एक बार की बात है. किसी जंगल का राजा एक शेर था.
एक हुए दोहा यमक:
संजीव 'सलिल'
*
लिए विरासत गंग की, चलो नहायें गंग.
भंग न हो सपना 'सलिल', घोंटें-खायें भंग..
*
सुबह शुबह में फर्क है, सकल शकल में फर्क.
उच्चारण में फर्क से, होता तर्क कु-तर्क..
*
बुला कहा आ धार पर, तजा नहीं आधार.
निरा धार होकर हुआ, निराधार साधार..
*
ग्रहण किया आ भार तो, विहँस कहा आभार.
देय - अ-देय ग्रहण किया, तत्क्षण ही साभार..
*
नाप सके भू-चाल जो बना लिये हैं यंत्र.
नाप सके भूचाल जो, बना न पाये…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 27, 2011 at 7:30am — 1 Comment
नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
---------------अंतिम अंक --------------------
"कौन है?" मैंने हड़बड़ाकर पूछा .
Added by satish mapatpuri on September 26, 2011 at 10:00pm — 2 Comments
एक गीत:
गरल पिया है...
संजीव 'सलिल'
*
तुमने तो बस गरल पिया है...
तुम संतोष करे बैठे हो.
असंतोष को हमने पाला.
तुमने ज्यों का त्यों स्वीकारा.
हमने तम में दीपक बाला.
जैसा भी जब भी जो पाया
हमने जी भर उसे जिया है
तुमने तो बस गरल पिया है...
हम जो ठानें वही करेंगे.
जग का क्या है? हँसी उड़ाये.
चाहे हमको पत्थर मारे
या प्रशस्ति के स्वर गुंजाये.
कलियों की रक्षा करने को
हमने पत्थर किया हिया है…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 26, 2011 at 9:30pm — 1 Comment
Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 26, 2011 at 12:05pm — 1 Comment
Added by Lata R.Ojha on September 25, 2011 at 11:42pm — 2 Comments
ये जंग की घड़ी नहीं,
न देश ये गुलाम है ..
फिर क्यों हम आम जनता ,
इस देश में फटेहाल है?
हम उलझे है अपनी चिंताओ में ,
देश की हम सोचे भी क्या ??
हमे मार दिया महंगाई ने ,
भ्रष्टो का कर पायेंगे क्या??
बीता वर्ष घोटालो का था,
नए वर्ष में अब होगा क्या ?
आज हर और जब घोटाला है,
तो फिर कैसी ये व्यवस्था है..
कैसा ये जनतंत्र है,
जिसमे पीस रही जनता है??
हम सबने सुने है नेताओं के कुचर्चे,
पर किसी ने उनका अंजाम सूना??
जब…
Added by सन्नी on September 25, 2011 at 10:51pm — 3 Comments
एक हुए दोहा यमक:
-- संजीव 'सलिल'
*
हरि से हरि-मुख पा हुए, हरि अतिशय नाराज.
बनना था हरि, हरि बने, बना-बिगाड़ा काज?
हरि = विष्णु, वानर, मनुष्य (नारद), देवरूप, वानर
*
नर, सिंह, पुर पाये नहीं, पर नरसिंहपुर नाम.
अब हर नर कर रहा है, नित सियार सा काम..
*
बैठ डाल पर काटता, व्यर्थ रहा तू डाल.
मत उनको मत डाल तू, जिन्हें रहा मत डाल..
*
करने कन्यादान जो, चाह रहे वरदान.
करें नहीं वर-दान तो, मत कर कन्यादान..
*
खान-पान कर…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 25, 2011 at 9:00am — 1 Comment
# साँई स्तवन #
जनम सफल कर ले, भवसागर तर ले,
छुट जायेंगे सारे फंदे, साँई चरण धर ले....
१. कौन सहारा देगा तुझको सोच ज़रा,
तुझे कहाँ ले जाएगा अभिमान तेरा,
अंत समय क्या तेरे साथ चलेगा जग ?…
Added by डॉ. नमन दत्त on September 25, 2011 at 8:17am — No Comments
Added by rajkumar sahu on September 25, 2011 at 1:13am — 1 Comment
(1)
बड़े प्यार से जो दुलरावै|
हमको अपने गले लगावै|
प्रीति-रीति में हम हों बंदी|
क्यों सखि साजन? नहिं सखि हिंदी!
_________________________
(2)
अलंकार से सज्जित सोहै|
रस की वृष्टि सदा मन मोहै |
मिल जाता है परमानन्द |
क्यों सखि साजन? नहिं सखि छंद |
__________________________
(3)
परम संतुलित जिसका भार|
गुरु लघु रूप बना आधार!
जन-जन को है जिसने मोहा|
क्यों सखि साजन? नहिं सखि…
Added by Er. Ambarish Srivastava on September 24, 2011 at 11:00pm — 23 Comments
नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
--------------- अंक - छः ---------------------
बम सदृश धमाका हुआ ......................मुझे कानों पर पर विश्वास नहीं हो रहा था पर यथार्थ हर हालत में यथार्थ ही होता है. मैं शालू का प्रस्ताव सुनकर अवाक था .
"शालू , जानती हो तुम क्या कह रही हो ?"
"अच्छी तरह. आपने ही तो कहा था कि बार-बार कहा जाने वाला झूठ भी सच हो जाता है . आज सब लोग मुझे आपकी प्रेमिका और महबूबा कह रहे हैं . मेरे नाम के साथ आपका नाम जोड़…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 24, 2011 at 10:20pm — No Comments
Added by वीनस केसरी on September 24, 2011 at 2:00am — 24 Comments
नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
--------------- अंक - पांच ---------------------
उसे देखते ही शालू तीर की तरह निकल गयी
सुबह संजय से मालूम हुआ कि रात में शालू को बेहरहमी से पीटा गया है . समाज की संकीर्णता देखकर मेरा मन क्षुब्ध हो उठा .किसी लड़की का किसी लड़के से मिलने का एक ही मतलब निकालने वाला यह समाज सजग एवं सचेत रहने के नाम पर भयंकर लापरवाही का परिचय देता रहता है . शालू पर , जो अभी यौवन के पड़ाव से कुछ दूर ही थी , उसकी मां ने सुरक्षा के ख्याल…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 23, 2011 at 9:06pm — 2 Comments
Added by Kailash C Sharma on September 23, 2011 at 7:00pm — 1 Comment
(१)
जब आए - तो रस बरसाए
न आए - तो बड़ा सताए
कोई न ऐसा मनभावन
ऐ सखी साजन?? न सखी सावन ।
(२)
मोरे पास - तो करे मगन
दूजे के संग - देत जलन
न जग मे कोई वाके जैसा
ऐ सखी साजन?? न सखी पैसा |
(३)
हमरे जीवन कै आधार
वो ही तो सगरा संसार
बड़ा सोच के रचिन रचैया
ऐ सखी साजन?? न सखी मैया
Added by Vikram Srivastava on September 23, 2011 at 3:00pm — 13 Comments
Added by Vikram Pratap on September 23, 2011 at 2:25pm — 1 Comment
नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
--------------- अंक - चार ---------------------
मैं सोच नहीं पा रहा था की इस नयी परिस्थिति का किस तरह सामना करूँ . शालू जाने लगी तो मैनें उसे पकड़ कर पुनः बिठा दिया .
" शालू ,मुझे गलत मत समझो. मेरे दिल में तुम्हारे लिए अब भी वहीँ स्नेह है, पर मां की आज्ञा तुम्हें माननी चाहिए."
शालू का मेरे यहाँ आना-जाना अब काफी कम हो गया था. वह मेरे यहाँ तब ही आती थी जब उसकी मां और मधु या तो घर से बाहर हों या सो गयी…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 22, 2011 at 10:56pm — 2 Comments
मैं हूँ सामान्य वर्ग का एक सामान्य अधेड़
न, न, अभी उम्र पचास की नहीं हुई
केवल पैंतीस की ही है
मगर अधेड़ जैसा लगने लगा हूँ
मेरी गलती यही है
कि मैं विलक्षण प्रतिभा का स्वामी नहीं हूँ
न ही किसी पुराने जमींदार की औलाद हूँ
एक सामान्य से किसान का बेटा हूँ मैं
बचपन में न मेरे बापू ने मेरी पढ़ाई पर ध्यान दिया
न मैंने
नौंवी कक्षा में मुझे समझ में आया
कि इस दुनिया में मेरे लिए कहीं आशा बाकी है
तो वह पढ़ाई में ही है
तब मैंने पढ़ना…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 22, 2011 at 3:38pm — 17 Comments
नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
--------------- अंक - तीन ---------------------
वह बड़ी हो चुकी थी. सदैव की भाँती एक दिन वह आकर मेरे बगल में बैठ गयी . मैं कुछ परेशान था .
"मुझसे नाराज है अंकल?" उसने पूछा .
"नहीं तो . सर में हल्का दर्द है ." मैंने यूं ही उसे टालने के ख्याल से…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 21, 2011 at 11:26pm — 3 Comments
तेरी प्यारी सी सूरत
ममता की मूरत
तेरी आँखों से झरती करुणा
स्नेह का झरना
माँ! तेरी आँखों से झरती वो करुणा,
कब, मेरे अन्दर रिस गई,
मैं नहीं जान पाई?…
Added by mohinichordia on September 21, 2011 at 8:30pm — 2 Comments
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