ये तू , ये मैं ,
ये साथ , ये अकेलापन,
सब यहीं है ,
यहीं का है,
एक बार यहां से गए ,
तो तू कौन,
मैं कौन,
एक नाम ही है,
सब यहीं रह जाएगा ,
बहती हवा में बह जाएगा ,
द्रव्य, दृश्य,शब्द, स्मृतियाँ, सब,
कुछ मिटटी में , कुछ
वायु में विलीन हो जाएगा ,
नष्ट नहीं होगा ,
पर साथ नहीं जाएगा ,
ये तू, ये मैं , ये साथ ,
ये रिश्ते , ये बंधन ,
ये सब यहीं के हैं ,
यहीं तक हैं ,
यहीं रह जाएंगे ,
समय में खो जाएंगे…
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Added by Dr. Vijai Shanker on May 13, 2015 at 7:04am —
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मातृ-दिवस पर
माँ
जिसके बिन जन्म नहीं
सुरक्षा है, सुकून है ,
शान्ति हैं ,
ज्ञान है , संस्कृति है ,
एक पूर्ण परिवेश है ,
अबोथ के लिए ,
अपना विश्वकोष है ,
ईश्वर का वरदान है।
नैसर्गिक अधिकार है ,
अमूल्य है, मूल्यरहित
उपहार है.
स्वर्ग में ,
अप्सराएं प्रतीक्षा करतीं हैं ,
स्वर्ग जाने पर मिलती हैं ,
किसने देखा है,
किसने जाना है ?
धरती पर आने पर
सबसे पहले माँ मिलती है,
माँ प्रतीक्षा…
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Added by Dr. Vijai Shanker on May 10, 2015 at 10:00am —
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देशराज सिंह के चार बेटे हुए , उनमें से तीन के नाम हैं , ज्ञान सिंह, वचन सिंह ,करम सिंह ।
ये तीनों जब से अपने हाथ पाँव के हुए एक दूसरे दूर हो गए।
लोग समझते हैं कि वे एक दूसरे से बिलकुल अंजान हो गए जबकि असलियत यह है कि वे तीनों आपस में एक दूसरे की शक्ल ही नहीं देखना चाहते हैं , कभी-कभार का मिलना जुलना तो बहुत दूर की बात. तीनों एक दूसरे से बिलकुल उल्टी दिशा में चलते हैं।
और चौथा ?
चौथा , विवेक सिंह , वो तो हर समय सोया ही रहता है, कभी जागा हो, किसी ने देखा ही नहीं।…
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Added by Dr. Vijai Shanker on May 5, 2015 at 9:30am —
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सौंदर्य को सजावट ,
आभूषण ,शृंगार चाहिए ,
सादगी को…...क्या चाहिए ,
सादगी,.. वो तो, सबको चाहिए।
वो रोज सज के निकलती
लोग परेशान हो जाते थे ,
इक बार सादगी से निकली
कितने लोग बेहोश हो गए।
पहुँच से पहचान है ,
जिसकी पहचान है
वही प्रतिभावान है , अन्यथा
प्रतिभा को पहचान चाहिए ,
पहचान का एहसान चाहिए ।
ज्ञान को सम्मान चाहिए ,
जहां सब ज्ञानी हो ……… ,
जाने दीजिये, ज्ञान तो स्वयं दाता है |
तो इतना सज संवर के क्यों आता…
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Added by Dr. Vijai Shanker on May 3, 2015 at 10:28am —
16 Comments
जैसा कि अक्सर हो जाता है , एक अज्ञानी महानुभाव ने घोर अज्ञानी वक्तव्य देकर माहौल में सनसनी फैला दी , टी वी पर तमाम विद्वान उस पर जोरदार बसह में उलझे हुए थे। दो मित्र टी वी देख कर खीझ रहे थे।
एक बोला , " चैनल बदलो।इस बहस ने तो बोर कर दिया। यार ये इतने बड़े बड़े विद्वान एक मूर्ख की बातों पर इतनी बहस क्यों करते हैं ? "
दूसरा बोला , " क्योंकि मूर्ख कुछ कह तो देते हैं , विद्वान तो कुछ कह ही नहीं पाते , इसलिए बस बहस ही कर लेते हैं ,"
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2015 at 10:09am —
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व्यवस्था का मान करें ,
उस से ज्यादा जो व्यवस्था में हैं ,
उनका सम्मान करें।
वे कौन हैं , कहाँ से आये हैं ,
पूछ कर न अपना
अपमान करें।
जो व्यवस्था में हैं ,
वे माननीय , आदरणीय हैं ,
पूज्यनीय , वन्दनीय हैं ,
ओजस्वी ,प्रकाशमान
देवतास्वरूप हैं ,
उनकें ज्ञान पर , उनकें
सामान्य ज्ञान पर प्रश्न न करें ,
वे स्वयं सामान्य ज्ञान का प्रश्न हैं,
बड़ी परीक्षाओं में सामान्य ज्ञान
के प्रश्न पत्रों में पूछे जाते हैं ,
उन पर जो सही…
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Added by Dr. Vijai Shanker on May 1, 2015 at 9:42am —
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अच्छाइयों के लिए फ़िकर क्यों करें
बुराइयों में बड़ा मजा आता है ||
भजन भगवान के करम शैतान के
कर के देखो बड़ा मजा आता है ||
सीधी बातें छोडो, गलतफहमियां
पालो, देखो,बड़ा मजा आता है ||
सच है, पर उपदेश कुशल बहुतेरे,
राजनीति है ,बड़ा मजा आता है ||
सबसे लड़ लेते हो, इक बार लड़ो ,
खुद से, देखो, बड़ा मजा आता है ||
झूठ सौ बोलते हो , एक बार सच
बोलो, देखो,बड़ा मजा आता है ||
मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर
Added by Dr. Vijai Shanker on April 26, 2015 at 10:00am —
14 Comments
बहुत ही व्यस्त कार्यक्रम था आज मंत्री जी का। सारे दिन शैक्षिक गुणवत्ता की कायर्शाला में अधिकारियों , शिक्षाविदों के साथ वाद-विवाद में जबरदस्त सक्रिय रहे माननीय मंत्री जी, बार बार यही दोहराते रहे , " सदियों से हम विश्व-गुरु रहें हैं, हम ऐसी शिक्षा दें कि कोई भी शिक्षा के लिए विदेश न जाना चाहे।"
शाम घर जाते कार में पी ए से बता रहे थे:
"हफ्ते भर बाहर रहूंगा, रात दिल्ली निकल रहा हूँ I कल अमेरिका की फ्लाइट है, बेटे को हॉस्टल छोड़ कर आना है।.कहाँ कहाँ का जुगाड़ लगाया है तब एडमिशन मिला…
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Added by Dr. Vijai Shanker on April 23, 2015 at 9:00am —
26 Comments
किस युग में रहते हैं हम ,
समय के साथ नहीं चलते हैं ,
सतयुग और द्वापर की बात
कलियुग में करतें हैं हम ,
सुदूर अतीत को वर्तमान में लाते हैं
सतयुग को कलियुग में मिलाते हैं
अपने समसामयिक युग को
समझ नहीं पाते हैं हम ,
महापाप करते हैं हम ,
समय की गति और दिशा
कुछ भी नहीं पहचानते हैं ,
गिरती दीवार थामते हैं हम।
गया वक़्त लौट के नहीं आता
जानते हैं , मानते नहीं हैं हम ।
रावणों के बीच कलियुग में रहते हैं ,
रावण के पुतले जलाते…
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Added by Dr. Vijai Shanker on April 19, 2015 at 9:57am —
14 Comments
हादसे होते रहते हैं ,
कवरेज होते रहते हैं,
लोग देखते रहते हैं ,
चि ची ची करते रहते हैं ,
बयान होते रहते हैं ,
बहस के शो होते रहते हैं,
संवेदनाओं के लिए
दौरे होते रहते हैं ,
आंसू पोछे जाते हैं ,
आंसू बहाये जाते हैं ,
आंकड़े दिखाए जाते हैं ,
कितने कम हो रहे हैं ,
बताये , गिनाये जाते हैं ,
कितने गुहार नहीं होते ,
वो , नहीं गिनाये जाते हैं ,
अदालतों में पड़े , बढ़ते केस
कभी नहीं बताये जाते हैं ,
फैसले भी कब होते…
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Added by Dr. Vijai Shanker on April 15, 2015 at 10:24am —
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चलो ये अच्छा हुआ कि प्यार अंधा होता है
वर्ना किस किस से उसे दो चार होना पड़ता ||
पंखुड़ी गुलाब मासूमियत जिसके नाम है
झूठ फरेब धोखा सब उसे देखना पड़ता ||
जिसकी मरने जीने की लोग कसमें खाते हैं
उस प्यार को कभी खुद शहादत में आना पड़ता ||
प्यार जिसके फैसले पे लोग मर मिट जाते हैं
अदालती कटघरे में उसे खड़ा रहना पड़ता ||
दुनियाँ सब देख के अंधी बनी रहती है
प्यार को भी ऐसा ही गुनाह करना पड़ता ||
मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo…
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Added by Dr. Vijai Shanker on April 12, 2015 at 10:11am —
10 Comments
हालात बदलने की बात करते हो
आदमी बदल देते हो
हालात बदल नहीं पाते ,
या बदलना नहीं चाहते हो।
खुद को तरक्की पसंद कहते हो
तरक्की की बात करते हो
काम करने के पुराने तरीके
नहीं बदलते हो ,
आदमी बदल देते हो ।
उसने बहुत सहा , अब तुम सहो ,
इसी को सामाजिक न्याय कहते हो ,
गज़ब करते हो बिना हींग फिटकरी के
रंग चोखा करते हो ॥
तरक्की की बात करते हो
खुद को तरक्की पसंद कहते हो ॥
अच्छा करते हो कि बुरा, पता नहीं
पर बात गज़ब की करते हो…
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Added by Dr. Vijai Shanker on April 8, 2015 at 9:42am —
27 Comments
1. न कहीं जाना था
न जल्दी में थे हम
तुमने रोका नहीं
दूर हो गए हम………
2. जलने वाले
पीठ पीछे जलते हैं
जल के रौशनी भी
अपनों के लिए ही करते हैं ………
3. चले गये
मेरी जिंदगी से वो
किताबों के कमजोर कवर
जल्दी उत्तर जाते हैं
गुम हो जाते हैं ..............
4. अपनापन तो
कहीं भी होता है
वहां भी , जहां अपना
कोई भी नहीं होता है ………
5. ख़्वाब अधूरे नहीं ,
पूरे थे ,
अफ़सोस…
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Added by Dr. Vijai Shanker on April 6, 2015 at 12:00pm —
16 Comments
द्रोणाचार्य
एक युग प्रवर्तक शिक्षक ,
राजकीय सरंक्षण के शिक्षक ,
सरकारी व्यवस्था के आधीन ,
शिक्षक और वह भी पराधीन ,
एकलव्य से अंगूठा मांगने को विवश ,
शिक्षा को सीमित करने को लाचार।
राज्य के राजकीय गुरु थे द्रोण ,
सरकारी अध्यापक से थे द्रोण ,
राजपुत्रों को पढ़ाते थे द्रोण
राजहित में पढ़ाते थे द्रोण ,
जनहित नहीं जानते थे द्रोण ,
राजहित में ही एकलव्य से अंगूठा
मांग बैठे थे बिचारे द्रोण ………
एक परम्परा छोड़ गए द्रोण…
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Added by Dr. Vijai Shanker on April 4, 2015 at 10:37am —
12 Comments
अपने में ही खोये हुए से रहते हो
तुम्हें लोग कहाँ कहाँ ढूंढते रहते हैं ||
तुमको देखा इक हादसा हो गया ,
भला आदमी एक खुद से खो गया ।
लफ्जों को यूँ तौल तौल के बोलते हो
बच्चों से क्या कभी बात नहीं करते हो ||
लफ्जों को इतना महीन क्यों तौलते हो
बात करते हो या कारोबार करते हो ||
हमेशा दिमागी उधेड़बुन में रहते हो ,
दिल की बात कभी किसी से नहीं करते हो ॥
दिखाते हो दिल से कभी नहीं उलझे हो
बहकाते हो छलावा किस से करते हो…
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Added by Dr. Vijai Shanker on April 2, 2015 at 7:04pm —
16 Comments
पहली अप्रेल की भेंट
अब तो अक़्ल पे यकीन नहीं रह गया दोस्तों ,
आप ही बताएं अक़्ल बड़ी या भैंस दोस्तों ॥
आप कहेंगें अक़्ल बड़े काम की चीज है
मैं कहूँगा, अक़्ल से काम लो , अक़्ल
किसी काम की चीज नहीं है दोस्तों ॥
अक़्ल हमेशा भैंस से मात खा जाती है ,
सामना भैंस से हो तो गुम हो जाती है ॥
अक़्ल अपनी हिफाज़त ही नहीं कर पाती है
भैंस उसे देखते देखते ही चर जाती है ॥
अक़्ल कुछ देती है , पक्का मालूम नहीं ,
भैंस अक्सर दूध देती तो है दोस्तों…
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Added by Dr. Vijai Shanker on April 1, 2015 at 10:10am —
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सही होने ,
सही कहने ,
सही करने का
अधिकार किसको चाहिए ॥
किसी को थोड़ा ,
किसी को ज्यादा ,
गलत कर लेने का
हक़ सबको चाहिए ॥
किसी-किसी को तो
गुनाह करने का अख्तियार ,
भी बेइंतिहा चाहिए ॥
दुनियाँ को अच्छा होना चाहिए ।
हमारे गुनाहों पे पर्दा होना चाहिए ।
हमारे गलत कामों पर चुप,
निगाह नीची , और चर्चा पर
कठोर प्रतिबंध होना चाहिए ।
दुनियाँ में कुछ तो
शर्म-औ-हया होनी चाहिए ।
हम हैं तो ये जहांन है, ज़माना…
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Added by Dr. Vijai Shanker on March 29, 2015 at 4:54pm —
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चाहतें इतनी ,
ये मिल जाता ,
वो मिल जाता ,
जो चाहा वो मिल जाता ,
कितना अच्छा हो जाता ।
चाहतें ही चाहतें
इच्छाओं की क्या कहें ,
पनपती ही नहीं ,
चाहतें हैं कि कम होती ही नहीं ,
इच्छायें है कि जनम लेतीं ही नहीं ,
इच्छा को इच्छा - शक्ति चाहिये ,
तभी फलीभूत होती है ,
चाहतें स्वयं सशक्त होती हैं।
बढ़ती हैं, अपने आप ,
देख के दूसरों को बढ़ती हैं ,
इच्छाएं नहीं बढ़ती हैं ,
स्वयं तो बिकुल नहीं ,
इच्छा को वहां भी शक्ति…
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Added by Dr. Vijai Shanker on March 24, 2015 at 9:31am —
16 Comments
हम जब तन्हा होते हैं ?
तुम्हारे साथ होते हैं
तुमसे बातें करते हैं
तुमको देखा करते हैं
तुम्हारी मुस्कुराहटों में
हँसते हैं , जी लेते हैं
तुमसे सवाल करते हैं
तुम्हारे जवाब देते हैं
तुम्हारे हरेक सवाल के
सौ सौ जवाब देते हैं
कितनी बार पूछती हो
जब आप तन्हा होते हैं
तब आप क्या करते हैं ?
हम तन्हा कहाँ होते हैं
हम जहां भी होते हैं
तुम्हारे साथ होते हैं
हर बात मान लेती हो
इस पर यकीं नहीं करतीं
जब हम प्यार में होते…
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Added by Dr. Vijai Shanker on March 21, 2015 at 9:17pm —
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दुनियाँ में लोग
मन की गति से
अरमान पूरे करते रहे ,
जो चाहा उसे
हासिल करते रहे ,
हम हसरतों को
दबाने , मन मारने ,
के हुनर सिखाते रहे।
जो है उसे पाने में
वो जिंदगी पाते रहे ,
हम उसी को मिथ्या
और भ्रम बताते रहे।
वो गति औ प्रगति गाते रहे
हम सद्गति को गुनगुनाते रहे ,
वो आगे जाते रहे ,
हम पीछे जाते रहे ,
वो देश को सोने
जैसा बनाते रहे ,
हम देश को सोने की
चिड़िया बताते रहे ,
लोग उल्लुओं को
पास आने…
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Added by Dr. Vijai Shanker on March 19, 2015 at 9:43am —
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