गीत:
निज मन से हांरे हैं...
संजीव 'सलिल'
*
कौन, किसे, कैसे समझाये
सब निज मन से हारे हैं.....
*
इच्छाओं की कठपुतली हम
बेबस नाच दिखाते हैं.
उस पर भी तुर्रा यह, खुद को
तीसमारखां पाते हैं.
रास न आये सच कबीर का
हम बुदबुद-गुब्बारे हैं.....
*
बिजली के जिन तारों से
टकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनका प्रयोग कर,
घर में दीप जलाते हैं.
कोई न जाने कब चुप हों
नाहक बजते इकतारे हैं.....
*
पान, तमाखू,…
Added by sanjiv verma 'salil' on December 21, 2010 at 12:00am — 5 Comments
घनाक्षरी :
जवानी
संजीव 'सलिल'
*
१.
बिना सोचे काम करे, बिना परिणाम करे, व्यर्थ ही हमेशा होती ऐसी कुर्बानी है.
आगा-पीछा सोचे नहीं, भूल से भी सीखे नहीं, सच कहूँ नाम इसी दशा का नादानी है..
बूझ के, समझ के जो काम न अधूरा तजे- मानें या न मानें वही बुद्धिमान-ज्ञानी है.
'सलिल' जो काल-महाकाल से भी टकराए- नित्य बदलाव की कहानी ही जवानी है..
२.
लहर-लहर लड़े, भँवर-भँवर भिड़े, झर-झर झरने की ऐसी ही रवानी है.
सुरों में निवास करे,…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on December 20, 2010 at 5:00pm — 1 Comment
लघुकथा:
काफिला
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कें... कें... कें...
मर्मभेदी कटर ध्वनि कणों को छेड़ते एही दिल तक पहुँच गयी तो रहा न गया.बाहर निकलकर देखा कि एक कुत्ता लंगड़ाता-घिसटता-किकयाता हुआ सड़क के किनारे पर गर्द के बादल में अपनी पीड़ा को सहने की कोशिश कर रहा था.
हा...हा...हा...
अट्टहास करता हुआ एक सिरफिरा भिखारी उस कुत्ते के समीप आया ... अपने हाथ की अधखाई रोटी कुत्ते की ओर बढ़ाकर उसे खिलाने और सांत्वना देने की कोशिश करने लगा. तभी खाकी…
Added by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2010 at 12:00am — 5 Comments
नवगीत:
मुहब्बत
संजीव 'सलिल'
*
दिखाती जमीं पे
है जीते जी
खुदा की है ये
दस्तकारी मुहब्बत...
*
मुहब्बत जो करते,
किसी से न डरते.
भुला सारी दुनिया
दिलवर पे मरते..
न तजते हैं सपने,
बदलते न नपने.
आहें भरें गर-
लगे दिल भी कंपने.
जमाना को दी है
खुदा ने ये नेमत...
*
दिलों को मिलाओ,
गुलों को खिलाओ.
सपने न…
Added by sanjiv verma 'salil' on December 18, 2010 at 11:21pm — 1 Comment
एक गीत
होता है...
संजीव 'सलिल'
*
जाने ऐसा क्यों होता है?
जानें ऐसा यों होता है...
*
गत है नीव, इमारत है अब,
आसमान आगत की छाया.
कोई इसको सत्य बताता,
कोई कहता है यह माया.
कौन कहाँ कब मिला-बिछुड़कर?
कौन बिछुड़कर फिर मिल पाया?
भेस किसी ने बदल लिया है,
कोई न दोबारा मिल पाया.
कहाँ परायापन खोता है?
कहाँ निजत्व कौन बोता है?...
*
रचनाकार छिपा रचना में
ज्यों सजनी छिपती सजना में.
फिर…
Added by sanjiv verma 'salil' on December 15, 2010 at 12:27am — 1 Comment
Added by sanjiv verma 'salil' on December 15, 2010 at 12:25am — 2 Comments
मुक्तिका:
ख्वाब में बात हुई.....
संजीव 'सलिल'
*
ख्वाब में बात हुई उनसे न देखा जिनको.
कोई कतरा नहीं जिसमें नहीं देखा उनको..
कभी देते वो खलिश और कभी सुख देते.
क्या कहें देखे बिना हमने है देखा किनको..
कोई सजदा, कोई प्रेयर, कोई जस गाता है.
खुद में डूबा जो वही देख सका साजनको..
मेरा महबूब तो तेरा भी है, जिस-तिस का है.
उसने पाया उन्हें जो भूल सका है तनको..
उनके ख्यालों ने भुला दी है ये दुनिया…
Added by sanjiv verma 'salil' on December 13, 2010 at 7:34pm — 4 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on December 13, 2010 at 2:07am — 3 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on November 25, 2010 at 8:32pm — 1 Comment
Added by sanjiv verma 'salil' on November 24, 2010 at 8:49pm — 5 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on November 24, 2010 at 12:53am — 5 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on November 24, 2010 at 12:00am — 1 Comment
Added by sanjiv verma 'salil' on November 15, 2010 at 1:00am — 2 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on November 11, 2010 at 9:32pm — 2 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on November 11, 2010 at 9:55am — 3 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on November 8, 2010 at 6:14pm — 5 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on November 4, 2010 at 8:38pm — 2 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on November 4, 2010 at 8:29am — 2 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on November 1, 2010 at 9:25am — 1 Comment
Added by sanjiv verma 'salil' on October 28, 2010 at 10:08am — 2 Comments
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