ब्रज मां होली खेले मुरारी अवध मां रघुराई
मेरा संदेसा पिया को दे जो जाने पीर पराई
कोयल को अमराई मिली कीटों को उपवन
मैं अभागिन ऐसी रही आया न मेरा साजन
लाल पहनू , नीली पहनू, हरी हो या वसंती
पुष्पों की माला भी तन मन शूल ऐसे चुभती
…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 13, 2012 at 9:03pm — 20 Comments
गुरु गोविन्द द्वारे खड़े सबके लागों पायं
स्वागत प्रभु आप का ई लेओं भांग लगाये.
बूढ़ा तोता बोले राम राम भंग पी अब बौराया है
बीत गया मधुर मास खेलो होली फागुन आया है.
भांग नशा नहीं औषधि है प्रयोग बड़ा है गुणकारी
पहले इसको अन्दर…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 8, 2012 at 9:09pm — 4 Comments
नीला रंग अम्बर पे धरा हरियाली छायी है
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 7, 2012 at 7:26pm — 1 Comment
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 5, 2012 at 3:50pm — 11 Comments
प्रथम पुष्प अर्पित तुमको, मसलो या श्रृंगार करो,
आया तेरे द्वार प्रभु, मेरा बेड़ा पार करो ,
चाहत थी जीवन की मेरी, दुखियों का दर्द उधार लूं
उजड़ चुके है जिनके घर,…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 3, 2012 at 3:00pm — 26 Comments
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