मुतकारिब मुसम्मन सालिम
१२२ १२२ १२२ १२२
तुम्हे आज प्रिय नीद ऐसी सुलायें
झरें इस जगत की सभी वेदनायें I
नहीं है किया काम बरसो से अच्छा
चलो नेह का एक दीपक जलायें I
गरल प्यार में इस कदर जो भरा है
असर क्या करेंगी अलायें-बलायें I
तुम्हारी अदा है धवल -रंग ऐसी
कि शरमा गयी चंद्रमा की कलायें I
जगी आज ऐसी विरह की तड़प है
सहम सी गयी है सभी चेतनायें…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 5, 2015 at 8:00pm — 34 Comments
मुतकारिब मुसद्दस सालिम
१२२ १२२ १२२
अधूरा मिलन है हमारा
नहीं प्यार ऐसा गवारा I
मिले गर न हम इस जनम में
जनम साथ लेंगे दुबारा I
भटकता अकेला गगन में
विपथ एक टूटा सितारा I
समय की बड़ी बात होती
कहाँ आज जश्ने बहारा I
तपस्या सदृश मूक जीवन
सभी ने जतन से संवारा I
अभी से थका जीव-मांझी
बहुत दूर पर है किनारा I
कहाँ…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2015 at 5:30pm — 18 Comments
मुतदारिक मुसद्दस सालिम
212 212 212
सो गया सो गया सो गया
चाँद आकाश में खो गया I
ढूंढते थे जिसे उम्र भर
लो यहीं था अभी तो गया I
प्यार का बीज मन में मेरे
कोई चुपके से आ बो गया I
नैन जबसे उलझ ये गये
चैन ना जाने क्या हो गया I
चोट खाया बहुत प्यार में
वो दिवाना अभी जो गया I
था सहारा बहुत प्यार से
दूर लेकिन चला वो गया…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 2:00pm — 20 Comments
(212 212)
मुतदारिक मुरब्बा सालिम
चांदनी रात है
वाह क्या बात है I
रात का तम गया
अब धवल प्रात है I
मौन वंशी लिए
वह खड़ा तात है I
पुष्प के बाण से
काम का घात है I
राग-अनुराग की
दिव्य बरसात है I
कामना है मधुर
भाव अवदात है I
नन्द का लाडला
नेह निष्णात है I
आपगा तीर पर
राधिका स्नात है I
नेह…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 30, 2015 at 1:37pm — 29 Comments
भगवान किसी को लडकी न दे I लडकी दे तो उसे जवान न करे I जवान करे तो उसे खूबसूरत न बनाये I एक अदद जवान, खूबसूरत और कुमारी कन्या का खुशनसीब बाप होने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ I पहले मैं समझता था की स्वस्थ और सुन्दर लडकी का पिता होना एक गौरव की बात है I इससे न केवल उसका विवाह करने में आसानी होगी बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उसे नर्तकी या अभिनेत्री भी बनाया जा सकता है और यदि उसमे कामयाबी न मिली तो किसी प्राईवेट फर्म में रिसेप्शनिस्ट का चांस तो पक्का ही है I लेकिन मेरे इन सभी सपनो पर उस समय…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 26, 2015 at 7:00pm — 18 Comments
(यहाँ प्रति दोहे में वृत्यानुप्रास है किन्तु सम्पुर्ण रचना में छेकानुप्रास है अंतर यह है की वृत्यानुप्रास में एक ही वर्ण की पुनरावृत्ति होती है जबकि छेका में अनेक वर्णों की )
गा-गाकर गौरव गिरा गरिमामय गन्धर्व
गीर्वाण गुरु, गीतिमय , गान-ज्ञान गुण गर्व I
भक्त भगवती भारती भूरि भावमय भव्य
भावशवलता, भ्रान्तिता भ्रमित भनिति भवितव्य I
वीणापाणि वरानना वरे विदुष विद्वान
वाणी-वाणी वत्सला वर्ण-वर्ण वरदान I
शुभ्र…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 24, 2015 at 11:00am — 31 Comments
पुरवा बयार सी
मद भरे ज्वार सी
फूलो में जवा सी
स्पर्श में हवा सी
महुआ की गंध सी
पाटल सुगंध सी
आमों की बौर सी
करौंदे की झौर सी
नीम की महक सी
पलाश की दहक सी
टूटे मोर पंख सी
पूजागृह के शंख सी
मंदिर के दीप सी
मोती भरी सीप सी
जल भरे डोल सी
विद्युत् कपोल सी
लहराते व्याल सी
दृप्त इंद्रजाल सी
पावस की धार सी
राधा के प्यार सी
पतझड़ के अंत सी
सौरभ बसंत…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 19, 2015 at 6:30pm — 25 Comments
अमीर खुसरो की रचना
जिहाल-ए-मिस्कीं मकुन तगाफुल, दुराय नैना बनाय बतियाँ।
कि ताबे हिज्राँ, न दारम ऐ जाँ, न लेहु काहे लगाय छतियाँ।।
शबाने हिज्राँ दराज चूँ जुल्फ बरोजे वसलत चूँ उम्र कोताह।
सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ।
यकायक अज़दिल दू चश्मे जादू बसद फरेबम बवुर्द तस्कीं।
किसे पड़ी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 17, 2015 at 4:00pm — 23 Comments
222 222 2
बातो के लच्छे लाये
यारो दिन अच्छे लाये
भारत को फिर से तुमने
दिन में नक्षत्र दिखाये
संसार पसारे आँचल
तुमने बहु नाच नचाये
पहले नजरे की ऊंची
अब फिरते आँख चुराये
हम अपना दर्द सुनाते
तुम अपनी जाते गाये
दूरागत ढोल सुहाने
जब जाना तब पछताये
थे रंक, बनाया राजा
तुम हम पर ही गुर्राये
ईश्वर देखेगा तुमको
हम नत…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 15, 2015 at 9:00pm — 12 Comments
‘सुना है औलिया से आपका बड़ा याराना है ?’
विजय के उन्माद में झूमते हुए सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने अमीर खुसरो से कहा I बादशाह की फ़ौज युद्ध में विजयी होकर दिल्ली की ओर वापस हो रही थी I सुल्तान तुगलक एक लखनौती हाथी पर सवार था I अमीर् खुसरो बादशाह के बगलगीर होकर दूसरे हाथी पर चल रहे थे I
‘तौबा हुजुर ---‘ खुसरो ने चौंक कर कहा “आप भी लोगो के बहकावे में आ गए सुल्तान I वह मेरे पीर-ओ-मुर्शिद हैं I मै उनका अदना सा शागिर्द हूँ I ’
‘तो क्या सचमुच तुम दोनों में बस यही सम्बन्ध…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 11, 2015 at 6:30pm — 21 Comments
कैसा यह ---
जिसे विश्व कहता है
बलात्कारो का देश
जिसकी राजधानी को
रेप सिटी कहते हैं
जिस देश में आंकड़े बताते है
हर बीस मिनट पर
होता है एक रेप
जहां के सांसद और विधायक
अभियुक्त है
अनेक हत्या और बलात्कार के
जिन पर होती नहीं कोई कार्यवाही
जहां बलात्कार के बाद होती है हत्या
जहाँ तंदूर में जलाई जाती है नारी
जहाँ रेप के बाद निकली जाती है आँखे
जहाँ निर्भया की चीखती है अतडियाँ
जहा प्रतिबन्धित…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 8, 2015 at 6:30pm — 26 Comments
रख दिए उसने
छोटी सी अटैची में
कुछ कपडे सहेज के
जो जरूरी हैं सफ़र के लिए
क्योंकि वह पत्नी है जानती है
मेरी आवश्यकताये
मै जानता हूँ
उसमे क्या होगा
एक जोड़ी कपडे, कच्छा-बनयाईन
परफ्यूम की शीशी, शेव का सामान
एक टूथ-ब्रश, जीभी और पेस्ट
छोटा सा कंघा, फकत एक शीशा
लंच का पैकेट भी
है कुछ मेरी
अपनी भी तैयारियां
पसंद का रूमाल सादा और…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 7, 2015 at 8:30pm — 14 Comments
पुलिस को पीछे आते देखकर डाकू रुक गये I इंस्पेक्टर ने ध्वनि विस्तारक यंत्र का प्रयोग कर कहा – ‘पुलिस ने कोई घेरा नहीं डाला है सरदार से कहो बात करे I’
’अरे हम है धन्ना सिंह I आवा हो इंस्पेक्टर तोहार हिस्सा तैयार बा, ल्या और ऐश करा I’- सरदार ने आगे आकर इंस्पेक्टर को एक पैकेट दिया I दोनों ने मुस्कराकर हाथ मिलाया I जाते-जाते सरदार ने एक कान्स्टेबिल के पैरो में गोली मार दी I कान्स्टेबिल गिर पड़ा I डाकू चले गए I कुछ देर बाद उस राह से दो राहगीर गुजरे I इंस्पेक्टर ने उन्हें गोली मार…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 2:30pm — 21 Comments
मदिरा सवैय्या (7 भगण +गुरु ) कुल वर्ण 22
चेतन-जंगम के उर में अविराम सुधा सरसावत है
रंग भरे प्रति जीवन में हिय आकुल पीर बढ़ावत है
बालक वृद्ध युवा सबके यह अंतस हूक जगावत है
पावन है मन-भावन है रुत फागुन की मधु आवत है
सुमुखी सवैय्या (7 जगण +लघु+गुरु ) कुल वर्ण 23
मरोर उठी वपु में जब से यह लक्षण भेद बताय गयी
सयान सबै सनकारि उठे तब भावज भी समुझाय गयी
हुयी अब बावरि वात अनंग अनीक अली नियराय गयी
मथै…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 28, 2015 at 1:00pm — 27 Comments
फिर हुआ सागर-मंथन
नए कल्प में
इस बार रत्न निकले – तेरह
देवता व्यग्र ! विष्णु हैरान !
कहाँ गया अमृत-घट ?
समुद्र ने कहा –
अब वह जल कहाँ
जिसमे होता था अमृत
जिसे मेरी गोद में
डालती थी गंगा
जिससे भरता था घट
अब तो शिव ने भी
दो टूक कह दिया है
नहीं…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 25, 2015 at 5:00pm — 6 Comments
सुना सहसा उसने
और दिल बैठ गया
तड़प रहे अंतस में
नया डर पैठ गया
तकिये पर सिर छिपा
विवश वह लेट गया
आंसुओं की परतें अनगिन
दर्द में समेट गया
अगले रविवार फिर
वही मंजर आयेगा
मौन-प्रेम सिसकेगा
तडपकर मर जाएगा
एक कन्या बेमन से अनचाहा वर वरेगी
प्यार के शव पर ही मांग वह भरेगी
अभी उसके व्याह का…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 23, 2015 at 7:38pm — 24 Comments
‘दो टिकट बछरावां के लिए’ –मैंने सौ का नोट देते हुए बस कंडक्टर से कहा I
‘टूटे दीजिये, मेरे पास चेंज नहीं है I’
‘कितने दूं ?’
‘बीस रुपये ‘
मैंने उसे बीस रूपए दे दिये और पर्स सँभालने में व्यस्त हो गया I वह रुपये लेकर आगे बढ़ गया I
-'क्या कंडक्टर ने टिकट दिया ?'- सहसा मैंने पत्नी से पूछा i
‘नहीं तो ‘ उसने चौंक कर कहा I तभी बगल की सीट पर बैठा एक अधेड़ बोल उठा –‘टिकट भूल जाइये साहेब , बछरावां के दो टिकट तीस रुपये के हुए उसने आपसे बीस ही तो लिए i दस का…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 21, 2015 at 8:39pm — 19 Comments
दशाश्वमेध घाट पर
कुछ उत्तर आधुनिक भारतीय
कर रहे थे स्नान
शैम्पू और विदेशी साबुन के साथ
दूर –दूर तक फैलकर झाग
धो रहा था अमृत का मैल
गंगा ने उझक कर देखा
फिर झुका लिया अपना माथ
साक्षी तो तुम भी हो
काशी विश्वनाथ !
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 17, 2015 at 4:16pm — 24 Comments
आधी रात
चांदनी और छाँव
तस्करों का हरा-हरा गाँव
जालिमो में कुछ अधेड़
कुछ तरु, कुछ वृक्ष, कुछ पेड़
कुछ घर थे गरीबों के भी
दांतों के बीच जीभों के भी
सचमुच बदनसीबों के भी
आधी रात
चांदनी और छाँव
सन्नाटे में डरा-डरा गाँव
एक गरीब बुढ़िया के द्वार
तेजी से आया इक घुड़सवार
बुढिया की बेटी को…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 10:54am — 14 Comments
‘अजी सुनते हो ---
‘हाँ सुनाओ, ‘
‘वह मिसेज मल्होत्रा की बहू, जिसके फरवरी में बेटा हुआ था I वह बेटा निमोनिया से मर गया और हमारी जो महरिन है इसकी ननद के भी लल्ला हुआ था, वह भी तीन दिन पहले डायरिया से मर गया और अपनी बेटी की सहेली -----‘
‘--- उसका बच्चा भी मर गया होगा I’
‘हां बिलकुल ---- ‘
‘मगर यह स्टैटिक्स तुम मुझे क्यों बता रही हो ?’
‘किसे बताऊँ, एक वह अपनी पोती है I छह महीने की हो गयी, उसे जुकाम तक न हुआ I’
(मौलिक व् अप्रकाशित…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 24, 2015 at 9:10pm — 32 Comments
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |