For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Nilesh Shevgaonkar's Blog (189)

ग़ज़ल: नूर: गोया सस्ती शराब हो बैठे.

२१२२/१२१२/२२ (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)



तुम तो सचमुच सराब हो बैठे.

यानी आँखों का ख़्वाब हो बैठे

.

साथ सच का दिया गुनाह किया   

ख्वाहमखाह हम ख़राब हो बैठे.   

.

फ़िक्र को चाटने लगी दीमक

हम पुरानी क़िताब हो बैठे.

.

उनकी नज़रों में थे गुहर की तरह  

गिर गए!!! हम भी आब हो बैठे.

.

अब हवाओं का कोई खौफ़ नहीं

कुछ चिराग़ आफ़्ताब हो बैठे.

.

ऐरे ग़ैरों के…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 19, 2015 at 12:18pm — 26 Comments

ग़ज़ल-नूर

१२२२/ १२२२ / १२२ 

न जानें क्या से क्या जोड़ा करेंगे

तुम्हारे ग़म में दिल थोडा करेंगे.

.

तुम्हारे साथ हम पीते रहे हैं  

तुम्हारी नाम की छोड़ा करेंगे.

.

तुम्हारी आँख का हर एक आँसू

हम अपनी आँख में मोड़ा करेंगे.

.

घरौंदे रेत के क्यूँ ग़ैर तोड़े

बनाएंगे, हमीं तोडा करेंगे.  

.

नपेंगे आज सारे चाँद तारे

हम अपनी फ़िक्र को घोडा करेंगे.

.

ख़ुदा को…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2015 at 11:12am — 14 Comments

ग़ज़ल नूर- बातों को ज़हरीला होते देखा है.

२२२२/२२२२/२२२ 

.

आँखों को सपनीला होते देखा है

ख़्वाबों को रंगीला होते देखा है.

.

क़िस्मत ने भी खेल अजब दिखलाए हैं

पत्थर भी चमकीला होते देखा है.

.

सादापन ही कौम की थी पहचान जहाँ

पहनावा भड़कीला होते देखा है.

.

मुफ़्त में ये तहज़ीब नहीं हमनें पायी

शहरों को भी टीला होते देखा है.

.

कुर्सी की ताक़त है जाने कुछ ऐसी

बूढा, छैल-छबीला होते देखा है.    

.

आज…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 17, 2015 at 2:50pm — 17 Comments

ग़ज़ल-नूर -आँख से उतरा नहीं है

२१२२/२१२२ 

आँख से उतरा नहीं है 

बस!! कोई रिश्ता नहीं है. 



हम पुराने हो चले हैं 

आईना रूठा नहीं है.



मुस्कुराहट भी पहन ली  

ग़म मगर छुपता नहीं है.



साथ ख़ुशबू है तुम्हारी …

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 16, 2015 at 10:42pm — 20 Comments

ग़ज़ल-नूर-ख़ुदा का ख़ौफ़ करो

१२१२/ ११२२/ १२१२/ २२ (सभी संभव कॉम्बिनेशन्स)



हमें न ऐसे सताओ ख़ुदा
का ख़ौफ़ करो

ज़रा क़रीब तो आओ ख़ुदा का
ख़ौफ़ करो. …

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2015 at 2:00pm — 26 Comments

ग़ज़ल- निलेश 'नूर' रुसवाइयों से रोज़ मुलाक़ात काटिये

गागा लगा लगा लल गागा लगा लगा 



रुसवाइयों से रोज़ मुलाक़ात काटिये

जबतक है जान जिस्म में, दिनरात काटिये.

.

है आप में अना तो अना मुझ में भी है कुछ 

यूँ बात बात पे न मेरी बात काटिये.  

.

ये कामयाबियों के सफ़र के पड़ाव हैं  

अय्यारियाँ भी सीखिए जज़्बात काटिये.

.

अगली फसल कटे तो करें इंतज़ाम कुछ

तब तक टपकती छत में ही बरसात काटिये.

.

ये इल्तिज़ा है आपसे इस मुल्क के…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 7:57am — 28 Comments

ग़ज़ल -नूर -मुश्किल सवाल ज़ीस्त के आसान हो गए

22 12 12 11 22 12 12

मुश्किल सवाल ज़ीस्त के आसान हो गए,

ता-हश्र हम जो कब्र के मेहमान हो गए.

.


जब से कमाई बंद हुई सब बदल गया

अपनों पे बोझ हो गए सामान हो गए.

.

मेरे ये हर्फ़ बन न सके गीत और ग़ज़ल

उनके तो वेद हो गए कुर’आन हो गए.

.

उसने बना के…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 30, 2015 at 1:50pm — 28 Comments

ग़ज़ल -नूर -मेरे यार तराज़ू निकले.

22/22/22/22 (सभी संभव कॉम्बीनेशंस)



यादो के जब पहलू निकले

जंगल जंगल आहू निकले.     आहू-हिरण

.

काजल रात घटाएँ गेसू

उसके काले जादू निकले.

.

जज़्बातों को रोक रखा था

देख तुझे, बे-काबू निकले.

.

चाँद मेरी पलकों से फिसला   

आँखों से जब आँसू निकले.

.

तेरे ग़म में जब भी डूबा, 

मयखानों के टापू निकले. 

.

भीग गया धरती का आँचल  

अब मिट्टी से ख़ुशबू…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 29, 2015 at 8:30am — 22 Comments

ग़ज़ल -नूर 'मैं काफ़िर हूँ प् ना-शुक्रा नहीं हूँ'

१२२२/१२२२/१२२ 



किसी की आँख का क़तरा नहीं हूँ

ग़ज़ल में हूँ मगर मिसरा नहीं हूँ.

.

न जाने क्या करूँगा ज़िन्दगी भर  

तेरे सदमे से मैं उबरा नहीं हूँ.

.

अना से आपकी टकरा गया था

मैं टूटा हूँ मगर बिखरा नहीं हूँ.

.

खुदाया हश्र पर नरमी दिखाना

मैं काफ़िर हूँ प् ना-शुक्रा नहीं हूँ.

.

सफ़र में हूँ, कोई सूरज हो जैसे

कहीं भी एक पल ठहरा नहीं हूँ.

.

तराशेगी…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 28, 2015 at 10:08am — 12 Comments

ग़ज़ल -नूर



कहते हैं इल्ज़ाम छुपाकर रक्खा है

मैंने तेरा नाम छुपाकर रक्खा है.

.

झाँक के देखो मेरी इन आँखों में तुम

अनबूझा पैग़ाम छुपाकर रक्खा है.

.

शायद वो हो मुझ से भी ज़्यादा प्यासा

उसकी ख़ातिर जाम छुपाकर रक्खा है.

.

जिसको तुम सब कहते हो ईमाँ वाला,

उसने अपना दाम छुपाकर रक्खा है.

.  

आया है वो आज जुबां पर गुड लेकर

शायद कोई काम छुपाकर रक्खा है.

.

मस्जिद की…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2015 at 11:21pm — 24 Comments

ग़ज़ल-निलेश "नूर"

२१२२/ २१२२/ २१२२/२१२२ 



हादसा टूटा जो मुझ पे हादसा वो कम नहीं है

ग़म ज़माने का मुझे है इक तेरा ही ग़म नहीं है.  

.

या ख़ुदा! तेरे जहाँ का राज़ मैं भी जानता हूँ,

हैं ख़ुदा हर मोड़ पर लेकिन कहीं आदम नहीं है.

.

तेरे वादे की क़सम मर जाएँ हम वादे पे तेरे,

क्या करें वादे पे तेरे तू ही ख़ुद क़ायम नहीं है. 

.

ज़ख्म वो तलवार का हो वार हो चाहे जुबां का

वक़्त से बढकर जहाँ में कोई भी मरहम…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2015 at 8:00am — 24 Comments

शामिल न हुए अब तक हम उनकी दुआओं में,

(दोस्तों मतला लिखा था तरही मुशायरे के लिए ...लेकिन कल पेशावर की घटना ने इतना भाव विह्वल कर दिया कि जो कुछ बन पड़ा है,   बच्चो को श्रद्धांजली के रूप में आज ही पेश कर रहा हूँ .)



शामिल न हुए अब तक हम उनकी दुआओं में,

पर आज भी रखते हैं हम उनको ख़ुदाओं में.



हैवान हुए जाते हो अपनी…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on December 17, 2014 at 9:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल -निलेश "नूर"

मेरे दिल से ये भी न पूछिए, कि जला कहाँ ये बुझा कहाँ,

जो शरर था आग़ था ख़ाक है लगी इसको ऐसी हवा कहाँ.

.

कई संग उठे हैं मेरी तरफ़, कई उँगलियाँ मेरी ओर हैं,  

जो सज़ा मिली है गुनाह की वो गुनाह मैंने किया कहाँ.

.

मेरे लडखडाने की देर है, मुझे मयपरस्त कहेंगे सब,

उन्हें क्या पता मुझे इश्क़ है, कभी जाम मैंने छुआ कहाँ.     

.  

जो ख़ुदा कहे यहीं जम रहूँ, जो इशारा हो अभी चल पडूँ,

ये जो वक़्त है ये घड़ी का है, ये कभी किसी का हुआ कहाँ.   

.

ये…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2014 at 11:09am — 12 Comments

एक ग़ज़ल आपके हवाले

उल्टा सीधा बोल रही है दुनिया मेरे बारे में,

अखबारों ने छापा क्या कुछ, पढना मेरे बारे में.  

.

इस दुनिया में मिल न सकेंगे अगली बार मिलेंगे हम,

अर्श को जो भी अर्ज़ी भेजो, लिखना मेरे बारे में.

.

उनकी ज़ात से वाक़िफ़ हूँ, वो बाज़ नहीं आने वाले,

सर पर लेकर घूम रहे हैं फ़ित्ना मेरे बारे में.     

.

अपने दिल में एक दीया तुम मेरे नाम जला रखना, 

आँधी जाने सोच रही है क्या क्या मेरे बारे में.

.

मज्लिस से बाहर कर बैठे, उनकी जान में जाँ…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2014 at 1:00pm — 14 Comments

ग़ज़ल -निलेश "नूर"

२१२२/ २१२२/२१२२/२१२ 

.

जाने कितने ग़म उठाता हूँ ख़ुशी के नाम पर,

ज़हर मै पीता रहा हूँ तिश्नगी के नाम पर.

.

ऐ सिकंदर!! जंग तूने जो लड़ी, कुछ भी नहीं,

जंग तो मै लड़ रहा हूँ ज़िन्दगी के नाम पर.

.

अधखिली कलियों की बू ख़ुद लूटता है बागबाँ,

शर्म सी आने लगी है आदमी के नाम पर.

.

शुक्रिया उस शख्स का जिसने बना…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on September 6, 2014 at 5:25pm — 27 Comments

ग़ज़ल-निलेश "नूर"

२१२२/११२२/22 (११२)

.

यूँ वफ़ाओं का सिला मिलता रहा,

ज़ख्म हर बार नया मिलता रहा.

.

एक छोटी सी मुहब्बत का गुनाह,

और इल्ज़ाम बड़ा मिलता रहा.

.

मै तुझे दोस्त मेरा कैसे कहूँ,

तू भी तो बन के ख़ुदा मिलता रहा..

.

कोई मंज़िल न मिली मंज़िल पर,

सिर्फ मंज़िल का पता मिलता रहा.

.…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on September 4, 2014 at 4:30pm — 27 Comments

ग़ज़ल ..तालीम-ओ-तरबीयत ने यूँ ख़ुद्दार कर दिया

गागा लगा लगा /लल /गागा लगा लगा 



तालीम-ओ-तरबीयत ने यूँ ख़ुद्दार कर दिया,

चलने से राह-ए-कुफ़्र पे इनकार कर दिया.

.

मै ज़ीस्त के सफर में गलत मोड़ जब मुड़ा,

मेरी ख़ुदी ने मुझको ख़बरदार कर दिया.

.

इज़हार-ए-इश्क़ में वो नज़ाकत नहीं रही, …

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on August 25, 2014 at 6:00pm — 33 Comments

ग़ज़ल -ख़ताएँ कुछ रही होंगी, सज़ाए ज़िन्दगी लायक

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२ 

.

इरादे मैं यकीनन आज भी छोटे नहीं रखता,

मगर आँखों में अब अपनी तेरे सपने नहीं रखता.  

.

बड़ी शिद्दत से अपने इश्क़-ओ-रंजिश मै निभाता हूँ 

ख़बर रखता तो हूँ सबकी मगर फ़ि
तने नहीं रखता.

.

दिखाएगा वही सबको जो होंगे सामने उसके,

छुपाकर आईना कोई कभी चेहरे…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on August 17, 2014 at 9:30pm — 7 Comments

छोटी बह्र की एक ग़ज़ल-रात

जैसे जैसे बिख़री रात,

बिस्तर बिस्तर पिघली रात.

.

चाँद के साथ बदलती रँग,

काली भूरी कत्थई रात.

.

चाँद ज़मीं पर उतरा था,

हुई अमावस पिछली रात.

.

एक शम’अ थी साथ मेरे,  

फिर भी तन्हा सुलगी…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on August 12, 2014 at 10:24pm — 15 Comments

एक ग़ज़ल -जब दिल की धड़कने हों थमीं, क्यूँ जिगर चले?

22121211221212

.


जब रात ढल गई तो सितारे भी घर चले,

कुछ रिंद लड़खड़ाके चले थे, मगर चले. 

.

कुछ सोचने दो मुझ को कमाई का रास्ता. 

शेरो सुखन के दम पे भला कैसे घर चले. 

.

क्या है पड़ी मुझे कि जियूँ मै तेरे बग़ैर, 

जब दिल की धड़कने हों थमीं, क्यूँ जिगर चले? 

.

अब छोड़िये भी फ़िक्र हमारी हुज़ूर आप, …

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on August 10, 2014 at 11:00pm — 4 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
6 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
8 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service