प्रेम कसूरी उर बसै, वन उपवन मत भाग ,
मृग दृग अन्तः ओर कर, महक उठेंगे भाग ll1ll
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आत्मान्वेषण है सहज, यही मुक्ति का द्वार,
बाहर खोजे जग मुआ, भीतर सच संसार ll2ll
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पूरक रेचक साध कर, जो कुम्भक ठहराय ,
द्विजता तज अद्वैत की, सीढ़ी वो चढ़ जाय ll3ll
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वर्तमान ही सत्य है, शाश्वत इसके पाँव ,
नित्यवान के शीश पर, वक्त…
Added by Dr.Prachi Singh on September 2, 2012 at 7:00pm — 14 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on August 27, 2012 at 9:30am — 10 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on August 24, 2012 at 7:12pm — 19 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on August 17, 2012 at 7:14pm — 6 Comments
१.
Added by Dr.Prachi Singh on August 15, 2012 at 4:08pm — 13 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on August 12, 2012 at 6:30pm — 5 Comments
काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....
नेह तृप्त कुसुमित सुरभित सी
बेसुध करती मादकता में,
कँवल कली के मध्य बिंधा सा
एक हठीला सा भँवरा है…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on August 11, 2012 at 11:00pm — 5 Comments
नेताजी (कुण्डलिया-2)
Added by Dr.Prachi Singh on August 6, 2012 at 2:30pm — 15 Comments
नेताजी का हो गया, कवियित्री से ब्याह,
नेतानी कविता लिखें, उनकी निकले आह,
उनकी निकले आह, सुनें जब भी वो दोहा,
लिखना विखना छोड़ पकाना सीखो पोहा,
चलो डार्लिंग किटी, रमी में जीतो बाजी,
समझाते हैं मस्त, नेतानी को नेताजी .......
Added by Dr.Prachi Singh on August 5, 2012 at 1:30pm — 28 Comments
1.
उस बिन दुनिया ही धुंधलाए
नयना दुख-दुख नीर बहाए,
है सौगात, नायाब करिश्मा,
ऐ सखि साजन ? न सखी चश्मा l
2.
नज़र नज़र में ही बतियाए,
देख उसे मन खिल खिल जाए,
सुबह शाम उसको ही अर्पण,
ऐ सखि साजन? न सखी दर्पण l
Added by Dr.Prachi Singh on August 4, 2012 at 6:30pm — 33 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on July 28, 2012 at 5:30pm — 13 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on July 24, 2012 at 5:52pm — 11 Comments
वक़्त (कुछ दोहे)
Added by Dr.Prachi Singh on July 23, 2012 at 10:00am — 30 Comments
प्रीत के उपहार
Added by Dr.Prachi Singh on July 22, 2012 at 12:00pm — 21 Comments
दीवान में
बटोर कर रखा
बरसों पुराना सामान
कुछ चीज़ें मात्र नहीं होता....
उसमे तो कैद होते हैं
ज़िंदगी के वो खूबसूरत पन्ने
जो हमें उस रूप में ढालते हैं
जो आज हम हैं....
हमारी पूरी ज़िंदगी
समेटे होती हैं
वो कुछ
गिनी चुनी निशानियाँ....
कुछ गुड्डे- गुडिया
जिनकी आँखों में
आज भी मुस्कुराता है हमारा बचपन....
कुछ फूलों की
सूखी पंखुड़ियां
जो आज भी दोस्ती बन महकती हैं जहन…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on July 14, 2012 at 10:59pm — 4 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on July 12, 2012 at 6:00pm — 17 Comments
अनछुआ चैतन्य
क्या याद हैं
तुम्हें
वो लम्हे,
जब
हम तुम मिले थे ?
तब सिर्फ़
एक दूसरे को
ही नहीं सुना था हमने,
बल्कि,
सुना था हमने
उस शाश्वत खामोशी को
जिसने
हमें अद्वैत कर दिया था....
तब सिर्फ़
सान्निध्य को
ही नहीं जिया था हमने,
बल्कि,
जिया था हमने
उस शून्यता को
जो रचयिता है
और विलय भी है
संपूर्ण सृष्टि की.... …
Added by Dr.Prachi Singh on July 11, 2012 at 9:30pm — 31 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on July 3, 2012 at 3:00pm — 17 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on June 29, 2012 at 11:46am — 4 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on June 24, 2012 at 2:30pm — 22 Comments
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