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बंद दिल के पिंजरे के पंछी

दिल का पंछी
बंद दिल के पिंजरे के पंछी
चल अब उड़ जा यहाँ से रे
उजड़ गया अब बाग़ बगीचा सब लगे बेगाना रे
कुदरत ने जिसे संवारा इंसान ने उसे काट डाला रे
सुनने वाला कोइ नहीं तेरे जीवन की कहानी रे
आने वाला पल तुझे दर्द ही दिए जाए रे
इस मतलब भरी दुनिया में तेरा दर्द न जाने कोई रे
नहीं कह सकता हाले दिल किसी को है कैसी तेरी जिंदगानी रे
तेरे ही लहू से विधाता ने लिखी तेरी कहानी रे
इस बंद ह्रदय में तू कब तक फडफाड़ाऐगा चल फुर्र हो जा रे
"अभिराजअभी"

Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 9, 2011 at 6:43pm — 2 Comments

सामयिक नव गीत: मचा कोहराम क्यों?... संजीव वर्मा 'सलिल

सामयिक नव गीत



मचा कोहराम क्यों?...



संजीव वर्मा 'सलिल'

*

(नक्सलवादियों द्वारा बंदी बनाये गये एक कलेक्टर को छुड़ाने के बदले शासन द्वारा ७ आतंकवादियों को छोड़ने और अन्य मांगें मंजूर करने की पृष्ठभूमि में प्रतिक्रिया)

अफसर पकड़ा गया

मचा कुहराम क्यों?...

*

आतंकी आतंक मचाते,

जन-गण प्राण बचा ना पाते.

नेता झूठे अश्रु बहाते.

समाचार अखबार बनाते.



आम आदमी सिसके

चैन हराम क्यों?...

*

मारे गये सिपाही अनगिन.

पड़े… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 9, 2011 at 7:46am — 2 Comments

आचार्य श्यामलाल उपाध्याय की कवितायेँ :

आचार्य श्यामलाल उपाध्याय की कवितायेँ :

मित्रों!

प्रस्तुत हैं कोलकाता निवासी श्रेष्ठ-ज्येष्ठ हिंदीसेवी आचार्य श्यामलाल उपाध्याय की कुछ रचनाएँ

१. कवि-मनीषी…

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Added by sanjiv verma 'salil' on March 9, 2011 at 7:32am — 2 Comments

धनपशु का पुरस्कार

देश में अलग-अलग विधाओं व उपलब्धियों पर पुरस्कार दिए जाने की परिपाटी है। इन पुरस्कारों के लिए चुनिंदा नाम पर मुहर लगती है, मगर भ्रष्टाचार के दानव के मुखर होने के बाद इन दिनों मैं सोच रहा हूं कि देश में एक और पुरस्कार दिए जाने की जरूरत है और वो है, धनपशु पुरस्कार। देश में एक-एक कर भ्रष्टाचार की हांडी फूट रही है और टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कामनवेल्थ घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला तथा इसरो घोटाला के भ्रष्टाचार लोक से धनपशुओं का पदार्पण हो रहा है। भ्रष्टाचार कर देश को खोखला करने वाले ऐसे धनपशुओं को… Continue

Added by rajkumar sahu on March 9, 2011 at 12:11am — 1 Comment

ग़ज़ल : हर अँधेरा ठगा नहीं करता

हर अँधेरा ठगा नहीं करता

हर उजाला वफा नहीं करता

 

देख बच्चा भी ले ग्रहण में तो

सूर्य उसपर दया नहीं करता

 

चाँद सूरज का मैल भी ना हो

फिर भी तम से दगा नहीं करता

 

बावफा है जो देश खाता है

बेवफा है जो क्या नहीं करता

 

गल रही कोढ़ से सियासत है

कोइ अब भी दवा नहीं करता

 

प्यार खींचे इसे समंदर का

नीर यूँ ही बहा नहीं करता

 

झूठ साबित हुई कहावत ये

श्वान को घी पचा नहीं…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 8, 2011 at 11:30pm — 6 Comments

'औरत'... "आज"...!!

 

(("महिला-दिवस" पर महिलाओं को 'समर्पित'...))

----…

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Added by Julie on March 8, 2011 at 8:38pm — 9 Comments

मैं और आगे बढ़ते जाती हूँ

दिन-प्रतिदिन स्वयं में ही ध्वस्त हो

विच्छेद हो कण-कण में बिखर जाती हूँ

आहत मन,थका तन समेटे दुःसाध्यता से…

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Added by Venus on March 8, 2011 at 5:30pm — 3 Comments

नारी तेरी अजब कहानी हैं ,

नारी तेरी अजब कहानी हैं ,
तुम्ही माता तुम्ही बहना ,
तुम्ही बेटी तुम्ही दादी-नानी हैं ,
नारी तेरी अजब कहानी हैं ,
तुम्ही आदि शक्ति माता ,
तुम्ही ने ही धरती पे लाई बिधाता ,
सब जाने ये ना जुबानी हैं ,
नारी तेरी अजब कहानी हैं ,
आज सब कुछ बदल गया ,
जुल्म में आगे निकल गया ,
तुम्ही सास ननद और जेठानी हैं ,
नारी तेरी अजब कहानी हैं ,
नारी जलाई जाती है ,
नारी का नाम नारायणी हैं ,
ये बड़ी दुखद कहानी हैं ,
नारी तेरी अजब कहानी हैं ,

Added by Rash Bihari Ravi on March 8, 2011 at 5:30pm — 1 Comment

महिला दिवस पर विशेष

सृष्टि की अनमोल कृति
कभी दुलारती मां बन जाती
कभी बहन बन स्नेह जताती
बेटी बन जब पिया घर जाती
आँसू की धारा बह जाती
कभी पत्नी बन प्यार लुटाती
बहु बन घर को स्वर्ग बनाती
नारी तेरे बहुविध रूपों से
यह संसार चमन है
महिला दिवस पर हर नारी को बारम्बार नमन है
दुष्यंत...

Added by दुष्यंत सेवक on March 8, 2011 at 12:00pm — 5 Comments

क्या जाने

क्या जाने
 
अब मेरे ज़ब्र के है क्या माने
तू कहे क्या,करे ,ये क्या जाने
 
आँख को मूंदना अदा गोया 
पाँव छाती पे,कब हो,क्या जाने
 
फैलना इक नशा शहर का है
गाँव कब खो गया ये क्या जाने
 
मंद कंदील तुम ने बाले तो 
रोशनी हो न हो ये क्या जाने
 
हम मुसाफिर है तो चलेंगे ही 
राहे मंजिल है क्या,ये क्या…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 8, 2011 at 8:30am — 4 Comments

एक बार फिर विवादों में केएसके महानदी पावर प्लांट

छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिला अंतर्गत ग्राम नरियरा में स्थापित किए जा रहे 36 सौ मेगावाट के केएसके महानदी पावर प्लांट का जैसे लगता है, विवादों से ही नाता है। अतिरिक्त मुआवजा दिए जाने की मांग को लेकर कुछ दिनों पहले हुई किसानों की भूख-हड़ताल तथा धरना-प्रदर्शन का विवाद जैसे-तैसे थम पाया था, उसके बाद अब रोगदा बांध को बेचे जाने के मामले विधानसभा में गूंज उठा। हालात यहां तक बन गए कि विपक्षी पार्टी के विधायकों को विधानसभा में हंगामा करना पड़ा और कार्रवाई तक स्थगित करनी पड़ी। अंततः पांच सदस्यीय समिति…

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Added by rajkumar sahu on March 8, 2011 at 1:50am — No Comments

‘अभी तो अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है’

वैसे तो महिलाएं सड़क पर उतरकर बहुत कम ही लड़ाई लड़ती हैं, मगर अपनी मांग को लेकर जब नारी-शक्ति अपने पर उतर आती हैं, तो फिर किसी को भी झुकना पड़ जाता है। ऐसा ही कुछ आंदोलन कर रही हैं, नगर पंचायत नवागढ़ की सैकड़ों महिलाएं। ब्लाक मुख्यालय में संचालित शराब दुकान को हटाने नवागढ़ समेत क्षेत्र के कई गांवों की महिलाएं लामबंद हो गई हैं और वे पखवाड़े भर से तहसील कार्यालय के सामने भूूख-हड़ताल करते हुए धरना प्रदर्शन कर रही हैं। अफसरों को हर दिन मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के नाम ज्ञापन सौंपा जा रहा है, लेकिन अब तक न तो… Continue

Added by rajkumar sahu on March 8, 2011 at 1:14am — No Comments

वक़्त कुछ बहका है ऐसे

कल ही था कि जब छिपाकर, फेंक देते थे हम दातुन,

नीम क़ी कड़वी तबीयत, अब दवाई हो गयी है;

कल ही था जब जेठ क़ी, दुपहरी में हम गुल खिलाते,

गर्मियों क़ी दोपहर, अब बेईमानी हो गयी है;

आमों क़ी वे अम्बियाँ, थे हम कल जिनको चुराते,

बिकती हैं बाज़ार में वो, मेहरबानी हो गयीं हैं;

और ईखों की बदौलत, राब थे हम कल बनाते,

ताज़े गुड़ की भेलियाँ अब इक कहानी हो गयीं हैं.



वक़्त कुछ बदला है ऐसे,

जैसे फ़िल्मी गीतों में अब, नृत्य के अंदाज़ बदले;



कल तक लिखे जिन खतों… Continue

Added by neeraj tripathi on March 7, 2011 at 5:48pm — 12 Comments

द्वादश ज्योतिर्लिंग / बारह ज्योतिर्लिंग हिंदी अनुवाद: संजीव 'सलिल'

द्वादश ज्योतिर्लिंग / बारह ज्योतिर्लिंग



हिंदी अनुवाद: संजीव 'सलिल'

*

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम.

उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरं.१.



सोमनाथ सौराष्ट्र में, मलिकार्जुन श्रीशैल.

ममलेश्वर ओंकार में, महाकाल उज्जैन.१.



परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरं.

सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने.२.



भीमशंकर डाकिन्या, परलय वैद्येश.

नागेश्वर दारुकावन, सेतुबंध रामेश.२.



वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 7, 2011 at 5:39pm — 2 Comments

एक कविता: धरती _____ संजीव 'सलिल'

एक कविता

धरती

संजीव 'सलिल'

*

धरती काम करने

कहीं नहीं जाती

पर वह कभी भी

बेकाम नहीं होती.

बादल बरसता है

चुक जाता है.

सूरज सुलगता है

ढल जाता है.

समंदर गरजता है

बँध जाता है.

पवन चलता है

थम जाता है.

न बरसती है,

न सुलगती है,

न गरजती है,

न चलती है

लेकिन धरती

चुकती, ढलती,

बंधती या थमती नहीं.

धरती जन्म देती है

सभ्यता को,

धरती जन्म देती है

संस्कृति को.

तभी ज़िंदगी

बंदगी बन पाती है.

धरती… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 7, 2011 at 5:38pm — 2 Comments

मुक्तिका: बड़े नेता... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

बड़े नेता...



संजीव 'सलिल'

*
बड़े नेता.

सड़े नेता. .



मरघटों में

गड़े नेता..



स्वहित हेतु

अड़े नेता..



जड़, बिना जड़

जड़े नेता..…





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Added by sanjiv verma 'salil' on March 7, 2011 at 5:30pm — 3 Comments

" ARUNA shanbhag " -A most sorrowful story in the world

" ARUNA shanbhag " -A most sorrowful story in the world

****************************

किस लिए मासूम रूहों को तड़पने की सज़ा...

अपने बंदों की ख़ुशी से क्यूँ जला करता है तू...

मुंसिफ़े-तक़दीर मिल जाएगा तो पूछेंगे हम...

किस बिना पे…

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Added by Dinesh Choubey on March 7, 2011 at 5:00pm — 1 Comment

अबला जीवन तेरी हाय यही कहानी!

8 मार्च -अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष



जंग ए आजादी के दौर में राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त ने आंख के आंसूओं में अपनी कलम डूबाकर इन पंक्तियों की रचना की थी

अबला जीवन तेरी हाय यही कहानी !

आंचल में है दूध और आंखों में पानी

आज़ादी के दौर में यह कहानी बहुत कुछ बदल चुकी है। देश की महिलाएं  सातवें आसमान में देश का झंडा गाड़कर कल्पना चावला बन रही हैं। किरन बेदी बनकर अपराधियों से लोहा ले रही हैं। अरुणा राय और मेधा…

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Added by prabhat kumar roy on March 7, 2011 at 7:00am — No Comments

नकल का कलंक और नकेल

कई तरह के माफिया की बातंे जिस तरह अक्सर होती हैं, कुछ उसी तरह छत्तीसगढ़ में पिछले बरसांे मंे षिक्षा माफिया भी सक्रिय रहे। छत्तीसगढ़ के कई जिले नकल के लिए ही बदनाम हुए और नकल के कलंक को आज भी ढो रहे हैं। हालांकि आज स्थिति कुछ बदली हुई नजर आती हैं। सरकार और षासन की नीतियांे में बदलाव का ही परिणाम है कि फिलहाल इस बरस की बोर्ड कक्षाआंे में नकल पर नकेल होना, नजर आ रहा है। पिछले दो बरस में हुई परीक्षा की स्थिति भी कुछ ऐसी ही रही। इस सख्ती का सीधा असर छात्रांे की संख्या पर देखी जा सकती है। कई जिलांे में… Continue

Added by rajkumar sahu on March 7, 2011 at 12:46am — No Comments

मैंने प्यार किया था...............

तुमसे कितना प्यार किया ऐ कभी समझा नहीं                  

                 तुम्हारे न आने पर हम कितने उदास होते थे                   

 तुम्हें हम कितना याद करते थे,                                    

               आपने ओ कभी महसूस नहीं किया                                                  

 आप पे हमने कितना…

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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 6, 2011 at 8:00pm — No Comments

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