कहाँ धूप छाया मुझे क्या
जहाँ पे खड़ा था वहीँ पे खड़ा हूँ कसम से
पुराना गया है नया साल आया मुझे क्या
सदा ये सलामत रहें पाँव मेरे सफ़र में
ये पेट्रोल डीजल बढ़े या किराया मुझे क्या
नया साल आया मची हाय तौबा, बला से
कहाँ कुछ करिश्मा खुदा ने दिखाया मुझे क्या?
न मेरा मुकद्दर हुआ टस से मस तो फिर क्यूँ
वही गीत गाऊँ उन्होंने जो गाया मुझे…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 4, 2016 at 12:30pm — 18 Comments
नई हसरत नई हिम्मत नई परवाज़ देगा कल
मिटाने तीरगी सबकी नया सूरज उगेगा कल
नये सपने उगाये खेत में देखो सियासत ने
फ़लक तक कीमतें पाकर बशर बेबस हँसेगा कल
नये इस दौर में आकर हुआ नेता कलम मेरा
अधूरा छोड़ कर कल का नया वादा लिखेगा कल
किसी भी रोज दफ्तर में किया कुछ भी नहीं जिसने
कसीदे काम के पिछले सुना है वो पढ़ेगा कल
जो पिछले साल सोचे थे हुए पूरे कहाँ उसके
भुलाकर वो पुराने अब नये संकल्प लेगा…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 29, 2015 at 8:30pm — 10 Comments
221 2121 1221 212
अपने लहू से आज वो अन्जान बन गये
टूटे हुए मकान का सामान बन गये
ज़ज्बात से किसी को यहाँ वास्ता नहीं
ड्राइंग रूम में रखा दीवान बन गये
बेगानों की तरह रहे अपने ही देश में
बस चार पाँच दिन के ही मेह्मान बन गये
अपने ही घर में किश्तियाँ महफूज़ हैं कहाँ
साहिल के आस पास ही तूफ़ान बन गये
छोड़ी कसर न देखिये कुदरत को लूटकर
आफ़ात आ पड़ी तो अब इंसान बन गये
करतूत वो करें…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 26, 2015 at 12:28pm — 20 Comments
संबोधन
“देखो ये बस अब नहीं जा सकेगी खराब हो चुकी है चारो और सुनसान है लगभग सभी सवारियां पैदल ही निकल चुकी हैं ये दो चार लोग ही बचे हैं और बहन, मेरा गाँव पास में ही है पैदल ही चले जाएँगे सुबह खुद मैं तुम्हारे गाँव छोड़ आऊँगा मेरे साथ चलो तुम्हारे लिए यही ठीक रहेगा” सतबीर ने कोमल से कहा |
कोमल ने मन मे बेटी संबोधन, जो कुछ देर पहले बस में बचे हुए उन लोगों ने दिया को बहन के संबोधन से भारी तौलते हुए तथा खुद को मन ही मन कोसते हुए कि किस मनहूस घड़ी में वो पति से लड़कर गाँव…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 25, 2015 at 7:32pm — 9 Comments
१२२२ २१२२ १२२२ २१२२
नहीं करना काम कोई मगर दर्शाना बहुत है
छछुंदर सी शक्ल पाई अजी इतराता बहुत है
जरा रखना जेब भारी करेगा फिर काम तेरा
सदा भूखी तोंद उसकी भले ही खाया बहुत है
वजन रखना बोलने पर जरा भारी बात का तू
दबा देगा बात को घाघ वो चिल्लाता बहुत है
दरोगा वो गाँव का देखिये तो मक्कार कितना
शिकायत लिखता नहीं फालतू हड़काता बहुत है
मुहल्ले में शांत रहता मगर उसने बारहा ही
भिड़ाया है…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 7, 2015 at 6:18pm — 9 Comments
“आज उदास क्यूँ हो बेटा क्या सोच रहे हो ”? जलेबी पकड़ाते हुए पापा ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा| “पापा मैं एक बहुत बड़ी दुविधा में हूँ आपको तो पता है मैं चित्रकला और काव्य लेखन दोनों ही विधाओं को पसंद करता हूँ तथा दिन रात मेहनत करता हूँ आगे अपना कैरियर भी इन्हीं में से किसी एक को लेकर बनाना चाहता हूँ” वैभव ने कहा | “तो फिर इसमें कैसी दुविधा है बेटा”?
“पापा मैं तो दोनों में ही अपने को कुशल समझता था पर चुनाव करने में असमंजस में था तो मैंने सोचा क्यूँ न मैं इन विधाओं…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 3, 2015 at 11:38am — 14 Comments
221 2121 1221 212
उनके खजाने जैसे ही वोटों से भर गये नकली लगे हुए वो मुखौटे उतर गये
आकाश में उड़े न उड़े फिक्र क्या उन्हें ,जाते हुए गरीब के वो पर कुतर गए … |
Added by rajesh kumari on November 1, 2015 at 6:30pm — 15 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
बलवाइयों के होंसले जाकर समेट लूँ
मासूम गर्दनों पे हैं खंजर समेट लूँ
आये न बददुआ कभी मेरी जुबान पे
गलती से आ गई तो भी अन्दर समेट लूँ
उम्मीद से बनाया हैं बच्चे ने रेत का
लहरों वहीँ रुको मैं जरा घर समेट लूँ
परवाज आज भर रहा पाखी नई नई
आँखों की चिलमनों में ये मंजर समेट लूँ
जिन्दा रहे यकीन मुहब्बत के नाम पर
फेंके हैं दोस्तों ने जो पत्थर समेट…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 25, 2015 at 10:30am — 18 Comments
दिव्य स्वरूपी संस्थिता ,इष्ट अलौकिक शक्ति|
शारदीय नवरात्र में ,शैल सुता की भक्ति||
ब्रह्मलोक संचालिका ,ब्रह्मचारिणी मात्र|
ध्यान ज्ञान आराधना ,शुभ दूजा नवरात्र ||
नाम चन्द्र घंटा सजा ,माँ दुर्गा का रूप|
देता अद्भुत ज्ञान है ,त्रय नवरात्र अनूप||
नाम अन्नपूर्णा धरे ,शाक भरी का पात्र|
माँ कूष्मांडा आ गई ,ले चौथा नवरात्र ||
शुभ पञ्चम नवरात्र है ,माता स्कन्द चरित्र|
खत्म तारकासुर किया…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 17, 2015 at 12:35pm — 13 Comments
राजमहल का वो बड़ा सा हॉल खचाखच भरा हुआ था| सभी शिल्पकार अपनी अपनी ढकी हुई मूर्तियों को एक पंक्ति में व्यवस्थित करने में लगे थे | थोड़ी देर में ही राजा मानसिंह मूर्तियों का अनावरण शुरू करने वाले थे| आज का विषय ‘सिर पर घड़ा लिए एक देहाती महिला’ था |
इस बार एक खास बात ये थी की पड़ोसी देश के राजा जो राजा मानसिंह के मेहमान थे मूर्ति का चुनाव करने वाले थे| सभी आपस में फुसफुसा रहे थे की क्या इस बार भी हर बार की तरह मशहूर शिल्पकार पुष्कर सिंह ही ले जायेंगे ईनाम|
भीड़ को…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 1, 2015 at 4:33pm — 12 Comments
1212 1122 1212 22 तमाम उम्र जलूँ आफ़ताब हूँ मैं तो, पढ़ी न जाय कभी वो किताब हूँ मैं तो
न ढूँढिये मुझे केवल सराब हूँ मैं तो, किसी चमन का फ़सुर्दा गुलाब हूँ मैं तो .
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Added by rajesh kumari on September 17, 2015 at 10:24am — 28 Comments
122 122 122 122
कुहुकती है कोयलिया अमराइयों में
महकते कई फूल पुरवाइयों में
दिखाई न दी आज दीवार उनकी
अजी, क्या सुलह हो गई भाइयों में ?
ग़मों के भँवर में जो खोया था बचपन
मिला आज यादों की परछाइयों में
पिघलते हों पत्थर धुनें जिनकी सुनकर
फुसूँ हमने देखा वो शहनाइयों में
उजाले में दिन के छुपे रहते बुजदिल
उमड़ते वही अब्र तन्हाइयों में
न कद से समंदर की औकात…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 31, 2015 at 11:57am — 15 Comments
चीर चट्टान के सीने को मिला करते थे
तब मुहब्बत में सनम लोग वफ़ा करते थे
काट देता था ज़माना भले ही पर नाजुक
होंसलों से नई परवाज़ भरा करते थे
दिल के ज़ज्बात कबूतर के परों पर लिखकर
प्यार का अपने वो इजहार किया करते थे
कैस फ़रहाद या राँझा कई दीवाने तब
नाम माशूक का तो खूँ से लिखा करते थे
एक हम थे जो जमाने की नजर से डरकर
जल्द खुर्शीद के ढलने की दुआ करते थे
आज वो रह गए केवल मेरा…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 23, 2015 at 10:00pm — 19 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२१ दीप राहों में जलाओ जशने आज़ादी है आज, ध्वज वतन का लह्लहाओ जशने आज़ादी है आज,
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Added by rajesh kumari on August 16, 2015 at 10:30am — 16 Comments
पुरख़तर इश्क की राहें हैं तो चलते क्यूँ हैं
चोट खाकर ही मुहब्बत में सँभलते क्यूँ हैं
प्यारा के दीप इन आँखों में यूँ जलते क्यूँ हैं
चाँदनी रात में अरमान मचलते क्यूँ हैं
रात में ख़्वाब इन आँखों पे हुकूमत करते
सुब्ह होते ही ये हालत बदलते क्यूँ हैं
बेवफाई से हुए इश्क में जो दिल पत्थर
प्यार की आंच से ये फिर से पिघलते क्यूँ हैं
दूर से खूब लुभाते हैं ये तपते सहरा
तिश्नगी में ये मनाज़िर हमे छलते क्यूँ…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 11, 2015 at 7:49pm — 17 Comments
रिमझिम सावन की फुहार आज मेरा भैय्या आएगा
आया तीजो का त्यौहार साथ मुझे लेके जाएगा
अम्बर पे बादल छाये
सखियों ने झूले पाए
भाभी ने गायी कजरी
बाबा जी घेवर लाए
कर लूँ अब मैं तनिक सिंगार आज मेरा भैया आएगा
आया तीजो का त्यौहार साथ मुझे लेके जाएगा
दीवार पे कागा बोले
यादों की खिड़की खोले
अम्मा ने संदेसा भेजा
सुनसुन मेरा मन डोले
मायके से आया तार आज मोरा भैया आएगा
आया तीजो का त्यौहार…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 8, 2015 at 11:52am — 6 Comments
2122 212 2122 1212
सर फरोशों के लिए बंदिशे क्या हुदूद क्या
होंसलों के सामने आँधियों का वजूद क्या
बांटता सबको बराबर न रखता कोई हिसाब
इक समन्दर के लिए मूल क्या और सूद क्या
बूँद इक मोती बनी दूसरी ख़ाक में मिली
सिलसिला है जीस्त का बूद है क्या नबूद क्या
जिन चिरागों की जबीं पर लिखी हुई हो तीरगी
अर्श उनके वास्ते लाल, पीला, कबूद क्या
उस अदालत में…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 4, 2015 at 10:55am — 24 Comments
धरती का नूतन नखशिख सिंगार लिखो
सावन लाया है मोती के हार लिखो
दादुर मोर मयूरी का आभार लिखो
नदियों नालों में जल का विस्तार लिखो
पत्ता पत्ता डाली डाली झूम रही
बूँदे बूँदे चूम रही हैं प्यार लिखो
प्यास बुझाती कुदरत कितने प्यासों की
तिनके तिनके पर उसका उपकार लिखो
खेतों खेतों धान उगाते हैं हाली
भेज रहे बादल जल का उपहार लिखो
सागर नदिया लहरों की रफ़्तार…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 31, 2015 at 10:10am — 9 Comments
“ये देखो विज्ञान आज कितनी तरक्की कर रहा है कितनी अद्दभुत मशीन बना डाली, पुरुष भी महसूस करके देख सकते हैं अब प्रसव वेदना को|" टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में हेडिंग Chinese men get a taste of labor pain with a machine को पढ़ते हुए प्रोफ़ेसर बक्शी अपनी पत्नी से अचानक बोल उठे
”पापा क्या कभी कोई ऐसी मशीन भी बन पाएगी जो रेप के दर्द को भी पुरुष महसूस कर सकें” थोड़ी दूरी पर बैठी बेटी के अचानक इस प्रश्न ने पापा को अन्दर तक झिंझोड़ कर रख दिया बेटी के सिर पर…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 27, 2015 at 10:00am — 26 Comments
रहें जो खुद मकानों में वो घर की बात करते हैं
जड़ों को काटने वाले शज़र की बात करते हैं.
जहाँ जिस थाल में खाते उसी को छेदते देखो
रहें तन से इधर लेकिन उधर की बात करते हैं
लगे अच्छी उन्हें बस आग फिरते हैं लिए माचिस
अजब वो लोग हैं केवल समर की बात करते हैं.
छपी तस्वीर अखबारात में उस बाँध की देखो गिरा वो चार दिन में ही अजर की बात करते… |
Added by rajesh kumari on July 23, 2015 at 10:15am — 14 Comments
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